भारत बहाना खालिस्तानी वोट बैंक है ट्रूडो का निशाना
कनाडा और भारत के बीच तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है। बीते दिन ट्रूडो सरकार की तरफ से एक तरफा भारत के विरुद्ध असंवेदनहीन बयानों और झूठे आरोपों के बाद अब भारत ने कनाडा के राजदूत सहित उसके छह अधिकारियों को 19 अक्टूबर तक देश छोड़ने का आदेश दिया है। ओटावा द्वारा भारतीय उच्चायुक्त संजय वर्मा और कुछ अन्य भारतीय राजनयिकों को खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या से जोड़ने के बाद भारत ने कनाडा में अपने उच्चायुक्त संजय वर्मा को वापस बुलाने का फैसला किया है, यह कहते हुए कि हमें उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने की वर्तमान कनाडाई सरकार की प्रतिबद्धता पर कोई भरोसा नहीं है। बता दें कि 18 जून, 2023 में खालिस्तानी आतंकी निज्जर की हत्या के बाद से दोनों ही देशों के बीच विवाद लगातार बढ़ता ही गया है। हालांकि इसके मूल कारणों में से एक कनाडा की आंतरिक राजनीति है, जिसे साधने की कोशिश में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो हैं। भारत विरोध और खालिस्तानियों को सपोर्ट की उनकी नीति कनाडा की राजनीति में अपने आप को मजबूत करने की कोशिश का एक अहम हिस्सा है।
कनाडा की पॉलिटिक्स का खालिस्तानी कनेक्शन?
कनाडा की राजनीति में पिछले कुछ दिनों में जस्टिन ट्रूडो की लोकप्रियता तेजी से कम हुई है। हाल में हुए कुछ स्थानीय चुनावों में भी उनकी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है और यही कारण है की अगले साल होने वाले राष्ट्रीय चुनाव से पहले वो अपनी खोयी हुई लोकप्रियता को वापस पाना चाहते हैं। बता दें, एक आधिकारिक डाटा के अनुसार कनाडा में 2.1 प्रतिशत वाली सिख आबादी है और जस्टिन ट्रूडो इसे ही साधना चाहते हैं, क्यूंकि कनाडा के चुनाव में 2-3 प्रतिशत का वोट स्विंग किसी भी पार्टी के हार-जीत में एक बड़ा इफेक्ट डाल सकता है। हालिया चुनाव में ट्रूडो की लिबरल पार्टी मॉन्ट्रियल में हुए चुनाव में हार गयी, मॉन्ट्रियल की हार से कुछ दिन पहले जगमीत सिंह की न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी ने सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया है, जिसके बाद से कनाडा की राजनीति में भूचाल आया हुआ है। जगमीत सिंह की न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी खालिस्तान समर्थक मानी जाती है। खालिस्तानी आतंकियों को कनाडा की तरफ से वर्षों से मदद और भारत के हितों की अनदेखी मौजूदा ट्रूडो सरकार की निति का हिस्सा रही है। भारत का मानना है कि खालिस्तान प्रेम में कनाडा ने न सिर्फ भारतीयों की जान ली है, बल्कि दुनिया के कई नागरिकों की भी जान ली है और ये सब कनाडा के लोगों ने नहीं, जस्टिन ट्रूडो और उनके पिता की भारत विरोधी नीतियों की वजह से हुआ है। 23 जून 1985 को कनिष्क विमान में सवार 86 बच्चों समेत 329 लोगों को अंदाजा तक नहीं था कि वह जीवन के अंतिम सफर पर निकल पड़े हैं. अचानक विमान में एक धमाका हुआ और सबकुछ खत्म हो गया. आरोप खालिस्तानी आतंकवादियों पर लगे। मानव अधिकारों का ढिंढोरा पीटने वाला कनाडा अब तक इस घटना में न तो किसी आरोपी को सजा दिलवा सका और न ही इसकी जांच पूरी कर सका।
भारत विरोध और मोदी सरकार है ट्रूडो की पॉलिसी
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो हमेशा से भारत के खिलाफ रहे हैं। साल 2018 में वो भारत के दौरे पर आए थे, अपने इस दौरे में उन्होंने खालिस्तान समर्थकों को साधने की कोशिश की थी। उनकी कैबिनेट में ऐसे लोग शामिल रहे हैं जो खुलेआम भारत के खिलाफ चरमपंथी और अलगाववादी एजेंडे से जुड़े रहे हैं और कई मौके पर वो खुलेआम भारत विरोधी बयान भी देते रहे हैं। इस साल के मध्य में हुए लोकसभा चुनाव और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ऐतिहासिक तीसरे कार्यकाल के लिए चुने जाने के बाद से भी ट्रूडो की परेशानी बढ़ गयी है। बता दें कि पिछले साल, भारत ने ट्रूडो के आरोपों को बेतुका और राजनीती से प्रेरित बताकर खारिज कर दिया था और कनाडा को खालिस्तान समर्थक सिखों का केंद्र बनने पर चिंता भी जताई थी। इसके अलावा भारतीय जाँच एजेंसी NIA ने निज्जर के खिलाफ कई मामले दर्ज किए थे, जिनमें मनदीप सिंह धालीवाल से जुड़े कनाडा में मॉड्यूल खड़ा करने के लिए आरसीएन भी शामिल है। निज्जर प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन सिख्स फॉर जस्टिस के कनाडा चीफ के रूप में भी जुड़ा था और उसने कई बार कनाडा में भारत विरोधी हिंसक विरोध प्रदर्शन आयोजित किए, भारतीय राजनयिकों को खुलेआम धमकी भी दी। उसने कनाडा में स्थानीय गुरुद्वारों द्वारा आयोजित किए जाने वाले विभिन्न कार्यक्रमों में भारतीय दूतावास के अधिकारियों के भाग लेने पर प्रतिबंध लगाने का भी आह्वान किया था।
कैसे और कब हुई निज्जर की मौत?
खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की 18 जून, 2023 को कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया राज्य में एक गुरुद्वारे के पार्किंग एरिया में कुछ नकाबपोश बंदूकधारियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। निज्जर की हत्या के कुछ दिन बाद एक खालिस्तानी संगठन ने हत्या के लिए कनाडा में भारतीय उच्चायुक्त संजय वर्मा और महा-वाणिज्यदूत अपूर्व श्रीवास्तव को इसका जिम्मेदार ठहराने वाले पोस्टर जारी किए थे। दोनों राजनयिकों को हत्या के लिए उत्तरदायी ठहराने वाले इन पर्चों में 8 जुलाई को टोरंटो में एक रैली की भी घोषणा की गई थी। इसकी वजह से भारत ने कनाडाई अधिकारियों के साथ इस मुद्दे को उठाया भी था। इसके अलावा कनाडा में भारतीय दूतावासों और वाणिज्य दूतावासों के बाहर खालिस्तान-समर्थकों द्वारा किए जा रहे विरोध प्रदर्शनों के चलते भारत ने कनाडाई उच्चायुक्त को तलब किया था। ठीक इस वक्त भारत के पंजाब में भी खालिस्तान-समर्थक अमृतपाल सिंह के खिलाफ बड़े पैमाने पर कार्रवाई की जा रही थी। भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने ब्रैम्पटन में आयोजित एक ऐसी रैली को लेकर कनाडा सरकार पर वार किया, जिसमें भारत की भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या को दर्शाता एक बैनर प्रदर्शित किया गया था। डॉ जयशंकर ने संकेत दिया था कि कनाडा सरकार द्वारा अलगाववादियों के विरुद्ध कार्रवाई नहीं करने के पीछे 'वोट बैंक की राजनीति' है। नई दिल्ली में आयोजित हुए जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान भी भारत ने साफ संकेत दिए थे कि कनाडा की धरती पर खालिस्तान-समर्थकों की गतिविधियों के विरुद्ध कनाडा की प्रतिक्रिया से भारत असंतुष्ट है।
चुनाव आयोग आज उत्तर प्रदेश और राजस्थान में होने वाले उपचुनाव को लेकर तारीखों का एलान कर सकता है। उत्तर प्रदेश की 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं, तो वहीं राजस्थान में 7 सीटों पर उपचुनाव होने हैं। संभावना है कि दोपहर साढ़े तीन बजे के बाद चुनाव आयोग प्रेस कॉन्फ्रेंस करेगा और महाराष्ट्र-झारखंड विधानसभा की चुनावी तारीखों के साथ उपचुनाव का कार्यक्रम भी जारी करेगा। राजस्थान में दौसा, देवली उनियारा, चौरासी, खींवसर, झुंझुनू, सलूंबर और रामगढ़ सीट पर उपचुनाव होना है। 7 सात विधानसभा सीटों में से 5 सीट वहां के मौजूदा विधायक के सांसद बनने के कारण खाली हुई थी, जबकि सलूंबर में विधायक अमृतलाल मीणा के निधन के बाद यह सीट खाली हुई। रामगढ़ सीट विधायक जुबेर खान की मृत्यु के बाद खाली हो गई थी। इन विधानसभा सीटों में से 4 सीट कांग्रेस, 1 सीट बेनीवाल की RLP, 1 सीट राजकुमार रोत (बाप) की थी और 1 सीट पर बीजेपी जीती थी। उत्तर प्रदेश की जिस 10 सीटों पर चुनाव होने हैं, उनमें से 3 सीटों पर पिछली बार बीजेपी जीती थी। बीजेपी के सहयोगी दल निषाद पार्टी के पास एक सीट थी, जबकि बीजेपी की दूसरी सहयोगी पार्टी राष्ट्रीय लोक दाल के पास भी एक सीट थी। वहीं, 10 में से 5 सीटों पर पिछले चुनाव में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार चुनाव जीते थे। कानपुर की सीसामऊ सीट सपा विधायक इरफान सोलंकी को सजा होने के चलते खाली हुई, बाकी 9 पर विधायकों के सांसद बन जाने की वजह से खली हुई हैं। इनमें से 5 सीटें करहल, सीसामऊ, मिल्कीपुर, कटेहरी और कुंदरकी सपा के पास थीं। तो अलीगढ़ की खैर, गाजियाबाद और फूलपुर सीट भाजपा, मझवां निषाद पार्टी और मीरापुर RLD ने जीती थी।
राजस्थान उपचुनाव में किसका पलड़ा भारी?
प्रदेश में होने वाले इन उपचुनाव में प्रदेश की दोनों ही बड़ी पार्टी कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेताओ की प्रतिष्ठा दांव पर रहेगी। जहां एक तरफ मौजूदा भाजपा सरकार अपने दस महीने के कार्यकाल को लेकर चुनाव में उतरेग, वहीं कांग्रेस पार्टी अपनी पूर्ववर्ती सरकार की योजनाओं और मौजूदा सरकार की कमियों को लेकर चुनावी मैदान में नजर आएगी। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ने वाले बाप, बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी, आगामी विधानसभा उपचुनाव में एक साथ नहीं नजर आएंगे, जिसकी वजह से माना जा रहा है की आगामी उपचुनाव और रोचक होने वाले हैं। जिस वोटर ने लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और उसके गठबंधन सहयोगियों को वोट किया था, अब देखना यह है कि विधानसभा उपचुनाव में गठबंधन नहीं होने के कारण वोटर किस दिशा में जाएगा और इस पर सबकी नजर रहेगी। कांग्रेस एवं अन्य दलों के लिए भारतीय जनता पार्टी भी एक बड़ी चुनौती बनकर उभर सकती है, क्योंकि प्रदेश में मौजूदा सरकार भाजपा की है और ऐसी स्थिति में अगर लोगों को अपनी विधानसभा का विकास करना है तो उन्हें भाजपा के विधायक को चुनकर लाना होगा।
यूपी उपचुनाव में किसका पलड़ा भारी?
हरियाणा चुनाव के नतीजों के बाद से बीजेपी का जोश हाई है। लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में पार्टी का प्रदर्शन खराब रहा था। अब प्रदेश में विधानसभा की दस सीटों पर उपचुनाव होने हैं, ये चुनाव मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और बीजेपी के लिए किसी अग्नि परीक्षणों कम नहीं है। लोकसभा चुनाव में 37 सीटें जीतने के बाद से समाजवादी पार्टी के हौसले बुलंद हैं और पार्टी ने उपचुनाव के लिए अपने छह उम्मीदवारों की घोषणा पहले ही कर दी है। तो वहीं, यूपी की 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उप चुनाव के लिए भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व ने 9 सीटों पर खुद चुनाव लड़ने का फैसला किया है। साथ ही इन सीटों के लिए नौ प्रत्याशियों के नाम को भी फाइनल कर दिया है। इसके अलावा दशवीं मीरापुर सीट को रालोद को देने पर सहमति बनी है, 2022 में रालोद यहां से जीती थी। यूपी की दस विधानसभा सीटों करहल (मैनपुरी), सीसामऊ (कानपुर), मिल्कीपुर (अयोध्या), कटेहरी (अंबेडकरनगर), कुंदरकी (मुरादाबाद), खैर (अलीगढ़), गाजियाबाद, फूलपुर (प्रयागराज), मझवा (मिर्जापुर) और मीरापुर (मुजफ्फरनगर) पर उपचुनाव होने हैं।
हरियाणा में हार के बाद अखिलेश का राहुल को झटका
हरियाणा में कांग्रेस की हार और चुनाव में समाजवादी पार्टी से गठबंधन न करने का असर यूपी में होने वाले उपचुनाव से पहले दिखने लगा है। सवाल उठ रहें हैं कि क्या यूपी में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस में सब कुछ ठीक नहीं है? बता दें, अखिलेश यादव ने इसी हफ्ते यूपी में होने वाले उपचुनाव के लिए 6 उम्मीदवारों की घोषणा कर दी, इनमें से दो विधानसभा सीटें कांग्रेस मांग रही थी। अखिलेश यादव ने ये फैसला लेने से पहले कांग्रेस से पूछा तक नहीं, कांग्रेस कम से कम 5 सीटें मांग रही थी, लेकिन उसे 4 सीटों से संतोष करना पड़ा। इस सीट शेयरिंग से मैसेज ये गया कि हरियाणा में कांग्रेस की हार के बाद समाजवादी पार्टी अब अपने मन की करेगी। गठबंधन धर्म निभाने की जिम्मेदारी अब अखिलेश यादव ने कांग्रेस पर छोड़ दिया है, वो ये नहीं चाहते हैं कि लोग कहें कि वे गठबंधन तोड़ने के लिए जिम्मेदार हैं और सायद यही कारण है कि अखिलेश यादव बार-बार बड़ी विनम्रता से कह रहे हैं कि गठबंधन तो बना रहेगा। अपनी इस रणनीति से उन्होंने साफ कर दिया है कि यूपी में कांग्रेस से गठबंधन समाजवादी पार्टी अपनी शर्तों पर करेगी। अखिलेश यादव का फोकस 2027 का यूपी विधानसभा चुनाव है और वो जानते हैं कि लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के शानदार प्रदर्शन से बने माहौल को अगले दो साल तक खींचना कठिन काम है, यही कारण है कि कांग्रेस से गठबंधन बनाए रखने के बहाने वो मुस्लिम और दलितों को अपने साथ साधे रखने की रणनीति पर काम कर रहे हैं।
हिंसक भीड़ ने आरोपी के घर लगाई आग
छत्तीसगढ़ के सूरजपुर में कोतवाली में पदस्थ हेड कांस्टेबल तालिब की 32 वर्षीय पत्नी और 11 बेटी की हत्या के बाद भीड़ उग्र हो गई। इस डबल मर्डर की वारदात से सूरजपुर में तनाव की स्थिति है। आक्रोशित भीड़ ने थाने के सामने धरना दिया और जमकर नारेबाजी की है। हिंसक भीड़ ने SDM जगन्नाथ वर्मा के साथ मारपीट की है, भीड़ के आक्रामक होने पर वहां पहुंचे SDM जगन्नाथ वर्मा ने दौड़कर अपनी जान बचाई। वहीं, एसपी के साथ धक्का-मुक्की करने का मामला भी सामने आया है। हिंसक भीड़ ने आरोपी कुलदीप साहू के घर को आग के हवाले कर दिया है। आक्रामक भीड़ के द्वारा नेशनल हाईवे रोड पर बैठकर प्रदर्शन किया जा रहा है। फिलहाल, सूरजपुर शहर और आस-पास के इलाके में तनावपूर्व स्थिति है। मौके पर भारी संख्या में पुलिस बल को तैनात किया गया है। पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी भी मौके पर भीड़ को काबू करने में जुटे हुए हैं।
हत्या के आरोपी का क्या है कांग्रेस कनेक्शन?
सूरजपुर में हुए डबल मर्डर का आरोपी कुलदीप साहू आदतन बदमाश बताया जा रहा है। आरोपी कुलदीप साहू कांग्रेस के छात्र विंग NSUI का पूर्व महासचिव रह चुका है। खबरों के अनुसार, बीते रविवार की शाम जब प्रधान आरक्षक तालिब और आरक्षक घनश्याम सोनवानी चौपाटी पर खड़े थे। तब अचानक कुलदीप ने बिरयानी की दुकान से कड़ाही पर मौजूद गर्म तेल सिपाही घनश्याम पर उड़ेल दिया। बेहद गंभीर हालत में घनश्याम सोनवानी को उपचार के लिए अस्पताल दाखिल कराया गया। इस वारदात के बाद कुलदीप हेड कांस्टेबल तालिब के घर पहुंचा और तालिब की पत्नी और बेटी को उठा ले गया। इसके बाद उसने धारदार हथियार से दोनों की हत्या कर शव को दो किलोमीटर दूर फेंक दिया। घटना के बाद से ही कुलदीप की तलाश में लगातार छापेमारी की जा रही है। बच्ची और महिला के शव को फिलहाल पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है, शव की स्थिति को देखते हुए प्रारंभिक पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार है। पुलिस का मानना है कि हेड कांस्टेबल के परिवार की हत्या को लेकर पोस्टमार्टम रिपोर्ट से स्थिति और स्पष्ट रुप से सामने आएगी।
जयपुर के बिड़ला ऑडिटोरियम में आज CA यानि चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के लिए आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में सभा को संबोधित करते हुए, उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि जनसांख्यिकीय अव्यवस्था कुछ क्षेत्रों को राजनीतिक किलों में बदल रही है, जहां चुनावों का कोई वास्तविक अर्थ नहीं है। उन्होंने कहा की यह बेहद चिंताजनक है कि इस रणनीतिक बदलाव से कुछ क्षेत्र कैसे प्रभावित हुए हैं, जिससे वे अभेद्य गढ़ों में बदल गए हैं जहां लोकतंत्र ने अपना सार खो दिया है। आपको बता दें, बीते दिन नागपुर में विजयादशमी समारोह में अपने हालिया भाषण में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने संकेत दिया था कि बांग्लादेश में हिंदुओं को उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है, क्यूंकि वो वहां अल्पसंख्यक हो गए हैं। इससे पहले भी उन्होंने देश में धर्म आधारित जनसंख्या संतुलन पर ध्यान देने की बात कही थी। उपराष्ट्रपति ने स्पष्ट करते हुए बताया कि जैविक, प्राकृतिक जनसांख्यिकीय परिवर्तन कभी भी परेशान करने वाला नहीं होता, लेकिन रणनीतिक तरीके से किया गया जनसांख्यिकीय बदलाव एक भयावह दृश्य पेश करता है।
भारत की संस्कृति- 'समावेशिता और विविधता में एकता'
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने भारत को परिभाषित करने वाली समावेशिता को संरक्षित करने के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हम (हिन्दू) बहुसंख्यक के रूप में सभी का स्वागत करते रहे हैं। हम बहुसंख्यक के रूप में सहिष्णु हैं और हम बहुमत के रूप में एक सुखदायक पारिस्थितिकी तंत्र उत्पन्न करते हैं। उन्होंने इसकी तुलना उन देशों से की जो क्रूर और निर्दयी है, जो दूसरे पक्ष के मूल्यों को रौंद रहा है। उन्होंने कहा कि मुझे उन देशों का नाम लेने की जरूरत नहीं है जिन्होंने इस जनसांख्यिकीय विकार, जनसांख्यिकीय भूकंप के कारण अपनी पहचान 100 प्रतिशत खो दी है, उनका इसरा बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे देशों की तरफ था। उपराष्ट्रपति ने अपने सम्बोधन में इस बात पर जोर देकर कहा कि पिछले कुछ दशकों में इस जनसांख्यिकीय बदलाव का विश्लेषण करने से एक परेशान करने वाले पैटर्न का पता चलता है, जो हमारे मूल्यों और हमारे सभ्यतागत लोकाचार एवं हमारे लोकतंत्र के लिए चुनौती पेश करता है। उन्होंने कहा कि यदि इस बेहद चिंताजनक चुनौती को व्यवस्थित ढंग से संबोधित नहीं किया गया, तो यह राष्ट्र के लिए अस्तित्व संबंधी खतरे में बदल जाएगा। यद्यपि अगर हम इस देश में होने वाली जनसांख्यिकीय उथल-पुथल के खतरों से आंखें मूंद लेते हैं तो यह देश के लिए हानिकारक होगा।
भारत के विकास के लिए एकता जरुरी
उपराष्ट्रपति ने देश की तीव्र वृद्धि और विकास पर चर्चा करते हुए कहा कि भारत की विकास यात्रा दुनिया को आश्चर्यचकित कर रही है। यह सदी भारत की होनी चाहिए और यह मानवता के लिए अच्छा होगा, क्यूंकि भारत सदियों से दुनिया में शांति और सद्भाव में योगदान देता आया है और आगे भी देता रहेगा। उन्होंने कहा, यदि देश की सामाजिक एकता भंग होती है, यदि राष्ट्रवाद की भावना समाप्त हो जाती है या भीतर और बाहर राष्ट्र-विरोधी ताकतें देश में विभाजन का बीजारोपण करती हैं, तो यह आर्थिक वृद्धि लोंगटर्म में सार्थक साबित नहीं होगी। उन्होंने कहा कि वो हमें जाति, पंथ और समुदाय के आधार पर विभाजित करना चाहते हैं और ये ताकतें भारत के सामाजिक सद्भाव से समझौता करने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रही हैं। हमें इस भूमि के परिदृश्य को बदलने के लिए इस दुस्साहस को बेअसर करने की आवश्यकता है। उन्होंने संकीर्ण विभाजनों को पीछे छोड़कर एक राष्ट्रवादी दृष्टिकोण अपनाने का आग्रह किया जो भारत की विविधता को बढ़ावा देता है, क्योंकि यह हमारी साझा सांस्कृतिक विरासत है। अपने भाषण के अंत में उन्होंने कहा कि हम राजनीतिक सत्ता के लिए पागलपन की हद तक नहीं जा सकते। राजनीतिक शक्ति एक पवित्र लोकतांत्रिक प्रक्रिया के माध्यम से लोगों से उत्पन्न होनी चाहिए।
माननीय उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ का उनकी पत्नी डॉ. सुदेश धनखड़ के साथ आज जयपुर, राजस्थान पहुंचने पर हार्दिक स्वागत किया गया। राजस्थान के माननीय राज्यपाल श्री हरिभाऊ किसनराव बागड़े जी और माननीय उपमुख्यमंत्री श्री प्रेम चंद बैरवा जी सहित कई अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने उनका स्वागत किया। जयपुर में उपराष्ट्रपति के आगमन पर उनका भव्य स्वागत किया गया, जो राजस्थान की समृद्ध परंपराओं और सांस्कृतिक गर्मजोशी का प्रतीक है।
उपराष्ट्रपति ने की CA सदस्यों के अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन की अध्यक्षता
जयपुर में अपने कार्यक्रमों के तहत, श्री जगदीप धनखड़ ने आज शहर में आयोजित एक महत्वपूर्ण वैश्विक कार्यक्रम, चार्टर्ड अकाउंटेंट (CA) सदस्यों के लिए अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन की अध्यक्षता की। सम्मेलन में लेखांकन क्षेत्र के शीर्ष पेशेवरों और विशेषज्ञों सहित दुनिया भर से प्रतिभागियों ने भाग लिया। यह सभा लेखांकन और वित्त उद्योगों के भीतर प्रमुख चुनौतियों और उभरते रुझानों को संबोधित करने, देश के बहार सहयोग को बढ़ावा देने और वैश्विक वित्तीय नियमों के लिए सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने पर केंद्रित थी। सम्मेलन के उद्घाटन सत्र के दौरान, जो प्रतिष्ठित बिड़ला सभागार में हुआ, उपराष्ट्रपति धनखड़ ने एक आकर्षक भाषण दिया। उन्होंने वित्तीय प्रणाली की अखंडता को बनाए रखने में चार्टर्ड अकाउंटेंट की महत्वपूर्ण भूमिका पर बात की। श्री धनखड़ ने पेशे के भीतर नैतिक आचरण, पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्व पर जोर दिया और उपस्थित लोगों को अपने अभ्यास में उच्चतम मानकों को बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित किया। उनके शब्द दर्शकों को पसंद आए, क्योंकि उन्होंने उनसे भारत के बढ़ते आर्थिक ढांचे में सार्थक योगदान देने का आग्रह किया।