Latest News

Breaking News 21 August 2025

1.)  यमुना के उफान में राजनीति के तैरते वादे

दिल्ली की जान कही जाने वाली यमुना इन दिनों जान की दुश्मन बन चुकी है। नदी का जलस्तर इस हफ्ते खतरनाक स्तर पार कर 205.95 मीटर तक पहुंच गया। समझिए, बस 5 सेंटीमीटर और बढ़ता तो लोग घर छोड़कर सड़कों पर उतर आते। पुराने पुल से लेकर यमुना बाजार और मयूर विहार तक, पानी ने एक बार फिर बता दिया कि वो किसी की जागीर नहीं है। याद कीजिए 2023 की तबाही। उस साल यमुना ने रिकॉर्ड तोड़ 208.66 मीटर का स्तर छू लिया था। दिल्ली की गलियां नावों में तब्दील हो गईं, लोग अपने बच्चों को कंधों पर बैठाकर राहत शिविरों तक पहुंचे। उस वक्त की सरकार केंद्र को कोस रही थी कि हथिनीकुंड बैराज से ज्यादा पानी छोड़ा जा रहा है, और केंद्र कह रहा था कि तैयारी दिल्ली की करनी चाहिए थी। जनता? जनता बाढ़ में डूब रही थी और सत्ता के गलियारों में बहस हो रही थी कि जिम्मेदार कौन है।इस बार तस्वीर थोड़ी बदली है। पानी ने खतरे का निशान पार जरूर किया, लेकिन हालात उतने बेकाबू नहीं हुए। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने बाढ़ प्रभावित इलाकों में दौरा किया, राहत शिविर खोले, स्कूलों को अस्थायी आश्रयगृह बनाया, और 24x7 कंट्रोल रूम एक्टिव किया। केंद्र सरकार भी साथ आई—16 हज़ार मीट्रिक टन कूड़ा नदी से निकाला गया, 44 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट चालू हैं और नौ नए बन रहे हैं। ₹800 करोड़ की मदद से नए सीवर कनेक्शन और तीन वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट तैयार किए जा रहे हैं। अगर पानी की क्वालिटी देखें तो पिछले साल तक यमुना में सांस लेने लायक ऑक्सीजन तक नहीं थी। ITO ब्रिज पर BOD (यानी प्रदूषण मापने का पैमाना) 70 तक चला गया था। लेकिन जुलाई में रिपोर्ट आई ये अब घटकर 20 रह गया है। ओखला पर 46 से 8 तक। मतलब नदी थोड़ी-बहुत सुधर रही है। मगर सवाल वही है—क्या ये सुधार टिकेगा, या ये भी सिर्फ चुनावी पोस्टर का आंकड़ा बन जाएगा?

विशेषज्ञ कह रहे हैं कि यमुना की असली समस्या सिर्फ गंदगी नहीं है। समस्या ये है कि नदी का बहाव (e-flow) छीन लिया गया है, कैचमेंट एरिया पक्का कर दिया गया है, और जो भी पानी बचता है वो सीवर से ज्यादा साफ नहीं है। जब तक नदी को सांस लेने का मौका नहीं दिया जाएगा, तब तक हर साल बाढ़ आएगी, और हर साल वही बयान सुनाई देंगे—“स्थिति नियंत्रण में है।” पिछली सरकारें कहती रहीं कि केंद्र मदद नहीं करता। मौजूदा सरकार दावा कर रही है कि अब हालात बेहतर हैं। सच ये है कि यमुना ने हर दौर में एक ही काम किया है सरकारों की पोल खोलना। 2023 की बाढ़ ने पिछली सरकार की तैयारी का सच उजागर किया, और 2025 की बरसात ने मौजूदा सिस्टम को अलर्ट मोड में धकेल दिया। फर्क बस इतना है कि इस बार पानी उतना नहीं चढ़ा जितना गुस्सा चढ़ सकता था। भले ही जलस्तर गिर गया है, लेकिन यमुना किनारे रहने वाले लोग अब भी डर में जी रहे हैं। जिन परिवारों ने 2023 में घर खोए थे, वो आज भी राहत शिविरों से लौटने में हिचक रहे हैं। उन्हें डर है कि पानी फिर चढ़ेगा और फिर से सबकुछ बहा ले जाएगा। यमुना इस शहर को हर बार आईना दिखाती है। पिछली सरकार हो या मौजूदा सबने दावे किए, योजनाएं बनाई, बजट घोषित किया। लेकिन यमुना बार-बार पूछ रही है—“तुम मुझे बचाना चाहते हो या सिर्फ मुझ पर राजनीति करना चाहते हो । बाकी चैनल तो आपको वही दिखाएंगे जो सब जगह मिलेगा… लेकिन यहां मिलेगा आपको वो जो कहीं और नहीं। तो, अगर भीड़ से हटकर सोचना है तो चैनल सब्सक्राइब कर डालिए और जुड़े रहिए हमसे ।

 

2. Gaming करोगे तो जेल? नया बिल आया और गेम ही बदल गया!

ऑनलाइन गेमिंग पर संसद ने वो आख़िरी दांव रखा है, जिसे देखकर हर फैंटेसी ऐप, हर बेटिंग वेबसाइट और हर गली-मोहल्ले का "जबरदस्त रमी मास्टर" सोच रहा है अब क्या होगा? 20 अगस्त को लोकसभा और 21 अगस्त को राज्यसभा से धड़ाम से पास हुआ Promotion and Regulation of Online Gaming Bill, 2025, जिसे सरकार ने यूथ-सेफ़्टी और पब्लिक-इंटरेस्ट के नाम पर संसद की मेज़ पर पटक दिया। और हकीकत यही है कि अब “रियल-मनी गेम्स” की घंटी बज चुकी है। सरकार का तर्क साफ़ है गेमिंग अब बच्चों की मोहल्ले वाली गिल्ली-डंडा नहीं रही, ये अब करोड़ों का धंधा है, जिसमें ऐप्स यूज़र्स की नब्ज़ पकड़कर उनको लत, कर्ज़ और बर्बादी तक ले जाते हैं। एडिक्टिव डिज़ाइन, सेलेब्रिटी-एंडोर्समेंट और मैनिपुलेटिव एल्गोरिद्म यह सब मिलकर युवा दिमाग़ को बर्बाद करते हैं। यही वजह है कि सरकार ने कहा ई-स्पोर्ट्स, स्किल और सोशल गेमिंग को बढ़ावा देंगे, लेकिन जहां दांव लगाकर पैसा कमाने का सपना है, वहां अब सिर्फ़ जेल की हवा है। बिल की सबसे बड़ी ख़ासियत है कि इसने “उल्लंघन” की परिभाषा इतनी सख़्त कर दी है कि कोई भी गेमिंग कंपनी, एडवरटाइज़र या पेमेंट गेटवे अब लापरवाही नहीं कर सकता। अगर कोई ऐप रियल-मनी गेम ऑफ़र करता है सीधा होगा अपराध। अगर कोई कंपनी या सेलेब्रिटी उसका विज्ञापन करता है तो वो है अपराध। अगर बैंक या UPI प्लेटफ़ॉर्म उसका ट्रांज़ैक्शन प्रोसेस करता है वो भी होगा अपराध। यानी गेमिंग इंडस्ट्री का पूरा “सप्लाई चेन” अब कानून की पकड़ में है। हालांकि पहली बार गलती करने पर कंपनी को तीन साल तक जेल और एक करोड़ रुपए तक का जुर्माना (विज्ञापन के मामले में ₹50 लाख तक) हो सकता है। लेकिन अगर वही गलती दोबारा की तो न्यूनतम सज़ा फिक्स्ड है 3 साल जेल + ₹1 करोड़ जुर्माना (कम से कम), और मैक्स 5 साल व ₹2 करोड़ तक। मतलब अब कोर्ट में रोना-धोना करने से भी राहत नहीं मिलेगी। सरकार ने साफ़ कर दिया है कि रीपीट ऑफेंडर्स के लिए कोई रियायत नहीं। सबसे विवादित लेकिन सबसे ताक़तवर प्रावधान है वारंटलेस सर्च और अरेस्ट। हां, सही पढ़ा आपने। पुलिस या केंद्र का अधिकृत अफ़सर बिना वारंट के किसी भी डिजिटल-स्पेस (सर्वर, क्लाउड, लैपटॉप, मोबाइल) में घुस सकता है, डेटा जब्त कर सकता है और सीधे गिरफ्तारी कर सकता है। ये गेमिंग के नाम पर चल रहे अरबों के धंधे को काटने का हथियार है। लेकिन यही पॉइंट विपक्ष और इंडस्ट्री को खटक रहा है कहीं यह कानून टेक्नोलॉजी कंपनियों पर “ओवर-कंट्रोल” का रास्ता न बन जाए। सरकार ने इस बिल को जिस मनोवैज्ञानिक अंदाज़ में पेश किया, वह भी ध्यान देने लायक है। पूरा नैरेटिव यही है कि ये कानून किसी कंपनी को दबाने के लिए नहीं, बल्कि देश के युवाओं को ‘एडिक्शन’ और ‘कर्ज़’ से बचाने के लिए है। संसद में तर्क यही रहा कि “बच्चे PUBG खेलते-खेलते जान दे रहे हैं, लोग लोन लेकर फैंटेसी ऐप्स में सब गंवा रहे हैं, और कंपनियां करोड़ों कमा रही हैं” – ऐसे हालात में सरकार चुप कैसे बैठती। लेकिन यह कानून पूरी तरह “गेमिंग को बैन” नहीं करता। सरकार ने साफ़ कहा है ई-स्पोर्ट्स, स्किल-बेस्ड सोशल गेम्स, एजुकेशनल गेमिंग और सब्सक्रिप्शन-बेस्ड गेम्स को प्रोत्साहित किया जाएगा। बस शर्त यही है – कोई दांव, कोई स्टेक, कोई मनी-रिवॉर्ड नहीं। यानी फैंटेसी ऐप्स का गेम ओवर, लेकिन ई-स्पोर्ट्स टूर्नामेंट का मैदान अब और बड़ा। असल सवाल  बचाएगा या कंट्रोल बढ़ाएगा? यहां से बहस शुरू होती है। क्या सच में यह कानून युवाओं को लत से बचाएगा? या फिर सरकार टेक कंपनियों और गेमिंग इंडस्ट्री पर अपनी पकड़ और मज़बूत कर रही है? विपक्ष का कहना है “डिस्कशन के बिना पास कर दिया, जल्दबाज़ी में इतना बड़ा फैसला क्यों?” जबकि सरकार की दलील है  “समाज का नुकसान हो रहा था, अब रोकना जरूरी था।” एक लाइन में कहें तो Online Gaming Bill 2025 गेमिंग इंडस्ट्री का कायापलट है। अब भारत में गेमिंग दो हिस्सों में बंट गया है  ई-स्पोर्ट्स और सोशल गेमिंग = प्रमोशन और प्रगति। रियल-मनी और बेटिंग ऐप्स = अपराध और जेल। सरकार ने अपने पत्ते साफ़ खोल दिए हैं। अब जो कंपनियां गेमिंग की आड़ में जुआ खेलवा रही थीं, उनके लिए “गेम ओवर” है।बाकी चैनल तो आपको वही दिखाएंगे जो सब जगह मिलेगा… लेकिन यहां मिलेगा आपको वो जो कहीं और नहीं। तो, अगर भीड़ से हटकर सोचना है तो चैनल सब्सक्राइब कर डालिए और जुड़े रहिए हमसे