बंगाल में गैंगरेप हुआ, इंसानियत मरी और मुख्यमंत्री ममता ने पूछा ‘वो बाहर क्यों गई थी?’ जैसे इंसाफ नहीं, इमेज की राजनीति चल रही हो। घटना की जड़ें बीते शुक्रवार रात में हैं, जब दुर्गापुर मेडिकल कॉलेज की एक एमबीबीएस छात्रा, अपने दोस्त के साथ डिनर के लिए निकली थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक यह समय रात करीब आठ बजे का था। कॉलेज के पास का इलाका सुनसान था पेड़ों के बीच फैला अंधेरा, और चारों ओर सन्नाटा। इसी दौरान तीन से चार लोगों ने उस छात्रा पर हमला किया, उसे जबरन खींचकर एक तरफ ले गए और गैंगरेप की वारदात को अंजाम दिया। कुछ घंटों बाद, घायल हालत में मिली पीड़िता को अस्पताल में भर्ती कराया गया। पुलिस ने तेजी दिखाते हुए 36 घंटे के भीतर तीन आरोपियों को गिरफ्तार किया जिनमें से एक आरोपी उसी अस्पताल का कर्मचारी निकला जहाँ पीड़िता पढ़ाई करती थी। बाद में चौथा आरोपी भी पुलिस की गिरफ्त में आया। अब तक कुल चार गिरफ्तारियाँ हो चुकी हैं, जबकि पाँचवें संदिग्ध की तलाश जारी है। अदालत ने तीन आरोपियों को 10 दिन की पुलिस कस्टडी में भेजा है। जांच एजेंसियाँ DNA टेस्ट, CCTV फुटेज, और मोबाइल टॉवर लोकेशन जैसे सबूत खंगाल रही हैं।
लेकिन इस केस की सबसे बड़ी सुर्खी पुलिस या जांच नहीं बनी बनी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का बयान। उन्होंने कहा, “लड़की आधी रात को बाहर क्यों गई थी? कॉलेजों को ध्यान देना चाहिए कि छात्राएं रात में बाहर न निकलें।” यानी एक ऐसी टिप्पणी जो सीधे-सीधे पीड़िता पर उंगली उठाती है। ममता का कहना था कि घटना रात 12:30 बजे हुई, लेकिन कुछ रिपोर्ट्स में FIR और शिकायत के हवाले से साफ है कि यह वारदात रात 8 बजे हुई थी। मतलब मुख्यमंत्री का बयान तथ्यों से उलट था।
यहीं से विवाद भड़क उठा। विपक्ष ने ममता पर “विक्टिम शेमिंग” का आरोप लगाया यानी दोष अपराधियों का नहीं, बल्कि उस लड़की का जो बाहर निकली थी। बीजेपी, महिला संगठनों और सोशल मीडिया ने मुख्यमंत्री से माफी की मांग की। सूत्रों के हिसाब से कुछ रिपोर्ट में कहा गया कि FIR में “लड़की अपने दोस्त के साथ डिनर के लिए निकली थी” लिखा है, और उसके साथियों की भूमिका अब पुलिस जांच के दायरे में है। मामला इतना गंभीर था कि राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी 5 दिन में रिपोर्ट मांगी। वहीं ओडिशा महिला आयोग की टीम पीड़िता के परिवार से मिलने और जांच की स्थिति जानने दुर्गापुर पहुंची। पीड़िता के पिता ने मीडिया से कहा “मुझे अपनी बेटी को ओडिशा ले जाने की इजाजत दी जाए, क्योंकि अब बंगाल में उसकी सुरक्षा पर भरोसा नहीं रहा। उनकी यह बात किसी तलवार की तरह चीरती है और हमें याद दिलाती है कि जब एक पिता अपनी बेटी को राज्य से बाहर ले जाने की बात करे, तो यह सिर्फ भय नहीं, उस सिस्टम पर अविश्वास का सबसे कड़ा बयान होता है। इस पूरे हंगामे के बीच ममता बनर्जी ने सफाई दी कि उनका बयान “जानबूझकर तोड़ा-मरोड़ा गया” है। उन्होंने कहा कि उन्होंने किसी लड़की को दोष नहीं दिया, बल्कि कॉलेज प्रशासन को सुरक्षा की जिम्मेदारी निभाने की बात कही थी। लेकिन सच्चाई यह है कि शब्दों का असर हमेशा इरादों से बड़ा होता है और एक मुख्यमंत्री के शब्द कानून की किताब से भी भारी पड़ते हैं। अब जांच जारी है, गिरफ्तार आरोपी पुलिस कस्टडी में हैं, DNA रिपोर्ट का इंतज़ार है, ये केस अब सिर्फ एक “गैंगरेप केस” नहीं रहा। यह बंगाल के उस चेहरे की कहानी बन गया है जहाँ पीड़िता के कपड़ों और समय पर बहस तो होती है, लेकिन सुरक्षा और जिम्मेदारी पर चुप्पी छा जाती है। ऐसे ही लेटेस्ट खबरों को देखने के लिए सब्सक्राइब करें ग्रेट पोस्ट न्यूज़।
दुनिया जब भी किसी नए विवाद की आग में झुलसती है, डोनाल्ड ट्रंप किसी कोने से निकलकर माइक्रोफोन संभाल लेते हैं। इस बार गाज़ा युद्ध के बीच ट्रंप ने एक बयान दिया “मैंने यह युद्ध ख़त्म कर दिया।” और फिर, ठहरकर कहा “यह मेरा आठवां युद्ध है जो मैंने रोका है।” यानी ट्रंप की नज़र में, अगर धरती पर कहीं गोली नहीं चल रही, तो शायद उसकी वजह वो खुद हैं। 12 अक्टूबर 2025, इज़राइल दौरे के दौरान ट्रंप ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा “War is over.” उन्होंने दावा किया कि उनके प्रयासों से इज़राइल और हमास के बीच सीज़फायर समझौता हुआ है। इस डील के तहत बंधक अदला-बदली, शव वापसी और 250 फिलिस्तीनियों की रिहाई शामिल है। हालांकि इज़राइली रक्षा मंत्रालय ने इसे “अस्थायी समझौता” कहा है, न कि युद्ध समाप्ति। लेकिन ट्रंप ने इसे “शांति की ऐतिहासिक जीत” बताकर सोशल मीडिया पर खुद को ‘Peace President’ घोषित कर दिया। ट्रंप यहीं नहीं रुके। एयर फ़ोर्स वन में पत्रकारों से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा “मैंने मई में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध रुकवाया। मैंने दोनों देशों को 200% टैरिफ़ की चेतावनी दी थी, और अगले दिन सब शांत हो गया।” भारत सरकार ने इस दावे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। लेकिन अमेरिकी मीडिया ने इसे “फैक्चुअल ओवरस्ट्रेच” कहा क्योंकि उस वक्त भारत–पाक के बीच केवल सीमित सीमा तनाव था, कोई आधिकारिक युद्ध नहीं। यानी ट्रंप का बयान वैसा ही था, जैसे कोई कहे कि “बारिश मैंने बंद करवाई थी, क्योंकि मैंने छाता खोल लिया था।” इसी बीच ट्रंप ने एक बयान दिया जिसने चर्चा बढ़ा दी। उन्होंने कहा कि सीनियर सिटीज़न्स के लिए मेडिकल CBD (कैनाबिडिओल) उत्पादों के उपयोग पर सरकार विचार कर रही है। अमेरिका में CBD यानी गांजा आधारित तेल को लेकर बहस जारी है। ट्रंप ने इसे “स्वास्थ्य सुधार के संभावित विकल्प” के रूप में बताया, जबकि व्हाइट हाउस ने स्पष्ट किया कि फिलहाल यह सिर्फ थैरेप्यूटिक उपयोग के दायरे में है, किसी व्यापक “लीगलाइजेशन” की घोषणा नहीं हुई है। यानी ट्रंप की नज़र में अब “शांति” सिर्फ डिप्लोमेसी से नहीं, बल्कि “ड्रॉप्स” से भी आएगी। अब आते हैं असली ट्रिगर पॉइंट पर नोबेल शांति पुरस्कार। इस साल पुरस्कार मिला मारिया कोरीना मचाडो को वेनेज़ुएला की विपक्षी नेता को। और यही वह क्षण था जब ट्रंप का “पीस नैरेटिव” फिर से सक्रिय हुआ। उन्होंने कहा “मैं इनाम नहीं चाहता, मैं इंसानियत बचा रहा हूँ।”फिर मुस्कुराते हुए जोड़ा “लेकिन मुझे नोबेल मिलना चाहिए था। मैंने 8 युद्ध खत्म किए हैं। उनका यह बयान राजनीतिक तौर पर एक संदेश था वो खुद को 2024 की नॉमिनेशन से आगे, 2025 की ग्लोबल पॉलिटिक्स में एक “रिस्टोरर ऑफ़ वर्ल्ड ऑर्डर” के रूप में दिखाना चाहते हैं। मगर अमेरिकी प्रेस ने इसे ‘self-proclaimed diplomacy’ कहा यानि ऐसी शांति जिसमें किसी और को पता ही नहीं कि युद्ध कब रुका। डोनाल्ड ट्रंप के हालिया बयानों को एक तरफ अमेरिकी चुनावी राजनीति से जोड़कर देखा जा रहा है, जहाँ वे खुद को “शांति निर्माता” और “वैश्विक वार्ताकार” के रूप में पेश कर रहे हैं। पर वास्तविकता यह है कि ट्रंप हर वैश्विक मुद्दे में अपना नाम जोड़ देने की कला में माहिर हैं। उनकी “पीस डिप्लोमेसी” एक तरह की पॉलिटिकल ब्रांडिंग है, जहाँ हर सुलह उनकी जीत है और हर विवाद उनका मौका। ऐसे ही लेटेस्ट खबरों को देखने के लिए सब्सक्राइब करें ग्रेट पोस्ट न्यूज़।