जहाँ एक ओर ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने पूरी दुनिया को भारत की सैन्य ताकत, रणनीतिक दक्षता और महिला शक्ति का लोहा मनवाया, वहीं दूसरी ओर समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और महासचिव रामगोपाल यादव की एक टिप्पणी ने देश की इस ऐतिहासिक विजय को सियासी और जातिगत बहस के दलदल में घसीटने की कोशिश की है।
मुरादाबाद में एक जनसभा को संबोधित करते हुए रामगोपाल यादव ने ऑपरेशन सिंदूर की नियमित ब्रीफिंग देने वाली विंग कमांडर व्योमिका सिंह को जातिगत आधार पर संबोधित करते हुए कहा "युद्ध एक मुसलमान, एक जाटव और एक यादव ने लड़ा। ये तीनों 'पीडीए' यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक वर्ग से आते हैं। ऐसे में भाजपा इस अभियान का श्रेय कैसे ले सकती है?" रामगोपाल ने यहीं तक बात नहीं रोकी। उन्होंने वायुसेना और थलसेना के अन्य अधिकारियों की जातियां तक गिनाईं। उनके शब्दों ने जैसे मानो वीरता को जाति के तराजू पर रखकर तौला हो। जिस भारतीय सेना की गूंज सरहद पार तक शौर्य की प्रतीक मानी जाती है, उसी सेना की कर्मठ, समर्पित और राष्ट्रभक्त संतानों को जातिगत पहचान से बाँधने की कोशिश क्या एक गंभीर नैतिक पतन नहीं?
बयान के बाद राजनीतिक तूफान आ गया। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तीखा हमला बोलते हुए कहा"सेना की वर्दी को जातिवादी चश्मे से नहीं देखा जाता। समाजवादी पार्टी के नेता द्वारा एक वीरांगना को जाति की सीमा में बाँधना न सिर्फ उनकी संकीर्ण सोच को उजागर करता है, बल्कि सेना की गरिमा और देश की अस्मिता का भी घोर अपमान है। सीएम योगी का यह बयान उन लाखों सैनिकों की आवाज़ बन गया जो जाति नहीं, सिर्फ वर्दी की पहचान से देश की रक्षा करते हैं बढ़ते विरोध के बाद रामगोपाल यादव ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'X' (पूर्व में ट्विटर) पर एक लंबी पोस्ट के जरिए सफाई दी। उन्होंने लिखा कि उनका बयान तो उस मानसिकता के खिलाफ था जो उत्तर भारत, खासकर उत्तर प्रदेश में धर्म और जाति के आधार पर अन्याय करती है। उन्होंने कहा:"उत्तर प्रदेश में जाति-धर्म के आधार पर फर्ज़ी मुकदमे, एनकाउंटर, गैंगस्टर एक्ट और संपत्ति ज़ब्ती जैसे मामलों में बढ़ोत्तरी हो रही है। महिलाएं तक जाति और वर्ग देखकर पीड़ित बनाई जा रही हैं। पोस्टिंग्स और ट्रांसफर तक जातिगत आधार पर हो रहे हैं।" उन्होंने आगे लिखा कि "अगर गालीबाज़ों को यह पता चल जाता कि विंग कमांडर व्योमिका सिंह जाटव हैं और एयर मार्शल अवधेश भारती यादव हैं, तो वे इन्हें भी गालियां देने से नहीं चूकते।" यह सफाई एक और बार मूल मुद्दे से भटकती दिखी – क्योंकि सवाल यह नहीं कि आपने किसी वर्ग के अधिकार की बात की या नहीं, बल्कि यह है कि क्या आपको वीरता को जातिगत पहचान से बाँधने का हक़ है? रामगोपाल यादव जैसे वरिष्ठ नेता से उम्मीद होती है कि वे सेना को राजनीति के बाहर ही रखेंगे, और खासकर उन वीर बेटियों का अपमान नहीं करेंगे जो देश की रक्षा पंक्ति में खड़ी हैं। व्योमिका सिंह सिर्फ एक नाम नहीं हैं, वह उस "नारी शक्ति" की प्रतीक हैं जिसने पुरुषों के वर्चस्व वाली सेना में अपने हुनर, साहस और नेतृत्व से इतिहास रचा है। इस विवाद ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है क्या हम अपनी राजनीति में इतने नीचे गिर चुके हैं कि अब शौर्य, राष्ट्रभक्ति और त्याग को भी जाति और वोटबैंक से तौलने लगें? कुछ मीडिया संस्थानों ने इस पूरे मुद्दे को या तो दबा दिया या फिर आधे बयान दिखाकर भ्रम फैलाया। वहीं आमजन यह पूछने लगा है कि क्या कोई नेता सेना के नाम पर भी जातिवादी विमर्श चलाकर राजनीतिक लाभ ले सकता है? क्या यह लोकतंत्र की असफलता नहीं । विंग कमांडर व्योमिका सिंह की जाति नहीं, उनका साहस इतिहास में लिखा जाएगा। कर्नल सोफिया कुरैशी का धर्म नहीं, उनका नेतृत्व प्रेरणा बनेगा। एयर मार्शल अवधेश भारती का जन्म नहीं, उनका योगदान सलामी का हकदार है।
भारत में इंटरनेट क्रांति की नई पटकथा अब तारों के बीच लिखी जा रही है। एक तरफ हैं एलन मस्क – जो Starlink के ज़रिए भारतीय टेलीकॉम के आसमान में छेद करना चाहते हैं, और दूसरी ओर अब अमेज़न के मालिक जेफ बेजोस भी उतर आए हैं, Project Kuiper को भारत में उतारने की तैयारी के साथ। यानी अब डेटा की लड़ाई सिर्फ जियो, एयरटेल और वीआई तक सीमित नहीं रही – अब इसे ब्रह्मांड के अरबपति लड़ेंगे!
Elon Musk की Starlink को भारत सरकार से Letter of Intent (LOI) मिल चुका है, यानी भारत में उनके स्पेस बेस्ड इंटरनेट सर्विस को लेकर रास्ता लगभग साफ है। लेकिन ठीक इससे पहले Amazon ने भी अपने सैटेलाइट इंटरनेट प्रोजेक्ट Project Kuiper को लेकर दूरसंचार विभाग (DoT) में दस्तक दी। अमेजन ने LOI के लिए अनुरोध किया है ताकि वह भारत में अपनी कमर्शियल सर्विस लॉन्च कर सके। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अमेजन ने चेन्नई और मुंबई जैसे बड़े शहरों में 10 ग्राउंड स्टेशन और 2 मेगा हब बनाने की योजना बनाई है। कंपनी का दावा है कि वह साल के अंत तक Kuiper सर्विस को शुरू करना चाहती है, जिसमें ग्राहकों को 100 Mbps से लेकर 1 Gbps तक की इंटरनेट स्पीड मिलेगी – और वो भी बिना मोबाइल टावर के, सीधे स्पेस से!
सैटेलाइट इंटरनेट असल में उन इलाकों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है, जहां आज भी 4G तो छोड़िए, 2G का नाम सुनकर भी नेटवर्क छुप जाता है। दूरदराज के गांव, पहाड़ी इलाके, जंगल और सीमावर्ती क्षेत्र, जहां परंपरागत टेलीकॉम कंपनियों की पहुंच नहीं, वहां सैटेलाइट इंटरनेट एक नया उजाला ला सकता है।
इस हाई-प्रोफाइल मुकाबले का सबसे बड़ा फायदा भारतीय ग्राहकों को हो सकता है। जब दो अरबपति स्पेस से डेटा गिराने को तैयार हों, तो डेटा के दामों में गिरावट आना तय है। Starlink और Kuiper की सीधी टक्कर से स्पीड, क्वालिटी और प्राइस—तीनों के मामले में ग्राहकों के लिए अच्छे दिन आ सकते हैं। लेकिन रुकिए, तस्वीर इतनी आसान नहीं… भारत में टेलीकॉम सेक्टर सिर्फ बाज़ार नहीं, एक नीतिगत भूलभुलैया है। स्पेक्ट्रम की नीलामी, विदेशी निवेश की सीमाएं, पब्लिक-प्राइवेट डिबेट, और लोकल कंपनियों का दबाव—ये सब किसी भी विदेशी दावेदार के लिए बड़ी चुनौती हैं। Starlink पहले से इन पेचीदगियों से जूझ रहा है, और अब Kuiper की राह भी फूलों से भरी नहीं होगी।
भारत-पाकिस्तान सीमा पर तनाव चरम पर है। इसी बीच तुर्की एक बार फिर कटघरे में है। वजह है– पाकिस्तान को तुर्की से मिले हथियारबंद ड्रोन। सोशल मीडिया पर ‘#BoycottTurkey’ ट्रेंड कर रहा है और लोगों की नाराजगी खुलेआम दिख रही है। सवाल उठ रहे हैं कि जो देश भारत के खिलाफ हथियार थमा रहा है, क्या उससे व्यापारिक रिश्ता रखना नैतिक है? क्या उसे हमारे देश की ज़मीन पर मुनाफा कमाने देना समझदारी है? भारत में अब इस मुद्दे पर बहस सिर चढ़कर बोल रही है। लोग तुर्की के सामान, सेवाओं और यहां तक कि पर्यटन को भी बायकॉट करने की मांग कर रहे हैं।
वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों पर गौर करें तो अप्रैल 2024 से फरवरी 2025 के बीच भारत ने तुर्की को कुल 5.2 अरब डॉलर (करीब 45,000 करोड़ रुपये) का निर्यात किया है। जबकि तुर्की से भारत का आयात मात्र 2.84 अरब डॉलर (करीब 24,000 करोड़ रुपये) का रहा। यानी भारत ने तुर्की को जितना बेचा, उससे लगभग आधा ही खरीदा। यहां एक अहम बात यह भी है कि भारत के कुल वैश्विक व्यापार की तुलना में तुर्की की हिस्सेदारी अभी भी सीमित है, लेकिन फिर भी रणनीतिक रूप से यह साझेदारी कमज़ोर नहीं मानी जा सकती।
तुर्की से भारत कई तरह के सामान आयात करता है। इनमें सबसे ज्यादा डिमांड मार्बल की है। भारतीय भवन निर्माण उद्योग में तुर्की का मार्बल काफी प्रचलित है। इसके अलावा तुर्की से आयातित सेब, अन्य फल, खनिज तेल, सब्जियां, चूना, सीमेंट, मोती, रसायन (केमिकल), आयरन-स्टील और कुछ रक्षा-सामग्री भी भारत लाता है। साल 2023-24 में भारत ने तुर्की से लगभग 150 करोड़ रुपये का खनिज तेल आयात किया था।
अगर बात तुर्की की करें तो उसे भारत से ज्यादा ज़रूरत है। भारत से तुर्की रेडीमेड कपड़े, सूती धागा, इलेक्ट्रॉनिक्स पार्ट्स, इंजीनियरिंग गुड्स, केमिकल्स, एल्यूमीनियम प्रोडक्ट्स, ऑटो कंपोनेंट्स, और सबसे अहम – खाद्य सामग्री जैसे तेल, चाय, कॉफी, चावल और मसाले आयात करता है। भारत के खनिज तेल की भी तुर्की में खास मांग है। तुर्की में ‘मेड इन इंडिया’ कपड़ों को लेकर एक अच्छा बाज़ार बना हुआ है। तुर्की पिछले कुछ सालों में भारतीय पर्यटकों का पसंदीदा डेस्टिनेशन बन गया है। 2023 में 3.3 लाख भारतीय पर्यटकों ने तुर्की की यात्रा की – ये संख्या 2022 से 20.7% अधिक रही। औसतन हर भारतीय पर्यटक ने वहां लगभग 1.25 लाख रुपये खर्च किए। इस तरह अकेले पर्यटन से तुर्की ने भारत से 4,000 करोड़ रुपये से अधिक की कमाई की। मगर अब माहौल बदल गया है। कई भारतीय ट्रैवल कंपनियों ने तुर्की के टूर पैकेजों की बुकिंग रोक दी है। कुछ ने तो अपने ग्राहकों को वहां न जाने की सलाह तक जारी कर दी है। यह न सिर्फ तुर्की की पर्यटन इंडस्ट्री को झटका देगा, बल्कि भारत में भी टूरिज्म से जुड़े कारोबारियों की रणनीति बदल जाएगी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अप्रैल 2000 से दिसंबर 2023 तक तुर्की ने भारत में 22.75 करोड़ डॉलर का निवेश किया है। वहीं भारतीय कंपनियों ने भी 20 करोड़ डॉलर का निवेश तुर्की में किया है। दिलचस्प बात यह है कि तुर्की की कंपनी सेलेबी एविएशन भारत के कई बड़े एयरपोर्ट्स जैसे दिल्ली, मुंबई आदि पर ग्राउंड हैंडलिंग और सुरक्षा सेवाएं देती है। अब जब जनता का मूड तुर्की के खिलाफ हो रहा है, तो ये निवेश और सेवाएं कितने दिन तक टिक पाएंगी यह सोचने की बात हैभविष्य तय करेगा कि भारत इस दोहरे रवैये को कितनी देर तक बर्दाश्त करता है। लेकिन जनता जाग चुकी है। और जब जनता तय कर ले, तो न कोई व्यापार बचता है, न सियासत। अब तुर्की को यह समझना ही होगा कि भारत सिर्फ एक बाज़ार नहीं, एक भावना है… और भावना से खिलवाड़ सस्ता नहीं पड़ता।