बॉलीवुड के मेगास्टार शाहरुख खान अपनी अपकमिंग फिल्म ‘King’ की शूटिंग के दौरान एक गंभीर injury का शिकार हो गए हैं। यह फिल्म उनकी बेटी सुहाना खान के बॉलीवुड डेब्यू का लॉन्चपैड मानी जा रही है, और शाहरुख इस प्रोजेक्ट को लेकर काफी इन्वॉल्व और प्रोटेक्टिव रहे हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, मुंबई में शूट हो रहे एक हाई-इंटेंसिटी एक्शन सीन के दौरान उन्हें यह चोट लगी, जिसके बाद वे तत्काल मेडिकल टीम की निगरानी में आए और आगे के इलाज के लिए अमेरिका रवाना हो गए।
प्रोडक्शन से जुड़े सूत्रों के अनुसार, चोट की गंभीरता को देखते हुए अमेरिका में उनकी minor surgery की गई है और डॉक्टर्स ने फिलहाल उन्हें कम-से-कम one-month bed rest की सलाह दी है। इस अपडेट के बाद फिल्म King का अगला शूटिंग शेड्यूल — जो जुलाई और अगस्त के बीच मुंबई के Film City, Golden Tobacco और YRF Studios में होना था — फिलहाल के लिए स्थगित कर दिया गया है। इन सभी लोकेशनों की बुकिंग्स को “on-hold until further notice” कर दिया गया है।
उल्लेखनीय है कि King का शेड्यूल पहले ही काफी टाइट प्लान किया गया था, जिसमें भारत के अलावा यूरोप के चार देशों में भी शूटिंग होनी है। इस पूरी इंटरनेशनल शूटिंग को एक ही शेड्यूल में पूरा करने की तैयारी थी, लेकिन अब शाहरुख की हेल्थ रिकवरी के चलते मेकर्स को rescheduling करनी पड़ रही है। माना जा रहा है कि अगला शेड्यूल अब सितंबर या अक्टूबर में शुरू हो सकता है।
शाहरुख खान के करियर में injuries कोई नई बात नहीं हैं। उन्होंने अपने तीन दशकों के फिल्मी सफर में कई बार सेट्स पर चोटें सही हैं, लेकिन हर बार वे अपने डेडिकेशन से न केवल उबरे, बल्कि और ज्यादा स्ट्रॉन्ग होकर लौटे। 1993 में फिल्म ‘Darr’ की शूटिंग के दौरान उनकी तीन पसलियां टूट गई थीं और बाएं टखने में भी गंभीर चोट लगी थी। ‘Koyla’, ‘Shakti’ और ‘Dil Se’ जैसी फिल्मों में भी शाहरुख को पीठ और कंधे की इंजरी झेलनी पड़ी थी। UK में उनकी बैक सर्जरी भी हो चुकी है।
फिल्म ‘Pathaan’ और ‘Jawan’ की ग्रैंड सक्सेस के बाद शाहरुख का यह अगला प्रोजेक्ट इंडस्ट्री और फैंस दोनों के लिए काफी खास है हालांकि मौजूदा हालात में फिल्म के निर्माण में अस्थायी रुकावट ज़रूर आई है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि शाहरुख पूरी तरह से रिकवर होकर full energy के साथ set पर वापसी करेंगे। फैंस के लिए यह एक चिंताजनक खबर हो सकती है, लेकिन उनकी पिछली कमबैक्स को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि शाहरुख एक बार फिर “King Khan” की तरह दमदार वापसी करने वाले हैं।
पटना का पारस अस्पताल शुक्रवार की सुबह उस वक्त अपराध की लाइव लोकेशन बन गया, जब इलाज के लिए मेडिकल पैरोल पर भर्ती बक्सर का कुख्यात अपराधी चंदन मिश्रा गोलियों की बौछार में मारा गया। अस्पताल की दीवारों ने पहली बार सिर्फ बीमारी नहीं, एक संगठित गैंगवार का शोर भी सुना। पांच हथियारबंद शूटर सीधे कमरे नंबर 209 तक पहुंचे और बिना समय गंवाए ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी। चंदन को गोली मारने के बाद वे उसी सटीकता से निकल भी गए जैसे अस्पताल कोई ऑपरेशन थिएटर नहीं, बल्कि उनके लिए एक ऑपरेशन टारगेट था।
हत्या के कुछ ही घंटों के भीतर यह स्पष्ट हो गया कि ये कोई सामान्य आपराधिक घटना नहीं थी। बिहार पुलिस की जांच में सामने आया कि यह पूरी साजिश पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जेल में बंद अपराधी शेरू सिंह ने रची थी। कभी चंदन और शेरू एक ही गैंग का हिस्सा हुआ करते थे, लेकिन वक्त के साथ उनका रास्ता अलग हुआ और दुश्मनी ने जगह ले ली। पुलिस के मुताबिक दोनों के बीच पुराने हिसाब चुकता करने की पटकथा जेल से ही लिखी गई थी।
जैसे ही घटना की खबर फैली, एसटीएफ और पटना पुलिस की टीमें सक्रिय हो गईं। डिजिटल सर्विलांस, मोबाइल टावर लोकेशन और सीसीटीवी फुटेज के जरिए पुलिस पश्चिम बंगाल तक जा पहुँची। वहां न्यू टाउन और आनंदपुर इलाकों से मुख्य शूटर तौसीफ उर्फ बादशाह के साथ उसके तीन साथियों नीशू खान, हर्ष कुमार और भीम कुमार को गिरफ्तार कर लिया गया। इन आरोपियों के पास से हथियार, मोबाइल और वह गाड़ी भी बरामद हुई, जिससे हत्या के बाद वे फरार हुए थे। पुलिस ने एक महिला सहित कुछ अन्य संदिग्धों को भी हिरासत में लिया है, जिनकी भूमिका जांच के दायरे में है।
गिरफ्तार आरोपियों को कोलकाता के अलीपुर कोर्ट से ट्रांजिट रिमांड पर पटना लाया गया। पूरी यात्रा को हाई-सिक्योरिटी कवर में किया गया, जहां हजारीबाग के पास गाड़ियों के ड्राइवर तक बदले गए। पुलिस का कहना है कि यह सब इस ऑपरेशन को पूरी तरह कन्फ्यूजन-प्रूफ रखने के लिए किया गया। इंटेलिजेंस इनपुट्स से यह भी स्पष्ट हुआ कि हत्या की साजिश नीशू खान के घर पर बनी थी, जहां शूटरों ने अस्पताल के अंदरूनी नक्शे से लेकर भागने के रूट तक की प्लानिंग की थी।
इस पूरे हत्याकांड में जो सबसे बड़ा सवाल उठ रहा है, वह अस्पताल की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर है। इतने हाई-प्रोफाइल अपराधी की सुरक्षा सिर्फ कागज़ों पर थी या वाकई किसी अंदरूनी मिलीभगत ने अपराधियों को रास्ता दिखाया? सीसीटीवी फुटेज में दिखता है कि शूटर बिना किसी बाधा के भीतर घुसे और वारदात के बाद निकल भी गए। पुलिस को शक है कि अस्पताल के एक डॉक्टर की भूमिका संदिग्ध है, जिसकी कॉल डिटेल और मूवमेंट की भी जांच की जा रही है।
चंदन मिश्रा एक आजीवन कारावास की सजा काट रहा था और मेडिकल पैरोल पर बाहर आया था। लेकिन यह पैरोल उसकी बीमारी के लिए नहीं, बल्कि एक और गैंगवार की स्क्रिप्ट का हिस्सा बन गया। शुरुआती जांच में हत्या को पुरानी दुश्मनी और गैंगवार से जोड़ कर देखा जा रहा है, लेकिन पुलिस इस बात की भी जांच कर रही है कि क्या इसके पीछे किसी बड़े नेटवर्क का हिस्सा या कोई पेंडिंग डील का टकराव था। यह मामला सिर्फ एक अपराधी की हत्या नहीं है, यह एक उदाहरण है कि कैसे जेलें, अस्पताल और गैंगस्टर एक ऐसी चेन में जुड़े हैं जिसे तोड़ना अब सिर्फ पुलिसिया एक्शन से नहीं होगा। जब एक सजायाफ्ता अपराधी को राजधानी के प्राइवेट अस्पताल में गोली मारी जाती है, तो यह घटना कानून व्यवस्था के कंट्रोल रूम में दर्ज नहीं होती बल्कि पूरे सिस्टम के बैकअप फेल हो जाने की चेतावनी बन जाती है।
मुंबई हाई कोर्ट ने 2006 के चर्चित लोकल ट्रेन ब्लास्ट केस में बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने 19 साल बाद इस मामले में दोषी ठहराए गए सभी 11 आरोपियों को बरी कर दिया है। हाई कोर्ट की दो जजों की विशेष पीठ जस्टिस अनिल किलोर और जस्टिस श्याम चांडक ने अपने फैसले में कहा कि prosecution यह साबित करने में पूरी तरह असफल रहा कि आरोपियों का इस आतंकी हमले से कोई सीधा संबंध था। इस केस में साल 2015 में स्पेशल कोर्ट ने 12 लोगों को दोषी ठहराया था, जिनमें से 5 को मौत की सजा और 7 को उम्रकैद दी गई थी। इनमें से एक आरोपी की पहले ही मौत हो चुकी थी। शेष 11 आरोपियों को अब हाई कोर्ट ने सबूतों की कमी और जांच में कमियों के आधार पर बरी कर दिया है।
यह हमला 11 जुलाई 2006 को हुआ, जब मुंबई की अलग-अलग लोकल ट्रेनों में सात सीरियल ब्लास्ट हुए। महज 11 मिनट के भीतर हुए इन धमाकों में 189 लोगों की मौत हो गई थी और 827 से अधिक लोग घायल हुए थे। यह भारत के इतिहास के सबसे बड़े आतंकी हमलों में से एक माना गया। घटना के कुछ समय बाद महाराष्ट्र Anti-Terrorism Squad ने 13 लोगों को गिरफ्तार किया था और 15 अन्य को फरार बताया गया, जिनमें से कुछ के पाकिस्तान में होने की आशंका जताई गई थी। कोर्ट ने फैसले में कहा कि जांच एजेंसियां धमाकों में इस्तेमाल हुए बम के प्रकार तक की पुष्टि नहीं कर सकीं। अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए सबूत जैसे नक्शे, हथियार और गवाहों की गवाही कोर्ट के मुताबिक आरोप साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं थे।
टैक्सी ड्राइवरों और eyewitnesses द्वारा आरोपियों की पहचान घटना के करीब 100 दिन बाद करवाई गई, जिसे कोर्ट ने "अविश्वसनीय" माना। अदालत ने ये भी कहा कि कबूलनामे जिनके आधार पर आरोप तय किए गए थे, वे पुलिस की मौजूदगी में लिए गए और उनपर दबाव या प्रताड़ना का संदेह है, इसलिए उन्हें admissibleनहीं माना जा सकता।
कोर्ट ने महाराष्ट्र ATS की जांच को "अधूरी और अप्रमाणित बताया। फैसले में कहा गया कि जांच प्रक्रिया में कई खामियां थीं, जिससे यह साबित नहीं हो पाया कि गिरफ्तार किए गए लोग ही हमले के लिए जिम्मेदार थे। Defence lawyers ने सुनवाई के दौरान बताया कि Maharashtra Control of Organised Crime Act लागू होने के बाद आरोपियों के कबूलनामे अचानक सामने आए, जो पुलिस दबाव में कराए गए लगते हैं। बचाव पक्ष ने मुंबई क्राइम ब्रांच की एक अन्य जांच का हवाला दिया, जिसमें Indian Mujahideen की संलिप्तता सामने आई थी और IM सदस्य सादिक का बयान भी रिकॉर्ड में था। इस केस में हाई कोर्ट में जुलाई 2024 से जनवरी 2025 तक लगातार छह महीने सुनवाई चली। आरोपियों की ओर से पेश वकीलों ने हर गवाह, सबूत और जांच प्रक्रिया पर विस्तार से सवाल उठाए। कोर्ट ने अपना निर्णय इन सब पहलुओं की विस्तृत समीक्षा के बाद सुनाया । यह फैसला भारतीय न्याय व्यवस्था की प्रक्रिया को दोहराते हुए यह स्पष्ट करता है कि किसी को सिर्फ संदेह के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता, और सभी आरोप "संदेह से परे" साबित होना जरूरी है। करीब दो दशकों तक चले इस केस का यह निर्णय अब कानूनी इतिहास में एक मिसाल के रूप में दर्ज होगा।
संसद के मानसून सत्र की शुरुआत के साथ ही देश की न्यायपालिका से जुड़ा एक बड़ा घटनाक्रम सुर्खियों में आ गया है। दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा अब गंभीर आरोपों के घेरे में हैं और उनके खिलाफ संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी लगभग पूरी हो चुकी है। सूत्रों के मुताबिक, जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर विभिन्न दलों के करीब 150 सांसदों ने हस्ताक्षर कर दिए हैं। इन हस्ताक्षरों को अब लोकसभा अध्यक्ष के समक्ष पेश किया जाएगा। प्रस्ताव को स्वीकार करना या खारिज करना पूरी तरह लोकसभा अध्यक्ष के विवेक पर निर्भर है। यदि लोकसभा अध्यक्ष महाभियोग प्रस्ताव को स्वीकार कर लेते हैं, तो अगला चरण एक जांच समिति के गठन का होगा। यह समिति 1 से 3 महीनों के भीतर जांच कर अपनी रिपोर्ट सदन को सौंपेगी। रिपोर्ट में दोष की पुष्टि होने पर संसद के शीतकालीन सत्र में महाभियोग पर बहस और मतदान कराया जाएगा।
महाभियोग एक ऐसा कानूनी तरीका है जिससे देश के बड़े अफसरों, जैसे सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जज, या राष्ट्रपति को उनके पद से हटाया जा सकता है… अगर वो अपने काम में गड़बड़ी करें, भ्रष्टाचार करें, या अपनी जिम्मेदारियों को ठीक से न निभाएं। यह किसी को नौकरी से निकालना नहीं, बल्कि एक सावधानी से तय की गई संवैधानिक प्रक्रिया है, जो सिर्फ संसद ही कर सकती है। जज के खिलाफ महाभियोग कब होता है?
अगर किसी जज पर गलत काम करने, नियम तोड़ने या अपने पद का गलत इस्तेमाल करने का आरोप लगे और उसके खिलाफ पक्के सबूत हों, तो संसद के सांसद मिलकर एक प्रस्ताव लाते हैं।
प्रक्रिया क्या होती है?
1. पहले लोकसभा या राज्यसभा के कम-से-कम 50 से 100 सांसद मिलकर महाभियोग का प्रस्ताव लाते हैं।
2. संसद का अध्यक्ष अगर इसे मंजूर करता है तो एक जांच कमेटी बनाई जाती है।
3. जांच में अगर जज दोषी पाया गया, तो संसद में उस प्रस्ताव पर वोटिंग होती है।
4. अगर दोनों सदनों में दो-तिहाई सांसद उस प्रस्ताव के पक्ष में वोट कर दें, तो राष्ट्रपति उस जज को पद से हटा सकते हैं।
महाभियोग कोई आम कार्रवाई नहीं होती ये बहुत गंभीर और दुर्लभ मामला होता है, क्योंकि ये देश की न्यायिक व्यवस्था से जुड़ा होता है।
मार्च 14-15 की रात दिल्ली हाई कोर्ट के तत्कालीन जज यशवंत वर्मा के सरकारी आवास में आग लग गई थी। आग पर काबू पाने के दौरान दमकल विभाग की टीम को स्टोर रूम में जली हुई 500-500 रुपये की नोटों की गड्डियां मिलीं। इस घटना के बाद पूरे न्यायिक और राजनीतिक हलकों में हड़कंप मच गया। सुप्रीम कोर्ट ने इस गंभीर मामले की जांच के लिए तीन जजों की एक इन-हाउस कमेटी गठित की। जांच के दौरान सामने आया कि आग के बाद रातों-रात बड़ी मात्रा में नकदी हटाई गई और जानबूझकर साक्ष्य मिटाने की कोशिश की गई। कमेटी ने जस्टिस वर्मा और उनके परिवार को "प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से नकदी रखने" का जिम्मेदार ठहराया। इसके बाद तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश (CJI) जस्टिस संजीव खन्ना ने इन-हाउस कमेटी की रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजते हुए महाभियोग की सिफारिश की थी। जस्टिस वर्मा पर लगे आरोपों के बाद न सिर्फ न्यायपालिका की गरिमा सवालों के घेरे में है, बल्कि यह मामला न्यायिक जवाबदेही और पारदर्शिता पर भी एक अहम बहस को जन्म दे चुका है। आने वाले दिनों में संसद की कार्रवाई इस दिशा में निर्णायक भूमिका निभा सकती है।