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Breaking News 15 November 2025

1.)  Delhi Blast से Srinagar Blast तक एक ही बारूद, दो तबाही! 

शुक्रवार की शाम श्रीनगर का नाउगाम इलाक़ा अचानक ऐसी आवाज़ से दहल उठा जिसे सुनकर लोग समझ नहीं पाए कि यह किसी आतंकी ग्रुप की कारस्तानी है या पहाड़ से कोई गड़गड़ाहट आई है। लेकिन कुछ ही मिनटों में साफ हो गया धमाका पुलिस स्टेशन के भीतर हुआ है, और इतना बड़ा हुआ है कि आसपास की खिड़कियों के शीशे टूटकर सड़कों पर बिखर गए, कई गाड़ियां पलट गईं और पूरे इलाके में धुएं की मोटी परत फैल गई।

और सबसे चौंकाने वाली बात? जो विस्फोटक फटे, वे वही थे जो हाल ही में फरीदाबाद से जब्त किए गए थे, जो दिल्ली के रेड फोर्ट ब्लास्ट केस की जांच में अहम सबूत माने जा रहे थे। इन विस्फोटकों को पूरी सुरक्षा व्यवस्था के बीच श्रीनगर लाया गया था ताकि फोरेंसिक टीमें उनका सैंपल लेकर समझ सकें कि इन्हें कैसे इस्तेमाल किया गया, कौन सप्लाई करता है और किस नेटवर्क में घूमते हैं। लेकिन जांच की मेज तक पहुंचने से पहले ही ये सामग्री पुलिस स्टेशन के भीतर क़यामत बनकर फट गई।

क्या-क्या हुआ एक सचमुच डरावनी टाइमलाइन

दोपहर बाद 3:40 बजे के करीब, फोरेंसिक टीम विस्फोटक सामग्री की सैंपलिंग कर रही थी। अचानक पहली तेज़ धमाके की आवाज़ आई इतनी जबरदस्त कि लाइन में खड़ी गाड़ियां हवा में उछल गईं। 10–15 सेकंड बाद दूसरा धमाका, फिर तीसरा… छोटे-छोटे धमाके लगातार होते रहे, जैसे कोई पूरा गोदाम फट रहा हो। पुलिस स्टेशन का आधा हिस्सा मलबे में बदल गया।
फायर ब्रिगेड को भी अंदर जाने में डर लग रहा था क्योंकि पता ही नहीं था कि और क्या-क्या रखा हुआ है। मौतें और घायल सबसे ज्यादा नुकसान उन लोगों का जिन्हें सिस्टम बचाने की ज़िम्मेदारी थी अब तक की रिपोर्ट के मुताबिक़: कम से कम 9 लोग मर चुके हैं, 27 से 32 घायल, जिनमें कई गंभीर हैं। मरने वालों में फोरेंसिक एक्सपर्ट, पुलिस कर्मी, तकनीकी स्टाफ, और कुछ अन्य कर्मचारी भी शामिल हैं। अस्पतालों में भगदड़ जैसे हालात 5 से ज्यादा एम्बुलेंस लगातार शव और घायलों को शिफ्ट करती रहीं आखिर विस्फोटक थे क्या? यह सबसे बड़ा सवाल है।
फरीदाबाद छापेमारी में जो सामान मिला था, वह केवल साधारण अमोनियम नाइट्रेट नहीं था। रिपोर्टों के मुताबिक़ उनमें शामिल थे:
हाई-ग्रेड रेट-बेस्ड इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव मैटेरियल, इलेक्ट्रॉनिक डेटोनेटर, और ऐसे रसायन जो कम तापमान में भी तेज़ी से रिएक्ट करते हैं। यानी एक छोटी-सी गलती भी बड़े ब्लास्ट की वजह बन सकती थी। तो फिर गलती हुई किससे?
यही वह बिंदु है जिसपर पूरी घाटी और पूरे देश में बहस छिड़ गई है। DGP का कहना है यह “महज़ एक दुर्घटना” है, कोई साजिश नहीं। गृह मंत्रालय भी यही बोल रहा है “कोई आतंकी एंगल नहीं मिला।” लेकिन जनता की सीधी-सीधी बात यह है: “अगर यह दुर्घटना है, तो पुलिस स्टेशन में इतना खतरनाक सामान सुरक्षित कैसे रखा जा रहा था?” “फोरेंसिक सैंपलिंग जैसे जोखिमभरे काम स्टेशन के भीतर क्यों किए जा रहे थे?” “अगर यही विस्फोटक गलत हाथों में होते, तो तबाही की तस्वीर कैसी होती?” और सबसे बड़ा सवाल “एक केस जिसकी वजह से रेड फोर्ट का ब्लास्ट हुआ, उसके सबूत ही पुलिस स्टेशन में फट जाएं, तो जांच कैसे आगे बढ़ेगी?” किसका कनेक्शन कहाँ है? ये वही विस्फोटक हैं जिन्हें दिल्ली ब्लास्ट की जांच में बेहद अहम माना जा रहा था। एजेंसियों ने फरीदाबाद से इसे बरामद किया था, जहां से ये पूरे नेटवर्क का सुराग देने वाले थे। अब वही सबूत खुद ही उड़ गए और जांच दल फिर से कागज़ों पर लौट आया है।
घटनास्थल कैसा दिख रहा है?पुलिस स्टेशन की छत का बड़ा हिस्सा उड़ चुका है। दीवारें काली पड़ चुकी हैं। मेज, फाइलें, फॉरेंसिक किट्स—सब मलबे में मिलीं। आसपास की दुकानों तक शॉकवेव पहुँची है। लोगों के घरों के शीशे टूटे पड़े हैं। घटना के बाद पूरा इलाक़ा सील कर दिया गया जांच अब खुद ICU में है जिस विस्फोटक से साज़िश की जड़ खोजनी थी, वह ही जड़ को जला गया। जिस फोरेंसिक रिपोर्ट से आरोपियों का चेहरा सामने आना था, वही रिपोर्ट अब राख में बदल चुकी है।

 

2)  बिहार–दिल्ली तो बीजेपी जीत गई… पर बंगाल क्यों सबसे मुश्किल है? जवाब चौंकाएगा.....

बिहार की राजनीति ने एनडीए के चेहरे पर जो चौड़ी मुस्कान चिपका दी और दिल्ली में बीजेपी ने जिस तरह सत्ता की कड़ी पकड़ दिखाई, उसके बाद पूरे देश में एक ही सवाल हवा में तैरने लगा क्या बंगाल अगला है? क्या बीजेपी बिहार-स्टाइल की जीत बंगाल के मैदान में भी लिख सकती है? लेकिन बंगाल का चुनाव सिर्फ वोटों की लड़ाई नहीं है।  2016 में बंगाल में बीजेपी की मौजूदगी किसी फुटनोट की तरह थी कुछ प्रतिशत वोट और इक्का-दुक्का सीटें। लेकिन फिर ऐसा उभार आया जिसने पूरे राजनीतिक नक्शे को हिला दिया। 2021 विधानसभा चुनाव में BJP ने सीधी छलांग मारकर 77 सीटें पकड़ लीं। वोट शेयर 2016 के करीब 10–15% से उछलकर 38% के पास पहुँच गया। यानी पार्टी ने यह बता दिया कि बंगाल का मैदान उसे पूरी तरह न सही, पर आधा ज़रूर सुनने को तैयार है। लेकिन बात में मोड़ तो बंगाल के डीएनए में निहित है यहाँ सफलता सीधी रेखा में नहीं चलती। लोकसभा 2024 में TMC ने 29 सीटें जीतकर कमबैकिंग शॉट मारा, जबकि बीजेपी 12 सीटों तक सिमट गई।
यह संकेत था कि उभार टिकाऊ नहीं था कम से कम उस फॉर्म में तो बिल्कुल नहीं, जैसा 2021 में दिखा था। और फिर 2025 के बाय-पोल। TMC ने कई जगह आराम से जीत ली और BJP का वोट-शेयर कुछ जगहों पर घटा। यह TMC की जमीनी मशीनरी की ताकत का सबूत था। बंगाल में चुनाव 2026 के मार्च अप्रैल के आस पास हो सकते है

 क्यों बीजेपी बंगाल जीत सकती है जानते है ठोस कारण, रणनीतिक लेवल पर

1. संगठन की आक्रामक ग्रोथ (2016–21 का मॉडल अभी भी जीवित)

बीजेपी ने बंगाल के हर जिले में बूथ-लेवल पर कार्यकर्ता खड़े किए। बिहार और दिल्ली की तरह प्रचार-मशीनरी, डिजिटल टूल्स और स्टार-कैंपेनर का पूरा सिस्टम बंगाल भी पावर कर सकता है।

2. हिंदू वोट बैंक के समेकन की संभावनाएँ

बंगाल में पहचान आधारित राजनीति की जमीन हमेशा से रही है।
CAA–NRC जैसे मुद्दों पर बंगाल का एक हिस्सा BJP की ओर झुकता रहा है यह सीटें पलट सकता है।

3. मटुआ–राजवंशी बेल्ट में पकड़

उत्तर बंगाल और खास क्षेत्रों में बीजेपी को पहले भी परिणाम मिले हैं, और यह सेगमेंट आज भी BJP का प्राकृतिक सपोर्ट ज़ोन माना जाता है।

4. राष्ट्रीय मशीनरी और प्रचार-संसाधन

मोदी फैक्टर, केंद्रीय योजनाओं का असर और चुनावी प्रबंधन की राष्ट्रीय टीम ये तीन लीवर बंगाल में किसी भी दल को खेल पलटने की क्षमता देते हैं।

5. एंटी-इंकम्बेंसी और लोकल असंतोष

TMC की जमीनी राजनीति कई जगहों पर शिकायतों से भरी है स्थानीय कठोर नेता, पुलिस-प्रशासन में दखल, पंचायत लेवल की राजनीति BJP इसे बड़े मुद्दे के रूप में उछाल सकती है।

 क्यों बीजेपी बंगाल नहीं जीत पाएगी जानते है ज़मीनी हकीकत की दीवारें

1. ममता बनर्जी का स्थानीय कद और भावनात्मक जुड़ाव

दिल्ली–बिहार की राजनीति राष्ट्रीय मुद्दों पर घूम सकती है,
पर बंगाल में राजनीति ममता बनर्जी की छवि,
उनकी भावनात्मक अपील और “हम बंगाल के” नैरेटिव से संचालित होती है। यह एक ऐसी आंधी है जिसे वोट-गणित से हराना मुश्किल है।

2. TMC की वेलफेयर मशीनरी  

लक्ष्मी भंडार, कन्याश्री, रूपश्री, कृषक सहयोग, दो रुपये चावल
इन योजनाओं की पकड़ घर-घर तक है। जहाँ केंद्र योजनाएँ देता है, वहीं TMC “तुरंत लाभ” देती है लोग इसे भरोसे के रूप में देखते हैं।

3. मुस्लिम वोट का ठोस ब्लॉक TMC की तरफ

कई जिलों में 25–40% तक मुस्लिम आबादी है, जो लगभग समेकित रूप से TMC के साथ खड़ी है। BJP को यहाँ प्रवेश आसान नहीं है।

4. स्थानीय नेतृत्व की कमी

बीजेपी के पास बंगाल के स्तर पर कोई ऐसा चेहरा नहीं है जो “बंगाली पहचान” के प्रतीक की तरह उभरे। ‘बाहरी बनाम बंगाली’ का नैरेटिव बीजेपी को भारी पड़ता है।

5. पंचायत–स्तर पर TMC की पकड़

बंगाल की राजनीति का आधा खेल पंचायतों–ब्लॉक–मंडलों में होता है। हाँ TMC का नेटवर्क इतना मजबूत है कि बीजेपी को जगह बनाना वैसा है जैसे पक्के घर में कील ठोकना गहरी मार लगे तो ही धँसेगी।

 किन फैक्टर्स में बीजेपी आगे है — और किनमें TMC अजेय दिखती है

बीजेपी आगे है फंडिंग और संसाधन नेशनल नैरेटिव कंट्रोल सोशल मीडिया, डिजिटल युद्ध उत्तर बंगाल और मटुआ बेल्ट
वहीं TMC आगे है जमीनी संगठन महिला वोट मुस्लिम वोट बैंक बंगाली सांस्कृतिक नैरेटिव पंचायत–प्रशासनिक नेटवर्क में तो क्या बंगाल ‘अगला बिहार’ बन सकता है? सीधा उत्तर है संभावना है, लेकिन समीकरण बहुत कठिन है। बिहार में गठबंधन, राजनीति और जनभावनाएँ बीजेपी के पक्ष में थीं; दिल्ली में संगठन और नैरेटिव। पर बंगाल में हालात उलटे हैं यहाँ TMC सिर्फ एक पार्टी नहीं, बल्कि सामाजिक-आर्थिक संरचना का हिस्सा बन चुकी है।
बीजेपी तभी बंगाल में बिहार-स्टाइल जीत दोहरा पाएगी जब वह इन पाँच चीजों पर गंभीरता से काम करे स्थानीय चेहरों को उभारे
मुद्दों को पहचान-आधारित राजनीति से बाहर निकाले महिला मतदाताओं में पैठ बनाए मुस्लिम वोट में 5–10% भी पुल बनाये  TMC की वेलफेयर मशीनरी का विकल्प तैयार करे वरना, बंगाल की कहानी वही रहेगी जहाँ बीजेपी उभार दिखाती है, फिर TMC जमीन वापस खींच लेती है, और राजनीति वही पुराने मोड़ पर खड़ी मिलती है।