इंडियन प्रीमियर लीग का मौजूदा सीजन वैसे तो खिलाड़ियों की चमक-दमक और टीमों की धमाकेदार जीत-हार का गवाह बना हुआ है, लेकिन इन सब के बीच एक नाम लगातार सुर्खियों में है 'रजत पाटीदार' वो पाटीदार जिसने 2022 में एक इंजरी रिप्लेसमेंट के तौर पर RCB की डगआउट में कदम रखा था, आज उसी टीम का कप्तान है। और न सिर्फ कप्तान, बल्कि ऐसा खिलाड़ी जो अब आंकड़ों के मैदान में दिग्गजों को धूल चटा रहा है। पंजाब किंग्स के खिलाफ हुए मुकाबले में पाटीदार भले ही कोई तूफानी पारी नहीं खेल पाए — 18 गेंदों पर 23 रन, मगर इन 23 रनों में एक सुनहरी कहानी छुपी थी। वो कहानी, जिसने उन्हें IPL इतिहास में 1000 रन पूरे करने वाला खिलाड़ी बना दिया। लेकिन बात सिर्फ इतने पर खत्म नहीं होती — उन्होंने ये कारनामा सिर्फ 30 पारियों में कर दिखाया, जबकि क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर को इसमें 31 पारियां लगी थीं। इस खास लिस्ट में उनसे आगे सिर्फ गुजरात टाइटंस के साई सुदर्शन हैं, जिन्होंने महज 25 पारियों में 1000 रन ठोक दिए थे। यानी रजत अब भारतीय बल्लेबाजों में दूसरे सबसे तेज 1000 रन बनाने वाले खिलाड़ी हैं। सोचिए, वो खिलाड़ी जो दो साल पहले तक किसी को ठीक से याद भी नहीं था, आज रिकॉर्ड बुक में सचिन तेंदुलकर से ऊपर दर्ज हो गया है! रजत पाटीदार की बल्लेबाज़ी सिर्फ स्थिरता नहीं, बल्कि तेज़ी की मिसाल है। IPL में 1000 रन बनाने वाले सभी भारतीय बल्लेबाज़ों में सिर्फ वही एक हैं जिनका औसत 35 से ऊपर और स्ट्राइक रेट 150+ है। यह आंकड़ा सिर्फ सम्मान का नहीं, बल्कि बताता है कि वो स्मार्ट क्रिकेटर हैं — जो टिकता भी है और मारता भी है। इस क्लब में अब तक बस कुछ ही इंटरनेशनल नाम रहे हैं — क्रिस गेल, डेविड मिलर, हेनरिक क्लासेन, शिमरॉन हेटमायर और ट्रेविस हेड। और अब इस फेहरिस्त में एक भारतीय भी है — रजत पाटीदार।
18 सालों में RCB के लिए 1000+ रन बनाने वाले भारतीय खिलाड़ियों की लिस्ट में भी पाटीदार ने एंट्री मार ली है। उनसे पहले सिर्फ दो नाम थे — विराट कोहली और देवदत्त पडिक्कल। मतलब RCB की विरासत में अब 'राजा विराट' के बाद 'राजत पाटीदार' भी दर्ज हो चुके हैं। रजत की कप्तानी में RCB ने कुछ यादगार जीतें दर्ज की हैं — 17 साल बाद चेन्नई को चेपॉक में हराया, 10 साल बाद मुंबई को वानखेड़े में मात दी। लेकिन कड़वी सच्चाई ये भी है कि अपने होम ग्राउंड पर लगातार तीन हार RCB को परेशान कर रही है। टीम बाहर जाकर शेर बन जाती है, लेकिन बेंगलुरु लौटते ही जैसे ट्रैफिक में फंस जाती है। क्या ये घरेलू दबाव है, या मैदान का वास्तु दोष? जहां विराट कोहली RCB के दिल थे, रजत पाटीदार शायद अब उसकी नई आत्मा बनने की ओर बढ़ रहे हैं। RCB की टीम भले ही अभी भी अपने घरेलू मैदान पर जीत की तलाश में भटक रही हो, लेकिन एक बात तय है — रजत पाटीदार की अगुवाई में इस टीम की तस्वीर बदल रही है। और अगर किस्मत और फॉर्म ने साथ दिया, तो IPL इतिहास में जल्द ही पाटीदार का नाम RCB को ट्रॉफी दिलाने वाले पहले कप्तान के तौर पर भी दर्ज हो सकता है।
बॉलीवुड के विवादों के शहंशाह, डायरेक्टर से एक्टिविस्ट बन चुके अनुराग कश्यप फिर एक बार सुर्खियों के केंद्र में हैं—लेकिन इस बार वजह उनकी कोई फिल्म नहीं, बल्कि उनके मुंह से निकला ऐसा ज़हर है, जिसने करोड़ों लोगों की भावनाओं को चोट पहुंचाई है। मुद्दा एक सोशल मीडिया कमेंट से उठा, लेकिन तूफान कुछ ज्यादा ही उठ गया । पूरा मामला क्या है? आइए सिलसिलेवार समझते हैं—11 अप्रैल को रिलीज़ होने जा रही फिल्म ‘फुले’ का ट्रेलर लॉन्च हुआ। फिल्म समाज सुधारक ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले की जिंदगी पर आधारित है—मकसद सामाजिक बदलाव दिखाना बताया गया। प्रतीक गांधी और पत्रलेखा लीड रोल में हैं। लेकिन जिस बदलाव की बात फिल्म कर रही थी, उसी बदलाव को कुचलने का काम खुद अनुराग कश्यप ने कर दिया अपने जहरीले कमेंट से। विवाद की शुरुआत होती है एक यूज़र के कमेंट से, जिसमें लिखा गया “ब्राह्मण तुम्हारे बाप हैं।” इस पर अनुराग कश्यप ने जवाब दिया— “ब्राह्मणों पर मैं पेशाब करूंगा... कोई प्रॉब्लम?” अब ये सोचिए—बॉलीवुड का एक जाना-माना डायरेक्टर, जो खुद को ‘बुद्धिजीवी’ कहता है, समाज में प्रगतिशीलता की बात करता है, वही जातिवाद पर ऐसा जहरीला और भद्दा बयान दे रहा है। क्या यही प्रगतिशीलता है? या फिर अपनी ही नफरत में झुलस चुका मानसिक दीवालियापन? सिर्फ यही नहीं, उन्होंने इस कमेंट का स्क्रीनशॉट लेकर अपनी इंस्टाग्राम स्टोरी पर भी शेयर किया—यानि खुद ही आग लगाई और खुद ही पेट्रोल छिड़क दिया। जैसे ही यह वायरल हुआ, जनता का गुस्सा फूट पड़ा। विरोध में ना केवल सोशल मीडिया पर लोग एकजुट हुए, बल्कि ब्राह्मण समाज के साथ-साथ तमाम सामाजिक संगठनों ने इसे 'हेट स्पीच' करार दिया। अब कहानी में ट्विस्ट आता है—माफी का। लेकिन वो माफी भी क्या थी, आइए सुनिए। अनुराग ने इंस्टाग्राम पर एक लंबा चौड़ा पोस्ट लिखा—जिसमें माफी कम, सफाई ज़्यादा थी। उन्होंने कहा— “जो गुस्सा है, वो मुझ पर निकाला जाए, मेरे परिवार पर नहीं। मेरी बेटी और दोस्तों को धमकियां मिल रही हैं, जो सही नहीं है। जो कहा गया, वो वापस नहीं लिया जा सकता। लेकिन अगर आप माफी चाहते हैं, तो ये रही मेरी माफी।”
पर असली बात ये है कि उन्होंने अपनी गलती को मानते हुए माफी नहीं मांगी, बल्कि ऐसा जताया मानो "मेरी बात को गलत समझा गया"। यानि गलती करने वाला खुद को पीड़ित बताकर जनता को गिल्टी ट्रिप पर भेजने की कोशिश कर रहा हैउन्होंने आगे लिखा “ब्राह्मण समाज की महिलाओं को बख्शिए, इतना तो धर्मग्रंथों में भी लिखा है। चाहे आप मनुस्मृति मानें या नहीं, इंसानियत सबसे ऊपर होनी चाहिए।” अब सवाल ये है—जो आदमी खुद पूरी ब्राह्मण जाति पर अपशब्द कह चुका है, वही अब "इंसानियत" और "धर्मग्रंथों" की बातें कर रहा है?
अनुराग कश्यप के इस प्रकरण ने एक बार फिर ये साबित कर दिया है कि ‘सहिष्णुता’ का तमगा बांटने वाले लोग खुद कितने असहिष्णु हैं। फिल्म ‘फुले’ की रिलीज़ अब 25 अप्रैल तक टल गई है। सेंसर बोर्ड ने कुछ बदलाव की बात कही है। लेकिन सवाल ये है—क्या फिल्मों में बदलाव से पहले ज़ुबानों को सुधारने की ज़रूरत नहीं है ?
पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद ज़िले में वक्फ संशोधन कानून के विरोध के दौरान भड़की हिंसा ने अब गंभीर सामाजिक और राजनीतिक विमर्श को जन्म दे दिया है। शुरुआती रिपोर्टों में जिन घटनाओं को मामूली तनाव करार दिया जा रहा था, वे अब बेहद भयावह हकीकत में तब्दील होती नज़र आ रही हैं। जैसे-जैसे राहत शिविरों में रह रहे पीड़ितों की कहानियां सामने आ रही हैं, राज्य की कानून-व्यवस्था पर सवाल खड़े होने लगे हैं। 11 अप्रैल को वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ निकले विरोध प्रदर्शन के दौरान मुर्शिदाबाद में स्थिति अचानक बिगड़ गई। कई घरों को आग के हवाले कर दिया गया, स्थानीय लोगों का कहना है कि हिंसा सुनियोजित थी। वहीं कुछ जगहों पर इसे भड़काऊ अफवाहों का परिणाम बताया गया है। हिंसा में मारे गए लोगों में एक पिता-पुत्र की जोड़ी भी शामिल है, जिनकी मौत ने पूरे इलाके को सदमे में डाल दिया। कुछ स्थानीय रिपोर्टों में दावा किया गया है कि हमलावरों ने विशेष समुदाय को निशाना बनाया, तो कुछ ने इसे आपसी टकराव बताया। हिंसा की गंभीरता को देखते हुए पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने राज्य सरकार की आपत्तियों के बावजूद राहत शिविरों का दौरा किया और पीड़ितों से मुलाकात की। उन्होंने कहा, "लोग सुरक्षा चाहते हैं। हम उनकी बात भारत सरकार और राज्य सरकार के समक्ष रखेंगे। यह एक मानवीय मसला है। हम हर स्तर पर कार्रवाई का प्रयास करेंगे।" इसी के साथ राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) की चेयरपर्सन विजया रहाटकर और उनकी टीम भी दो दिनों से मुर्शिदाबाद के दौरे पर हैं। उन्होंने हिंसा प्रभावित महिलाओं से मुलाकात की और उनके अनुभवों को सुनकर गहरा दुख प्रकट किया। रहाटकर ने मीडिया से कहा, "इनकी पीड़ा इतनी गहरी है कि शब्द कम पड़ जाते हैं। यह मानवीय संकट है, जिसे सियासी नजरिए से नहीं, संवेदना के साथ देखे जाने की ज़रूरत है।" आयोग की सदस्य अर्चना मजूमदार ने भी घटनाओं को ‘भयावह’ बताया और कहा कि राज्य सरकार को जिम्मेदारी लेनी होगी। तृणमूल कांग्रेस सरकार ने अब तक इन घटनाओं पर कोई विस्तृत प्रेस बयान जारी नहीं किया है, हालांकि पार्टी के कुछ नेताओं ने यह दावा किया है कि "विपक्ष मामले को तूल देकर राज्य की छवि धूमिल करना चाहता है।" सरकार के नजदीकी सूत्रों का कहना है कि प्रशासन ने स्थिति पर नियंत्रण पाने के लिए पर्याप्त बल भेजे थे और जांच शुरू कर दी गई है। हालांकि, राहत शिविरों में रह रहे कई पीड़ितों ने आरोप लगाया है कि उन्हें अब भी भय है और सुरक्षा की कमी महसूस हो रही है। बंगाल की राजनीति में यह मुद्दा गर्मा चुका है। भाजपा ने ममता सरकार पर ‘जनविरोधी और असंवेदनशील शासन’ का आरोप लगाया है, जबकि तृणमूल इसे ‘राजनीतिक षड्यंत्र’ बता रही है। इस बीच, कांग्रेस और वाम दलों ने भी निष्पक्ष जांच की मांग करते हुए कहा है कि मानवाधिकार की रक्षा हर सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी होनी चाहिए। बंगाल में पिछले वर्षों में कई हिंसक घटनाएं सामने आई हैं—पंचायत चुनावों, छात्र आंदोलनों और सांप्रदायिक तनावों के दौरान—but इस बार मामला मानवीय संकट का है। जहां आम नागरिक अपने ही राज्य में बेघर होकर राहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं, और जहां प्रशासन से लेकर समाज तक हर स्तर पर भरोसे की कमी महसूस की जा रही है।
आईपीएल 2025 का यह सीजन शायद कुछ खिलाड़ियों के लिए आखिरी 'धुआंधार' हो, क्योंकि उम्र, फिटनेस और प्रदर्शन—तीनों अब सवाल पूछने लगे हैं। तो आइए नज़र डालते हैं उन 5 दिग्गजों पर, जो आईपीएल 2025 के बाद बल्ला या गेंद थामने की बजाय शायद कमेंट्री माइक थामते दिखें -
1. इशांत शर्मा – 17 साल की आईपीएल यात्रा का आखिरी स्टेशन? एक दौर था जब इशांत की गेंदें आग उगलती थीं। आईपीएल 2008 की नीलामी में करोड़ों में बिकने वाले इशांत, अब 2025 में भी मेगा नीलामी का हिस्सा बने – वो भी अकेले ऐसे खिलाड़ी के रूप में जो इस टूर्नामेंट के पहले सीजन से अब तक बिकते आए हैं। लेकिन अब बात नीलामी की नहीं, निभाने की है। गुजरात टाइटन्स ने उन्हें खरीदा, लेकिन परफॉर्मेंस ने सवाल खड़े कर दिए हैं। और टीमों की दिलचस्पी अब पहले जैसी नहीं रही। शायद यही सफर का आखिरी पड़ाव है।
2. एमएस धोनी – क्या यह ‘थाला’ का आखिरी सलाम है?
जिस दिन धोनी रिटायर होंगे, उस दिन आईपीएल की एक आत्मा विदा लेगी। 43 साल की उम्र में भी जब माही मैदान पर उतरते हैं, तो वक्त थम जाता है। चेन्नई की जर्सी, पीठ पर नंबर 7 और दर्शकों की आंखों में आंसू – यह किसी फिल्मी सीन से कम नहीं होगा। ऋतुराज की चोट ने उन्हें दोबारा कप्तान बना दिया, लेकिन उन्होंने साफ कर दिया है – "सीजन के बाद अपने शरीर से पूछूंगा कि आगे खेल सकता हूं या नहीं।" शायद यह 'लास्ट हेलिकॉप्टर' की तैयारी है।
3. फाफ डुप्लेसिस – विदेशी क्लास का अंतिम अध्याय?
कभी बेंगलुरु के कप्तान, आज दिल्ली की जर्सी में। 3 मैचों में 81 रन – एक वक्त था जब फाफ की बल्लेबाज़ी में फिनिशिंग टच होता था, अब वही शॉट्स थके हुए लगते हैं। 40 की उम्र में विदेशी खिलाड़ियों के लिए भी फ्रेंचाइजियों की प्राथमिकताएं बदल चुकी हैं। और फाफ को देखकर लगता है कि यह सीजन उनके करियर का 'एंड क्रेडिट सीन' हो सकता है।
4. रविचंद्रन अश्विन – चतुर चालाक चक्रव्यूह अब फीका पड़ रहा है गेंदबाज़ी में क्लास, दिमाग से खेलने की कला, और पिच पर रणनीति का पिटारा – यही पहचान थी अश्विन की। लेकिन 2025 में आंकड़े बोलते हैं – 6 मैच, 5 विकेट, 9.90 की इकोनॉमी। इंटरनेशनल क्रिकेट से संन्यास ले चुके अश्विन अब आईपीएल में भी वह असर नहीं छोड़ पा रहे। शायद वक्त आ गया है जब वह अपने क्रिकेटिंग सफर को 'गुडबाय' कहें और ज्ञान की पिच पर उतरें।
5. और भी कई हैं कतार में…
भले ही कैमरे अभी कुछ और चेहरों को फॉलो कर रहे हों, लेकिन बैकस्टेज में कई अनुभवी खिलाड़ी अपने भविष्य को लेकर दुविधा में हैं। कोई प्रदर्शन से जूझ रहा है, कोई शरीर से, तो कोई वक्त से। आने वाले हफ्तों में और नाम इस सूची जुड़ सकते हैं।