ओडिशा के बालासोर में एक 20 वर्षीय B.Ed छात्रा की आत्मदाह से हुई मौत ने राज्य की सियासत में भूचाल ला दिया है। पीड़िता ने कॉलेज के HOD पर लंबे समय से sexual harassment का आरोप लगाया था। शिकायत के बावजूद college administration की चुप्पी और निष्क्रियता से हताश छात्रा ने कॉलेज परिसर में ही खुद को आग के हवाले कर दिया। 90 फीसदी तक झुलसी छात्रा की मौत मंगलवार को एम्स भुवनेश्वर में इलाज के दौरान हो गई। घटना के बाद राज्य सरकार पर चौतरफा हमला शुरू हो गया है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस घटना को “सुनियोजित हत्या” करार देते हुए सीधे तौर पर BJP सिस्टम को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा, "यह आत्महत्या नहीं, बल्कि सिस्टम द्वारा की गई हत्या है। बहादुर छात्रा ने यौन उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाई, लेकिन उसे सुरक्षा देने की बजाय सिस्टम ने उसे और अधिक प्रताड़ित किया।" राहुल गांधी के इस बयान पर Union Education Minister धर्मेंद्र प्रधान ने पलटवार करते हुए कहा कि "इस गंभीर और संवेदनशील मुद्दे को राजनीतिक हथियार बनाना कांग्रेस की ओछी मानसिकता को दर्शाता है। राहुल गांधी इस दुखद घटना पर घटिया राजनीति कर रहे हैं।" प्रधान ने कहा कि इस मामले की निष्पक्ष जांच जारी है और दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। इस बीच राज्य की सियासत में भी हलचल तेज हो गई है। Biju Janata Dal (BJD) कार्यकर्ताओं की अगुवाई में 17 जुलाई को 'बालासोर बंद' का आह्वान किया गया। सुबह 6 बजे से दोपहर 2 बजे तक चले बंद के दौरान प्रदर्शनकारियों ने tyres जलाए, barricades तोड़े और मुख्यमंत्री मोहन माझी एवं शिक्षा मंत्री सूर्यबंशी सूरज के इस्तीफे की मांग की। स्थिति को काबू में करने के लिए पुलिस ने tear gas shells और water cannons का प्रयोग किया। Protest Footage में देखा जा सकता है कि सैकड़ों प्रदर्शनकारी बैरिकेड्स लांघने की कोशिश करते हुए पुलिस से भिड़ते हैं। जवाब में पुलिस बल उन्हें तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस और वाटर कैनन का इस्तेमाल करती दिखती है।
यह मामला बालासोर के Fakir Mohan Autonomous College का है, जहां पीड़िता ने अपने HOD द्वारा किए जा रहे लगातार यौन उत्पीड़न की शिकायत की थी। छात्रा ने written complaint के ज़रिए कॉलेज प्रशासन और प्रिंसिपल से मदद की गुहार लगाई थी, लेकिन आरोप है कि संस्थान ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। आखिरकार, उत्पीड़न और प्रशासनिक बेरुखी से तंग आकर छात्रा ने खुद को आग लगा ली। घटना के बाद उसे पहले Balasore District Headquarters Hospital और फिर हालत गंभीर होने पर 12 जुलाई को AIIMS Bhubaneswar रेफर किया गया, जहां वह जिंदगी की जंग हार गई। इस घटना ने न केवल राज्य सरकार की accountability पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि महिला सुरक्षा, campus sensitivity और संस्थानों में sexual harassment redressal mechanisms की निष्क्रियता पर भी गहरी बहस छेड़ दी है।
ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने भारतीय अंतरिक्ष इतिहास में एक नया अध्याय लिखा है। वे इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) तक पहुंचने वाले भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री बने हैं, और राकेश शर्मा के बाद अंतरिक्ष की यात्रा करने वाले दूसरे भारतीय भी। उन्होंने 25 जून 2025 को फ्लोरिडा के कैनेडी स्पेस सेंटर से स्पेसएक्स के फाल्कन 9 रॉकेट के ज़रिए उड़ान भरी और 18 दिन तक ISS पर रहकर 60 से अधिक वैज्ञानिक प्रयोग किए, जिनमें जीव विज्ञान, मटेरियल साइंस और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जुड़े अहम रिसर्च शामिल रहे। विशेष रूप से उनका 'स्प्राउट्स प्रोजेक्ट', जिसमें माइक्रोग्रैविटी में पौधों की वृद्धि पर रिसर्च हुआ, भविष्य में अंतरिक्ष में टिकाऊ खेती की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है।
इस ऐतिहासिक और वैज्ञानिक मिशन से लौटने के 18 दिन बाद शुभांशु शुक्ला ने अपने परिवार से मुलाकात की पहली तस्वीरें साझा कीं, जो भावनाओं से भरे उस पल की सजीव झलक देती हैं, जिसे शायद किसी शब्द में पूरी तरह नहीं बाँधा जा सकता। उन्होंने अपने परिवार से ह्यूस्टन स्थित नासा के एक विशेष सुविधा केंद्र में मुलाकात की, जहां स्प्लैशडाउन और क्वारंटाइन के बाद उन्हें मिलने की अनुमति मिली। प्रारंभिक मेडिकल जांच के बाद जब वे अपनी पत्नी कामना और चार वर्षीय बेटे से मिले, तो वह क्षण भावनाओं से भर गया—बेटा उन्हें गले लगा रहा था, और पत्नी की आँखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे।
शुभांशु ने इंस्टाग्राम पर तस्वीरें साझा करते हुए लिखा, "अंतरिक्ष की उड़ान अद्भुत होती है, लेकिन अपनों को गले लगाना उससे भी अधिक अद्भुत अनुभव है।" उन्होंने बताया कि क्वारंटाइन के दौरान उन्हें परिवार से आठ मीटर की दूरी पर रहना होता था, और उनके बच्चों को यह सिखाया गया कि उनके हाथों में कीटाणु हो सकते हैं, जिससे वे पिता को छू नहीं सकते। "जब भी वे मिलने आते, अपनी मां से पूछते, ‘क्या मैं अपने हाथ धो सकता हूं?’ यह बेहद चुनौतीपूर्ण था," शुभांशु ने लिखा।
उन्होंने आगे कहा, "धरती पर लौटकर और अपने परिवार को गले लगाकर ऐसा महसूस हुआ जैसे मैं वाकई अपने घर आ गया हूं। हम अक्सर अपनी व्यस्त जिंदगी में इतना उलझ जाते हैं कि यह भूल जाते हैं कि हमारे जीवन में लोग कितने महत्वपूर्ण हैं। अंतरिक्ष मिशन जादुई होते हैं, लेकिन इन्हें जादुई बनाते हैं वे इंसान जो इसमें शामिल होते हैं। आज ही किसी प्रियजन को गले लगाइए और बताइए कि आप उनसे प्यार करते हैं।" यह मिशन विज्ञान, भावना और इंसानियत के उस त्रिकोण का प्रतीक है, जो अंतरिक्ष यात्राओं को सिर्फ मिशन नहीं, बल्कि इतिहास बनाता है।