बांग्लादेश की राजनीति हमेशा से तूफानी रही है, लेकिन 17 नवंबर 2025 वाला दिन इतिहास में उस स्याही से लिखा जाएगा जो मिटेगी नहीं। ढाका के International Crimes Tribunal ने देश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को मानवता के खिलाफ अपराध में फांसी की सजा सुना दी। हाँ, वही हसीना जिन्होंने 15 साल तक बांग्लादेश की सत्ता को अपनी मुट्ठी में रखा, और आज उसी देश की अदालत ने उन्हें “मानवता के खिलाफ अपराधी” बता दिया। लेकिन यहीं मत रुको असल में मामला इससे कहीं लंबी, धुंधली और कई मोड़ों वाली है। आइए जानते है…
2024 में बांग्लादेश में एक छात्र आंदोलन उठा किसी छोटे-मोटे कॉलेज के धरने जैसा नहीं पूरे देश को हिला देने वाला। सरकारी नौकरी में कोटा, भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी और प्रशासन की मनमानी के खिलाफ छात्रों ने सड़कों पर बाढ़ की तरह उतरकर सरकार की चूलें हिला दीं। इसके बाद जो हुआ, उसे आज भी कई लोग “बांग्लादेश का काला जुलाई-अगस्त” कहते हैं। सरकार ने बल प्रयोग किया और यह सिर्फ लाठी-डंडा वाला बल नहीं था।
ट्रिब्यूनल के मुताबिक आरोप पहला है हसीना ने ड्रोन, हेलिकॉप्टर, और घातक हथियारों के इस्तेमाल की अनुमति दी या आदेश दिया।
आरोप दूसरा है उन्होंने सुरक्षा बलों द्वारा की जा रही कार्रवाइयों को रोकने की ज़रा भी कोशिश नहीं की बल्कि हिंसा बढ़ती गई। आरोप तीसरा है सरकारी मशीनरी ने आंदोलनकारियों पर ऐसा प्रहार किया कि मौत का आंकड़ा 1,400 तक अनुमान है कि पहुँच गया यानी एक लघु-नरसंहार जैसा माहौल। इन आरोपों को ICT-1 ने “व्यापक, संगठित, और मानवीय मूल्यों के खिलाफ” बताते हुए इसे साफ-साफ crimes against humanity की परिभाषा में रखा।
यह कोई लोक अदालत नहीं, न ही कोई हाई कोर्ट का कमरा।
यह है International Crimes Tribunal Bangladesh, जिसे ICT-BD कहा जाता है बांग्लादेश सरकार ने 1973 में एक विशेष कानून बनाकर (International Crimes Tribunals Act, 1973) इसे अस्तित्व में लाया था। यह वह अदालत है जो युद्ध अपराध, मानवता के खिलाफ अपराध, व्यवस्थित हत्याएँ और राज्य-सहायता प्राप्त दमन जैसे मामलों की सुनवाई करती है। यह अंतरराष्ट्रीय कोर्ट नहीं है, लेकिन इसका स्टाइल, ढांचा, और केस नेचर दुनिया के बड़े युद्ध-अपराध ट्रायल जैसा है। ICT-BD राजनीति से हमेशा थोड़ा घिरा रहा है। कई देशों, संस्थाओं और मानवाधिकार समूहों ने इस पर सवाल उठाए हैं कि ट्रायल हमेशा “निष्पक्ष” हो, यह जरूरी नहीं। लेकिन इतना तय है यह अदालत छोटी मछलियाँ नहीं पकड़ती। यह सीधे टॉप ब्रास पर हाथ डालती है। 17 नवंबर 2025 सुबह से ढाका हाई अलर्ट में था। सड़कें आधी बंद, सेना तैनात, मोबाइल इंटरनेट धीमा जैसे कोई बड़ा तूफान आने वाला हो। ट्रिब्यूनल के कमरे में जज ने जब फैसला पढ़ना शुरू किया, तो पहली ही लाइन ने दुनिया को चौंका दिया “शेख हसीना को मानवता के विरुद्ध अपराधों में दोषी पाया जाता है… सजा मिला मृत्युदंड।” यह फैसला हसीना की मौजूदगी में नहीं आया। वह अब भारत में हैं और उन पर ट्रायल in absentia हुआ। यानी आरोपी कोर्ट में उपस्थित नहीं, पर मुकदमा चलता है। कानून इसकी अनुमति देता है, पर यह बेहद विवादित प्रक्रिया है।
सवाल बड़ा है, और जवाब फिलहाल धुंधला। फांसी की तारीख तय नहीं है। हसीना के पास अपील का विकल्प है भले वह देश में न हों। अंतरराष्ट्रीय दबाव, राजनीतिक हलचल, न्यायिक समीक्षा सब प्रक्रिया को लंबा कर देंगे। “गिरफ्तारी” भी एक बड़ा फैक्टर है। हसीना को पकड़े बिना फांसी कैसे दी जाएगी? तो अभी यह कहना गलत नहीं होगा कि यह “फैसला तो आ गया है, लेकिन फैसला अमल में कब आएगा यह अभी किसी को नहीं पता।”
हाँ, लेकिन बहुत कम। दुनिया में पूर्व प्रधानमंत्रियों पर मुकदमे हुए हैं लेकिन “मानवता के खिलाफ अपराध” में “फांसी की सजा” देना अत्यंत दुर्लभ है। इसलिए यह फैसला इतिहास के पन्नों पर लाल अक्षरों में दर्ज है। आमतौर पर ऐसे मुकदमों में देश की राजनीति बदल जाती है मानवाधिकार संगठनों की रिपोर्टें आती हैं
विदेशी सरकारें दखल देने लगती हैं और ट्रायल कई साल तक चलता रहता है इसलिए यह केस सिर्फ बांग्लादेश की कहानी नहीं है यह दक्षिण एशिया की राजनीतिक गाथा का नया अध्याय है। शेख हसीना की फांसी सिर्फ एक फैसला नहीं है। यह सवाल है“राज्य की शक्ति कितनी दूर जा सकती है?” यह दर्पण है “जनता बनाम सत्ता की लड़ाई में सच कौन है?” यह चेतावनी है “अगर लोकतंत्र में आवाज़ उठे और उसे कुचला जाए, तो बूट की आवाज़ कभी न कभी अदालत तक पहुंचती ही है।” बांग्लादेश आज अपने इतिहास के सबसे संवेदनशील मोड़ पर खड़ा है। और दुनिया देख रही है कि यह कहाँ मुड़ेगी न्याय की ओर, राजनीति की ओर, या किसी तीसरे अंधेरे मोड़ की ओर।