सोचिए… कभी तिरंगा खादी के करघे से उतरकर गांव-गांव जाता था। आज वही तिरंगा पॉलिएस्टर में, नायलॉन में, और आपके फोन की स्क्रीन पर HD क्वालिटी में घूम रहा है। 2002 में नियम बदले, मशीन से झंडा बनने लगा, LED वाली रैलियां आईं, Insta रीलों में इफ़ेक्ट्स जुड़ गए। आज हम बताएंगे कि तिरंगे का सफ़र खादी से डिजिटल तक कैसे पहुंचा… और इसमें क्या-क्या उलटफेर हुए।
भारत का पहला झंडा उस दौर में पैदा हुआ, जब आज़ादी सिर्फ़ एक सपना थी। 1904 में सिस्टर निवेदिता ने लाल और पीले रंग का ध्वज बनाया, जिस पर “वंदे मातरम्” अंकित था। यह झंडा लोगों में आत्मबल जगाने के लिए था। 7 अगस्त 1906 को, कोलकाता के पारसी बागान स्क्वायर में पहला त्रिरंगा फहराया गया लाल, पीला और हरा। बीच में देवनागरी में लिखा था “वंदे मातरम्”। 1907 में पेरिस में, मदाम भिकाजी कामा ने भारत का झंडा अंतरराष्ट्रीय मंच पर फहराया। यह ‘बर्लिन समिति ध्वज’ कहलाया दुनिया को यह बताने के लिए कि भारत गुलामी की जंजीरों से टूटने को तैयार है। फिर 1917 में, एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने होम रूल आंदोलन में एक अनोखा झंडा अपनाया पांच लाल और चार हरे पट्टियां, यूनियन जैक, सूरज, चांद और सितारे इसमें एक साथ परंपरा और विद्रोह दोनों की झलक थी।
1921 में, विजयवाड़ा के कांग्रेस अधिवेशन में, महात्मा गांधी ने एक ऐसा झंडा सुझाया जिसमें चर्खा था। चर्खा सिर्फ़ सूत कातने का औजार नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर भारत का घोषणापत्र था। 1931 में, रंगों का अर्थ तय हुआ केसरी साहस और बलिदान का प्रतीक, सफेद शांति और सत्य का संदेश, और हरा जीवन और समृद्धि का प्रतिनिधि। बीच में रखा गया अशोक चक्र धर्म और प्रगति का अनंत पहिया था। यह बदलाव झंडे को स्थायी रूप देने की दिशा में निर्णायक कदम था।
22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने झंडे के अंतिम स्वरूप को मंजूरी दी। यह वही तिरंगा था, जिसमें तीन रंग और अशोक चक्र शामिल थे। यह अब सिर्फ़ स्वतंत्रता का नहीं, बल्कि राष्ट्र की पहचान का प्रतीक बन गया। आज़ादी के दिन लाल किले पर जब पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसे फहराया, तो करोड़ों भारतीयों की आंखें नम हो गईं। उस दिन यह साफ़ हो गया था कि यह झंडा हर भारतीय की आत्मा में बसा रहेगा। आज़ादी के शुरुआती दशकों में, तिरंगा केवल खादी से बनता था क्योंकि खादी स्वतंत्रता आंदोलन का दिल थी। हर बुनकर, हर कताई करने वाला, उस झंडे में अपने पसीने और देशभक्ति का रंग भरता था। लेकिन 2002 में फ्लैग कोड में बदलाव हुआ, और मशीन-निर्मित पॉलिएस्टर झंडों को भी मान्यता मिल गई। इससे एक तरफ़ तिरंगा सस्ता हुआ और हर घर तक पहुंचा, लेकिन दूसरी तरफ़ खादी बुनने वालों की रोज़ी-रोटी छिन गई। कर्नाटक के खादी केंद्रों में बिक्री 75% तक गिर गई। कई बुनकर, जिनके पूर्वज स्वतंत्रता संग्राम में खादी बुनकर देश की सेवा करते थे, आज बेरोज़गार हो गए हैं। आज तिरंगा सिर्फ़ कपड़े पर नहीं, बल्कि हर जगह है LED स्क्रीन पर, सोशल मीडिया पोस्ट पर, वर्चुअल रियलिटी में, और यहां तक कि मेटावर्स के डिजिटल आसमान में भी। लोग इंस्टाग्राम फ़िल्टर से अपने चेहरे पर तिरंगे के रंग चढ़ा लेते हैं, फेसबुक कवर बदल लेते हैं, और यूट्यूब पर देशभक्ति के गाने बजा देते हैं। अगर हम तिरंगे को सिर्फ़ एक इमोजी, एक स्टिकर या एक स्क्रीनसेवर तक सीमित कर देंगे, तो शायद हम उसके असली मायने खो देंगे ।
भारतीय क्रिकेट के पूर्व स्टार बल्लेबाज़ और ‘चिन्ना थाला’ के नाम से मशहूर सुरेश रैना इस समय क्रिकेट के मैदान से दूर, प्रवर्तन निदेशालय (ED) की पूछताछ के घेरे में हैं। बुधवार को रैना दिल्ली स्थित ED मुख्यालय पहुंचे, जहां उनसे घंटों तक मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम कानून (PMLA) के तहत पूछताछ हुई। मामला 1xBet नाम के एक ऑनलाइन बेटिंग ऐप से जुड़ा है, जिस पर गैरकानूनी सट्टेबाज़ी और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप पहले से ही हैं। सूत्रों के मुताबिक, ED ने रैना से उनके इस ऐप के साथ संबंध, एंडोर्समेंट डील के विवरण, भुगतान के स्रोत और किसी भी संभावित विदेशी ट्रांजैक्शन के बारे में विस्तार से सवाल पूछे। एजेंसी को शक है कि इस ऐप से जुड़ी कुछ प्रमोशनल डील्स में वित्तीय लेन-देन ऐसे चैनलों से गुजरे हैं, जिनका स्रोत और इस्तेमाल स्पष्ट नहीं है।
सुरेश रैना की पब्लिक इमेज अब तक एक सफल क्रिकेटर और बिज़नेसमैन की रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार, उनकी कुल संपत्ति 220 करोड़ रुपये से अधिक है। IPL में चेन्नई सुपर किंग्स के लिए खेलते हुए उन्होंने 110 करोड़ रुपये से ज्यादा की कमाई की, इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से भी उन्हें मोटी रकम मिली। संन्यास के बाद उन्होंने कमेंट्री में कदम रखा और बड़े कॉन्ट्रैक्ट हासिल किए। रैना ने एडिडास, बूस्ट और टाइमेक्स जैसे बड़े ब्रांड्स का प्रचार किया है, और बिज़नेस में भी उनका दायरा फैला हुआ है—बेबीकेयर ब्रांड Raina Mate, क्रिप्टो स्टार्टअप Sahicoin और एम्सटर्डम में Raina Indian Restaurant उनका हिस्सा हैं। रियल एस्टेट में भी उनके निवेश की चर्चा रहती है।
लेकिन अब यह मामला उनके ब्रांड और सार्वजनिक छवि दोनों के लिए चुनौती बन सकता है। ED की जांच में उनका नाम आना, और उनसे घंटों पूछताछ होना, मीडिया और सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय है। जांच एजेंसी का फोकस यह जानने पर है कि क्या रैना को इस ऐप की कानूनी स्थिति की जानकारी थी, क्या उन्हें भुगतान भारत से या विदेश से हुआ, और क्या किसी रकम को विदेश भेजा गया। कानूनी विशेषज्ञ मानते हैं कि PMLA के तहत जांच का मतलब है कि अगर आरोप साबित हुए, तो मामला सिर्फ जुर्माने तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि आपराधिक कार्रवाई भी हो सकती है।
क्रिकेट में रैना की पहचान हमेशा ‘Mr. Dependable’ की रही है, जिन्होंने मुश्किल हालात में टीम को जीत दिलाई। लेकिन इस बार का मैदान अलग है—यहां न गेंद है, न बल्ला, न दर्शक दीर्घा। यहां सामने बैठे हैं जांच अधिकारी, और हर गेंद की जगह सवाल आ रहे हैं, जिनका जवाब सिर्फ दस्तावेज़, बयान और सबूत से देना होगा। आने वाले दिनों में तय होगा कि सुरेश रैना इस पारी में नॉट आउट लौटते हैं या उन्हें कानूनी पिच पर लंबी बल्लेबाज़ी करनी पड़ेगी।
दिल्ली की गलियों में, चौराहों पर, मंदिर के बाहर, पार्क के कोने में जो चार पैर वाला साथी, पूंछ हिलाकर आपका हाल पूछता था, उस पर अब अदालत का डंडा चला है। 11 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर के सभी आवारा कुत्तों को पकड़कर स्टरलाइज़, वैक्सीनेट करके स्थायी शेल्टर में भेजने का आदेश दिया है। और हां, ये सिर्फ कुत्ता-प्रेमी मोहल्लों तक सीमित नहीं, कोर्ट ने साफ कहा वापस सड़क पर छोड़ा तो सीधा कानूनी कार्रवाई। कारण? दिल्ली में हर दिन करीब 2000 डॉग बाइट के मामले, रेबीज़ का बढ़ता खतरा और लगातार आक्रामक होते झुंड। कोर्ट का तर्क सीधा है इंसानों की सुरक्षा पहले। मगर यहीं से शुरू हुआ विवाद, क्योंकि देश के Animal Birth Control (ABC) नियम कहते हैं कि कुत्तों को स्टरलाइज़ और वैक्सीनेट करने के बाद उन्हें उनके इलाके में वापस छोड़ा जाए। इस आदेश के बाद सुप्रीम कोर्ट के ही दो बेंच आपस में उलझे से दिखे। एक बेंच ने कहा कुत्ते हटाओ, सार्वजनिक सुरक्षा जरूरी है। दूसरी बेंच ने कहा ये मानवीयता के खिलाफ है, पालतू समाज से कुत्तों को ऐसे हटाना कानून के भी खिलाफ है। खुद CJI बी.आर. गवैया को दखल देना पड़ा और उन्होंने आश्वासन दिया कि इस पर गौर किया जाएगा। दिल्ली में कुत्ता-प्रेमी और एनिमल राइट्स एक्टिविस्ट दो दिन से इंडिया गेट, कन्सॉट प्लेस और मंदिरों के बाहर प्रदर्शन कर रहे हैं। पुलिस ने कई लोगों को हिरासत में भी लिया। सोशल मीडिया पर #SaveStrays और #JusticeForDogs ट्रेंड कर रहे हैं। अभिनेत्री रूपाली गांगुली ने कहा "हम अपने रक्षकों को खो रहे हैं" जबकि कांग्रेस नेताओं राहुल, प्रियंका, मनेका और वरुण गांधी ने इसे अमानवीय करार दिया। लेकिन आंकड़े डराते हैं… दिल्ली ही नहीं, पूरे भारत में डॉग बाइट का आंकड़ा चौंकाने वाला है। तमिलनाडु में अकेले 2025 में 3.67 लाख मामले और 20 मौतें हुईं। और ये सिर्फआधिकारिक डेटा है, असल संख्या शायद और ज्यादा हो। बिहार से तो एक अजीब खबर आई पालतू कुत्ते ने मालिक का कान ही काट दिया । कानून कहता है आठ हफ्तों में लाखों कुत्तों को पकड़कर सुरक्षित ठिकाने पर भेजो। अनुमान है कि ये मिशन 15,000 करोड़ रुपये का हो सकता है। सवाल ये है कि क्या दिल्ली के पास इतना पैसा, स्टाफ और शेल्टर हैं? और क्या कुत्तों को अचानक उनके इलाके से हटाना उन्हें और आक्रामक नहीं बना देगा? एक्सपर्ट्स चेतावनी दे रहे हैं कि इससे ज़ूनोटिक बीमारियां (जानवर से इंसान में फैलने वाली) और भी बढ़ सकती हैं। हिंदू, पारसी और कई अन्य परंपराओं में कुत्ते सिर्फ जानवर नहीं, संरक्षक माने जाते हैं। मोहल्लों के ‘भौंकू भैया’ रात में चौकीदार की तरह काम करते हैं। कोर्ट का आदेश उन्हें सुरक्षा देने का दावा करता है, मगर कई लोगों के लिए ये अपने मोहल्ले के रक्षक को खोने जैसा है। ये मामला अब सिर्फ कुत्तों का नहीं रहा, बल्कि इंसानी समाज की सोच, सुरक्षा और मानवीयता के बीच की खींचतान बन गया है। एक तरफ डर है काटने का, रेबीज़ का, बच्चों की सुरक्षा का… दूसरी तरफ मोहब्बत है, वफादारी की कहानियां हैं, और वो अपनापन जो किसी बेजुबान के साथ ही आता है।दिल्ली की गलियों में अगले कुछ महीनों में क्या नज़ारा होगा भौंकते चौकीदार या सुनसान सड़कें ये अब सिर्फ प्रशासन, कोर्ट और जनता के बीच की रस्साकशी तय करेगी।