संवैधानिक पद से दुश्मनों ...उपराष्ट्रपति ने व्यक्त की पीड़ा
माननीय उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति, श्री जगदीप धनखड़ ने आज संसद भवन में राज्यसभा इंटर्नशिप प्रोग्राम-1 के प्रतिभागियों के तीसरे बैच के साथ बातचीत की। उन्होंने कहा, सबसे पहले मैं आपका ध्यान हमारे संविधान की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ। यह संविधान पवित्र है। इसे संविधान के संस्थापकों, संविधान सभा के सदस्यों द्वारा 18 सत्रों में, बिना किसी व्यवधान, बिना उपद्रव, बिना नारेबाजी और बिना कोई पोस्टर लहराए, तीन साल की कड़ी मेहनत से तैयार किया गया था। यह संवाद, चर्चा, सकारात्मक बहस और विचार-विमर्श के प्रभावी तंत्र से ही संभव हो सका था। मेरे बच्चों, उनके सामने जो चुनौतियाँ थीं वो हिमालयी की दुर्गम चढ़ाईयों से भी ज्यादा कठिन थीं। कई मुद्दे विभाजनकारी थे और सहमति बनाना आसान नहीं था। लेकिन उन्होंने इसके लिए काम किया, उन्होंने हमारे लिए यह किया और अब कुछ लोग हमारे देश को विभाजित करना चाहते हैं। यह अज्ञानता की चरम सीमा है।
राहुल के बयान की उपराष्ट्रपति ने की निंदा
अपनी बातचीत में माननीय उपराष्ट्रपति ने इसरों-इसरों में कांग्रेस संसद राहुल गाँधी के अमेरिका दौरे में उनके बयान पर अपना अक्रोश व्यक्त करते हुए कहा, संवैधानिक पद पर बैठे एक व्यक्ति का देश के दुश्मनों में शामिल होने से ज्यादा निंदनीय, घिनौना और असहनीय कुछ नहीं हो सकता। उन्होंने कहा, मुझे दुःख और पीड़ा है कि महत्वपूर्ण पद पर बैठे कुछ लोगों को राष्ट्रीय हित का कोई ज्ञान नहीं है। अगर हम सच्चे भारतीय हैं तो हम कभी भी देश के दुश्मनों का साथ नहीं देंगे। "मैं इस बात से दुखी और परेशान हूँ कि महत्वपूर्ण पद पर बैठे कुछ लोगों को भारत के बारे में कोई जानकारी नहीं है। उन्हें न तो हमारे संविधान का कोई ज्ञान है और न ही उन्हें राष्ट्रीय हित की कोई जानकारी है। उन्होंने कहा, मुझे यकीन है कि आप जो देख रहे हैं उसे देखकर आपका भी दिल दहल रहा होगा। यदि हम सच्चे भारतीय हैं और हम अपने राष्ट्र में विश्वास करते हैं, तो हम कभी भी राष्ट्र के दुश्मनों का पक्ष नहीं लेंगे। हम सभी अपने राष्ट्रहित के लिए अंतिम सांस तक कृतसंकल्पित रहेंगे।
हर भारतीय को बनना होगा राष्ट्र का राजदूत
हमेशा याद रखिए कि इस आजादी को पाने में, इस आजादी की रक्षा करने और आजादी के बाद इस देश की रक्षा करने में कितनों ने सर्वोच्च बलिदान दिया है। हमारे भाई-बहन देश की रक्षा में पूरी तरह तत्पर हैं। देश की हमारी माताओं ने अपने बेटे खोये हैं, पत्नियों ने अपने पति खोये हैं। हम अपने राष्ट्रवाद का उपहास नहीं उड़ा सकते। देश के बाहर हर एक भारतीय को इस राष्ट्र का राजदूत बनना होगा। यह कितना दुखद है कि संवैधानिक पद पर बैठा एक व्यक्ति ठीक इसका उलटा कर रहा है! इससे अधिक निंदनीय, घिनौना और असहनीय कुछ नहीं हो सकता कि आप देश के शत्रुओं के साथ शामिल हो जाएं। वे स्वतंत्रता का मूल्य नहीं समझते और वे यह नहीं समझते कि इस देश की सभ्यता 5000 वर्ष पुरानी है।
पार्थिव शरीर को परिवार ने AIIMS को दिया दान
कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी CPI(M) के महासचिव सीताराम येचुरी का 72 साल की उम्र में निधन हो गया। येचुरी 19 अगस्त से ही एक्यूट रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन के चलते दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में भर्ती थे। आखिरकार गुरुवार 12 सितंबर को बीमारी के चलते उनका निधन हो गया। निधन के बाद CPI(M) नेता के परिवारजनों ने उनके पार्थिव शरीर को एम्स में डोनेट करने का फैसला लिया है। CPI(M) नेता सीताराम येचुरी के निधन के बाद उनके परिवार ने AIIMS दिल्ली को उनके पार्थिव शरीर को दान में देने का फैसला लिया है। इसके बाद अब CPI(M) नेता की बॉडी को छात्रों की पढ़ाई- रिसर्च के लिए उपयोग किया जाएगा।
डोनेशन के बाद क्या वापस मिलती है बॉडी?
भारत में बॉडी डोनेट करने को लेकर मुख्यतः दो नियम हैं। पहले में व्यक्ति स्वयं अपने जीते जी अपने बॉडी को डोनेट करने का फैसला कर लेता है। इसके अलावा दूसरे नियम में व्यक्ति के परिवार वालों द्वारा निधन के बाद सहमति से पार्थिव शरीर को डोनेट करने का फैसला लिया जाता है। बॉडी डोनेशन के बाद पार्थिव देह को एजुकेशन के काम में लाया जाता है। इससे ज्यादातर प्रथम वर्ष के छात्रों को ऑर्गन्स के बारे में जानकारी दी जाती है। कुछ समय बाद जब बॉडी खराब होने लगती है तो ऐसे में उसे परिवार की रजामंदी से वापस कर दिया जाता है। इसके अलावा कई बार बॉडी का उपयोग करने वाले संस्थान भी बॉडी को अंत में अंतिम संस्कार कर देते हैं। उस समय अगर परिवार चाहे तो उनकी अस्थियां उन्हें उपलब्ध करवा दी जाती हैं।