आकाश हमेशा से इंसानों को अपनी ओर खींचता रहा है। किसी के लिए यह बस एक छत है, किसी के लिए छांव। लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं, जिनकी नजरें छत के पार देखती हैं—जो चांद-तारों में सिर्फ चमक नहीं, बल्कि संभावनाएं खोजते हैं। भारत के लिए वह ऐतिहासिक पल फिर से नज़दीक आ रहा है, जब देश का एक नागरिक अंतरिक्ष की ओर उड़ान भरने वाला है। लेकिन इस बार बात केवल दूरी की नहीं, बल्कि आत्मसम्मान, वैज्ञानिक क्षमता और भविष्य की दिशा की है। शुभांशु शुक्ला नामक यह युवा भारत के अंतरिक्षीय स्वप्न को नई ऊंचाई देने जा रहा है।
भारत के पहले निजी मानव अंतरिक्ष मिशन "एक्सिओम मिशन-4" की लॉन्चिंग 19 जून को प्रस्तावित थी, लेकिन ठीक उससे एक दिन पहले इसे फिर से स्थगित कर दिया गया। अब इस ऐतिहासिक मिशन के लिए नई संभावित तारीख 22 जून 2025 निर्धारित की गई है। यह मिशन नासा, स्पेसएक्स और एक्सिओम स्पेस के संयुक्त सहयोग से हो रहा है और इसमें भारत, पोलैंड व हंगरी जैसे देश पहली बार अंतरराष्ट्रीय निजी अंतरिक्ष मिशन में शामिल हो रहे हैं।
हालांकि इस मिशन का टलना कोई नई बात नहीं है। इससे पहले 29 मई, 8 जून, 10 जून और 11 जून को भी लॉन्चिंग टल चुकी है। इसके पीछे तकनीकी समस्याएं मुख्य कारण रही हैं—जैसे फाल्कन-9 रॉकेट में ईंधन का रिसाव और अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के रूसी खंड ‘ज्वेज्दा मॉड्यूल’ में समस्या। नासा का कहना है कि उन्हें मॉड्यूल की मरम्मत के बाद संचालन की स्थिति का पुनः मूल्यांकन करना है, इसलिए लॉन्च को 22 जून तक स्थगित करना पड़ा है।
इस मिशन में भारत के प्रतिनिधि के तौर पर जा रहे शुभांशु शुक्ला के साथ होंगे हंगरी के टिबोर कापू, पोलैंड के स्लावोज उज्नान्स्की-विस्नीव्स्की, और पूरी टीम का नेतृत्व करेंगी नासा की पूर्व अनुभवी अंतरिक्ष यात्री पैगी व्हिटसन। ये चारों स्पेसएक्स के फाल्कन-9 रॉकेट द्वारा अमेरिका के फ्लोरिडा स्थित कैनेडी स्पेस सेंटर से अंतरिक्ष की ओर रवाना होंगे।
शुभांशु शुक्ला भारत के अंतरिक्ष इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ने जा रहे हैं। वे अंतरिक्ष में जाने वाले भारत के दूसरे नागरिक बनेंगे, लेकिन अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर पहुंचने वाले पहले भारतीय होंगे। उनका यह सफर सिर्फ वैज्ञानिक उद्देश्यों तक सीमित नहीं होगा, बल्कि वे भारत की नयी पीढ़ी के लिए प्रेरणा का प्रतीक भी बनेंगे। अंतरिक्ष में वे कई वैज्ञानिक प्रयोग करेंगे, शारीरिक और मानसिक प्रभावों के परीक्षण में भाग लेंगे, और इस पूरी यात्रा को डॉक्यूमेंट करने का कार्य भी करेंगे।
शुभांशु ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था—"मैं अकेले नहीं जा रहा... ये 1.4 अरब लोगों की उड़ान है। मैं जो देखूंगा, वो भारत की आंखें देखेंगी। मैं जो महसूस करूंगा, वो देश का हर युवा महसूस करेगा।" यह शब्द सिर्फ भावनात्मक नहीं, बल्कि भारत के आत्मविश्वास की एक अनकही उद्घोषणा हैं।
इस पूरे मिशन में इसरो की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने एक्सिओम स्पेस के साथ मिलकर लॉन्चिंग टाइमलाइन, तकनीकी मूल्यांकन और मिशन की पूरी योजना पर गहन समीक्षा की है। इसरो का मानना है कि सभी अंतरराष्ट्रीय मानकों को ध्यान में रखते हुए 22 जून 2025 को लॉन्चिंग के लिए आदर्श समय माना जा रहा है।
इस उड़ान के लिए स्पेसएक्स का अत्याधुनिक ड्रैगन कैप्सूल तैयार है। यह कैप्सूल वह स्पेसशिप है, जिसमें ऑक्सीजन सप्लाई, तापमान नियंत्रण, वैज्ञानिक उपकरण, और क्रू के जीवनरक्षण की सभी व्यवस्थाएं मौजूद हैं। यही कैप्सूल अंतरिक्ष में भारत के सपनों को लेकर जाएगा।
जहां दुनिया अंतरिक्ष में दौड़ रही है, वहीं भारत अब सिर्फ दर्शक नहीं, भागीदार बन रहा है। शुभांशु शुक्ला जैसे युवा भारत की उस नई पीढ़ी का चेहरा हैं जो अब सिर्फ रॉकेट नहीं बना रही, उनमें बैठकर इतिहास भी रच रही है। ये मिशन सिर्फ तकनीक की बात नहीं करता—ये एक सभ्यता की उड़ान है, जो भविष्य के भारत की तस्वीर गढ़ने जा रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच 35 मिनट की बातचीत, दरअसल दो लोकतांत्रिक शक्तियों के बीच उभरते वैश्विक संतुलन का संकेत है।
फोन पर हुई इस बातचीत में एक ओर जहां मोदी ने पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर भारत द्वारा चलाए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की जानकारी दी, वहीं उन्होंने यह भी साफ किया कि अब आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले देशों को उसके परिणाम भुगतने ही होंगे। ये एक साधारण बातचीत नहीं थी, बल्कि यह उस नई विदेश नीति का प्रतिबिंब थी जिसमें शब्द भी हथियार होते हैं और संवाद भी रणभूमि।
इस बीच, ट्रंप ने जी-7 सम्मेलन के दौरान कनाडा से लौटते वक्त पीएम मोदी को अमेरिका आने का न्योता दिया—लेकिन भारत के प्रधानमंत्री ने अपने पहले से तय कार्यक्रमों का हवाला देकर बड़ी विनम्रता से इस प्रस्ताव को टाल दिया। पर टालने का अर्थ इंकार नहीं होता। मोदी ने ट्रंप को उसी विनम्रता से जवाब में भारत आमंत्रित किया—क्वाड शिखर सम्मेलन के लिए। और ट्रंप ने भी यह न्योता स्वीकार कर दोस्ती की ज़मीन और मजबूत कर दी।
इस वार्तालाप की बारीक परतों को समझा जाए, तो यह स्पष्ट होता है कि भले ही मुलाकात जी-7 सम्मेलन में न हो सकी, लेकिन नेताओं के इरादे और संवाद की डोर में कोई गिरावट नहीं आई। विदेश सचिव विक्रम मिस्री की बातों में भी यही संदेश झलकता है—“निकट भविष्य में मिलने की कोशिश करेंगे।”
दर्शन यह है कि वैश्विक राजनीति में जब एक ओर दुनिया युद्ध की आहटों से कांप रही हो—जैसे इस्राइल और ईरान का टकराव—तब भारत और अमेरिका जैसे देशों के नेता मिलकर न केवल शांति की ज़मीन तैयार कर रहे हैं, बल्कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन को भी मज़बूत कर रहे हैं।
क्वाड पर हुई सहमति और सहयोग की यह तस्वीर, भारत की उस कूटनीति की मिसाल है जहां संवाद को हथियार से ज़्यादा असरदार माना जाता है। जब ट्रंप कहते हैं कि वे भारत आने को उत्सुक हैं, तो यह केवल एक राजनयिक बयान नहीं होता—यह दुनिया को यह बताने का संकेत है कि भारत अब केवल एक साझेदार नहीं, बल्कि एक निर्णायक शक्ति है।