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Breaking News 21 August 2024

1.) 100 से ज्यादा छात्राओं के साथ दुष्कर्म

अश्लील तस्वीरें, ब्लैकमेलिंग और गैंगरेप का घिनौना खेल         

राजस्थान के अजमेर में सबसे बड़े ब्लैकमेल कांड के बाकी बचे 6 आरोपियों को दोषी ठहरा दिया गया है। आज दोपहर 2 बजे कोर्ट मामले में सजा सुनाई। बता दें, कि कोर्ट ने नफीस चिश्ती, नसीम उर्फ टार्जन, सलीम चिश्ती, इकबाल भाटी, सोहेल गनी व सैयद जमीर हुसैन को दोषी मानते हुए आजीवन कारावास व प्रत्येक पर 5 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया है। 

दिल दहला देगा अजमेर 'सेक्स स्कैंडल'

अजमेर के एक गैंग ने 1992 में स्कूल-कॉलेज में पढ़ने वाली करीब 250 लड़कियों की नग्न तस्वीरें हासिल की। फिर उन्हें लीक करने की धमकी देकर 100 से अधिक छात्राओं के साथ गैंगरेप किया। गैंग के लोग स्कूल में पढ़ने वाली छात्राओं को फार्महाउस पर बुलाते थे और फिर उनके साथ गैंगरेप करते थे। कई मामले तो अजमेर के जाने-माने प्राइवेट स्कूल के थे। एक अखबार ने जब इसका खुलासा किया तो मामला सामने आया। इन बच्चियों की उम्र उस समय 11 से 20 साल की हुआ करती थी। फिलहाल मामले में 4 आरोपी पूर्व में सजा काट चुके हैं। बता दें, फैसले सुनाए जाने के दौरान बड़ी संख्या में पुलिस बल कोर्ट के बाहर मौजूद था।

कैसे हुई खौफनाक सेक्स स्कैंडल की शुरूआत?

इस कांड की शुरूआत में सबसे पहले फारूक चिश्ती नामक एक शख्स ने पहले सोफिया स्कूल की एक लड़की को फंसाया और उसके साथ रेप किया। इस दौरान उसने उसकी अश्लील तस्वीरें खींच ली। इसके बाद वो इन अश्लील तस्वीरों के जरिए उसे ब्लैकमेल करने लगा, उससे स्कूल की दूसरी लड़कियों को बहला-फुसला कर लगाने के लिए कहने लगा। मजबूरन वो लड़की अपनी सहेलियों को भी फार्म हाउस ले जाने लगी। इसके बाद उन सभी के साथ रेप और ब्लैकमेल का खेल होता रहा। इस तरह एक के बाद दूसरी, दूसरी के बाद तीसरी, इस तरह एक ही स्कूल की करीब सौ से ज्यादा लड़कियों के साथ रेप हुआ। घर वालों की नजरों के सामने से ये लकड़ियां फार्म हाउसों पर जाती थीं। उनको लेने के लिए बाकायदा गाड़ियां आती थीं और घर पर छोड़ कर भी जाती थीं। लड़कियों की रेप करते समय तस्वीरें ले ली जाती थीं. इसके बाद डरा-धमका कर और लड़कियों को बुलाया जाता. स्कूल की इन लड़कियों के साथ रेप करने में नेता, पुलिस, अधिकारी भी शामिल थे।

रैकेट का सरगना था कांग्रेस नेता फारूक चिश्ती

इस सेक्स स्कैंडल का मास्टरमाइंड फारूक चिश्ती था और उसके साथ नफीस चिश्ती और अनवर चिश्ती भी शामिल थे, तीनों ही यूथ कांग्रेस के नेता थे। फारूक अध्यक्ष पद पर था, इन लोगों की पहुंच दरगाह के खादिमों तक भी थी। रेप की शिकार लड़कियां ज्यादतर हिंदू परिवारों से थीं, रेप करने वाले ज्यादातर मुस्लिम समुदाय थे, इस वजह से पुलिस किसी तरह का एक्शन लेने से डरती थी। इस कांड के बारे में जानकारी होते हुए भी पुलिस कार्रवाई नहीं कर रही थी। पुलिस के अनुसार उसे डर था कि कही साम्प्रदायिक दंगे न हो जाएं, अब पुलिस के इस तर्क में कितना दम था इसका फैसला आप खुद कर लें की जानकारी होते हुए भी पुलिस ने इस भयावह दुष्कर्म को होते रहने दिया, वो भी बस एक समुदाय विशेष के डर से। 

CID सीबी की एंट्री के बाद पकड़े गए आरोपी

31 मई 1992 से इस केस की जांच शुरू कर दी। इस जांच में युवा कांग्रेस के शहर अध्यक्ष और दरगाह के खादिम चिश्ती परिवार के फारूक चिश्ती, उपाध्यक्ष नफीस चिश्ती, संयुक्त सचिव अनवर चिश्ती, पूर्व कांग्रेस विधायक के नजदीकी रिश्तेदार अलमास महाराज, इशरत अली, इकबाल खान, सलीम, जमीर, सोहेल गनी, पुत्तन इलाहाबादी, नसीम अहमद उर्फ टार्जन, प्रवेज अंसारी, मोहिबुल्लाह उर्फ मेराडोना, कैलाश सोनी, महेश लुधानी, पुरुषोत्तम उर्फ जॉन वेसली उर्फ बबना और हरीश तोलानी नामक अपराधियों के नाम सामने आए, हरीश तोलानी अजमेर कलर लैब का मैनेजर हुआ करता था। 

आठ लोगों को मिली थी उम्र कैद की सजा 

पीड़ित लड़कियों से आरोपियों की पहचान करवाने के बाद पुलिस ने आठ को गिरफ्तार कर लिया। साल 1994 में आरोपियों में से एक पुरुषोत्तम ने जमानत पर जेल से बाहर आने के बाद खुदकुशी कर लिया। इस केस का पहला निर्णय छह साल बाद आया, जिसमें अजमेर की स्थानीय अदालत ने आठ लोगों को उम्र कैद की सजा सुनाया। इसी बीच रैकेट के मास्टरमाइंड फारूक चिश्ती ने अपना मेंटल बैलेंस खो दिया जिसकी वजह से उसका ट्रायल पेंडिंग हो गया। कुछ समय बाद में कोर्ट ने चार आरोपियों की सजा कम कर दी, उन्हें उम्रकैद की बजाए दस साल जेल की सजा दी गई। इस कांड के 19 साल बाद एक आरोपी सलीम नफीस को साल 2012 में पुलिस ने पकड़ा था, लेकिन वो भी जमानत पर रिहा हो गया। देश के सबसे बड़े सेक्स स्कैंडल में पीड़ितों को अब भी इंसाफ का इंतजार था। 

6 दोषियों को मिली उम्रकैद की सजा

32 साल पहले हुए अजमेर गैंगरेप और ब्लैकमेल कांड के बाकी बचे 6 आरोपियों को स्पेशल पॉक्सो कोर्ट ने दोषी माना है। आज यानि मंगलवार, 20 अगस्त को अदालत द्वारा दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई। दोषी नफीस चिश्ती, नसीम उर्फ टार्जन, सलीम चिश्ती, सोहिल गणी, सैयद जमीर हुसैन कोर्ट पहुंचे, जबकि इकबाल भाटी को दिल्ली से लाया गया। बता दें, साल 1992 में 100 से ज्यादा स्कूल और कॉलेज छात्राओं के गैंगरेप और ब्लैकमेलिंग मामले में 18 आरोपी थे।

सेक्स स्कैंडल को दबाने की होती रही कोशिश

स्कूल छात्राओं के साथ यौन शोषण का सारा खेल शहर में सुनियोजित तरीके से मुस्लिम समुदाय के प्रभावशाली युवाओं के द्वारा हिन्दू लड़कियों के साथ किया जा रहा था। इसकी जानकारी मिलने के बाद विश्वहिन्दू परिषद, शिवसेना, बजरंग दल जैसे संगठनों ने मुट्ठियां तान ली। जिसके बाद इस मामले के बारे में राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत को अवगत कराया गया और उन्होंने एक्शन लेने को कह दिया। इसके बाद तत्कालीन उप-अधीक्षक हरिप्रसाद शर्मा को पहले मौखिक आदेश देकर मामले की गोपनीय जांच करने को कहा गया। गोपनीय जांच में हुए खुलासे के बाद तो जिला प्रशासन के हाथ पैर ही फूल गए, जिसके बाद इस मामले को दबाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई।

 

2.) क्या अब लेटरल एंट्री में भी मिलेगा आरक्षण?

क्या है लेटरल एंट्री जिस पर मचा है घमासान?

संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) ‘लेटरल एंट्री' के जरिए सीधे उन पदों पर उम्मीदवारों की नियुक्ति करता है, जिन पदों पर भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) अधिकारियों की तैनाती होती है। इसमें निजी क्षेत्रों से अलग-अलग क्षेत्र के विशेषज्ञों को विभिन्न मंत्रालयों व विभागों में सीधे संयुक्त सचिव और निदेशक व उप सचिव के पद पर उम्मीदवारों को नियुक्त किया जाता है। इसी कड़ी में 17 अगस्त को जारी विज्ञापन में UPSC ने लेटरल एंट्री के जरिए 45 भर्तियां निकाली थीं। ये भर्तियां जॉइंट सेक्रेट्री, डिप्टी सेक्रेट्री और डायरेक्टर लेवल की थीं। विपक्ष जिसकी जमकर आलोचना कर रहा था. इन पदों पर बिना UPSC एग्जाम दिए ही सीधी भर्ती होनी थी। पुरे मुद्दे पर विवाद, राजनीती और विपक्ष की आलोचना के बाद इस विज्ञापन पर बाद में रोक लगाने का आदेश दिया गया। 

किन कारणों से रद्द किया गया भर्ती का विज्ञापन?

UPSC में सीधी भर्ती यानि लेटरल एंट्री पर इस कदर विवाद छिड़ा कि सरकार ने इसके विज्ञापन पर रोक लगाने का आदेश दे दिया। केंद्र सरकार ने मंगलवार को सीधी भर्तियों वाले उस विज्ञापन पर रोक लगाने का आदेश दिया है, जिसे UPSC ने जॉइंट सेक्रेट्री और डायरेक्टर पद पर भर्ती के लिए बीते शनिवार को जारी किया गया था। पीएम मोदी के निर्देश पर DoPT मंत्री ने यूपीएससी अध्यक्ष को लेटरल एंट्री रद्द करने के लिए पत्र लिखा और पीएम मोदी के निर्देश पर लेटरल एंट्री वाले विज्ञापन पर रोक लगाने का आदेश दिया। केंद्र सरकार के पत्र के बाद सचिव हमशा रविशंकर ने UPSC की तरफ से विज्ञापन को निरस्त करने की सूचना जारी की। उन्होंने साफ किया कि 45 पदों पर लेटरल भर्ती के लिए निकाले गए विज्ञापन को निरस्त करने का फैसला लिया गया है। उन्होंने कहा कि अधिकारियों से मिले अनुरोध पत्र के आधार पर 17 अगस्त को जारी विज्ञापन को रद्द किया जाता है।

लेटरल एंट्री को लेकर क्या था सरकार का पक्ष?

केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कांग्रेस पर ब्यूरोक्रेसी में ‘लेटरल एंट्री' की सरकार की पहल पर भ्रामक दावे करने का आरोप लगाते हुए कहा कि इस कदम से अखिल भारतीय सेवाओं में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की भर्ती प्रभावित नहीं होगी। वैष्णव ने कहा कि नौकरशाही में ‘लेटरल एंट्री' 1970 के दशक से कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकारों के दौरान होती रही है और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और मोंटेक सिंह अहलूवालिया अतीत में की गई ऐसी पहल के प्रमुख उदाहरण हैं। उन्होंने तर्क दिया कि प्रशासनिक सेवाओं में ‘लेटरल एंट्री' के लिए प्रस्तावित 45 पद भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) की कैडर संख्या का 0.5 प्रतिशत हैं, जिसमें 4,500 से अधिक अधिकारी शामिल हैं और इससे किसी भी सेवा की सूची में कटौती नहीं होगी। ‘लेटरल एंट्री' वाले बोरोक्रेट्स का कार्यकाल तीन साल है, जिसमें दो साल का संभावित विस्तार शामिल है। 

विपक्ष के आरोपों में कितना दम है?

एक दावे के अनुसार विरोध का झंडा बुलंद कर रही कांग्रेस के नेतृत्व वाली UPA सरकार के दौरान ही लेटरल एंट्री की अवधारणा को पहली बार पेश किया गया था, जिसके कई उदहारण मौजूद हैं:

1.) प्रधानमंत्री की अगुवाई वाली मौजूदा केंद्र सरकार का कहना है कि साल 2005 में वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में बने दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने लेटरल एंट्री का सैद्धांतिक अनुमोदन किया था और 2013 में छठे वेतन आयोग की सिफारिशें भी इसी दिशा में थीं। हालांकि, इससे पहले और इसके बाद लेटरल एंट्री के कई हाई प्रोफाइल मामले रहे हैं। 

2.) पहले की सरकारों में विभिन्न मंत्रालयों के सचिवों, UIDAI के नेतृत्व जैसे अहम पदों पर आरक्षण की नियुक्ति के बिना लेटरली एंट्री वालों को मौके दिए जाते रहे हैं।

3.) यह भी सबको पता है कि कैसे 'बदनाम' राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के सदस्य सुपर ब्यूरोक्रेसी चलाया करते थे, जो प्रधानमंत्री कार्यालय को नियंत्रित किया करती थी।
 
4.) 2014 से पहले संविदा तरीके से लेटरल एंट्री वाली ज्यादातर भर्तियां होती थीं, जबकि हमारी सरकार में यह प्रयास रहा है कि यह प्रक्रिया संस्थागत, खुली और पारदर्शी रहे।
 
5.) प्रधानमंत्री का यह पुरजोर तरीके से मानना है कि विशेषकर आरक्षण के प्रावधानों के परिप्रेक्ष्य में संविधान में उल्लेखित समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप लेटरली एंट्री की प्रक्रिया को सुसंगत बनाया जाए।

मंत्री बोले पीएम मोदी सामाजिक न्याय के लिए प्रतिबद्ध

केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमेशा सामाजिक न्याय के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाई है। चाहे, मेडिकल में प्रवेश के लिए नीट हो, सैनिक स्कूल या नवोदय विद्यालय हो, हमने हर जगह आरक्षण के सिद्धांत को लागू किया है। वैष्णव ने आगे कहा, UPSC ने लेटरल एंट्री के लिए बहुत पारदर्शी तरीका अपनाया और अब हमारी सरकार ने उसमें भी आरक्षण का सिद्धांत लागू करने का फैसला किया है। प्रधानमंत्री मोदी ने सामाजिक न्याय के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखते हुए ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया, जो पहले एक साधारण निकाय था। 2014 से पहले कांग्रेस की सरकार में लिए गए निर्णयों में आरक्षण के सिद्धांत का ध्यान नहीं रखा जाता था। इसका जवाब भी कांग्रेस को देना चाहिए।

क्या लेटरल एंट्री से सुनिश्चित होगा सामाजिक न्याय?

केंद्रीय मंत्री एल मुरुगन ने कहा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमेशा हमारे संविधान का सम्मान किया है। उन्होंने हमेशा सुनिश्चित किया है कि देश के हर आम नागरिक तक सामाजिक न्याय पहुंचे। प्रधानमंत्री ने लेटरल एंट्री रद्द करके सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में एक और कदम उठाया है।

 

3.) रजस्थान में चुनाव से पहले कांग्रेस का सरेंडर?

BJP उम्मीदवार का निर्विरोध जीत तय

राजस्थान में इस बार राज्यसभा चुनाव नहीं होंगे। कांग्रेस ने एलान किया है कि राजस्थान में राज्यसभा की खाली सीट के लिए इस बार वह प्रत्याशी नहीं उतारेगी। बता दें, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने इस सबंध में बयान दिया है कि राज्यसभा चुनावों में कांग्रेस के पास बहुमत नहीं है, इसलिए पार्टी ने निर्णय लिया है कि राज्यसभा चुनावों में इस बार पार्टी अपना प्रत्याशी नहीं उतरेगी। कांग्रेस के इस फैसले के बाद यह तय हो गया है कि राजस्थान में राज्यसभा चुनाव नहीं होंगे और बीजेपी प्रत्याशी निर्विरोध ही निर्वाचित होगा। 

राजस्थान में राज्यसभा की एक सीट पर चुनाव

राज्यसभा की खाली हुई सीटों को भरने के लिए 7 अगस्त को नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया था और 3 सितंबर के लिए चुनाव की तारीख तय की गई थी। बता दें, कांग्रेस के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री केसी वेणुगोपाल के लोकसभा चुनाव लड़ने के बाद राजस्थान में राज्यसभा की एक सीट खाली हुई है। वेणुगोपाल का कार्यकाल 21 जून, 2026 तक का था। लेकिन केरल की अलाप्पुझा सीट से लोकसभा सांसद बनने के बाद उन्होंने राज्यसभा सांसद पद से इस्तीफा दे दिया था।

राजस्थान में क्या है राज्यसभा की सीटों का गणित?

राजस्थान में 10 राज्यसभा सीटों में से फिलहाल नौ भरी हुई हैं, इनमें पांच सांसद कांग्रेस और चार बीजेपी के हैं। अब बीजेपी प्रत्याशी के निर्विरोध निर्वाचन के बाद दोनों पार्टियों के सांसदों की संख्या बराबर हो जाएगी। संख्या बल के हिसाब से बीजेपी के पास 114 विधायक हैं। वहीं, कांग्रेस के 66 हैं। इसलिए बहुमत के आधार पर यह सीट वैसे भी बीजेपी के खाते में जाना तय थी।

 

4.) इराक जा रही पाकिस्तानी बस ....ईरान में?

बस हादसे में 35 लोगों की मौत का जिम्मेदार कौन?

पाकिस्तान से इराक जा रहे शिया तीर्थयात्रियों की एक बस दुर्घटनाग्रस्त होने के कारण बड़ा हादसा हो गया है। खबरों के अनुसार, शिया तीर्थयात्रियों से भरी बस सेंट्रल ईरान में दुर्घटनाग्रस्त हो गई, बस में सवार 35 लोगों की मौत हो गई है। वहीं, दुर्घटना में 18 अन्य लोग घायल हुए हैं, दुर्घटना के समय बस में 51 लोग सवार थे। ईरान की सरकारी समाचार एजेंसी इरना के मुताबिक, स्थानीय आपातकालीन अधिकारी ने हादसे की जानकारी देते हुए बताया कि यह दुर्घटना मंगलवार रात को ईरान के यज्द प्रांत में हुई। वहीं, इस घटना की जानकारी देते हुए एक पाकिस्तानी अखबार ने दुर्घटनाग्रस्त की वजह बस के ब्रेक फेल होने को बताया है। बता दें, सभी तीर्थयात्री अरबईन की याद में इराक जा रहे थे, जो 7वीं शताब्दी में एक शिया संत की मृत्यु के 40वें दिन मनाया जाता है।

 

5) राष्ट्रव्यापी विरोध के बीच पश्चिम बंगाल के राज्यपाल ने उपराष्ट्रपति से मुलाकात की

आज पश्चिम बंगाल के माननीय राज्यपाल श्री सी.वी. आनंद बोस ने नई दिल्ली में उपराष्ट्रपति एन्क्लेव में माननीय उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ से मुलाकात की। यह महत्वपूर्ण बैठक एक प्रशिक्षु डॉक्टर के दुखद बलात्कार और हत्या के बाद पश्चिम बंगाल और देश भर में चल रहे विरोध प्रदर्शनों की पृष्ठभूमि में हो रही है। राज्य की मौजूदा स्थिति ने इस मामले में देश का व्यापक ध्यान आकर्षित किया है, हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने मामले को संभालने में लापरवाही के लिए राज्य सरकार और पुलिस की आलोचना भी की है। 

न्याय की मांग कर रहा है देश

इस क्रूर घटना ने पूरे देश में तीव्र आक्रोश पैदा कर दिया है और मामले में लगातार न्याय की मांग कर रहा है, देश में महिलाओं की सुरक्षा पर अपना दुख और गुस्सा व्यक्त करने के लिए देश के तमाम अस्पतालों ने बंद का एलान किया हुआ है और डॉक्टर और नागरिक न्याय की मांग को लेकर राज्य सरकार के विरुद्ध सड़कों पर उतर आए हैं। सार्वजनिक प्रदर्शनों में अपराधियों के खिलाफ तल्काल और कड़ी कार्रवाई के साथ-साथ ऐसी त्रासदियों फिर न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए व्यापक सुधारों की मांग की गई है।

सर्वोच अदालत की राज्य सरकार को फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने भी हाल ही में मामले की कथित लापरवाही और गलत तरीके से निपटने के लिए पश्चिम बंगाल सरकार और स्थानीय पुलिस अधिकारियों की आलोचना की। शीर्ष अदालत की फटकार महिलाओं के खिलाफ अपराधों को संबोधित करने में जवाबदेही और प्रभावी कानून प्रवर्तन प्रतिक्रियाओं की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करती है।

क्या राज्य में लगेगा राष्ट्रपति शासन? 

बैठक के दौरान संभावना जताई जा रही है कि राज्यपाल श्री सी.वी. आनंद बोस जी और उपाध्यक्ष श्री जगदीप धनखड़ ने राज्य में मौजूदा कानून और व्यवस्था की स्थिति के साथ-साथ जनता के विश्वास को बहाल करने और उचित रूप से न्याय सुनिश्चित करने की रणनीतियों पर चर्चा की। विचार-विमर्श में भविष्य में ऐसे जघन्य अपराधों को रोकने के लिए प्रशासनिक उपायों को मजबूत करने, पुलिस को प्रभावी बनाने में सुधार और कानून पर ध्यान केंद्रित करने की उम्मीद है। राज्य के राज्यपाल और उपराष्ट्रपति के बीच यह मुलाकात गंभीर स्थिति पर केंद्र सरकार का ध्यान आकर्षित करता है और सार्वजनिक अशांति को बढ़ावा देने वाले मुद्दों पर केंद्र सरकार की राज्य के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। राष्ट्र बारीकी से देख रहा है, उम्मीद है कि इन चर्चाओं से सार्थक कार्रवाई और सुधार होंगे जो पीड़ित की स्मृति का सम्मान करेंगे और सभी नागरिकों के अधिकारों और सम्मान की रक्षा करेंगे।

 

6.) कोलकाता के बाद हिंसा की आग में जलता बदलापुर

पश्चिम बंगाल के कोलकाता में हुए भयावह रपे और मर्डर की आग अभी ठंडी भी नहीं हुई थी की देश में एक और ऐसा मामला सामने आया है। महाराष्ट्र के ठाणे में स्थित बदलापुर के एक स्कूल में बच्चियों के कथित यौन उत्पीड़न के मामले में जबरदस्त बवाल शुरू हो गया है। यहां भारी संख्या में लोगों ने सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन किया है। मामले में आ रही खबर के अनुसार लड़कियों के अभिभावकों ने कई लोगों के साथ स्कूल का घेराव कर प्रदर्शन किया है। वहीं, कई लोगों ने लोकल ट्रेनों को भी रोक दिया, प्रदर्शनकारियों को रेलवे ट्रैक से हटाने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज का सहारा लेना पड़ा।

क्या है पूरा मामला?

खबरों के अनुसार 17 अगस्त को पुलिस ने इस मामले में स्कूल के अटेंडेंट को गिरफ्तार किया था। शख्स पर किंडरगार्टन में पढ़ रहीं तीन और चार साल की दो बच्चियों से उत्पीड़न का आरोप था। बच्चियों के परिजनों की तरफ से दी गई शिकायत के मुताबिक, अटेंडेंट ने लड़कियों का स्कूल के टॉयलेट में उत्पीड़न किया था। बच्चियों ने इस घटना के बारे में अपने माता-पिता को बताया। इसके बाद मामले में शिकायत दर्ज हुई और आरोपी के खिलाफ पॉक्सो कानून की धाराओं में केस दर्ज हुआ, बाद में आरोपी अटेंडेंट को गिरफ्तार कर लिया गया। इस घटना पर स्कूल प्रबंधन ने बयान जारी किया और कहा कि उसने प्रिंसिपल के साथ, एक क्लास टीचर और महिला अटेंडेंट को भी निलंबित कर दिया है। घटना को लेकर स्कूल की तरफ से माफी भी मांगी गई है।

दुष्कर्म मामले की जांच के लिए SIT गठित

महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने मंगलवार को राज्य के बदलापुर जिले के एक स्कूल में दो नाबालिगों के कथित यौन उत्पीड़न की निंदा की और कहा कि मामले की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया गया है। उपमुख्यमंत्री ने ठाणे पुलिस आयुक्त को मामले को फास्ट-ट्रैक अदालत में चलाने के लिए एक प्रस्ताव तैयार करने का निर्देश दिया। उन्होंने कहा, बदलापुर में दुष्कर्म की घटना बेहद गंभीर है, मैं इस घटना की कड़ी निंदा करता हूं। फडणवीस ने आगे कहा कि राज्य सरकार ने मामले की जांच के लिए आईजी रैंक की महिला अधिकारी के नेतृत्व में SIT का गठन किया है। सरकार इस मामले को फास्ट ट्रैक कोर्ट में ले जाने की कोशिश कर रही है ताकि पीड़ित परिवार को जल्द से जल्द न्याय मिल सके।

हिंसा और तोड़फोड़ के आरोप में 40 से ज्यादा गिरफ्तार

बदलापुर के एक स्कूल में दो बच्चियों के यौन शोषण का मामला सामने आने के बाद लोगों का गुस्सा फूट पड़ा। बच्चियों के अभिभावकों ने स्कूल के सामने एकत्र होकर मंगलवार को वहां तोड़फोड़ और पथराव किया। इसी बीच अभिभावकों को लोगों का भारी सर्थन मिलने लगा और कुछ ही समय में अभिभावकों का साथ देने के लिए बड़ी संख्या में लोग जुट गए। भीड़ ने बदलापुर रेलवे स्टेशन का रुख किया और वहां पहुंचकर रेलवे ट्रैक पर प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। जिसकी वजह से कई घंटों तक लोकल और लंबी दूरी की ट्रेनों का आवागमन बाधित रहा। बता दें, विरोध प्रदर्शन और तोड़फोड़ के मामले में आज यानि 21 अगस्त को महाराष्ट्र पुलिस ने सख्त एक्शन लिया है। विरोध प्रदर्शन कर रहे 300 लोगों के खिलाफ पुलिस द्वारा FIR दर्ज की गई है। वहीं, पुलिस ने 40 लोगों को इस मामले में गिरफ्तार भी किया है। गिरफ्तार किए गए लोगों को आज कोर्ट में पेश किया जाएगा।

बवाल के बाद बंद की गई इंटरनेट सेवाएं

इस घटना के खिलाफ लोगों में गुस्सा भड़क हुआ है और सैकड़ों की संख्या में जुटे लोगों ने जल से जल्द आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है।इसी बीच प्रशासन ने मामले की गंभीरता को देखते हुए बदलापुर में इंटरनेट सेवाएं बंद करने का फैसला किया है और दुकानें बंद रखने का आदेश भी दिया गया है। रेलवे पुलिस के GRP-DCP मनोज पाटिल ने बताया कि फिलहाल स्थिति सामान्य है।