महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की कैबिनेट का पहला विस्तार नागपुर में संपन्न हुआ। जिसमें 39 विधायकों ने मंत्री पद की शपथ ली। इस विस्तार में बीजेपी से 19, शिवसेना से 11 और एनसीपी से 9 विधायकों को मंत्री बनाया गया है। सूत्रों के अनुसार, गृह विभाग, जिसे शिवसेना अपने खाते में चाहती थी, बीजेपी ने अपने पास रखा है। इसके अलावा, राजस्व, सिंचाई और शिक्षा जैसे अहम विभाग भी बीजेपी के हिस्से में आए हैं। शपथ ग्रहण समारोह के दौरान यह भी स्पष्ट किया गया कि मंत्रियों का कार्यकाल केवल ढाई साल का होगा। रायगढ़ जिले के महाड़ से विधायक भरत गोगावले ने भी मंत्री पद की शपथ ली। वह शिवसेना गुट के नेता हैं और मराठा कुनबी समाज से संबंध रखते हैं।
मराठा समुदाय के प्रताप सरनाइक ने मंत्री पद की शपथ ली। इन्होने 2009 से लगातार चुनाव जीतकर अपनी राजनीतिक पकड़ साबित की है। ये शिवसेना खेमे के प्रमुख नेताओं में से एक हैं। इसके अलावा संजय शिरसाट ने शिवसेना खेमे के औरंगाबाद पश्चिम से मंत्री पद की शपथ ली। संजय शिरसाट उद्धव गुट के राजू शिंदे को हराकर यह सीट जीती थी। शिरसाट मराठवाड़ा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। वहीँ संजय सावकारे ने भी मंत्री पद ग्रहण किया। संजय, भुसावल से चौथी बार विधायक बने हैं और 2009 से लगातार चुनाव जीत रहे हैं। सावकारे बीजेपी के वरिष्ठ नेता हैं। इसके अलावा नरहरि झिरवाल जो वरिष्ठ आदिवासी नेता और पूर्व डिप्टी स्पीकर रह चुके है। उन्होंने मंत्री पद की शपथ ली। नरहरि झिरवाल डिंडोरी सीट से विधायक बने हैं और आदिवासी समुदाय में मजबूत पकड़ रखते हैं। जयकुमार गोरे ने मंत्री पद की शपथ ली। जो सतारा जिले की मान विधानसभा सीट से विधायक हैं। इसके अलावा माणिकराव कोकाटे, एनसीपी कोटे से मंत्री बने। मराठा समुदाय के यह प्रमुख नेता नासिक की सिन्नर सीट से चौथी बार विधायक चुने गए हैं। वहीँ शिवेंद्र राजे भोसले, छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज और सतारा सीट से विधायक के रूप में मंत्री पद की शपथ ली। शिवेंद्र राजे 2019 के चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल हुए थे। आशीष शेलार, मुंबई बीजेपी अध्यक्ष और जय शाह के करीबी माने जाने वाले नेता ने भी मंत्री पद की शपथ ली। शंभूराज देसाई, एकनाथ शिंदे के करीबी और पाटने से लगातार तीसरी बार विधायक चुने गए और मंत्री पद ग्रहण किया। शिंदे की बगावत के दौरान देसाई उनके साथ खड़े रहे थे। इसके अलावा अतुल सावे और अशोक उइके ने भी मंत्री पद की शपथ ली। अशोक उइके रालेगांव सीट से विधायक हैं। पंकजा मुंडे, जो 2014-2019 में मंत्री रह चुकी हैं वो फिर से मंत्री पद ग्रहण किया। पंकजा मुंडे महाराष्ट्र विधान परिषद की सदस्य हैं। जयकुमार रावल, शिंदखेड़ा सीट से विधायक और बीजेपी के उपाध्यक्ष रह चुके नेता ने भी मंत्री पद की शपथ ली। उन्होंने पहले भी मंत्री पद संभाला है। इसके अलावा महाराष्ट्र मंत्रिमंडल में उदय सामंत, मंगल प्रभात लोढ़ा, धनंजय मुंडे, संजय राठौड़, दादा भुसे, गुलाबराव पाटिल, गिरीश महाजन, चंद्रकांत पाटिल, चंद्रशेखर बावनकुले और हसन मुश्रिफ ने मंत्री पद की शपथ ली। उदय सामंत, संजय राठौड़, दादा भुसे, गुलाबराव पाटिल शिवसेना खेमे से हैं। जबकि मंगल प्रभात लोढ़ा, गिरीश महाजन और चंद्रकांत पाटिल बीजेपी के वरिष्ठ नेता हैं। धनंजय मुंडे और हसन मुश्रिफ एनसीपी से जुड़े हैं। समारोह में सीएम एकनाथ शिंदे, डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार मौजूद रहे। शिवसेना को शहरी विकास, स्वास्थ्य, पर्यटन और मराठी भाषा विभाग, एनसीपी को वित्त और सहकारिता, जबकि बीजेपी ने गृह और शिक्षा विभाग अपने पास रखा है।
बिहार के दो मजदूरों की मणिपुर के काकचिंग में गोली मारकर हत्या कर दी गई। मृतक की पहचान 18 वर्षीय सोना लाल और 17 वर्षीय दशरथ सहनी के रूप में हुई है, दोनों ही युवक गोपालगंज के जादोपुर थाना क्षेत्र के राजवाही गांव के रहने वाले थे। घटना की जानकारी मिलने के बाद से परिजनों का रो- रोकर बुरा हाल है। गोपालगंज के रहने वाले पिता- पुत्र और पड़ोसी दिवाली बाद कमाने के लिए मणिपुर के काकचिंग गए थे। बीती रात उग्रवादियों ने उन्हें गोलियों से भूनकर उनकी बेरहमी से हत्या कर दी। इस वारदात में पिता वीरेंद्र मुखिया तो जिंदा बच गए, लेकिन उनके पुत्र और उसके दोस्त की घटनास्थल पर ही मौत हो गई। मौत की सूचना रविवार को जैसे ही मृतकों के घर पहुंची, वैसे ही रजवाही गांव में हर तरफ चीख पुरस्कार मच गई। बता दें कि मृतकों में 17 वर्षीय सोनी लाल कुमार, और 18 वर्षीय दशरथ कुमार शामिल हैं, जबकि सोनेलाल के पिता वीरेंद्र मुखिया इस उग्रवादी घटना में बाल- बाल बच गए। बताया जाता है कि काकचिंग में ही उग्रवादियों ने काम कर रहे इन मजदूरों के ऊपर ताबड़तोड़ गोलियों की बौछार कर इनकी हत्या कर दी थी। मीडिया रिपोर्ट की माने तो मैतेई और कुकी समुदाय के बीच रंजिश को लेकर यह उग्रवादी घटना हुई है। हालांकि सुरक्षाबलों ने मौके पर मौजूद एक उग्रवादी को मार गिराया है। मृतक के परिजनों का कहना है कि दोनों युवक अपने घर के माली हालत की वजह से मजदूरी करने गए थे। वो वहां एक महीना पहले ही गए थे, लेकिन वे उग्रवादियों की गोली के शिकार हो गए। दोनों मजदूरों की मौत की सूचना के बाद सीएम नीतीश कुमार ने मृतक के आश्रितों को दो-दो लाख रुपए मुआवजा की घोषणा की है।
मणिपुर के काकचिंग जिले में हुई बिहार के दो युवकों की हत्या की मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने निंदा की है। उन्होंने दोनों मृतकों के परिवार को 10 लाख रुपये मुआवजा देने का एलान भी किया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि आरोपियों को पकड़ने और मुकदमा दर्ज करने की कार्रवाई की जा रही है। मणिपुर के काकचिंग जिले में बिहार के गोपालगंज जिले के निवासी सुनालाल कुमार और दशरथ कुमार की काकचिंग-वाबागई रोड पर पंचायत कार्यालय के पास दिन दहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई। दोनों मृतक युवक निर्माण मजदूर के रूप में काम कर रहे थे और मेटेई बहुल काकचिंग में किराये के मकान में रह रहे थे। बता दें, सोशल मीडिया प्लेटफार्म "एक्स" पर पोस्ट में सीएम एन बीरेन सिंह ने लिखा कि मैं मणिपुर के काकचिंग जिले में बिहार के युवा भाइयों सुनालाल कुमार और दशरथ कुमार की हत्या की कड़ी निंदा करता हूं। यह कृत्य हमारे मूल्यों और मानवता पर सीधा हमला है और मेरी गहरी संवेदनाएं दोनों ही मृतकों के शोक संतप्त परिवारों के साथ हैं। उन्होंने लिखा कि हम इस संभावना को नजर अंदाज नहीं कर सकते कि यह भयानक अपराध हमारे राज्य को अस्थिर करने और इसे अराजकता की ओर धकेलने की एक बड़ी साजिश है। हम सबको इन मानवता विरोधी ताकतों के खिलाफ एकजुट होना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वो भय, असुरक्षा का माहौल पैदा करके राज्य को अइस्थिर करने के अपने इरादे में सफल न हों सके।
मणिपुर के कांगपोकपी जिले में सुरक्षा बलों ने तलाशी अभियान के दौरान बड़ी संख्या में हथियारों का जखीरा और गोला-बारूद जब्त किया। पुलिस ने बताया कि केंद्र और राज्य के सुरक्षा बलों की संयुक्त टीम ने एल जंगनोमफाई और फ्रीडम हिल में तलाशी अभियान चलाया, जहाँ से उन्हें 7.62 एमएम राइफल, एक नौ एमएम की पिस्टल, एक बैरल बंदूक, एक डबल बैरल गन, एक पोंपी गन, चार हैंड ग्रेनेड और चार स्टारडाइन विस्फोटक और चार इलेक्ट्रोनिक डेटोनेटर जब्त किए। बता दें, जब्त किए गए हथियारों और गोला बारूद को कांगपोकपी पुलिस को आगे की कार्रवाई के लिए सौंप दिया गया है। इस पूरे मामले पर सीएम बीरेन सिंह ने कहा कि सरकार की ओर से जिम्मेदार लोगों की पहचान करने, उन्हें पकड़ने और उन पर मुकदमा चलाने के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं और जरुरत पड़ी तो निष्पक्ष और गहन जांच के लिए मामला राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंप दिया जाएगा।
उस्ताद जाकिर हुसैन, जो अब हमारे बीच नहीं रहे सदी के सबसे महान तबला वादक थे। जाकिर हुसैन ने 73 साल की उम्र में अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में अंतिम सांस ली। वे फेफड़ों से जुड़ी एक गंभीर बीमारी 'इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस' से पीड़ित थे। जिसके कारण उनकी स्थिति में धीरे-धीरे गंभीर जटिलताएँ उत्पन्न हुईं। इसके अलावा, उनका हाई ब्लड प्रेशर भी था, जो दिल से जुड़ी समस्याओं का कारण बना और अंततः उनकी मौत का कारण बना। उनके परिवार ने इस खबर की पुष्टि करते हुए एक बयान जारी किया। जाकिर हुसैन का संगीत करियर बेहद प्रेरणादायक था। अपने पहले कॉन्सर्ट के लिए उन्हें मात्र 5 रुपये की फीस मिली थी। लेकिन बाद में वह इतने बड़े संगीतकार बने कि एक शो के लिए उनकी फीस 8 से 10 लाख रुपये तक पहुंच गई। म्यूजिक की दुनिया में उन्होंने 10 मिलियन डॉलर (लगभग 85 करोड़ रुपये) की संपत्ति बनाई। अपने पीछे वह एक आलीशान घर, शानदार गाड़ी और अच्छा बैंक बैलेंस छोड़ गए हैं। इसके अलावा, जाकिर हुसैन ने ताजमहल चाय को एक नई पहचान दी। इस चाय के विज्ञापन में उन्होंने अपनी तबले की धुन के साथ ‘वाह ताज’ का मंत्र दिया, जिससे ताजमहल चाय एक नई दिशा में लोकप्रिय हुई। ताजमहल चाय 1966 से भारत में कारोबार कर रही थी, लेकिन उस समय यह विदेशी ब्रांड के रूप में पहचानी जाती थी। कंपनी चाहती थी कि वह भारतीय संस्कृति और भारतीयों से जुड़ सके, इसलिए उसने जाकिर हुसैन जैसे मशहूर चेहरे को चुना। इस विज्ञापन से कंपनी का रिलॉन्च हुआ और ताजमहल चाय को भारतीयों के बीच एक नई पहचान मिली। जाकिर हुसैन का जन्म 9 मार्च 1951 को मुंबई में हुआ था, और उनका बचपन संगीत से गूंजता रहा। उनके परिवार में उनकी पत्नी एंटोनिया मिनेकोला और दो बेटियां अनीसा कुरेशी और इसाबेला कुरेशी हैं। उनकी पत्नी, जो इतालवी-अमेरिकी हैं, एक शानदार डांसर भी हैं और जाकिर हुसैन के साथ उनके सफर में हमेशा उनका साथ देती रहीं। उनके पिता, उस्ताद अल्लाह रक्खा, खुद एक शानदार तबला वादक थे, जिनसे उन्होंने बचपन में ही तबला वादन सीखा।
उस्ताद जाकिर हुसैन की कड़ी मेहनत और समर्पण ने उन्हें 5 ग्रैमी अवॉर्ड्स और पद्म श्री, पद्म भूषण, और पद्म विभूषण जैसे बड़े पुरस्कार दिलवाए। 12 साल की उम्र में उन्होंने अपनी पहली परफॉर्मेंस अमेरिका में दी थी, और इस छोटे से सफर के बाद उनका नाम दुनियाभर में फैल गया। जाकिर हुसैन का करियर सिर्फ तबला वादन तक सीमित नहीं था। उन्होंने एक्टिंग भी की और 12 फिल्मों में अभिनय किया। उन्होंने जो मुकाम हासिल किया, वह सिर्फ संगीत की दुनिया तक सीमित नहीं रहा, बल्कि वह एक ग्लोबल आइकन बन गए। जाकिर हुसैन का नाम न केवल भारतीय संगीत के आकाश में चमका, बल्कि उन्होंने पूरी दुनिया में तबला और भारतीय संगीत की धारा को एक नई दिशा दी।
16 दिसंबर सिर्फ एक तारीख नहीं है। ये वो दिन है, जब हमने पूरी दुनिया को बताया कि इंसानियत के लिए लड़ने वाला देश क्या कर सकता है। 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों का आत्मसमर्पण, ये सिर्फ जीत नहीं थी। ये उस हौसले की कहानी थी, जो भारतीय सेना के खून में दौड़ता है। इस जीत के पीछे न तो सिर्फ बंदूकें थीं और न ही टैंक्स। इसके पीछे था वो जोश, वो जज्बा, जो कहता है कि लड़ाई सिर्फ जमीन के टुकड़ों की नहीं होती, बल्कि इंसाफ और मानवता की भी होती है। तो, इस विजय दिवस पर अपने शहीदों को सलाम करना मत भूलिएगा, क्योंकि उनकी कुर्बानी के बिना ये जीत मुमकिन नहीं थी। 16 दिसंबर को हर साल हम विजय दिवस मनाते हैं। ये वही दिन है, जब भारतीय सेना ने पाकिस्तान को उसकी जगह दिखा दी थी। 1971 के युद्ध में मिली जीत सिर्फ पाकिस्तान पर विजय नहीं थी, ये एक नए राष्ट्र, बांग्लादेश के जन्म की कहानी है। जनरल सैम मानेकशॉ, जनरल जे.एफ.आर. जैकब, और एयर चीफ मार्शल पी.सी. लाल जैसे लीडर्स ने इसे अंजाम तक पहुंचाया। बांग्लादेश का गठन इस जीत की सबसे बड़ी उपलब्धि थी।
कहानी शुरू होती है पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) से, जहां पाकिस्तानी सेना ने ऐसा कहर बरपाया कि लाखों लोग जान बचाने के लिए भारत में शरण लेने लगे। इधर पश्चिमी पाकिस्तान के हुक्मरान अपनी तानाशाही चला रहे थे और उधर पूर्वी पाकिस्तान में लोग स्वतंत्रता की मांग कर रहे थे। मार्च 1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम शुरू हुआ। लाखों लोग मारे गए, और इसी के बाद भारत ने मानवीय आधार पर मदद का फैसला किया। पाकिस्तान को ये बात खटक गई और 3 दिसंबर 1971 को उसने भारतीय एयरफोर्स के ठिकानों पर हमला कर दिया। बस, फिर क्या था। भारत ने युद्ध का ऐलान कर दिया। और 13 दिन के अंदर भारतीय सेना ने पाकिस्तान को घुटनों पर ला दिया। 16 दिसंबर 1971 विजय का वो ऐतिहासिक दिन जब ढाका के रेस कोर्स ग्राउंड पर जनरल ए.ए.के. नियाजी ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया। 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने हथियार डाल दिए। ये इतिहास के सबसे बड़े आत्मसमर्पणों में से एक था।
1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में कई वीर भारतीय सैनिकों ने अपनी जान न्योछावर की। जिसमे से सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेतरपाल महज 21 साल की उम्र में लड़ाई के मैदान में शहीद हुए। उन्होंने अपनी टैंक यूनिट के साथ पाकिस्तान के भारी टैंकों का सामना किया और दुश्मन को भारी नुकसान पहुंचाया। अपने अंतिम क्षण तक उन्होंने मोर्चा संभाले रखा। उनकी बहादुरी के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। इसके अलावा भारतीय वायुसेना के
फ्लाइट लेफ्टिनेंट निर्मलजीत सिंह सेखों ने कश्मीर के आसमान में दुश्मन के लड़ाकू विमानों का सामना करते हुए अपनी जान दी थी। उन्होंने अकेले दुश्मन के 6 विमानों का मुकाबला किया और दुश्मन को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। उनकी वीरता के लिए उन्हें भी मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। भोत सरे वीरों ने अपनी सहादत दी जिनमे से कैप्टन विक्रम सिंह, मेजर होशियार सिंह, कैप्टन मोहनलाल राठौड़। इस युद्ध में हजारों भारतीय सैनिकों ने अपना बलिदान दिया, जिनमें से कई के नाम इतिहास में दर्ज हैं, लेकिन उनकी कहानियां अक्सर अनसुनी रह जाती हैं। इनमें सेना, नौसेना और वायुसेना के अनेक जवान शामिल थे। जैसे हवलदार राजेंद्र सिंह, लांस नायक यशपाल सिंह, कैप्टन राम कुमार चौधरी, सिपाही शिवदास पाटिल, मेजर मनोज पांडे। जब तक ये धरती है, इन वीर जवानों का नाम अमर रहेगा। क्योंकि ऐसी कहानियां ही इतिहास बनाती हैं।