केजरीवाल को करारा झटका | AAP छोड़े कैलाश गहलोत !
दिल्ली के परिवहन एवं पर्यावरण मंत्री कैलाश गहलोत ने आम आदमी पार्टी से अपना इस्तीफा दे दिया। अब ये दिल्ली की राजनीति में बड़ा झटका माना जा रहा है। चर्चा है कि गहलोत साहब ने पार्टी के लीडर अरविन्द केजरीवाल को पत्र भेज कर रिजाइन दिया | पॉलिसी मेकिंग, यमुना की सफाई और कुछ बड़े फैसलों पर उनकी बात को इग्नोर किया जा रहा था। हालांकि, ऑफिशियल स्टेटमेंट में उन्होंने कहा कि वो पर्सनल रीज़न्स की वजह से पार्टी छोड़ रहे हैं, अब दिल्ली में लोग जानते हैं कि "पर्सनल कारण" का मतलब अकसर पॉलिटिकल कारण होता है। अब पता नहीं गहलोत के इस्तीफे के पीछे का कारण पर्सनल है या सियासी है | कैलाश गहलोत पेशे से वकील है वो 2013 में आम आदमी पार्टी से जुड़े थे । उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत AAP के साथ हुई। गहलोत 2015 में नजफगढ़ विधानसभा क्षेत्र से आम आदमी पार्टी के टिकट पर चुने गए और और दो बार से विधायक रहे है | केजरीवाल सरकार में उन्हें PWD (लोक निर्माण विभाग),परिवहन, फाइनेंस के महत्वपूर्ण मंत्रालय दिए गए थे |
कैलाश गहलोत पर नजफगढ़ क्षेत्र में सरकारी और निजी जमीनों पर अवैध कब्जा करने का आरोप लगाया गया था। यह आरोप तब चर्चा में आया जब उनकी संपत्तियों की शिकायतों को लेकर कई लोग सामने आए।जब गहलोत के पास PWD का प्रभार था, तब ठेकों के शराब घोटाले में भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए। ED ने इस मामले में कथित मनी लॉन्ड्रिंग की जांच शुरू की थी | CBI और ED की जांच अब भी चल रही है, लेकिन गहलोत पर अभी तक किसी मामले में आरोप तय नहीं किए गए हैं।
दिल्ली सरकार और LG (लेफ्टिनेंट गवर्नर) के बीच जो पावर टसल चल रहा है, उसमें गहलोत का रोल सीमित हो गया था। जबकि वो PWD मिनिस्टर थे, लेकिन उनकी बात को उतनी तवज्जो नहीं मिल रही थी।वो पार्टी के अंदर अपनी बात न सुने जाने और अपनी भूमिका कम होने से निराश थे। अब चर्चा ये है कि ये इस्तीफा आम आदमी पार्टी के अंदर चल रहे घमासान को दिखाता है। लोग कह रहे हैं कि ये पार्टी अब वैसी नहीं रही जैसी पहले हुआ करती थी, जहां हर नेता को समान मौका मिलता था। सूत्रों की माने तो दिल्ली में झाग और गंदगी की भारी समस्या है | गहलोत ने, जो कि PWD मंत्री भी थे, यह बात कही कि यमुना की सफाई के लिए अलग-अलग विभागों (जैसे दिल्ली जल बोर्ड, नगर निगम) के बीच तालमेल की कमी है। इससे प्रोजेक्ट्स में देरी भी होती है
अफवाह है कि गहलोत बीजेपी में जा सकते हैं। बीजेपी दिल्ली में AAP को कमजोर करने का हर मौका ढूंढ रही है, और गहलोत जैसा अनुभवी नेता उनके लिए बूस्टर हो सकता है। कांग्रेस भी दिल्ली में AAP से नाराज नेताओं को अपनी तरफ खींचने की कोशिश कर रही है। अगर गहलोत कांग्रेस जॉइन करते हैं, तो ये केजरीवाल के लिए बड़ा झटका होगा। हो सकता है कि ये नई रणनीति हो गहलोत खुद कोई नया पॉलिटिकल कदम उठाने की सोच रहे हों।
सरकार ने लागू किया ग्रैप-4 नियम, अब सांस लेना मुश्किल
क्या दिल्ली वाले अब अपनी सांसें गिनेंगे? ये कदम तो एक सवाल खड़ा करता है, दिल्लीवालों को बचाने के लिए और क्या बचा है?अब से दिल्ली में कोई भी निर्माण कार्य नहीं होगा। कंस्ट्रक्शन बंद हो जाएंगे, डेमोलिशन पर रोक लगा दी गयी है ,और कुछ फैक्टरियों को भी पूरी तरह से बंद कर दिया गया है दिल्ली के बाहर से आने वाले सभी Commercial Vehicle के आने पर भी रोक लगा दी गयी है क्यूंकि हालात बत से बत्तर होते जा रहे है| इलेक्ट्रिक वाहन , सीएनजी और डीजल से चलने वाली गाड़ियां दिल्ली में आ सकती है | दिल्ली NCR में भारी माल ले जाने वाले वाहन जो डीजल का इस्तेमाल करते हैं उनको रोक दिया गया है ये वाहन अब एंट्री नहीं ले सकते है | सरकार ने दिल्ली में ग्रैप-4 (Graded Response Action Plan) नियम लागू कर दिया है | ये सब इसलिए ताकि दिल्लीवालों को सांस लेने के लिए साफ हवा मिल सके। क्योंकि , ये सिर्फ कुछ "बैन" और "सख्ती" नहीं है! यह हमारे जीवन के प्रति एक बड़ा सवाल है। राजधानी दिल्ली में AQI 450 को पार कर चुका है।आसमान में प्रदुषण इतना है की आँखें लाल हो जा रही है । दिल्ली में रात 8 बजे एक्यूआई 462 दर्ज किया गया। कुछ जगहों पर AQI 500 के करीब पहुंच चुका है। दिल्ली के अशोक विहार में AQI 490, बवाना में 493, मुंडका में 490, वजीरपुर में 486, द्वारका में 483 और आईजीआई एयरपोर्ट पर 480, और आनंद विहार में 487 दर्ज किया गया है
अब जब हवा की गुणवत्ता बेहद खतरनाक स्तर तक गिर चुकी है, तब हमें इसके खतरों का एहसास हुआ है? फिर, बात आती है ट्रैफिक की। दिल्ली में सड़क पर चलने वाला हर दूसरा इंसान अब पब्लिक ट्रांसपोर्ट को तवज्जो देगा, ताकि कुछ दम लेकर जी सके। क्या आपको अब भी लगता है कि सब ठीक है? क्या इस सख्त कदम के बाद भी हम इसी बेख़बरता में जीते रहेंगे?इन परिस्थितियों में, दिल्लीवासियों को खुद को सुरक्षित रखने के लिए ज्यादा से ज्यादा समय घर में बिताने की सलाह दी गई है, और जब भी बाहर निकलें, तो मास्क का उपयोग करें। खासकर उन लोगों को जो सांस की बीमारियों से पीड़ित हैं।
केंद्र के आदेश पर रवाना हुए हजारों जवान
हिंसक प्रदर्शन के बीच मणिपुर पिछले दो दिनों से फिर से अशांत हो गया है, भीड़ ने कई मंत्रियों और विधायकों के घरों पर हमला किया। इंफाल घाटी क्षेत्र में बढ़ते तनाव के बीच मैतेई बहुल घाटी के नागरिक समाज समूहों ने केंद्र और राज्य सरकार को हथियारबंद समूहों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई करने या जनता के गुस्से का सामना करने की चेतावनी दी है। उन्होंने सरकार से आतंकवादियों और हथियारबंद समूहों पर तत्काल सैन्य कार्रवाई करने की मांग की। यह घटना जिरीबाम में हुई गोलीबारी के बाद बंधक बनाए गए छह लोगों के शव बरामद होने की खबर फैलने के बाद हुई, बता दें कि इस गोलीबारी में 10 कुकी उग्रवादी मारे गए थे। मणिपुर में सात नवंबर से लेकर अब तक लगभग बीस लोगों की मौत हो चुकी है। राज्य के विभिन्न हिस्सों में हिंसा और आगजनी की वारदात हो रही हैं। मणिपुर में जारी हिंसा के बीच अब केंद्र की मोदी सरकार ने बड़ा कदम उठाया है। सरकार इस बार ऑपरेशन 'ऑल आउट' का एक्शन प्लान तैयार किया है। इस ऑपरेशन में केंद्रीय अर्धसैनिक बल 'CRPF' को लीड रोल में रखा जाएगा। केंद्र सरकार के सूत्रों के अनुसार, मणिपुर में अगले 24 घंटे में ऑपरेशन शुरु होगा, जिसके तहत विद्रोहियों और हिंसक वारदातों में शामिल लोगों को उनके ठिकानों से बाहर निकाला जाएगा और खत्म किया जायेगा। बता दें, पिछले दिनों केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मणिपुर में अर्धसैनिक बलों के 2,500 अतिरिक्त जवानों की तैनाती की थी। केंद्रीय बलों की 20 कंपनियों में से CRPF की 15 और BSF की 5 कंपनियां शामिल थीं। बीते दिन बच्चों व महिलाओं सहित छह लोगों मौत के बाद CRPF की 40 अतिरिक्त कंपनियों को मणिपुर रवाना करने की तैयारी पूरी हो चुकी है, जिसके बाद राज्य में सेना, लोकल पुलिस और केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के जवानों की संख्या लगभग एक लाख के पार पहुंच जाएगी।
मणिपुर में इस महीने के 7 तारीख से लेकर अब तक लगभग 20 लोगों की मौत हो चुकी है। राज्य के विभिन्न हिस्सों में हिंसा और आगजनी की बढ़ती वारदात को देखते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 14 नवंबर को इंफाल पश्चिम जिले में सेकमाई व लामसांग, इंफाल पूर्व में लामलाई, बिष्णुपुर में मोइरांग, कांगपोकपी में लीमाखोंग और जिरीबाम जिले में जिरीबाम के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में सशस्त्र बल विशेष अधिनियम (AFSA) लागू कर दिया गया है। इस बीच अब राज्य सरकार ने केंद्र से अनुरोध किया है कि 14 नवंबर को जिन क्षेत्रों में (AFSA) लागू किया है, उसे जनहित में वापस लिया जाए। बता दें, एक बार फिर सुलग रहे मणिपुर की घटनाओं का संज्ञान लेते हुए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने महाराष्ट्र में अपनी चुनावी रैलियां को रद्द करके दिल्ली लौटे और मणिपुर में सुरक्षा स्थिति की समीक्षा की और वहां शांति सुनिश्चित करने के लिए हर संभव कदम उठाने का निर्देश दिया। व्यापक हमले और विरोध-प्रदर्शन को देखते हुए अधिकारियों ने इम्फाल घाटी के इम्फाल पूर्व, पश्चिम, बिष्णुपुर, थौबल और काकचिंग जिलों में कानून-व्यवस्था की स्थिति और न बिगड़े इसके लिए अनिश्चितकाल के लिए कर्फ्यू लगा दिया और शनिवार शाम से अगले दो दिन के लिए मोबाइल इंटरनेट और डाटा सेवाओं को निलंबित करने का आदेश भी दिया। बता दें, CRPF के DG अनीश दयाल सिंह मणिपुर पहुंच चुके हैं। एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि शीर्ष अधिकारियों के नेतृत्व में सेना, असम राइफल्स, BSF, CRPF समेत मणिपुर पुलिस ने रविवार रात राजधानी इंफाल और उसके बाहरी इलाकों में फ्लैग मार्च किया।
NPP ने बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली मणिपुर सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया है। हालांकि NPP के समर्थन वापस लेने के बाद भी सरकार सुरक्षित है, क्योंकि मणिपुर में NPP भाजपा के साथ गठबंधन में नहीं थी, पार्टी ने चुनाव के बाद सरकार को बाहर से अपना समर्थन दिया था। आपको बता दें, मणिपुर की 60 सदस्यीय विधानसभा में NPP के 7 सदस्य हैं और वहीं भाजपा के पास वर्तमान में अपने दम पर 37 सीटें हैं, जो बहुमत के आधे आंकड़े 31 से काफी अधिक है, इसमें जेडीयू के 5 विधायक भी शामिल हैं, जो 2022 के अंत में भाजपा में शामिल हुए थे। इसके अलावा भाजपा को नागा पीपुल्स फ्रंट (NPF) के 5 विधायकों, जेडीयू के 1 विधायक और 3 निर्दलीय विधायकों का भी समर्थन प्राप्त है। बता दें, हाल ही में एक बार फिर से राज्य में बढ़ती हिंसा को देखते हुए राज्य सरकार ने इंफाल पूर्व, इंफाल पश्चिम, बिष्णुपुर, थौबल और काकचिंग सहित 5 जिलों में अनिश्चितकालीन कर्फ्यू लगा दिया है। साथ ही स्थिति को नियंत्रित करने के लिए 7 जिलों में इंटरनेट सेवाएं भी निलंबित कर दी गई है। सूत्रों ने बताया सरकार द्वारा अब जो 'ऑल आउट' एक्शन प्लान तैयार किया गया है, उसमें विद्रोहियों को उनके ठिकानों से दबोचा जाएगा। बता दें, इस मामले में खुफिया एजेंसी की भी मदद ली जा रही है। खुफिया एजेंसी द्वारा मणिपुर में कितने सक्रिय सशस्त्र समूह हैं, उनके पास कौन से हथियार हैं, उनके छिपने का ठिकाना और म्यांमार से लगते बॉर्डर के इलाकों में उनकी पहुंच, ये सभी जानकारी जुटा ली गई है। खुफिया एजेंसी से मिली इस जानकारी के बाद सेना, असम राइफल और CRPF के जवान, बॉर्डर के निकटवर्ती क्षेत्रों में छापामारी करेंगे, बाकी सुरक्षा बल, अंदर के क्षेत्रों में उपद्रवियों का सफाया करेंगे।
" द साबरमती रिपोर्ट" सिर्फ एक मूवी नहीं, एक बहस बन चुकी है। सवाल ये है कि क्या सच्चाई दिखाने के नाम पर किसी की भावनाएं आहत करना सही है? या फिर, सच बताना हमेशा कॉन्ट्रोवर्शियल रहेगा? ये फिल्म 2002 में गोधरा ट्रेन कांड पर आधारित है, जिसमें साबरमती एक्सप्रेस में आग लगने की घटना और उसके बाद की जांच-पड़ताल को दिखाया गया है।वहीं, इस फिल्म के मेन एक्टर विक्रांत ने कहा है कि फिल्म पूरी तरह से फैक्ट्स पर आधारित है।फिल्म का ट्रेलर आने के बाद से ही बहस और बढ़ गई थी, ये फिल्म 15 नवंबर 2024 को रिलीज हुई है
मूवी के ऊपर आरोप है कि ये "राजनीतिक प्रोपेगेंडा" फैला रही है। हालांकि इस फिल्म की प्रोडूसर एकता कपूर ने कहा, "ये मूवी किसी को टारगेट नहीं करती। हमारा मकसद बस लोगों तक सच्चाई पहुंचाना था।" X पर #SabarmatiReportBan ट्रेंड कर रहा था। वहीं, दूसरी तरफ फिल्म को सपोर्ट करने वाले बोले, "अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला मत करो।" विक्रांत मैसी ने मीडिया से कहा कि इस प्रोजेक्ट से जुड़ने के बाद उन्हें बहुत धमकियां मिलीं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने "द साबरमती रिपोर्ट" फिल्म को सराहा है और इसे सत्य को उजागर करने वाला बताया है। उन्होंने कहा कि झूठी कहानियां ज्यादा समय तक नहीं टिकतीं और आखिरकार सच सामने आता ही है। उन्होंने एक सोशल मीडिया पोस्ट को शेयर करते हुए कहा कि इस फिल्म ने उस सत्य को उजागर किया है, जिसे लंबे समय से छिपाने की कोशिश की जा रही थी। पीएम मोदी का मानना है कि फिल्म ने 2002 के गोधरा कांड के दौरान साबरमती एक्सप्रेस में मारे गए 59 लोगों की कहानी को संवेदनशीलता और गरिमा के साथ पेश किया है। उनके मुताबिक, यह घटना एक ऐतिहासिक सच्चाई है, जिसे उस समय राजनीतिक हितों के चलते तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया गया था।