14 अगस्त 1947 भारत के इतिहास का एक निर्णायक दिन था। यह वह रात थी जब British rule से मुक्ति के लिए अंतिम तैयारियाँ चल रही थीं। स्वतंत्रता केवल राजनीतिक घोषणा नहीं थी, बल्कि दशकों की संघर्षपूर्ण राजनीति , constitutional process और administrative तैयारी का परिणाम थी। Independence Act 1947 के लागू होने के बाद भारत और पाकिस्तान को कानूनी रूप से अलग-अलग राष्ट्र घोषित किया गया। Constituent Assembly ने इस दिन अंतिम बैठकें कीं और पंडित नेहरू ने स्वतंत्रता की घोषणा के लिए भाषण तैयार किया, जिसे बाद में “Tryst with Destiny” कहा गया। यह भाषण केवल उत्सव का माध्यम नहीं था, बल्कि नए भारत के शासन, जिम्मेदारी और सामाजिक संगठन का निर्देश भी था। वहीं, Partition का वास्तविक प्रभाव पूरे देश में महसूस किया जा रहा था। पंजाब और बंगाल में लाखों लोग अपने घरों को छोड़कर पलायन कर रहे थे। प्रशासन और security agencies के लिए स्थिति बेहद चुनौतीपूर्ण थी। लोग बैलगाड़ियों, पैदल या छोटे नावों में अपने जीवन और सामान को बचाकर सुरक्षित स्थानों की ओर जा रहे थे। राहत शिविर और temporary shelters बनाए गए, लेकिन resources और population displacement ने administrative management को कठिन बना दिया। इन परिस्थितियों ने स्पष्ट कर दिया कि स्वतंत्रता केवल राजनीतिक हुकूमत बदलने का नाम नहीं थी यह बड़े पैमाने पर सामाजिक , प्रशासनिक और लॉजिस्टिक चुनौती भी थी।
14 अगस्त की रात भारत के लिए लॉजिकल और तकनीकी रूप से बहुत महत्वपूर्ण थी। प्रशासन को तुरंत interim government स्थापित करनी थी, border security सुनिश्चित करनी थी और पलायन किए गए refugees के लिए relief व्यवस्था करनी थी। रेडियो और प्रिंट मीडिया का इस्तेमाल public communication के लिए किया गया। यह दिखाता है कि स्वतंत्रता केवल right नहीं, बल्कि जिम्मेदारी थी। प्रशासन और सरकार ने सुनिश्चित किया कि राजनीतिक और सामाजिक अस्थिरता के बावजूद देश midnight 15 अगस्त 1947 को पूरी तरह स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आए। अंत में, 14 अगस्त 1947 की घटनाएँ यह साबित करती हैं कि स्वतंत्रता का मतलब केवल औपचारिक घोषणा नहीं है। यह एक comprehensive process थी जिसमें social dynamics , administrative capacity, human behavior और लॉजिस्टिक योजना शामिल थे। आज भी यह दिन हमें याद दिलाता है कि स्वतंत्रता केवल अधिकार नहीं, बल्कि बड़े पैमाने पर योजना, तैयारी और सामाजिक जिम्मेदारी का नाम है।
सिनेमाघरों में लंबी कतारें, पोस्टरों के सामने सेल्फी लेने की होड़, और फर्स्ट डे फर्स्ट शो में सीटी-ताली का ऐसा शोर कि बाहर से गुजरता ट्रैफिक भी पलटकर देखे। मौका है लोकेश कनगराज की नई फिल्म ‘कुली’ के रिलीज़ का। फिल्म में तीन बड़े नाम रजनीकांत, नागार्जुन और आमिर खान एक ही स्क्रीन पर। थलाइवर की उम्र 70 पार, लेकिन एंट्री सीन में उनका स्वैग देखकर 20 साल का लड़का भी स्क्रीन की तरफ़ हाथ उठा दे। नागार्जुन इस बार पूरी तरह खलनायक मोड में और आमिर खान का सरप्राइज कैमियो, जो सोशल मीडिया पर सुबह से ही वायरल है। ‘कुली’ के टिकटों की प्री-बुकिंग का जो आंकड़ा आया, उसने इंडस्ट्री के बड़े-बड़े ट्रेड पंडितों को चौंका दिया। भारत में रिलीज़ से पहले ही ₹27 करोड़ की एडवांस बुकिंग और करीब 12.4 लाख टिकट बिक गए। विदेशों में भी फिल्म की दीवानगी कम नहीं रही ओवरसीज़ में ₹37 करोड़ से ज्यादा की प्री-सेल्स, जिससे वर्ल्डवाइड एडवांस का कुल आंकड़ा ₹50-51 करोड़ तक पहुंचा। ये सिर्फ रिकॉर्ड नहीं, बल्कि भारतीय सिनेमा के इतिहास की सबसे बड़ी एडवांस बुकिंग मानी जा रही है। मतलब, जनता ने बिना रिव्यू, बिना माउथ-ऑफ-वर्ड सिर्फ ट्रेलर और स्टारकास्ट के भरोसे टिकट खिड़की पर पैसा फेंक दिया। पहले ही शो से रिपोर्ट्स आने लगीं कि कई जगहों पर तो रात 3 बजे तक स्पेशल स्क्रीनिंग रखी गई, और हॉल ठसाठस भरे रहे। भारत नेट कलेक्शन (डे-1): शुरुआती अनुमान ₹50 करोड़ के करीब। ओवरसीज़ कलेक्शन: ₹58 करोड़+ वर्ल्डवाइड ग्रॉस: ₹108-110 करोड़ (पहले दिन)। तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक में सुबह से ही हाउसफुल बोर्ड लगे। नॉर्थ इंडिया में भी रजनीकांत के फैंस ने शो के बीच में डांस, पटाखे और बैंड-बाजे का इंतजाम कर रखा था तो स्क्रीन पर क्या है खास रजनीकांत की एंट्री एक मिनी-फेस्टिवल जैसी है स्मोक इफ़ेक्ट, कैमरे का स्लो पैन और बैकग्राउंड में अनिरुद्ध का धांसू स्कोर। नागार्जुन का विलेन किरदार साइमन, जो जोकर (हीथ लेजर वाला) से इंस्पायर बताया जा रहा है, हर सीन में एक अजीब डर और स्टाइल लेकर आता है। आमिर खान का कैमियो छोटा है, लेकिन उनका डायलॉग डिलीवरी और प्रेज़ेंस इतना असर डालता है कि ऑडियंस तुरंत सोशल मीडिया पर क्लिप डाल देती है।
तो क्या है बिहाइंड-द-सीन और कम-ज्ञात फैक्ट्स
1. आमिर खान का कैमियो: आमिर ने स्क्रिप्ट पूरी पढ़े बिना फिल्म के लिए हां कर दी—सिर्फ इसलिए कि इसमें रजनीकांत हैं।
2. नागार्जुन का लुक टेस्ट: उनके लिए 12 अलग-अलग कॉस्ट्यूम और मेकअप ट्रायल हुए, तब जाकर फाइनल लुक तय हुआ।
3. AI म्यूज़िक: अनिरुद्ध रविचंदर ने कुछ बैकग्राउंड म्यूज़िक पीसेज़ में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल किया, जिससे पुराने और नए साउंड का फ्यूज़न बनाया गया।
4. A सर्टिफिकेट: रजनीकांत की फिल्मों में दुर्लभ, लेकिन इस बार एक्शन की तीव्रता और ब्लड-सीक्वेंस के कारण सेंसर बोर्ड ने ‘A’ दिया।
5. ‘Monica’ गाना: इस गाने का हुक स्टेप इटैलियन एक्ट्रेस मोनिका बेलुच्ची तक पहुंचा, जिन्होंने इसे इंस्टाग्राम पर शेयर किया। आने वाले हफ़्तों में ये मूवी ₹500 करोड़ क्लब तक पहुंच सकती हैं। और हां, दर्शकों के लिए ये सिर्फ मूवी नहीं, बल्कि एक यादगार तमाशा है।
अमेरिका से लेकर दिल्ली-मुंबई तक इन दिनों शेयर बाज़ार का मौसम कुछ ज्यादा ही गुलाबी है। वहां की महँगाई ठंडी पड़ रही है और फेडरल रिज़र्व ब्याज दरें फिलहाल बढ़ा नहीं रहा, ऐसे में निवेशकों के चेहरों पर वही मुस्कान लौट आई है, जो क्रिकेट मैच में आखिरी ओवर में छक्का लगने पर आती है। अमेरिका का S&P 500 इंडेक्स रिकॉर्ड ऊंचाई पर बंद हुआ, 11 में से 10 सेक्टर हरे मतलब सिर्फ अमेज़न, गूगल जैसे बड़े-बड़े टेक वाले नहीं, बाकी कंपनियां भी भाग रही हैं। जुलाई में महँगाई सिर्फ 2.7% बढ़ी, जो उनके हिसाब से ‘नॉर्मल’ है। फेडरल रिज़र्व ने ब्याज दरें 4.25% से 4.50% पर रोक दीं, जिससे बाजार में रेट कट की उम्मीदें गर्म हो गईं।
इस ग्लोबल मस्ती का असर भारत में भी सीधा दिखा। घरेलू महँगाई भी आठ साल के निचले स्तर 1.55% पर आ गई, जो RBI के टार्गेट से नीचे है। सेंसेक्स और निफ्टी ने खुलते ही तेजी पकड़ी, 14 में से 16 सेक्टर हरे हुए, और मिड-कैप-स्मॉल-कैप शेयरों में भी खरीदारी का रंग चढ़ा। IT और फार्मा कंपनियों को एक्सपोर्ट से बूस्ट मिला क्योंकि अमेरिकी माहौल फिलहाल सुहावना है। लेकिन जैसे ही अमेरिका की तरफ से टैरिफ़ वाली तलवार लटकने लगी, सेंसेक्स 80,000 के नीचे फिसल गया। विदेशी निवेशकों ने पैसा निकालना शुरू किया और रुपया 87 प्रति डॉलर तक कमजोर हुआ, हालांकि RBI ने स्थिति को ज्यादा बिगड़ने नहीं दिया।
भारत के लिए अमेरिका की महँगाई में गिरावट अच्छी खबर है, क्योंकि इससे रुपया मजबूत रहता है और आयात का दबाव कम होता है। मगर दूसरी तरफ अमेरिकी टैरिफ़ जो 50% तक जा सकते हैं IT, फार्मा, टेक्सटाइल और ज्वेलरी एक्सपोर्ट पर भारी पड़ सकते हैं। अच्छी बात ये है कि S&P ने भारत की रेटिंग BBB- से बढ़ाकर BBB कर दी और आउटलुक ‘स्टेबल’ रखा। MSCI की निवेशयोग्यता लिस्ट में भारत छठे पायदान पर पहुंच गया, चीन को पीछे छोड़कर। मॉर्गन स्टेनली का अनुमान है कि भारतीय इक्विटी अगले पांच साल में 20% सालाना की दर से बढ़ सकती है यानि बुल मार्केट का दमदार मौका।
कुल मिलाकर, अमेरिका की ठंडी होती महँगाई ने दुनिया भर के बाजारों में जोश भर दिया और भारत ने इस मौके का फायदा अपनी स्थिर नीतियों और मजबूत इकोनॉमी के दम पर उठाया। हालांकि अमेरिकी टैरिफ़ का संकट और वैश्विक राजनीति के उतार-चढ़ाव अभी भी रिस्क फैक्टर हैं। सवाल बस इतना है क्या ये बुल मार्केट हमें और नए रिकॉर्ड दिखाएगा या फिर अगले मोड़ पर कोई करारा झटका देगा? जो भी हो, ये कहानी सिर्फ़ शेयर बाजार की नहीं, बल्कि एक ग्लोबल-लोकल आर्थिक दास्तान है, जिसमें अमेरिका का मूड और भारत की चाल दोनों बराबर अहम हैं।