क्या वेस्ट एशिया एक और युद्ध की ओर बढ़ रहा है?
जुलाई 2024 में तेहरान में हमास नेता इस्माइल हनिया की हत्या कर दी गई थी, जिसके बाद से ही ईरान और हमास इस हत्या के पीछे इसराइल का हाथ बता रहे हैं। इस्माइल हनिया के ईरान में मारे जाने के बाद से मध्य-पूर्वी क्षेत्र में कायम तनाव युद्ध के खतरे से जुड़ी आशंकाओं को बढ़ा रहे है। युद्ध की इसी आशंका को भांपते हुए अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और इटली ने एक साझा बयान जारी किया था, जिसमें पश्चिमी देशों ने ईरान से कहा कि वो इसराइल पर किसी भी तरह की जवाबी कार्रवाई नहीं करेगा। बता दें, अब ईरान ने अमेरिका समेत पांच देशों की इस मांग को खारिज कर दिया है।
ईरान के बयान के बाद अलर्ट पर इसराइल
इसराइल ने इस्माइल हनिया की मौत में शामिल होने की बात नहीं कबूली है। हालांकि बढ़ते तनाव को देखते हुए इसराइल ने अपनी सेना को हाई अलर्ट पर रख है। इसराइल के रक्षा मंत्री याओव गैलेंट ने कहा है कि उनकी सेना खुफिया जानकारियों के आधार पर ईरान और बेरुत में हो रही गतिविधियों पर नजर रख रही है। साथ ही किसी भी तरह के खतरे को टालने के लिए सेना दिन-रात काम कर रही है और किसी संभावित हमले का जवाब देने की तैयारी भी कर रही है। इसी बीच अमेरिका ने चेतावनी दी है कि वह ईरान और उसकी प्रॉक्सियों की ओर से 'बड़े हमले' से निपटने के लिए तैयारी कर रहा है। बता दें, अमेरिका ने बढ़ते तनाव को देखते हुए इसराइल की सुरक्षा के लिए मध्य पूर्व क्षेत्र में कुछ गाइडेड मिसाइल पनडुब्बियां भेजने की बात कही है। इस बीच अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने मंगलवार से शुरू होने वाले अपने मध्य-पूर्वी देशों के दौरे को भी टाल दिया है। लेबनान में ईरान समर्थित हिजबुल्लाह ने भी एक हवाई हमले में अपने शीर्ष कमांडरों में से एक को गंवाने के बाद इसराइल से बदला लेने की धमकी दी है।
क्या ताजा हलचल को किसी बड़े हमले की आहट है?
हमास ने बताया था कि 31 जुलाई को ईरान के तेहरान में इस्माइल हनिया की हत्या उस वक्त हुई, जब वह ईरान के नए राष्ट्रपति मसूद पेज़ेश्कियान के शपथग्रहण समारोह में शिरकत करने पहुंचे थे। ईरान ने इस हत्या के पीछे इसराइल का हाथ बताया। इसके बाद ईरान के सर्वोच्च धर्मगुरु अयातोल्लाह अली खामेनेई ने हनिया की मौत का बदला लेने का एलान किया था। बता दें, इस्माइल हनिया अकेले ऐसे हमास नेता नहीं थे जिन्हें हाल के दिनों में मारा गया हो, इसराइल ने हाल ही में हमास के मिलिट्री चीफ मोहम्मद दिएफ को गजा पट्टी में एक हवाई हमले में मारने का दावा किया था। ईरान समर्थित लेबनानी समूह हिजबुल्लाह ने भी ये एलान किया था कि वह अपने सीनियर कमांडर फुआद शुक्र की मौत का बदला लेगा। इसके बाद अमेरिका के विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकन ने जी 7 देशों में अपने समकक्षों को ये चेतावनी भी दी थी कि ईरान और हिजबुल्लाह किसी भी वक्त इसराइल पर हमला बोल सकते हैं। हालांकि, अभी तक ये बड़ा हमला हुआ नहीं है लेकिन पाँच देशों का साझा बयान ये संकेत देता है कि खतरा अभी टाला नहीं है।
मध्य और पूर्वी अफ्रीका में संक्रामक मंकी पॉक्स (एमपॉक्स) के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। वहीं अफ्रीका से बाहर एमपॉक्स वायरस का पहला मामला दर्ज किए जाने के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने इसे पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी घोषित कर दिया है। संगठन के महानिदेशक टेड्रॉस एडोनम गेब्रीयेसुस ने कहा कि एमपॉक्स के एक नए क्लेड का उभरना, कांगो गणतंत्र में इसका तेजी से फैलना और कई पड़ोसी देशों में इसके मामलों की जानकारी मिलना बहुत चिंताजनक है। बता दें, इससे पहले अफ्रीका सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) ने इसे पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी घोषित कर दिया था। सेंटर ने कहा था कि मंकी पॉक्स पिछली बार से ज्यादा चिंताजनक है, ऐसा इसलिए क्योंकि नया वैरिएंट पहले की तुलना में कहीं ज्यादा घातक है।
वायरस के तीन स्ट्रेन
मौजूदा समय में वायरस के तीन स्ट्रेन मुख्य तौर पर फैल रहे हैं। 'क्लेड-I' मध्य अफ्रीका में एंडेमिक यानि स्थानिक है। वहीं, इस बार फैले मंकी पॉक्स का 'क्लेड Ib' नया और अधिक संक्रामक है। क्लेड 1 का प्रकोप सबसे अधिक मध्य अफ्रीका में है। ये घातक है और इस स्ट्रेन से बीमार लगभग 10 फीसदी लोगों की मौत हुई है। तो वहीं, क्लेड II कम हानिकारक पाया गया है, इस स्ट्रेन से पीड़ित 99.9% मामलों में व्यक्ति की जान बच जाती है। इस वायरस से 15 साल से कम उम्र के बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। अफ्रीका CDC ने कहा कि 2024 की शुरुआत और जुलाई के अंत तक 14,500 से अधिक मंकी पॉक्स संक्रमण के मामले सामने आए हैं और इससे 450 से अधिक मौतें हुईं है, ऐसे में देखा जाए तो मंकी पॉक्स वायरस के केस के मामले में 160 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। वहीं, पिछली बार की तुलना में 19 फीसद ज्यादा लोगों की जान गई है।
दुनिया पर मंडरा रहा 'एमपॉक्स' महामारी का खतरा
एमपॉक्स वायरस एशिया और यूरोप के कुछ देशों सहित उन 100 देशों में फैल गया था जहां कि आम तौर पर ये वायरस नहीं फैलता है. इसे कमजोर समूहों का टीकाकरण करके रोका गया। कांगो में मंकी पॉक्स वैक्सीन और इसके इलाज को लेकर कम सुविधा है, इसीलिए स्वास्थ्य अधिकारी इसके फैलने को लेकर चिंतित हैं। विशेषज्ञों ने कहा कि नया स्ट्रेन अधिक आसानी से फैल सकता है, ऐसे में बच्चों और वयस्कों में अधिक मौतें होने की संभावना है।
कैसे फैलता है मंकी पॉक्स?
मंकी पॉक्स किसी संक्रमित व्यक्ति के निकट संपर्क में आने से फैलता है। इसमें यौन संबंध और चमड़ी से त्वचा का संपर्क और संक्रमित शख्स से करीब से बात करना शामिल है। शरीर में यह वायरस टूटी त्वचा के माध्यम से आंख, श्वसन तंत्र, नाक या मुंह में प्रवेश कर सकता है। साथ ही मंकी पॉक्स उन वस्तुओं को छूने से भी फैल सकता है जिसका कि संक्रमित शख़्स ने इस्तेमाल किया हो, जैसे कि बिस्तर, कपड़े और तौलिया। वायरस संक्रमित जानवर जैसे कि बंदर, चूहे और गिलहरी के संपर्क में आने से भी यह हो सकता है। एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2022 में मंकी पॉक्स वायरस यौन संपर्क से अधिक फैला था।
क्या हैं मंकी पॉक्स के लक्षण?
इस वायरस के शुरुआती लक्षण बुखार, सिरदर्द, सूजन, पीठ दर्द और मांसपेशियों में दर्द है। बुखार उतरने पर शरीर पर चकत्ते आ जाते हैं, जो कि अक्सर चेहरे से शुरू होते हैं और शरीर के अन्य हिस्सों तक फैल जाते हैं। इन चकत्तों में अधिक खुजली या दर्द हो सकता है। संक्रमण आम तौर पर अपने आप ठीक हो जाता है और 14 से 21 दिनों के बीच रहता है। गंभीर मामलों में घाव पूरे शरीर और विशेष रूप से मुंह, आंखों और गुप्तांगों पर होते हैं।
क्या है मंकी पॉक्स का इलाज?
मंकी पॉक्स के फैलने को संक्रमण पर रोक लगाकर ही काबू किया जा सकता है और सबसे बेहतर ये है कि इसकी वैक्सीन लगवाई जाए। इस बीमारी की वैक्सीन होती हैं, लेकिन इसकी पहुंच उन्हीं लोगों तक होती है जो या तो खतरे में हैं या किसी संक्रमित व्यक्ति के करीबी होते हैं। WHO ने हाल ही में दवा निर्माताओं से कहा है कि वे वैक्सीन के इमरजेंसी इस्तेमाल के लिए आगे आएं और जिन देशों में इसकी जरूरत है लेकिन औपचारिक रूप से मंजूरी नहीं मिली है, वहाँ भी इन वैक्सीन को उपलब्ध करवायें।
रूस के कुर्स्क क्षेत्र में यूक्रेन के तूफ़ानी हमले और राष्ट्रपति ज़ेलेस्की की ओर से खेले गए दुस्साहसिक दांव के असर को अमेरिका कम करने में लगा है। इस हमले ने रूसी और पश्चिमी देशों के नेताओं को हैरान कर दिया है और साथ ही यूक्रेन को पश्चिमी समर्थन से जुड़े सबसे जोखिम भरे फैसले को भी सामने ला दिया है। बता दें, अमेरिकी अब इस बात का आकलन कर रहा है कि यह हमला रूस-यूक्रेन युद्ध की राजनीतिक और सैन्य परिस्थिति को कैसे बदल सकता है। साथ ही अपने हथियारों के इस्तेमाल को लेकर लंबे समय से अपने बदलते रुख के चलते अमेरिका इस बात का भी आकलन कर रहा है कि यूक्रेन की ओर से उनके इस्तेमाल से क्या जटिलताएं पैदा होंगी और इसके आने वाले समय में क्या प्रभाव हो सकते हैं।
क्या रूस और पश्चिम देश खुलकर आमने-सामने आएंगे?
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन के साथ जंग को हमेशा रूस और पश्चिम देशों के बीच युद्ध के रूप में दिखाने की कोशिश की है। लेकिन बाइडन इस पर अमेरिकी नैरेटिव को दबाने और टकराव को कम करने के लिए अमेरिकी नीति का रुख अपनाते रहे हैं, जिसके तहत बाइडन प्रशासन ने रूस और अमेरिका के संबंधों को बिना किसी जोखिम में डाले रूस के खिलाफ यूक्रेन को लगातार हथियार देकर सशक्त बनाने की कोशिश की है।
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद रूस पर बड़ा हमाल
यूक्रेन का कुर्स्क क्षेत्र पर हमला दूसरे विश्व युद्ध के बाद किसी विदेशी सेना का रूस के अंदर सबसे बड़ा हमला है। इस हमले ने व्हाइट हाउस के लिए कई जरूरी सवाल खड़े कर दिए हैं। पहला, क्या यह हमला अमेरिकी और नेटो हथियारों के इस्तेमाल को लेकर निर्धारित सीमा रेखा के दायरे को पार करता है? दूसरा, क्या यह इस जंग में पश्चिमी देशों के लिए रूस की ओर से तय की गई लाल रेखा को पार करता है? इन सब जोखिमों और अनिश्चितताओं के बावजूद राष्ट्रपति जेलेंस्की के इस कदम ने पश्चिमी देशों के सामने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। अब इस हमले को लेकर अमेरिकी प्रशासन का कहना है कि यूक्रेन ने हमले की कोई अग्रिम चेतावनी नहीं दी थी। वहीं व्हाइट हाउस ने अब मामले से किनारा करते हुए कहा है कि वॉशिंगटन का इससे "कोई लेना-देना नहीं" है। यूक्रेन-रूस युद्ध में अमेरिकी हथियारों के इस्तेमाल को लेकर व्हाइट हाउस, पेंटागन और विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता आधिकारिक तौर पर पुष्टि नहीं करेंगे कि उनका इस्तेमाल किया जा रहा है या नहीं, लेकिन यह स्पष्ट है कि अमेरिका और नाटो देशों के हथियारों पर यूक्रेन की निर्भरता है, जिसे रूस बार-बार दुहराता रहा है और यही कारण है कि रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने यूक्रेन के साथ जंग को हमेशा रूस और पश्चिम देशों के बीच युद्ध बताया है।
यूक्रेन के जनरल ने खोली अमेरिकी दावों की पोल?
यूक्रेन के सशस्त्र बलों के जनरल स्टाफ के पूर्व प्रवक्ता व्लादिस्लाव सेलेज़्न्योव ने एक अमेरिकी चैनल को बताया कि इस हमले में अमेरिका की ओर से दिए गए हिमार रॉकेट लांचर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनके इस बयान से ये साफ हो जाता है कि रूस के कुर्स्क क्षेत्र में यूक्रेन के आक्रमण के लिए अमेरिकी हथियारों के इस्तेमाल की स्वीकृति निश्चित तौर पर परोक्ष रूप से दी जा रही है। अब पुरे मामले पर सफाई देते हुए पेंटागन के प्रवक्ता ने कहा कि हमारा आकलन है कि यूक्रेन हमारे द्वारा निर्धारित नीति की सीमाओं के भीतर अमेरिकी हथियारों का इस्तेमाल कर रहे हैं और हमारी इन नीतियों में कोई बदलाव नहीं हुआ है, खासकर अमेरिकी हथियारों के इस्तेमाल के मामले में।
क्या यूक्रेन ने हमले के लिए मांगी थी अनुमति?
अमेरिका यूक्रेन के लिए हथियारों का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है, इसके चलते ये तो स्पष्ट है की यूक्रेन बिना अमेरिका की अनुमति रूस पर इतना बड़ा हमला कर सकता है। आपको बता दें, बीते हफ्ते ही पेंटागन ने तीन साल के भीतर यूक्रेन को हथियारों की 63वीं खेप पहुंचाई, जिसमें स्टिंगर मिसाइलों, आर्टिलरी शेल सहित हिमार्स रॉकेट, पैट्रियट मिसाइल रक्षा प्रणाली और F-16 लड़ाकू जेट शामिल हैं।
राष्ट्रपति पुतिन की चेतावनी से खौफ में अमेरिका
अमेरिका ने यूक्रेन को किसी भी नए हथियार देने से इनकार कर दिया है। बता दें, अमेरिका के ऐसे सभी निर्णयों के पीछे का कारण राष्ट्रपति पुतिन की चेतावनियाँ रही हैं, जिन्होंने पहले रूस की क्षेत्रीय अखंडता को खतरा होने पर "सभी उपलब्ध साधनों" का उपयोग करने की धमकी दी थी। यह उनके परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की चेतावनी थी, यानी ऐसी स्तिति जब उन्हें लगे कि पश्चिमी देश यूक्रेन युद्ध के माध्यम से रूस के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं।
पड़ोस की चुनौतियां, भारत की चिंता की वजह
भारत को श्रीलंका, म्यांमार, नेपाल, मालदीव, पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसियों के साथ पहले से ही चुनौतीपूर्ण सुरक्षा परिदृश्य का सामना करन पड़ रहा है। चीन पिछले दो दशक से दक्षिण एशिया में अपना प्रभाव बढ़ाने में जुटा हुआ है। एक बड़ी ताकत के तौर पर चीन के पास डॉलर और संसाधनों की कोई कमी नहीं है। अपनी डॉलर डिप्लोमेसी और संसाधनों के जरिये ही वह पाकिस्तान, श्रीलंका, मालदीव, म्यांमार और नेपाल में अपनी उपस्थिति मजबूत करता आया है। ऐसे में बांग्लादेश में भारत समर्थक शेख हसीना सरकार का तख्तापलट देश के लिए एक और झटका है। इस घटना ने हमारे सामने एक और अस्थिर पड़ोसी खड़ा कर दिया है, जो भारत की सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा सकता है। अब इन परिस्तिथियों में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का एक प्रसिद्ध वक्तव्य है, आप अपने दोस्त बदल सकते हैं, पड़ोसी नहीं।
पाकिस्तान को लेकर क्यों चिंतित है भारत?
विदेशी कर्ज के बोझ और महंगाई की वजह से पाकिस्तान आर्थिक संकट का सामना कर रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की लोकप्रियता और आर्थिक संकट मौजूदा सरकार की स्थिरता के लिए कभी भी खतरा बन सकते हैं। पाकिस्तानी आतंकी जम्मू-कश्मीर को लगातार निशाना बना रहे हैं, जिससे साफ पता चलता है कि पाकिस्तान जम्मू कश्मीर में होने वाले विधानसभा चुनाव को बाधित करने की रणनीति पर काम कर रहा है। बता दें, पाकिस्तान वित्तीय मदद के लिए पूरी तरह से चीन और अमेरिका पर निर्भर है। ऐसे में चीन और अमेरिका आर्थिक रूप से बदहाल पाकिस्तान को मोहरा बना कर भारत के सुरक्षा बलों के लिए चुनौतियां बढ़ा सकता है।
मालदीव को लेकर क्यों चिंतित है भारत?
चीन समर्थक मालदीव के मौजूदा राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू इंडिया आउट नारे के दम पर चुनाव जीत कर नवंबर 2023 में राष्ट्रपति बने हैं। मोइज्जू को चीन का समर्थक माना जाता है। उनके कार्यकाल में ऐसी परियोजनाएं अटक सकती हैं, जिन पर भारत काम कर रहा है। इसके अलावा चीन के प्रभाव में मालदीव के साथ पहले हो चुके समझौतों को भी रद किया जा सकता है, जिससे मालदीव में भारत के रणनीतिक हित प्रभावित हो सकते हैं। मुइज्जू ने चीन के साथ 20 समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, इससे खाद्य आयात, स्वास्थ्य सुविधाओं और व्यापार के लिए भारत पर मालदीव की निर्भरता कम होगी। चीन मालदीव में नौसैनिक अड्डा बनाना चाहता है और अगर ऐसा होता है तो यह आने वाले भविष्य में भारत की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा पैदा करेगा।
श्रीलंका को लेकर क्यों चिंतित है भारत?
श्रीलंका ने 2022 में गंभीर आर्थिक संकट का सामना किया, इसकी वजह से तब के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को सत्ता से बाहर होना पड़ा। राजपक्षे के बाद रानिल विक्रमसिंघे ने देश की कमान को संभाला और अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर सुधार किया। लेकिन आगामी चुनाव श्रीलंका के लिए विभाजनकारी साबित हो सकते हैं। श्रीलंका में गंभीर आर्थिक संकट के दौरान भारत की भूमिका को सराहा गया था, लेकिन श्रीलंका में चीन का प्रभाव अब भी बना हुआ है। चुनाव के बाद श्रीलंका में ऐसी राजनीतिक ताकतों की वापसी हो सकती है, जो भारत के हितों के लिए खतरा बन सकते हैं।
नेपाल को लेकर क्यों चिंतित है भारत?
नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी-एकीकृत मार्क्सवादी लेनिनवादी के केपी शर्मा ओली 14 जुलाई को फिरसे एक बार देश के प्रधानमंत्री बने हैं। ओली को चीन समर्थक माना जाता है। तो वहीं, भारत समर्थक नेपाली कांग्रेस गठबंधन सरकार में शामिल है। नेपाल ने ओली के पिछले कार्यकाल में कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख को नक्शे में नेपाली क्षेत्र के तौर पर दिखाया था। बता दें, बीते वर्षों में चीन भारत को पीछे छोड़ नेपाल में सबसे बड़ा विदेशी निवेशक बन गया है।
म्यांमार को लेकर क्यों चिंतित है भारत?
फरवरी, 2021 में सेना ने तब की मौजूदा प्रधानमंत्री आंग सान सू की को सत्ता से हटा दिया था। सैन्य शासक मिन आंग ह्लाइंग के नेतृत्व में म्यांमार गृहयुद्ध का सामना कर रहा है और देश के 50% हिस्से पर विद्रोहियों का नियंत्रण हो गया है। म्यांमार में जारी गृह युद्ध भारत के कलादान मल्टी मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट को प्रभावित कर रहा है। इस प्रोजेक्ट का मकसद भारत के उत्तर-पूर्व राज्यों को विकसित बनाना है। गृहयुद्ध की वजह से म्यांमार के करीब 50,000 नागरिक भारत आ चुके हैं। साथ ही आशंका है कि उत्तर पूर्व के आतंकी समूह फिर से संगठित हो सकते हैं और म्यांमार में सुरक्षित पनाहगार हासिल कर सकते हैं।
बांग्लादेश को लेकर क्यों चिंतित है भारत?
आरक्षण के मुद्दे पर शुरू हुआ छात्रों का विरोध प्रदर्शन लगातार 15 वर्ष तक प्रधानमंत्री रहीं शेख हसीना सरकार के खिलाफ विद्रोह में बदल गया। शेख हसीना को अपनी जान बचाने के लिए देश तक छोड़ना पड़ा। मोहम्मद यूनुस अंतरिम सरकार के प्रधानमंत्री चुने गएँ हैं। भारत समर्थक शेख हसीना सरकार ने बांग्लादेश में उत्तर पूर्व के आतंकी समूहों सहित भारत विरोधी गतिविधियों पर प्रभावी रूप से अंकुश लगाया था। अब उनके सत्ता से बहार जाने के बाद कट्टरपंथी इस्लामी समूह भारत के लिए खतरा बन सकते हैं। द्विपक्षीय सहयोग से जुड़े कई प्रोजेक्ट जैसे ऊर्जा प्रोजेक्ट प्रभावित हो सकते हैं।
अगला चुनाव लड़ने से भी किया इनकार !
जापान के प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा ने अगले महीने प्रधानमंत्री पद छोड़ने का एलान किया है। किशिदा ने कहा कि वह सत्ताधारी पार्टी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (LDP) के अध्यक्ष पद का चुनाव भी नहीं लड़ेंगे और अगले महीने नए अध्यक्ष का चुनाव होते ही पीएम पद से इस्तीफा दे देंगे। जापानी प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि उन्होंने सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के अध्यक्ष के रूप में फिर से चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया है। किशिदा के इस फैसले का मतलब है कि वह अगले महीने LDP के नए नेता के चुनाव तक ही प्रधानमंत्री पद पर रहेंगे।
किन वजहों से किशिदा ने पीएम पद छोड़ने का किया एलान?
जापान की सत्ताधारी पार्टी एलडीपी इन दिनों विवादों में है और इसके यूनिफिकेशन चर्च के साथ संबंधों को लेकर हुए खुलासे और बीते साल दिसंबर में राजनीतिक फंडिंग को लेकर हुए विवाद से पार्टी नकारात्मक कारणों से चर्चा में रही है। साथ ही किशिदा की कैबिनेट की अप्रूवल रेटिंग भी लगातार गिर रही है और यह पिछले आठ महीने से सिर्फ 20 प्रतिशत के आसपास ही है। पार्टी में ही मौजूदा प्रधानमंत्री और सरकार के खिलाफ विरोध के स्वर उठ रहे हैं और पार्टी नेताओं का कहना है कि मौजूदा सरकार के नेतृत्व में अगला आम चुनाव जीतना बेहद मुश्किल है। बता दें कि जापान में अगले अक्तूबर में चुनाव होने हैं।