उत्तर प्रदेश को एक ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के विजन में अब गन्ना और चीनी उद्योग एक प्रमुख स्तंभ के रूप में उभर रहा है। सरकार ने इस दिशा में कमर कस ली है और वर्ष 2027-28 तक का विस्तृत रोडमैप भी तैयार कर लिया गया है। चीनी उद्योग एवं गन्ना विकास विभाग के अनुसार, इस योजना के तहत गन्ना क्षेत्र से होने वाले ग्रॉस वैल्यू आउटपुट (GVO) को मौजूदा 1.32 लाख करोड़ रुपये से बढ़ाकर 1.62 लाख करोड़ रुपये तक ले जाने का लक्ष्य रखा गया है। 2023-24 में जहां यह आंकड़ा 1.24 लाख करोड़ रुपये था, वहीं 2024-25 में बढ़कर 1.32 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया। अब लक्ष्य है कि इसे अगले तीन वर्षों में 30 हजार करोड़ रुपये और बढ़ाया जाए। इसके लिए गन्ना और गुड़ के उत्पादन में क्रमशः 7% और 10% की वार्षिक वृद्धि दर हासिल करने पर काम हो रहा है। वर्ष 2025-26 के लिए भी गन्ना विकास विभाग ने व्यापक कार्ययोजना तैयार कर ली है। चीनी मिलों की रिकवरी दर को 9.56% से बढ़ाकर 10.50% तक ले जाने का लक्ष्य है। साथ ही, 91.54 लाख क्विंटल भंडारित चीनी की समय पर बिक्री और भंडारण क्षमता में 4 लाख क्विंटल की वृद्धि पर भी जोर दिया गया है। सरकार अब चीनी मिलों को दी जा रही करीब 1200 करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता को धीरे-धीरे कम करने की दिशा में भी आगे बढ़ रही है, ताकि यह उद्योग आत्मनिर्भर बन सके। विभाग कुशल कर्मचारियों की भर्ती भी आउटसोर्सिंग के ज़रिये 15 मई 2025 तक पूरी करने की तैयारी में है।
योगी सरकार के कार्यकाल में गन्ना किसानों की आर्थिक स्थिति में उल्लेखनीय सुधार देखने को मिला है। अब तक 2.80 लाख करोड़ रुपये से अधिक का गन्ना मूल्य भुगतान सीधे किसानों को किया जा चुका है। राज्य में 65 लाख गन्ना किसानों में से 46.5 लाख नियमित रूप से आपूर्ति कर रहे हैं। 2016-17 के मुकाबले गन्ने के रकबे में 43%, उत्पादकता में 16% और कुल उत्पादन में 68% की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इसके साथ ही, 52 चीनी मिलों का आधुनिकीकरण भी किया जा चुका है और एथनॉल उत्पादन को गति देने के लिए करीब 8 हजार किलो लीटर प्रतिदिन की उत्पादन क्षमता स्थापित की गई है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का मानना है कि किसानों की समृद्धि ही प्रदेश की प्रगति का मूल मंत्र है। यही कारण है कि गन्ना और चीनी उद्योग को नई तकनीक, पारदर्शिता और बेहतर प्रबंधन के साथ लगातार आगे बढ़ाया जा रहा है।भारत का सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश अब सिर्फ खेती नहीं, बल्कि इससे जुड़े उद्योगों—चीनी, गुड़ और एथनॉल के ज़रिये भी देश की अर्थव्यवस्था को मज़बूती दे रहा है। एथनॉल मिश्रण नीति, समय पर भुगतान और मिलों के आधुनिकीकरण जैसे प्रयासों ने इस क्षेत्र में नई ऊर्जा भर दी है। अब यह उद्योग न केवल किसानों को ताकत देगा, बल्कि प्रदेश को आर्थिक महाशक्ति बनाने की दिशा में निर्णायक भूमिका निभाएगा।
प्रतीक गांधी और पत्रलेखा की मुख्य भूमिका वाली फिल्म ‘फुले’ तय तारीख 11 अप्रैल को रिलीज नहीं हुई। फिल्म को इसके रिलीज से ठीक दो दिन पहले टाल दिया गया नई रिलीज डेट अब 25 अप्रैल तय की गई है। यह फैसला महज़ रणनीतिक नहीं, बल्कि राजनीतिक दबाव और उठे सामाजिक विवादों के बीच लिया गया है। फिल्म भारत की पहली महिला शिक्षिका, समाजसुधारिका और दलित उत्थान की पुरोधा सावित्रीबाई फुले और उनके पति महात्मा फुले के जीवन संघर्ष पर आधारित है। लेकिन यह कहानी जहां बदलाव की मशाल बनने जा रही थी, वहीं अब जातिगत राजनीति की आग में घिर गई है। फिल्म का ट्रेलर 24 मार्च को रिलीज हुआ था, जिसे दर्शकों ने खूब सराहा, लेकिन इसके कुछ दिनों बाद ही ब्राह्मण महासंघ के अध्यक्ष आनंद दवे ने फिल्म पर जातिवाद को बढ़ावा देने का गंभीर आरोप लगाया। उनका कहना है कि फिल्म का दृष्टिकोण एकतरफा है और ब्राह्मण समुदाय की भूमिका को नकारात्मक रूप में या पूरी तरह अनुपस्थित दिखाया गया है। उन्होंने यह भी मांग की कि फिल्म में उन ब्राह्मणों की मदद को भी दिखाया जाए जिन्होंने सामाजिक बदलाव में योगदान दिया। विवादों के बीच फिल्म के निर्देशक अनंत महादेवन, निर्माता रितेश कुडेचा और सह-निर्माता अनुया चौहान कुडेचा ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री छगन भुजबल से मुलाकात की। यह मुलाकात केवल एक राजनेता से समर्थन नहीं थी, बल्कि यह स्पष्ट संदेश था कि फिल्म को राजनीतिक हमलों से बचाने के लिए अब सामाजिक नेताओं का सहारा लिया जा रहा है। मुलाकात के बाद छगन भुजबल ने फिल्म का पक्ष लेते हुए कहा, “निर्देशक और पूरी टीम ने जिस मेहनत से यह फिल्म बनाई है, वह काबिले तारीफ है। महात्मा फुले ने जो किया, वह न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया के लिए प्रेरणास्त्रोत है। यह फिल्म सबको देखनी चाहिए।”
निर्देशक अनंत महादेवन का कहना है कि हर फिल्म में कुछ सिनेमाई स्वतंत्रता ली जाती है, लेकिन तथ्यात्मक संतुलन बनाए रखने की कोशिश की गई है। हालांकि आलोचकों का मानना है कि अगर फिल्म ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य पर आधारित है, तो उसे सभी पक्षों को न्यायसंगत रूप से पेश करना चाहिए। ‘फुले’ के टलने से इस हफ्ते अब बॉक्स ऑफिस पर सनी देओल और रणदीप हुड्डा की फिल्म ‘जाट’ को सीधी बढ़त मिल गई है, क्योंकि कोई और बड़ी हिंदी रिलीज मैदान में नहीं है। फिल्म ‘फुले’ अब एक सिनेमाई रचना से बढ़कर सामाजिक विमर्श का केंद्र बन चुकी है। यह देखना दिलचस्प होगा कि 25 अप्रैल को जब यह फिल्म बड़े पर्दे पर उतरेगी, तब यह इतिहास को फिर से जीवंत कर पाएगी या फिर इतिहास के नाम पर एक और राजनीतिक विवाद में उलझ जाएगी।
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) ने 2024-25 सीजन के लिए सेंट्रल कॉन्ट्रैक्ट की घोषणा कर दी है, और इसमें एक बार फिर ‘क्रिकेट के सम्राटों’ को वही शाही ताज पहनाया गया है। टी20 फॉर्मेट को भले ही अलविदा कह दिया हो, लेकिन रोहित शर्मा, विराट कोहली और रविंद्र जडेजा की बादशाहत बरकरार है। इन तीनों को A+ कैटेगरी में जसप्रीत बुमराह का साथ मिला है, जो आज भी तीनों फॉर्मेट में टीम इंडिया की रीढ़ बने हुए हैं। कुल 34 खिलाड़ियों की इस लिस्ट में जहां कुछ नामों की वापसी ने कहानी में नयापन डाला, वहीं कुछ दिग्गजों की विदाई ने सन्नाटा भी बिखेरा है। सबसे बड़ी चर्चा रही श्रेयस अय्यर और ईशान किशन की वापसी की। पिछले सीजन इन्हें घरेलू क्रिकेट से दूरी बनाने की ‘सज़ा’ मिली थी और कॉन्ट्रैक्ट लिस्ट से बाहर कर दिया गया था। लेकिन समय ने करवट ली—अय्यर ने ICC चैंपियंस ट्रॉफी में बल्ले से तूफान मचाया और किशन ने डोमेस्टिक क्रिकेट में खुद को दोबारा साबित किया। नतीजा ये हुआ कि BCCI ने भी बड़ा दिल दिखाया और दोनों खिलाड़ियों को माफ करते हुए लिस्ट में शामिल कर लिया। वहीं दूसरी ओर, लिस्ट से बाहर हुए नामों में शार्दुल ठाकुर, रविचंद्रन अश्विन, जीतेश शर्मा, केएस भरत और आवेश खान शामिल हैं। अश्विन का नाम अपेक्षित था, क्योंकि उन्होंने हाल ही में टेस्ट क्रिकेट से संन्यास का ऐलान किया था। इस बार की लिस्ट में कुछ नए चेहरे भी चमके हैं। रजत पाटीदार, जो IPL में रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु की कप्तानी कर रहे हैं, नीतीश कुमार रेड्डी और वरुण चक्रवर्ती जैसे युवा खिलाड़ियों को भी इस कॉन्ट्रैक्ट में जगह मिली है। इनका चयन बताता है कि बोर्ड की नजर सिर्फ अनुभव पर नहीं, बल्कि भविष्य की तैयारी पर भी है। BCCI ने इस बार भी चार श्रेणियों में खिलाड़ियों को बांटा है—A+ कैटेगरी को 7 करोड़, A कैटेगरी को 5 करोड़, B को 3 करोड़ और C कैटेगरी वाले खिलाड़ियों को 1 करोड़ रुपये का सालाना अनुबंध मिलेगा। ये कॉन्ट्रैक्ट सिर्फ खिलाड़ियों की परफॉर्मेंस का इनाम नहीं है, बल्कि एक ‘संदेश’ भी है—जो डोमेस्टिक क्रिकेट को हल्के में लेगा, वो टीम इंडिया के दरवाजे के बाहर रहेगा। और जो वापसी के लिए संघर्ष करेगा, मेहनत करेगा, उसके लिए रास्ता फिर से खुलेगा। कुल मिलाकर BCCI की ये लिस्ट परफॉर्मेंस, प्रोफेशनलिज्म और पॉलिटिक्स के बीच एक संतुलन साधने की कोशिश है। अब देखना है कि ये 34 खिलाड़ी भारत को कितनी जीत दिलाते हैं और आने वाले सीजन में कौन चमकता है, कौन छंटता है।
देश की राजधानी दिल्ली में सत्ता का नया अध्याय लिखा जा रहा है, जहां बिना लड़ाई के ही बीजेपी के सिर मेयर का ताज सजने जा रहा है। आम आदमी पार्टी ने मेयर चुनाव से हटने का ऐलान कर राजनीतिक गलियारों में हलचल बढ़ा दी है। पार्टी ने बीजेपी पर सीधे-सीधे विधायकों और पार्षदों की "खरीद-फरोख्त" का आरोप लगाया है। अब मैदान पूरी तरह बीजेपी के नाम है। पार्टी ने राजा इकबाल सिंह को मेयर और जयभगवान यादव को डिप्टी मेयर पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया है। आज नामांकन की आखिरी तारीख है और दोनों उम्मीदवार पर्चा भरने वाले हैं। दिल्ली नगर निगम (MCD) में इस महीने के आखिर में मेयर चुनाव होने हैं। आंकड़ों की गणित देखें तो बीजेपी पहले से ही बढ़त में है—135 वोटों के साथ। वहीं, आम आदमी पार्टी के पास 119 वोट हैं। कांग्रेस के पास 8 पार्षद हैं, लेकिन उसने पहले ही खुद को हाशिए पर रखा हुआ था। आम आदमी पार्टी की नेता और कालकाजी से विधायक आतिशी ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा "हम सौदेबाज़ी की राजनीति नहीं करते। बीजेपी ने एमसीडी चुनाव में करारी हार के बाद भी साजिशों का रास्ता नहीं छोड़ा। लगातार हमारे पार्षदों को तोड़ा गया। ऐसे में हम मेयर चुनाव से हट रहे हैं। अब बीजेपी की 'ट्रिपल इंजन' सरकार को चाहिए कि वो बहाने न बनाए और दिल्ली वालों से किए अपने वादे निभाए।"
कई राजनीतिक जानकार इसे लोकतंत्र की "शर्मनाक तस्वीर" बता रहे हैं, जहां जनता ने जिन्हें विपक्ष में बैठाया, वो सत्ता में बैठने की राह बना रहे हैं वो भी बिना चुनाव लड़े।