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Breaking News 19 August 2025

1.) ट्रंप पुतिन और ज़ेलेंस्की को आमने-सामने ला रहे है ! अब क्या होगा ? 

वॉशिंगटन डी.सी. का व्हाइट हाउस, अगस्त की रात और अंतरराष्ट्रीय राजनीति की सबसे नई तस्वीर। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की आमने-सामने बैठे। कमरे में कैमरों की चमक थी, और हवा में वो गंभीरता भी, जो शायद दुनिया की सबसे लंबी और थकाऊ जंग रूस-यूक्रेन युद्ध को रोकने की कोशिशों में झलकती है। व्हाइट हाउस के ओवल ऑफ़िस में कल रात ज़ेलेंस्की पूरी तरह सूट-बूट में दिखे ऑल-ब्लैक आउटफ़िट, बिना टाई। रिपोर्टरों ने इस बदलाव को तुरंत पकड़ा और कमरे में हल्की चुटकी चली “फैबुलस लग रहे हो।” ज़ेलेंस्की का सूट केवल कपड़ा नहीं, बल्कि रणनीति थी। वो दुनिया को बताना चाहते हैं कि यूक्रेन अब सिर्फ़ एक पीड़ित देश नहीं, बल्कि कूटनीतिक टेबल पर बराबरी का भागीदार है। फ़रवरी की वही मीटिंग याद कीजिए जहाँ ट्रंप और ज़ेलेंस्की के बीच शब्दों की तलवारें चली थीं। उस गरमी के बरक्स इस बार का माहौल एकदम बदला हुआ था। ट्रंप की आवाज़ में तल्ख़ी कम, मुस्कान ज़्यादा थी। वाइस प्रेसिडेंट जे.डी. वेंस भी मौजूद थे। ओवल ऑफ़िस के बाद ईस्ट रूम में जब यूरोप के नेताओं के साथ “फैमिली फोटो” खिंची, तो तस्वीरें किसी शांति सम्मेलन जैसी लगीं। लेकिन इन मुस्कानों के पीछे की राजनीतिक हकीकत कहीं ज़्यादा पेचीदा थी।

मीटिंग का असली एजेंडा

सुरक्षा गारंटी पर अमेरिका का रुख ट्रंप ने साफ़ किया कि किसी संभावित शांति समझौते का हिस्सा बनने के लिए अमेरिका तैयार है। उनके शब्द थे “यूएस यूरोप के साथ मिलकर यूक्रेन की सुरक्षा में हेल्प आउट करेगा।” ये बयान साधारण नहीं था। NATO महासचिव मार्क रुट्टे ने तुरंत इसे “ब्रेकथ्रू” कहा। अमेरिका अब सिर्फ़ दूर से सलाह देने वाला खिलाड़ी नहीं, बल्कि सुरक्षा व्यवस्था का हिस्सा बनने को तैयार दिखा।  सीज़फ़ायर की शर्त: यूरोपियन नेताओं ख़ासकर फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और जर्मन चांसलर फ़्रीड्रिख़ मर्ज़ ने दो टूक कहा कि किसी भी समझौते की बुनियाद सीज़फ़ायर से शुरू होगी। उनके लिए “लड़ाई पहले रोको, फिर बातचीत करो” ही रास्ता है। ट्रंप का जवाब दिलचस्प था उन्होंने सीज़फ़ायर को “अच्छा कॉन्सेप्ट” कहा, लेकिन ये भी जोड़ा कि बातचीत तब भी हो सकती है जब लड़ाई जारी हो। यानी अमेरिका और यूरोप की सोच में फर्क साफ़ झलक रहा है।
ट्रंप ने खुलासा किया कि वे पुतिन से बात कर चुके हैं और कोशिश है कि पहले ज़ेलेंस्की और पुतिन आमने-सामने बैठें। इसके बाद ट्रंप खुद “ट्राइलेटरल” यानी तीन-तरफ़ा बैठक के लिए तैयार हैं। ये संकेत है कि ट्रंप अब खुद को सिर्फ़ राष्ट्रपति नहीं, बल्कि एक सक्रिय मध्यस्थ के तौर पर पेश कर रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय संकेत इस मुलाक़ात का संदेश कई स्तरों पर पढ़ा जा सकता है पिछले महीनों में अमेरिका का रुख अक्सर हिचकिचाहट भरा रहा। लेकिन अब वॉशिंगटन का सीधा शामिल होना इस युद्ध के समीकरण बदल सकता है।  यूरोप बनाम अमेरिका का फर्क यूरोप को जल्द से जल्द युद्ध रोकने की चिंता है क्योंकि रूस की आग सबसे पहले उनके दरवाज़े तक पहुँचती है। अमेरिका को लगता है कि बातचीत बिना रुकावट भी चल सकती है। यही खींचतान भविष्य की डील को कठिन बनाएगी। पुतिन का फैक्टर: रूस इस पूरे समीकरण का सबसे बड़ा खिलाड़ी है। जब तक पुतिन तैयार नहीं होंगे, तब तक किसी भी “गारंटी” की बुनियाद कमजोर रहेगी तो आगे का रास्ता क्या है  व्हाइट हाउस में हुई ये मुलाक़ात शांति की ओर एक कदम ज़रूर है, लेकिन अभी ये रास्ता धुंध से भरा है। अमेरिका और यूरोप की प्राथमिकताओं में अंतर है, पुतिन की मंशा अस्पष्ट है, और यूक्रेन की ज़मीन पर रोज़ बम गिर रहे हैं। हां, इस मुलाक़ात ने इतना ज़रूर साफ़ कर दिया है कि अब अमेरिका “बाहरी दर्शक” नहीं रहेगा। ट्रंप का बयान और यूरोप की दबाव की रणनीति आने वाले हफ्तों में वैश्विक कूटनीति की दिशा तय करेगी।

 

2.)  जैसा हॉलीवुड में दिखता था… वैसा अब चीन में हो रहा है

चीन से एक ऐसी खबर आई कि लोगों की आँखें फटी रह गईं। बात हो रही है एक प्रेग्नेंसी रोबोट की जी हाँ, वही जो पेट में बच्चा पालकर इंसानी बच्चे को जन्म देने का दावा कर रहा है। ग्वांगझोउ की Kaiwa Technology नाम की कंपनी ने कहा है कि 2026 तक वो ऐसा ह्यूमनॉइड बना देगी जिसमें आर्टिफ़िशियल वूम्ब होगा और पूरा नौ महीने का गर्भकाल चलेगा। कीमत? लगभग 12 लाख रुपये प्रति बच्चा। मीडिया ने इसे उठाया और सोशल मीडिया पर तुरन्त मीम्स बन गए । लेकिन ठहरो। जब हमने इस खबर को खंगाला तो ज़्यादातर चीज़ें दावे निकलीं, डेटा कम। बीजिंग में हाल ही में हुआ World Robot Conference 2025 कहा गया वहीं ये टेक्नोलॉजी पेश हुई। पर कॉन्फ्रेंस से कोई ठोस वीडियो, लाइव डेमो या पब्लिक पेपर नहीं निकला। ज्यादातर रिपोर्टों में AI से बनी तस्वीरें घूम रही थीं। इतना ही नहीं, फैक्ट-चेक प्लेटफ़ॉर्म ने इस पूरे मामले को “अप्रमाणित” करार दिया है। यानी फिलहाल रोबोट माँ ज़्यादा हेडलाइन है, कम हकीकत। अब जरा साइंस के असली रिकॉर्ड पर नजर डालते हैं। 2017 में अमेरिका के एक लैब में “बायोबैग” नाम की टेक्नोलॉजी से भेड़ के प्रीमैच्योर बच्चों को कुछ हफ़्तों तक जीवित रखा गया। 2021 में माउस एम्ब्रायोज़ को बोतल जैसे सिस्टम में कुछ दिनों तक ग्रो करवाया गया। ये सब बड़े वैज्ञानिक कदम हैं, मगर इंसान के पूरे नौ महीने की प्रेग्नेंसी को मशीन में शिफ्ट कर देना ये अभी साइंस-फिक्शन ही है।

तो फिर इतना शोर क्यों? वजह साफ है “महिला को रिप्लेस कर देगा रोबोट” वाली लाइन सुनने में जितनी डरावनी लगती है, उतनी ही वायरल होती है। और यही क्लिकबेट का मसाला है। असलियत ये है कि महिला का गर्भ, उसका शरीर, उसके हार्मोनल पैटर्न और पूरी बायोलॉजिकल मशीनरी किसी रोबोट में कॉपी कर पाना अभी कई दशकों दूर की कौड़ी है। कानूनी और सामाजिक सवाल भी कम नहीं। अगर कल को ऐसा रोबोट सचमुच आया तो बच्चे का अधिकार किसके पास होगा? सरोगेसी वाले कानून लागू होंगे या नया फ्रेमवर्क बनेगा? औरत की भूमिका को “रिप्लेस” बताना क्या सिर्फ़ एक टेक्नोलॉजी हाइप है या समाज में औरत की अहमियत को कमतर करने की कोशिश? नतीजा ये कि आज की तारीख में “रोबोट माँ” वाली खबर को सच मान लेना जल्दबाज़ी होगी। दावा बड़ा है, डेटा छोटा है। विज्ञान ने इस दिशा में कदम ज़रूर बढ़ाए हैं, पर पूरे टर्म का इंसानी बच्चा रोबोट से अभी नहीं। फिलहाल ये खबर टेक-पीआर, साइंस-फिक्शन और मीडिया की हेडलाइन बनाने वाली भूख का कॉकटेल है। असली सच तब सामने आएगा जब कंपनी कोई ठोस प्रोटोटाइप, रिसर्च पेपर या रेगुलेटरी मंजूरी लेकर आए। तब तक, चीन का “रोबोट माँ” एक हाइप है, हकीकत नहीं।बाकी चैनल तो आपको वही दिखाएंगे जो सब जगह मिलेगा… लेकिन यहां मिलेगा आपको वो जो कहीं और नहीं। तो, अगर भीड़ से हटकर सोचना है तो चैनल सब्सक्राइब कर डालिए और जुड़े रहिए हमसे

 

3.) क्या War 2 फ्लॉप हो गई?

14 अगस्त को रिलीज़ हुई वॉर 2 ने Independence Day वीकेंड पर धमाकेदार शुरुआत की। हृतिक रोशन और जूनियर NTR की मौजूदगी, विशाल बजट और YRF के स्पाई यूनिवर्स का नाम सबने मिलकर पहले चार दिन का कलेक्शन मजबूत बना दिया। फिल्म ने भारत में लगभग ₹183–185 करोड़ और वर्ल्डवाइड करीब ₹280–300 करोड़ जुटाए। लेकिन पाँचवे दिन से तस्वीर बदल गई। सोमवार को फिल्म का कलेक्शन सीधे 75% गिर गया और नेट इंडिया कलेक्शन मात्र ~₹8.5 करोड़ पर सिमट गया। इतना भारी बजट ₹350 से ₹400 करोड़ के बीच रखने वाली फिल्म के लिए यह गिरावट खतरनाक संकेत है।

पब्लिक और क्रिटिक्स की राय

क्रिटिक्स का कहना है कि फिल्म एक्शन पर भारी और कहानी पर हल्की पड़ गई। नैरेटिव कमजोर है और किरदारों की ताकत पूरी तरह सामने नहीं आती। दर्शकों की प्रतिक्रिया भी मिश्रित रही किसी को पहला हाफ पसंद आया, तो किसी ने इसे "औसत से नीचे" करार दिया। सोशल मीडिया पर भी सबसे ज्यादा यही बात दोहराई जा रही है कि फिल्म “उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी।” फिल्म का बजट इतना बड़ा है कि उसे “हिट” कहलाने के लिए लंबे समय तक स्थिर कमाई करनी होगी। लेकिन वर्ड-ऑफ-माउथ मजबूत न होने और वीकडे कलेक्शन गिरने के बाद यह मुश्किल लगता है। वॉर 2 ने शुरुआत में बड़े आंकड़े छुए, लेकिन जिस रफ्तार से गिरावट आई, उसने YRF के स्पाई यूनिवर्स की रणनीति पर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या केवल स्टारकास्ट और भव्य एक्शन के भरोसे फिल्में लंबे समय तक टिक सकती हैं? या दर्शक अब कहानी और गहराई की भी उम्मीद कर रहे हैं? फिलहाल एक बात साफ है वॉर 2 का सफर आसान नहीं होगा। आने वाले हफ्ते ही तय करेंगे कि ये फिल्म “हिट” कहलाएगी या “बड़े बजट की अधूरी कहानी” बनकर रह जाएगी।