'इंडियाज गॉट लैटेंट' शो में की गई अभद्र टिप्पणियों को लेकर जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की बेंच ने सख्त रुख अपनाते हुए कई तीखे सवाल दागे। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि इलाहाबादिया की टिप्पणियां न केवल आपत्तिजनक हैं, बल्कि समाज को शर्मसार करने वाली भी हैं।
रणवीर को अपना पासपोर्ट थाने में जमा करना होगा और बिना इजाजत भारत छोड़कर नहीं जा सकेंगे। इसके अलावा जब तक मामला खत्म नहीं होता, तब तक रणवीर इलाहाबादिया का कोई भी एपिसोड ऑन-एयर नहीं होगा। रणवीर को अपने खिलाफ दर्ज शिकायतों में पुलिस और जांच एजेंसियों के साथ पूरा सहयोग करना होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें मुंबई, गुवाहाटी और जयपुर में दर्ज एफआईआर पर गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण प्रदान किया। अब इस मामले में उनके खिलाफ कोई नई एफआईआर दर्ज नहीं होगी। अगर नई एफआईआर होती भी है, तो रणवीर को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे को व्यापक रूप से देखने की जरूरत बताई और अटॉर्नी जनरल व सॉलिसिटर जनरल से भी इस मामले में सहयोग मांगा।
सुनवाई के दौरान रणवीर के वकील डॉ. अभिनव चंद्रचूड़ और जजों के बीच तीखी जिरह देखने को मिली।
वकील का पक्ष:
डॉ. चंद्रचूड़ ने कोर्ट को बताया कि उनके क्लाइंट को जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं। किसी ने उनकी जीभ काटने पर ₹5 लाख का इनाम रखा है, तो कोई कह रहा है कि वे जहां भी मिलें, उन्हें बख्शा नहीं जाना चाहिए। ये सब सिर्फ़ 10 सेकंड की एक क्लिप के आधार पर हो रहा है।
कोर्ट का सवाल:
इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने तीखे शब्दों में पूछा, "क्या आप इस्तेमाल की गई भाषा का बचाव कर रहे हैं?"
वकील की सफाई:
डॉ. चंद्रचूड़ ने तुरंत जवाब दिया, "कोर्ट के एक अधिकारी के तौर पर मैं इस भाषा से घृणा करता हूं।"
लेकिन कोर्ट ने उठाया बड़ा सवाल:
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समाज में कुछ स्वविकसित नैतिक मानदंड होते हैं, और यह जानना ज़रूरी है कि भारतीय समाज की सहनशीलता की सीमा कहां तक है।
जस्टिस सूर्यकांत ने सीधे सवाल किया, "अगर यह अश्लील नहीं है, तो फिर क्या है? क्या कोई भी कभी भी अपनी अश्लीलता और बदतमीजी दिखा सकता है?"
कोर्ट ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि यह मुद्दा सिर्फ़ स्वतंत्रता का नहीं है। अभी आरोपी के खिलाफ सिर्फ़ दो एफआईआर दर्ज हैं—एक मुंबई में और दूसरी असम में। लेकिन अगर 100 एफआईआर हो जाएं, तो क्या यह कहा जाएगा कि आरोपी खुद को बचा नहीं सकता?
वकील का तर्क:
डॉ. चंद्रचूड़ ने कहा कि रविवार को एक तीसरी एफआईआर भी दर्ज की गई है।
कोर्ट की दो टूक:
जस्टिस सूर्यकांत ने साफ़ कहा, "अगर एक व्यक्ति को मारा जाता है और दूसरे को मारने की कोशिश की जाती है, तो 302 (हत्या) और 307 (हत्या की कोशिश) दोनों धाराएं लगेंगी। इसी तरह, यहां भी अलग-अलग आरोपों की बात हो रही है।"
कोर्ट ने आरोपी के बयानों की कड़ी निंदा करते हुए कहा, "सिर्फ इसलिए कि आप लोकप्रिय हैं, इसका मतलब यह नहीं कि आप समाज को हल्के में लें। क्या कोई भी इस तरह की भाषा को पसंद करेगा? उनके दिमाग में जो गंदगी भरी है, वह अब बाहर आ रही है। हमें उनकी रक्षा क्यों करनी चाहिए?
इस पूरे घटनाक्रम में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या सुप्रीम कोर्ट की प्राथमिकताएं सही दिशा में हैं?
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क्या यह एक नए सेंसरशिप मॉडल की शुरुआत है, जहां सरकार और अदालतें मिलकर डिजिटल मीडिया को कंट्रोल करना चाहती हैं?
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एक १० सेकंड के क्लिप से ये कंट्रोवर्सी कहा तक जाएगी ये तो वक़्त ही बातयेगा