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Breaking News 19 December 2024

 

1.) रुपये की कमजोरी: RBI की चुनौतियां और वैश्विक जोखिम 

 

फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में 25 बेसिस प्वाइंट की कटौती की, लेकिन फिर ऐसा एक ट्विस्ट दिया कि सबका माजरा ही बदल गया! फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में 25 बेसिस प्वाइंट की कटौती की, लेकिन साथ ही ये भी बोल दिया कि 2025 में दो बार और कटौती होगी। अब ये पहले वाले 4 कटौती के अनुमान से कम है, तो समझिए कि कहीं ना कहीं जादू कम हो गया। इस फैसले के बाद डॉलर की तो बल्ले-बल्ले हो गई, डॉलर इंडेक्स ने एशियाई बाजार में दो साल का सबसे ऊंचा स्तर 108.25 छुआ। और 10 साल के अमेरिकी बॉंड यील्ड्स 4.5% के ऊपर चला गया। लेकिन हमारी कहानी में ट्विस्ट तो यहीं आता है। फेड की ये सख्ती वाली नीतियां हमारी करेंसी यानी रुपया को भी इधर-उधर घुमा रही हैं। पहले ही हमारी आर्थिक ग्रोथ थोड़ी धीमी है, और विदेशी निवेश भी कम हो रहा था, ऐसे में रुपया तो मानो अपना होश खो बैठा। एशियाई करेंसीज़ 0.1% से लेकर 1.2% तक गिर गईं, और डॉलर का दबाव तो जैसे तैसे हमें हिट कर गया। अब तो सेंसेक्स और निफ्टी दोनों ही डूबने लगे, सेंसेक्स 1000 अंक नीचे गिरकर 24,000 के नीचे चला गया। सभी कंपनियों के मार्केट कैप में 5.94 लाख करोड़ रुपये की गिरावट आई है, मतलब टॉप कंपनियां भी खा गईं बुरी तरह से। और अब हमारा रुपया भी 85 के नीचे गिरकर नया रिकॉर्ड बना चुका है, यानि 85.06 रुपये के लेवल तक पहुंच गया। फेड ने 2025 के लिए महंगाई का अनुमान बढ़ाकर 2.5% कर दिया है और अब कह रहा है कि दो बार ब्याज दरों में कटौती करेगा। पहले ये चार बार की उम्मीदें दे रहे थे, लेकिन अब ये जैसे "थोड़ा गड़बड़ कर दिया" वाला मोड हो गया। निवेशकों की तो हालत खराब हो गई और रुपया और कमजोर हो गया।

ग्लोबल चैलेंजेस का असर

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) लगातार फॉरेक्स मार्केट में दखल दे रहा है ताकि रुपया कमजोर न हो, लेकिन ग्लोबल चैलेंजेस और घरेलू बैकअप की कमी के कारण रुपये में कमजोरी का असर तो दिख ही रहा है। करेंसी ट्रेडर्स का कहना है कि RBI महंगाई को कंट्रोल करते हुए रुपये की वैल्यू को स्थिर रखने की पूरी कोशिश कर रहा है। अब बात करें ट्रंप की, तो अगले महीने वो अमेरिकी राष्ट्रपति के तौर पर कार्यभार संभालने वाले हैं। इससे पहले, उनके पॉलिसी चेंजेज से भारत समेत बाकी देशों के बाजार तैयार हो रहे हैं। एनालिस्ट्स का कहना है कि ट्रंप की नीतियों का असर उभरते बाजारों पर पड़ेगा, और रुपया भी इससे अछूता नहीं रहेगा। ट्रेड पॉलिसी में बदलाव और फेड की सख्ती से डॉलर की ताकत और बढ़ सकती है, जिससे हमारी करेंसी पर दबाव और बढ़ेगा। दूसरी तरफ, घरेलू आर्थिक सुस्ती के कारण विदेशी निवेशक भारतीय इक्विटी मार्केट में बिकवाली करने की संभावना जताते हैं, और इसके चलते रुपये की डिमांड कमजोर बनी रहेगी। इक्विटी मार्केट में हो रही उतार-चढ़ाव की वजह से विदेशी निवेशकों की सक्रियता भी कम हो रही है। आगे की बात करें तो, ग्लोबल अनिश्चितताओं और घरेलू चुनौतियों के बीच रुपये में और भी कमजोरी आ सकती है। एनालिस्ट्स ने चेतावनी दी है कि अगर रुपया 85 के नीचे गिरता है, तो हेजिंग गतिविधियां बढ़ सकती हैं, और फॉरेक्स मार्केट में और ज्यादा वोलेटिलिटी देखने को मिल सकती है।

 

2.)भारत के साथ मिलकर काम करेगा चीन                       

बीजिंग में बुधवार को एक लंबे समय के बाद भारत -चीन सीमा विवाद पर विशेष प्रतिनिधियों की बैठक हुई। ये बैठक 5 साल बाद भारत और चीन के बीच की गई। दोनों देशों के बीच हुई इस बैठक दौरान 6 मुद्दों पर सहमति भी बनी है। बीजिंग में हुई इस विशेष प्रतिनिधि स्तर की बातचीत में भारत की ओर से राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल रहे, वहीं चीन ने अपने विदेश मंत्री वांग यी को विशेष प्रतिनिधि नियुक्त किया। बता दें, इससे पहले दोनों देशों के प्रतिनिधियों की पिछली बैठक साल 2019 में दिल्ली में हुई थी। अब बीते दिन दोनों देशों के बीच हुई इस बातचीत का मकसद पूर्वी लद्दाख में सैन्य गतिरोध के कारण पांच साल से प्रभावित द्विपक्षीय संबंध व व्यापार को बहाल करना और साथ मिलकर साझा अंतराष्ट्रीय मुद्दों पर काम करना है। बता दें, कार्बन एम्मिशन और जलवायु परिवर्तन को लेकर भारत और चीन दोनों ही यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों में शामिल हैं। वहीं, अमेरिका ने खुद को जलवायु परिवर्तन के मुद्दे से अलग कर लिया है, जलवायु परिवर्तन से लड़ने के मामले में भारत-चीन अमेरिका से आगे है। इसके अलावा डोनाल्ड ट्रम्प के अमीरीकी राष्ट्रपति चुने जाने के बाद दोनों देशों को, विशेषकर चीन को उसके निर्यात पर अतिरिक्त टैरिफ का खतरा है। बता दें कि ट्रम्प अपने इलेक्शन कैंपेन के दौरान कई बार बोल चुके हैं की वो चीन, कनाडा और मेक्सिको पर अतिरिक्त पाचश फीसदी (50%) का टैरिफ लगाएंगे। दरअसल, विशेष प्रतिनिधियों की बैठक के इस तंत्र को बहाल करने का फैसला इसी साल 23 अक्टूबर को रूसी शहर कजान में ब्रिक्स की बैठक के साइड-लाइन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की बातचीत में लिया गया था। दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों के इस बैठक के दौरान भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के पास गश्त लगाने के इंतजाम पर भी समझौता हुआ था, समझौते के तहत दोनों देशों की सेनाएं LAC पर अपनी-अपनी वर्तमान जगह से पीछे हट जाएंगी। रक्षा विशेषज्ञों का मानना ​​है कि पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा से सैनिकों को वापस बुलाने के 21 अक्टूबर के समझौते के बाद अब दोनों देश द्विपक्षीय संबंधों को सुधारने के लिए कई मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करेंगे और कल इसी कड़ी में डोवाल और वांग यी के बीच विशेष प्रतिनिधि स्तर की 23वें दौर की बातचीत के दौरान, दोनों नेताओं ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर शांति और सौहार्द बनाए रखने और पूर्वी लद्दाख में सैन्य गतिरोध के कारण चार साल से अधिक समय से बाधित द्विपक्षीय संबंधों की बहाली समेत कई मुद्दों पर चर्चा की।

चीन ने की भरोसे को बढ़ाने, ईमानदारी और सद्भावना   
 
चीन ने मंगलवार को बातचीत की उम्मीद जताते हुए कहा कि वह प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति जिनपिंग के बीच कजान में हुई मुलाकात के दौरान बनी आम सहमति के आधार पर प्रतिबद्धताओं को लागू करने के लिए भारत के साथ काम करने को तैयार है। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि चीन "दोनों देशों के नेताओं के बीच बनी महत्वपूर्ण सहमति को लागू करने के लिए भारत के साथ काम करने को तैयार है। प्रवक्ता लिन जियान ने कहा कि बीजिंग बातचीत और संचार के माध्यम से आपसी भरोसे को बढ़ाने, ईमानदारी और सद्भावना के साथ मतभेदों को उचित ढंग से निपटाने और द्विपक्षीय संबंधों को जल्द ही विकास के स्थिर और स्वस्थ रास्ते पर वापस लाने का प्रयास करेगा। बता दें, NSA डोवाल और वांग यी की मुलाकात केवल सीमा विवाद को हल करने के बारे में नहीं है, वे भारत-चीन संबंधों को फिर से बनाने और स्थिर करने के एक बड़े प्रयास का हिस्सा हैं। गलवान संघर्ष के बाद, दोनों देशों के बीच व्यापार तो जारी रहा है लेकिन राजनीतिक और रणनीतिक समेत संबंधों के अन्य पहलू लगभग रुक गए हैं। हालांकि, हाल के महीनों में विशेष रूप से सफल सीमा समझौते और प्रधामंत्री मोदी और जिनपिंग के बीच बैठक के बाद दोनों देशों के संबंधों में नरमी आई है। जून 2020 में गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद यह तंत्र और भी महत्वपूर्ण हो गया, क्योंकि दोनों देश पूर्ण संघर्ष में बढ़े बिना अपने सैन्य गतिरोध को प्रबंधित करने का तरीका तलाश रहे थे। विशेष प्रतिनिधि तंत्र ने बातचीत के लिए एक ऐसे मंच के रूप में काम किया है, जिससे भारत और चीन को सैन्य टकराव का सहारा लिए बिना अपने मतभेदों को दूर करने और नए सिरे से अपने संबंधों को मजबूत करने की अनुमति मिलती है। बीजिंग में हुई इस सफल बातचीत के बाद अब चीन ने दोनों देशों के बीच आपसी सम्मान और सहयोग पर ध्यान केंद्रित करते हुए द्विपक्षीय संबंधों को बहाल करने की अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की है और इससे आने वाले समय में सकारात्मक बदलाव दिखने की उम्मीद है। बता दें, विशेष प्रतिनिधि स्तर की वार्ता की व्यवस्था भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जुलाई, 2003 की बीजिंग यात्रा के दौरान की गई थी। इसका व्यवस्था का मूल उद्देश्य यह था कि भारत-चीन के बीच सीमा विवाद का स्थाई समाधान हो सके और तब से अब तक दोनों देशों के बीच 22 चरण की बातचीत हो चुकी है। अजित डोवाल साल 2014 से 2019 तक इस वार्ता में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।

दोनों देशों में छह बिंदुओं पर बनी सहमति

साल 2019 के बाद ये पहला मौका है जब भारत का कोई सीनियर अधिकारी चीन के दौरे पर है। इससे पहले साल 2019 में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बीजिंग का दौरा किया था। अब बीते दिन भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने मुलाकात की। अजित डोभाल और वांग यी ने बुधवार को बीजिंग में विशेष प्रतिनिधियों की वार्ता के दौरान 'गहन चर्चा' की और इस दौरान दोनों ने छह बिंदुओं पर सहमति बनाई। इसमें सीमा पर शांति बनाए रखने और द्विपक्षीय संबंधों के स्वस्थ और स्थिर विकास को बढ़ावा देना शामिल है। पांच साल के अंतराल के बाद हुई इस बैठक में दोनों पक्षों ने सीमा मुद्दों पर पहुंचे समाधान का सकारात्मक मूल्यांकन किया और इसके क्रियान्वयन कार्य को जारी रखने की आवश्यकता दोहराई। दोनों ने माना कि सीमा विवाद को द्विपक्षीय संबंधों के समग्र दृष्टिकोण से सही तरीके से निपटाया जाना चाहिए ताकि संबंधों के विकास पर कोई असर न पड़े। इसके अलावा दोनों नेताओं ने कैलाश मानसरोवर यात्रा बहाल करने के अलावा सीमा पार नदियों का डाटा साझा करने और नाथूला पास से व्यापार शुरू करने पर बात आगे बढ़ने के दिशा-निर्देश भी तय किए। दोनों देशों के विदेश मंत्रालयों के बयानों में बताया गया कि विशेष प्रतिनिधियों ने सीमा विवाद के समाधान के लिए निष्पक्ष, उचित व पारस्परिक स्वीकार्य हल निकालने पर जोर दिया। साथ ही दोनों पक्षों ने सीमा से जुड़े मुद्दों की फिर से समीक्षा, सरहदी इलाकों के प्रबंधन व नियंत्रण नियमों की बेहतरी, आपसी भरोसे को मजबूत करने और इसके जरिये सीमा पर टिकाऊ शांति हासिल करने पर सहमति जताई। सीमा पार आवागमन और सहयोग बढ़ाने पर भी रजामंदी हुई। वहीं, चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा कि चीन रूस में हुई दोनों देशों के नेताओं के बीच महत्वपूर्ण आम समझ को लागू करने, एक-दूसरे के मूल हितों और प्रमुख चिंताओं का सम्मान करने, बातचीत और संचार के माध्यम से आपसी विश्वास को मजबूत करने, ईमानदारी और अच्छे विश्वास के साथ मतभेदों को ठीक से निपटाने और द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने के साथ काम करने के लिए तैयार है।

 

3 . ) मध्य प्रदेश में मदरसों पर नए नियम लागू !

भोपाल से बड़ी खबर है, मध्य प्रदेश की बीजेपी सरकार ने मदरसों पर सख्ती दिखाने की तैयारी कर ली है। 1998 के मदरसा अधिनियम के बाद से मान्यता को लेकर कोई नियम-कायदे नहीं बने थे, जिसकी वजह से मदरसों में अपनी-अपनी मनमानी चल रही थी। लेकिन अब 25 साल बाद मोहन यादव सरकार ने कमर कस ली है। नया मसौदा तैयार हो गया है और इसे लागू करने की तैयारी चल रही है। अब मदरसों में दीनी तालीम के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा देना अनिवार्य होगा। सुबह राष्ट्रगान और छुट्टी के वक्त कौमी तराना गाना पक्का होगा। मदरसों को अब ‘आधुनिक मदरसा’ लिखना होगा, लेकिन ‘स्कूल’ शब्द का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे। मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में 500 मीटर के दायरे में दूसरा मदरसा खोलने की इजाजत नहीं होगी। इसके अलावा, गैर-मुस्लिम बच्चों की एंट्री पर पाबंदी नहीं होगी, लेकिन माता-पिता की लिखित सहमति अनिवार्य होगी। सरकार ने नियमों को और सख्त करते हुए ऑडिट रिपोर्ट देने को भी जरूरी कर दिया है। बीजेपी का कहना है कि ये कदम मदरसों को मुख्यधारा में जोड़ने के लिए उठाया गया है। रामेश्वर शर्मा का कहना है, “अब तक मदरसों में राष्ट्रगान क्यों नहीं था? देश को मौलवी नहीं, डॉक्टर और वैज्ञानिक चाहिए।” 

नेताओँ की प्रतिक्रिया 

कांग्रेस ने इसे ध्यान भटकाने का कदम बताया है। कांग्रेस विधायक आतिफ अकील ने कहा, “अगर सरकार को मदरसों की इतनी ही चिंता थी तो बजट में इसका ध्यान क्यों नहीं रखा गया? बीजेपी की राजनीति सिर्फ बांटने की है।”पूर्व मंत्री और बीजेपी विधायक उषा ठाकुर ने सरकार के कदम को सही ठहराते हुए कहा कि राष्ट्रगान और आधुनिक शिक्षा वक्त की जरूरत है। उन्होंने कहा, “मदरसों को भी राष्ट्र निर्माण में योगदान देना चाहिए।” कुल मिलाकर, सरकार ने लिखित नियम बनाकर सख्ती दिखाने का इरादा कर लिया है। राजनीति के बयानबाजी अपनी जगह है, लेकिन ये कदम मदरसों को आधुनिक और मुख्यधारा से जोड़ने का बड़ा प्रयास माना जा रहा है।