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Breaking News 15 July 2025

1.)  क्या अब निमिषा प्रिया को मौत से कोई नहीं बचा सकता?

16 जुलाई को केरल की रहने वाली नर्स निमिषा प्रिया यमन की एक जेल में फांसी की सजा का इंतज़ार कर रही हैं। यमन की अदालतों से लेकर राष्ट्रपति तक – हर दरवाज़ा खटखटाने के बावजूद उन्हें माफ़ी या राहत नहीं मिल सकी है। अब जब यह तय हो चुका है कि उन्हें 16 जुलाई को फांसी दी जाएगी, तो सवाल यह नहीं है कि उन्होंने क्या किया, बल्कि यह है कि आखिर क्यों किया, और क्या दुनिया की कोई अदालत, कोई सरकार, कोई संवेदना इस स्थिति को समझने की ज़रूरत महसूस कर रही है?

आज इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई, जहां केंद्र सरकार ने बयान दिया कि भारत सरकार द्वारा निमिषा को बचाने के लिए हर मुमकिन प्रयास किए जा चुके हैं। सरकार ने यह भी कहा कि यमन से बातचीत की एक तय सीमा होती है, और उस सीमा के पार जाकर कोई हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता। कोर्ट को यह भी जानकारी दी गई कि आज सुबह 10:30 बजे अंतिम बार यमन से वार्ता हुई, जिसमें फांसी टालने की गुज़ारिश की गई, लेकिन यमन सरकार ने सख्त रुख अपनाते हुए साफ इनकार कर दिया। 

निमिषा की कहानी किसी भी आम भारतीय लड़की जैसी है – संघर्ष से भरी, जिम्मेदारियों से लदी, लेकिन मेहनत और उम्मीद से भरी। 2008 में निमिषा अपने दिहाड़ी मजदूर माता-पिता की मदद के लिए यमन गईं, जहां उन्होंने एक अस्पताल में नर्स के रूप में काम करना शुरू किया। 2011 में भारत लौटकर उन्होंने टॉमी थॉमस नामक ऑटो ड्राइवर से शादी की और फिर दोनों यमन लौट गए। अगले ही साल, 2012 में उन्हें एक बेटी हुई। लेकिन यमन में गृहयुद्ध और आर्थिक तंगी ने उनके जीवन को झकझोर कर रख दिया। 2014 में पति और बेटी भारत लौट आए, लेकिन निमिषा ने वहीं रहकर काम जारी रखने का फैसला किया ताकि वह अपने परिवार की ज़िम्मेदारियों को निभा सकें।

इसी दौरान उन्होंने ज्यादा आमदनी के लिए एक स्थानीय नागरिक महदी के साथ मिलकर अपना क्लिनिक खोला। यमन के कानून के तहत किसी विदेशी को व्यापार के लिए स्थानीय साझेदार की जरूरत होती है। लेकिन यही साझेदारी उनकी सबसे बड़ी भूल साबित हुई। कुछ ही समय बाद महदी ने क्लिनिक पर कब्जा कर लिया, खुद को निमिषा का पति बताकर उनके नाम की संपत्ति हड़प ली और उनका पासपोर्ट जब्त कर लिया। इतना ही नहीं, महदी ने शारीरिक और मानसिक शोषण करना शुरू कर दिया। जब निमिषा ने पुलिस से शिकायत की, तो उल्टा उन्हें ही जेल भेज दिया गया।

इस सबके बाद, जुलाई 2017 में निमिषा ने एक योजना बनाई – महदी को बेहोश कर अपना पासपोर्ट वापस लेना और यमन से भाग जाना। लेकिन दवा की मात्रा ज़्यादा हो गई, जिससे महदी की मौत हो गई। अदालत के दस्तावेज़ों के मुताबिक, इसके बाद निमिषा ने अपने एक साथी की मदद से महदी के शव के टुकड़े किए और उन्हें एक अंडरग्राउंड टैंक में छिपा दिया। एक महीने बाद, जब वो सऊदी-यमन बॉर्डर पर देश छोड़ने की कोशिश कर रही थीं, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। पूछताछ में उन्होंने हत्या की बात कबूल कर ली, जिसके बाद सना की एक अदालत ने मौत की सजा सुनाई।

इसके बाद निमिषा के परिवार ने यमन की सुप्रीम कोर्ट में अपील की, लेकिन वहां से भी उन्हें राहत नहीं मिली। राष्ट्रपति से दया की अपील भी ठुकरा दी गई। आखिरी उम्मीद ब्लड मनी थी – एक ऐसी व्यवस्था जिसमें मृतक के परिवार को मुआवज़ा देकर क्षमा हासिल की जा सकती है। लेकिन महदी का परिवार पैसे लेने को भी तैयार नहीं हुआ। भारत सरकार के अनुसार, सभी कूटनीतिक प्रयास किए जा चुके हैं। अब वक्त खत्म हो चुका है

 

 

2.): क्या अब बंद होगा ओडिशा? यौन उत्पीड़न के विरोध में छात्रा का आत्मदाह

ओडिशा के बालासोर में 12 जुलाई को घटी एक भयावह घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया लेकिन शायद सिर्फ कुछ देर के लिए। एक 20 साल की बीएड छात्रा, जिसने हिम्मत दिखाई, आवाज़ उठाई, लिखित शिकायतें दीं, विरोध दर्ज कराया... आखिरकार जब उसे कहीं से इंसाफ़ की उम्मीद नहीं मिली, तो उसने खुद को आग के हवाले कर दिया। यह घटना न केवल हृदयविदारक है, बल्कि यह हमारे समाज की उस खामोश क्रूरता की तस्वीर है, जिसमें एक लड़की जब तक जलती नहीं, तब तक उसकी चीखों को कोई सुनता नहीं। छात्रा ने शिक्षा विभाग के हेड समीरा कुमार साहू पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। आरोप सिर्फ आरोप नहीं था वह एक भयावह अनुभव, एक निरंतर चलने वाला मानसिक शोषण और एक शिक्षिका की गरिमा को कुचल देने वाला मामला था। छात्रा ने कॉलेज प्रशासन को एक नहीं, कई बार लिखित शिकायतें दीं। उसने बताया कि आरोपी शिक्षक उसे एग्जाम में फेल करने की धमकी दे रहा था। वो शर्तें रख रहा था “अगर मेरी बात नहीं मानी, तो करियर खत्म।” और फिर हुआ वही जो अक्सर होता है सिस्टम ने चुप्पी साध ली। कॉलेज प्रशासन की चुप्पी ने एक बार फिर यह साबित किया कि यौन उत्पीड़न के मामलों में “सबूत” की मांग पीड़िता से न्याय की अपेक्षा से बड़ी हो जाती है। और इस खामोशी ने एक छात्रा को जिंदा जला डाला।

शांति की गुहार से आग तक का रास्ता

1 जुलाई से कॉलेज में छात्र-छात्राओं का शांतिपूर्ण प्रदर्शन शुरू हुआ। ये वही छात्र थे जिन्होंने अपनी साथी की बातों पर भरोसा किया, उसकी लड़ाई को अपनी बनाई, और पूरे कॉलेज में न्याय के लिए आंदोलन छेड़ दिया। लेकिन सिस्टम पत्थर था। न कॉलेज चेता, न प्रशासन हरकत में आया। फिर आया 12 जुलाई एक ऐसा दिन जिसे बालासोर कभी भूल नहीं पाएगा। कॉलेज परिसर में उसी छात्रा ने खुद पर केरोसिन डालकर आग लगा ली। वो जलती रही और सब देखते रहे। उसे बचाने के लिए एक साथी छात्र आग में कूद पड़ा। वो भी बुरी तरह झुलस गया। अब वो भी जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा है। एम्स भुवनेश्वर में भर्ती छात्रा जिंदगी के लिए लड़ती रही, और सोमवार रात उसने आख़िरी सांस ली। अब सब जागे लेकिन तब तक देर हो चुकी थी
घटना के बाद चारों तरफ उबाल आया  जैसे हमेशा आता है, किसी मौत के बाद। जिस शिक्षक पर आरोप था, उसे बीएनएस की धाराएं 75(1)(ii), 79, 108, 351(2), 3(5) के तहत गिरफ्तार किया गया। कॉलेज के प्रिंसिपल को भी सस्पेंड किया गया, और बाद में गिरफ्तार कर लिया गया। प्रिंसिपल पर आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया गया है। DIG सत्यजीत नायक ने एक स्पेशल टीम के गठन की घोषणा की  जिसमें जांचकर्ता, फोरेंसिक एक्सपर्ट और वकील शामिल हैं। मेडिकल रिकॉर्ड, डिजिटल सबूत और अन्य तथ्य इकट्ठा किए जा रहे हैं। लेकिन सवाल ये है — क्या ये सब पहले नहीं किया जा सकता था? जब छात्रा जिंदा थी? जब उसने चीखा था? जब उसने फॉर्मल शिकायतें दी थीं?

एक पिता का दर्द -

छात्रा के पिता की बातें पूरे देश को झकझोर देने वाली हैं। उन्होंने बताया कि कॉलेज प्रशासन उनकी बेटी पर दबाव बना रहा था कि वो शिकायत वापस ले ले। उन्होंने कहा कि आत्मदाह से ठीक पहले उनकी बेटी कॉलेज प्रिंसिपल से मिलने गई थी  और उसके कुछ ही मिनट बाद उसने खुद को आग लगा ली। प्रिंसिपल ने छात्रा को बताया था कि आंतरिक जांच में आरोपी शिक्षक के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला। बस… वही पल था, जब शायद उसकी उम्मीद भी मर गई। जब सरकार ने मुआवज़े की पेशकश की, तो पिता ने ठुकरा दिया। “हमें मुआवज़ा नहीं चाहिए, हमें हमारी बेटी चाहिए थी। जो अब कभी वापस नहीं आएगी।”

कांग्रेस ने इस घटना को लेकर ओडिशा बंद का एलान किया है। 17 जुलाई को पूरे राज्य को बंद करने की अपील की गई है। प्रदेश अध्यक्ष भक्त चरण दास ने राज्य सरकार, विधायक और सांसद पर गंभीर आरोप लगाए। “उसने FIR दर्ज करवाई, विधायक के पास गई, सांसद के पास गई। क्या ये उनकी ज़िम्मेदारी नहीं थी कि वो आवाज़ उठाते? अगर उन्होंने समय रहते कोई कदम उठाया होता, तो शायद एक होनहार लड़की आज जिंदा होती।” कांग्रेस ने शिक्षा मंत्री, स्थानीय विधायक और सांसद के इस्तीफे की मांग की है। यह घटना सिर्फ एक छात्रा की मौत नहीं है। यह उस हर सिस्टम की मौत है, जो यौन उत्पीड़न के मामलों को ‘मामूली’ समझता है। यह उस ‘रेगुलेटेड चुप्पी’ की चिता है, जिसमें बेटियां जलती रहती हैं, और हम मोमबत्ती जलाकर भूल जाते हैं।