2 ) अहमदाबाद प्लेन क्रैश: जली लाशें, बुझे सवाल और चुप्पी में डूबा सिस्टम
12 जून की सुबह जब अहमदाबाद के सरदार वल्लभभाई पटेल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से एअर इंडिया की फ्लाइट AI-171 ने लंदन के लिए उड़ान भरी, तब किसी ने नहीं सोचा था कि महज 30 सेकेंड बाद ही आसमान से मौत उतरेगी। इस विमान में कुल 265 लोग सवार थे, जिनमें 241 यात्री और 24 क्रू मेंबर शामिल थे। विमान ने टेकऑफ के तुरंत बाद ही तकनीकी गड़बड़ी का सामना किया और पास ही स्थित मेघानी नगर इलाके के एक मेडिकल कॉलेज की इमारत से टकरा गया। हादसा इतना भयावह था कि टक्कर के बाद विमान में जबरदस्त विस्फोट हुआ और चारों ओर भीषण आग लग गई। हादसे के बाद का मंजर दिल दहला देने वाला था। राज्य आपदा मोचन बल (SDRF) की टीमें तुरंत मौके पर पहुंचीं, लेकिन वहां काम करना नामुमकिन था। हादसे के कुछ ही क्षणों में दुर्घटनास्थल का तापमान 1000 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया, जिससे न सिर्फ राहत कार्य बाधित हुआ, बल्कि आसपास मौजूद कुत्ते, पक्षी और छोटे जीव भी जलकर खाक हो गए। SDRF के एक अधिकारी ने बताया कि वे पिछले आठ सालों से आपदाओं से निपट रहे हैं, लेकिन ऐसा भीषण दृश्य पहले कभी नहीं देखा। PPE किट पहनकर भी उनके लिए काम करना मुश्किल हो गया था, क्योंकि हर तरफ सुलगता हुआ मलबा और जलती हुई लाशें थीं। अब सवाल यह उठ रहा है कि इतनी बड़ी त्रासदी हुई कैसे? शुरुआती जांच के अनुसार, तकनीकी गड़बड़ी का संकेत है, लेकिन क्या यह गड़बड़ी उड़ान से पहले पकड़ी जा सकती थी? क्या प्री-फ्लाइट जांच में कोई लापरवाही हुई? या फिर यह हादसा उस सिस्टम की चूक का नतीजा है जो हर बार चुपचाप मौत की ओर एक और विमान को रवाना कर देता है? अगर यह एयरलाइंस की गलती से हुआ है, तो यह केवल एक हादसा नहीं, बल्कि एक संस्थागत हत्या है। हादसे के बाद अब मुआवज़े की चर्चा शुरू हो गई है। मॉन्ट्रियल कन्वेंशन 1999 के तहत अगर विमान हादसा एयरलाइंस की गलती से होता है, तो प्रत्येक मृतक यात्री के परिजन को 128,821 SDR यानी लगभग 1.4 करोड़ रुपये का मुआवज़ा मिल सकता है। भारत में DGCA के नियमों के अनुसार, यह नियम घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों उड़ानों पर लागू होता है। वहीं, टाटा ग्रुप—जो इस समय एयर इंडिया का संचालन कर रहा है—ने मृतकों के परिजनों को 1 करोड़ रुपये मुआवज़ा देने और घायलों के इलाज का पूरा खर्च उठाने का ऐलान किया है। लेकिन सवाल यह है कि क्या इन पैसों से कोई मां अपने बेटे को लौटा पाएगी? क्या एक पिता अपने बच्चे को फिर से गोद में उठा पाएगा? सबसे दुखद बात यह है कि अब तक केंद्र सरकार की ओर से कोई स्पष्ट ब्रीफिंग नहीं दी गई है। DGCA की तरफ से केवल इतना कहा गया है कि “जांच जारी है।” पर सवाल कई हैं: अगर 30 सेकेंड में ही विमान क्रैश हो गया, तो ATC यानी एयर ट्रैफिक कंट्रोल क्या कर रहा था? आखिरी बार इस विमान की टेक्निकल जांच कब हुई थी? क्या पायलट को आपातकालीन सिग्नल भेजने का मौका मिला? क्या यात्रियों की सुरक्षा सिर्फ टेक्निकल प्रोसेस और चेकलिस्ट तक सीमित है? यह हादसा अहमदाबाद का नहीं, पूरे सिस्टम पर एक सवाल है। यह उस भरोसे की चिता है जो आम आदमी हर उड़ान में बैठते समय करता है—कि वो सुरक्षित अपने गंतव्य तक पहुंच जाएगा। लेकिन जब मुनाफे की भूख, लापरवाही और जवाबदेही से भागता सिस्टम एक साथ मिल जाए, तो नतीजा मेघानी नगर जैसे हादसे बनते हैं।