जयपुर से लेकर दिल्ली तक, कथावाचक अनिरुद्धाचार्य के लिव-इन रिलेशनशिप पर दिए गए बयान ने बहस की चिंगारी को आग बना दिया है। जहाँ एक ओर उन्हें कुछ लोग 'साहसी संत' कह रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ उन पर औरतों का अपमान करने का आरोप लग रहा है। लेकिन उन्होंने जो कहा, वो सिर्फ एक बयान नहीं था वो एक मंच से सीधे समाज की सोच पर प्रहार था।
कथा के मंच से अनिरुद्धाचार्य बोले "अगर सलाहकार, डॉक्टर और गुरु भी मुंह देखी बात करने लगे तो समाज का विनाश तय है।" उन्होंने लिव-इन को 'गलत' कहकर जैसे कई लोगों की संवेदनाओं को झकझोर दिया। लेकिन उनका कहना था "मैं तो सत्य बोलूंगा, जिसे बुरा लगना हो लगे। सत्य से परहेज़ अब कलियुग की पहचान है।" उन्होंने भीड़ से सवाल किया "क्या कोई मां चाहेगी कि उसके बेटे को ऐसी बहू मिले जो लिव-इन में रहकर आई हो?" जवाब आया – "नहीं!" तब बोले "तो फिर जब मैंने यही सच कहा, तो मेरा विरोध क्यों हुआ?" यहीं से शुरू हुआ विवाद का असली तूफान। अनिरुद्धाचार्य ने कहा "आज की नारी घूमेगी अर्धनग्न, पर चाहती है कि लोग उसे देवी कहें। देवी कहलाना है तो देवी वाला आचरण भी लाना होगा।" उन्होंने भारतीय परंपराओं का उदाहरण देते हुए कहा "जहाँ राम हैं, वहाँ सीता हैं। जहाँ शंकर हैं, वहाँ पार्वती। हमारे यहां नारी को पूजनीय माना गया है, पर किस नारी को? जो सती है, पवित्र है, आचरण और व्यवहार से निर्मल है।" और फिर कहा "अगर पतिव्रता और वैश्या को एक ही तराजू में तोलने लगे समाज, तो न्याय की परिभाषा खत्म हो जाएगी।" उन्होंने साफ कहा कि आजकल बड़े-बड़े लोग, सेलिब्रिटीज़ और कुछ पत्रकार लिव-इन का समर्थन कर रहे हैं। "ये लोग खुलेआम ग़लत चीज़ों का समर्थन कर रहे हैं। जैसे रावण के सलाहकारों ने गलत सलाह दी, वैसे ही आज के सलाहकार भी समाज को गलत दिशा में ले जा रहे हैं।"
उन्होंने उदाहरण दिया "डॉक्टर मरीज की बात मानने लगे तो मरीज मर जाएगा। ऐसे ही अगर गुरु मुंहदेखी बात करने लगे तो समाज बर्बाद हो जाएगा।" "इसलिए अगर मैं कहता हूं लिव-इन गलत है, तो मैं वही कह रहा हूं जो सही है चाहे कोई कितना भी नाराज़ क्यों न हो।" तो अब सवाल उठता है क्या ये सिर्फ परंपरा की बात है या औरत की आज़ादी पर चोट? समाज दो हिस्सों में बंट गया है। एक तरफ वो लोग हैं जो अनिरुद्धाचार्य की बातों को "संस्कृति की रक्षा" बता रहे हैं, तो दूसरी ओर वो लोग हैं जो उन्हें "पितृसत्ता के प्रवक्ता" और "नारी अपमान करने वाला संत" कह रहे हैं। निचोड़ में इतना ही कहा जा सकता है... सत्य की तलवार जब चलती है, तो सबसे पहले वो चेहरे कटते हैं जो झूठ के शीशे में खुद को देखना पसंद करते हैं। सवाल ये नहीं है कि अनिरुद्धाचार्य ने क्या कहा…सवाल ये है कि क्या समाज अब भी सच सुनने की हिम्मत रखता है या बस वही सुनना चाहता है, जो उसे अच्छा लगे ।