एक पायलट था। सफेद कुरता पायजामा पहनकर कैमरे के पीछे तस्वीरें खींचता था। राजनीति से दूर भागता था। उसे न संसद भाती थी, न भाषण। लेकिन किस्मत ने ऐसा खेला कि वही शख़्स एक दिन दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का सबसे युवा प्रधानमंत्री बन गया। लोग बोले “ये है Mr. Clean।” कुछ साल बाद वही नाम बोफोर्स घोटाले से दागदार हो गया। फिर एक दिन तमिलनाडु की मिट्टी पर धमाका हुआ और सब खत्म। राजीव गांधी कहानी ऐसे इंसान की, जिसकी ज़िंदगी किताब जैसी थी, लेकिन हर पन्ने पर रहस्य लिखा था। राजीव गांधी ने Cambridge और Imperial College, London में दाख़िला लिया, लेकिन पढ़ाई अधूरी छोड़ दी। उन्होंने खुद कहा “मुझे मगिंग यानी रटना पसंद नहीं।” राजीव गांधी को राजनीति में आने का शौक नहीं था। वो भारतीय एयरलाइंस में पायलट थे। आसमान उनका खेल का मैदान था। लेकिन अचानक 1980 में संजय गांधी की मौत हुई और खेल का मैदान बदल गया। धर्मगुरुओं ने कहा “ईश्वर उसकी रक्षा करता है, जो खुद को ईश्वर को सौंप देता है।” और राजीव राजनीति के कॉकपिट में आ गए। सवाल ये है क्या ये उनकी पसंद थी या किसी अदृश्य ताक़त की पटकथा? आज हम डिजिटल इंडिया का क्रेडिट किसी और को देते हैं। लेकिन असली नींव किसने रखी? 1980 के दशक में राजीव गांधी ने CRIS बनाया, रेलवे टिकट का कंप्यूटरीकरण शुरू कराया, C-DOT और MTNL से गांव-गांव तक फोन पहुँचाया। उस वक्त उन्होंने कहा “India is ready for the 21st century.” उस दौर में ये लाइन हंसी जैसी लगी थी। लेकिन सोचिए, अगर 1991 में उनकी हत्या न होती, तो क्या आज भारत IT महाशक्ति बनने में एक दशक आगे होता?
1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब राजीव सत्ता में आए, तब उनकी छवि थी ‘Mr. Clean’ की। एक ऐसा नेता, जिस पर जनता को भरोसा था। लेकिन भरोसा राजनीति में टिकता कब है? बोफोर्स घोटाला आया और पूरा खेल बदल गया। Mr. Clean की छवि पर कालिख लग गई। आज भी रहस्य यही है कि बोफोर्स सच में घोटाला था या विपक्ष का लिखा हुआ एक राजनीतिक नाटक। राजीव गांधी का एक बड़ा फैसला था वोटिंग की उम्र 21 से घटाकर 18 करना। सवाल ये है क्या उन्होंने राजनीति में युवाओं का भरोसा जगाने के लिए ये किया, या युवाओं की ताक़त को अपने पक्ष में मोड़ने के लिए? उन्होंने नवोदय विद्यालय खोले, ताकि गांव का बच्चा भी IIT और IAS का सपना देख सके। गंगा एक्शन प्लान शुरू किया ताकि पवित्र गंगा स्वच्छ हो।
प्रधानमंत्री अक्सर सुरक्षाकर्मियों के घेरे में चलते हैं। लेकिन राजीव गांधी वो नेता थे, जो खुद गाड़ी चलाते थे। राजनीति में जहां सबकुछ प्रोटोकॉल से चलता है, वहां राजीव खुद स्टीयरिंग थामे रहते थे। शायद यही उनकी पर्सनैलिटी थी खुद अपनी तक़दीर की ड्राइविंग करना। लेकिन विडंबना देखिए, अपनी जान की स्टीयरिंग उन्होंने दूसरों के हाथ छोड़ दी और श्रीपेरंबदूर में धमाके ने उनकी गाड़ी रोक दी। राजनीति में लोग चेहरा दिखाते हैं, लेकिन कैमरे के पीछे राजीव का दूसरा चेहरा था। उन्हें फोटोग्राफी का शौक था। परिवार की तस्वीरें, पालतू जानवर, प्रकृति की झलक सब उनकी लेंस में कैद होती थी। उन्होंने कभी ये तस्वीरें दुनिया को नहीं दिखाईं, लेकिन मरने के बाद सोनिया गांधी ने Rajiv’s World नाम की किताब छपवाई। राजीव ने पंजाब के लिए लोंगोवाल समझौता किया, ताकि खून-खराबे की धरती पर शांति आए। श्रीलंका के साथ इंडो श्रीलंका एग्रीमेंट किया, ताकि तमिल समस्या खत्म हो। लेकिन विडंबना ये रही कि इन्हीं समझौतों के कारण वो दुश्मनों की लिस्ट में आ गए। और अंततः एलटीटीई के हमले ने उनकी जान ले ली। श्रीपेरंबदूर, तमिलनाडु। एक चुनावी सभा। एक लड़की फूलों का हार लेकर आती है। कैमरा क्लिक करता है, और अगले ही पल धमाका होता है। एक पायलट, जिसने आसमान छुआ था, ज़मीन पर बिखर जाता है। मौत इतनी रहस्यमय कि आज भी देश पूछता है क्या ये सिर्फ एक आतंकी हमला था, या किसी और गहरी साज़िश का हिस्सा?
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लोकसभा का आज का दिन बिल्कुल गहमागहमी जैसा था। गृहमंत्री अमित शाह ने सदन में कदम रखा और हाथ में तीन बिल लिए। जैसे ही उन्होंने इन्हें पेश किया, पूरा माहौल बदल गया। ये कोई साधारण बिल नहीं थे। इनका असर इतना बड़ा है कि प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक की कुर्सी सीधे दांव पर है। अमित शाह ने साफ़ कहा अगर कोई भी प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री किसी गंभीर आपराधिक मामले में फँसकर लगातार 30 दिन जेल में रहता है, तो उसका पद अपने आप खत्म हो जाएगा। ज़रा सोचिए भारत की राजनीति में अब तक जेल जाना कई बार ‘शहीद होने’ या ‘नायक बनने’ जैसा माना जाता रहा है। लेकिन अब खेल बदल सकता है। अब जेल की हवा खाते ही सत्ता की कुर्सी छिन जाएगी। सरकार कह रही है कि ये बिल राजनीति को शुद्ध करने के लिए है। ये बिल संविधान (130वाँ संशोधन) विधेयक 2025, और इसके साथ दिल्ली व जम्मू-कश्मीर से जुड़े दो बिल कहते हैं कि जनता के प्रतिनिधि अगर कानून तोड़ने के गंभीर मामलों में फँसते हैं, तो जनता पर राज करने का हक उन्हें नहीं मिलना चाहिए। 5 साल या उससे ज़्यादा सज़ा वाले मामलों में अगर नेता जेल में 30 दिन गुज़ारता है, तो पद से छुट्टी। ये नियम प्रधानमंत्री से लेकर पंचायत मंत्री तक सबके लिए बराबर है। अगर बाद में कोर्ट से बरी हो जाता है, तो दोबारा पद पा सकता है, लेकिन 30 दिन की जेल उसकी गद्दी गिराने के लिए काफी है। सुनने में ये सुधार जैसा लगता है। लेकिन राजनीति में चीज़ें कभी इतनी सीधी नहीं होतीं। हालांकि जैसे ही अमित शाह ने बिल पेश किया, विपक्षी सांसदों ने इसे लोकतंत्र पर हमला बताना शुरू कर दिया। ओवैसी बोले “ये बिल लोकतंत्र को तानाशाही में बदल देगा। एजेंसियाँ ‘Gestapo’ बन जाएँगी। आज सत्ता पक्ष विपक्ष को जेल भेजना चाहे, तो वो सीधे सत्ता से बाहर हो जाएगा।” वहीँ कांग्रेस के मनीष तिवारी बोले “ये बिल न्याय व्यवस्था की मूल आत्मा पर चोट करता है। जब तक कोर्ट दोषी साबित न करे, तब तक हर कोई निर्दोष है। लेकिन इस बिल में गिरफ्तारी ही सज़ा जैसी बना दी गई है।”
सदन में माहौल इतना गरम हुआ कि काग़ज़ फाड़े गए, नारेबाज़ी हुई, और आखिरकार लोकसभा को स्थगित करना पड़ा। विपक्ष का तर्क साफ़ है ये बिल लोकतंत्र में शक्ति संतुलन बिगाड़ देगा और सरकार को विपक्षी नेताओं को कुर्सी से गिराने का नया हथियार देगा। राजनीति की सबसे बड़ी दिलचस्पी यही होती है कि कभी-कभी दुश्मन साथ दिखने लगते हैं और साथी दुश्मन। इस बार ऐसा ही हुआ। जब पूरा विपक्ष इस बिल का विरोध कर रहा था, तो कांग्रेस के ही वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने इसे सही बताया। उन्होंने कहा “ये बिल वाजिब है। जो नेता जेल में है, उसे सत्ता पर क्यों टिके रहना चाहिए?” थरूर के बयान ने कांग्रेस के भीतर ही हलचल मचा दी। एक तरफ़ पार्टी लोकतंत्र की रक्षा की बात कर रही है और दूसरी तरफ़ उसका नेता सरकार के सुर में सुर मिला रहा है। तो जनता के लिए क्या मायने है? अब सवाल ये है कि जनता को इससे क्या मिलेगा। जनता को उम्मीद है कि अपराधी छवि वाले नेता अब सत्ता की कुर्सी पर नहीं टिक पाएँगे। राजनीति का चेहरा साफ़ होगा। लेकिन जनता को डर भी है कि इस बिल का इस्तेमाल विपक्ष को चुप कराने के लिए किया जाएगा। किसी भी नेता को केस में फँसाकर 30 दिन जेल में रखो और उसकी गद्दी गिरा दो। यानी जनता के लिए ये तलवार की धार पर चलने जैसा है। एक तरफ़ उम्मीद, दूसरी तरफ़ शंका। तीनों बिल अब संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को भेज दिए गए हैं। वहाँ कानून और राजनीति के जानकार बैठकर तय करेंगे कि इस बिल को ऐसे ही पास किया जाए या इसमें बदलाव किए जाएँ। अगर JPC ने इसे मंजूरी दी और संसद से पारित हो गया, तो ये भारतीय राजनीति का नक्शा बदल देगा।
अगर इसमें बड़े संशोधन आए, तो सरकार को अपनी धार थोड़ी कुंद करनी पड़ सकती है।
ये बिल राजनीति की गंदगी साफ़ करेगा या राजनीति को और गंदा बना देगा यही असली सवाल है। क्या ये सचमुच सुधार है, जहाँ जनता के प्रतिनिधि से ईमानदारी की उम्मीद पूरी होगी? या फिर ये एक राजनीतिक हथियार बन जाएगा, जिसके ज़रिए सत्ता पक्ष विपक्ष की गर्दन दबाएगा? लोकसभा में गृहमंत्री अमित शाह ने जिन तीन अहम विधेयकों को पेश किया, उनके नाम हैं Constitution (One Hundred and Thirtieth Amendment) Bill, 2025, Government of Union Territories (Amendment) Bill, 2025, और Jammu and Kashmir Reorganisation (Amendment) Bill, 2025। बाकी चैनल तो आपको वही दिखाएंगे जो सब जगह मिलेगा… लेकिन यहां मिलेगा आपको वो जो कहीं और नहीं। तो, अगर भीड़ से हटकर सोचना है तो चैनल सब्सक्राइब कर डालिए और जुड़े रहिए हमसे