माननीय उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने आज नई दिल्ली के भारत मंडपम में संसद सदस्यों के साथ 'हर घर तिरंगा' बाइक रैली को हरी झंडी दिखाया। उपराष्ट्रपति ने दिल्ली में सांसदों की 'हर घर तिरंगा' बाइक रैली को हरी झंडी दिखाकर रवाना करते हुए कहा कि भारत का उत्थान "अजेय" है। उपराष्ट्रपति ने कहा, भारत का उत्थान अजेय है और यह वास्तव में एक महान अवसर है, यह एक ऐसा अवसर है जो हमें महसूस कराएगा कि पृथ्वी पर सबसे बड़ा लोकतंत्र, मानवता के छठे हिस्से का घर, पहले की तरह आगे बढ़ रहा है। हमारा उत्थान अजेय है।
उपराष्ट्रपति ने इस विशेष घटना को बताया यादगार
माननीय उपराष्ट्रपति श्री धनखड़ ने कहा, ऐसा अवसर जहाँ संसद सदस्य एक ऐसे कार्यक्रम में शामिल होते हैं जो "हमारी खुशी, उपलब्धियों, उपलब्धियों का जश्न मनाता है और हमारे तिरंगे को सम्मान देता है, एक यादगार घटना है"। इस यादगार अवसर पर विभिन्न केंद्रीय मंत्रियों- अरुणाचल प्रदेश से सांसद किरण रिजिजू, जोधपुर से सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत, आंध्र प्रदेश से टीडीपी संसद राम मोहन नायडू किंजरपु वहाँ मौजूद रहें। केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने अपने एक बयान में कहा कि आजादी का अमृत महोत्सव के अवसर पर 13 से 15 अगस्त तक पूरे देश में 'हर घर तिरंगा' मनाया जाएगा, जिसके दौरान लोगों को अपने घरों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।
छह करोड़ लोग बने अमृत महोत्सव का हिस्सा
आजादी का अमृत महोत्सव, भारत की आजादी के 75 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में चलने वाला एक उत्सव है। संस्कृति मंत्रालय ने कहा, इस पहल का उद्देश्य स्वतंत्रता संग्राम और इस देश द्वारा हासिल किए गए मील के पत्थर पर ध्यान केंद्रित करना है। अभियान के पीछे का विचार लोगों के दिलों में देशभक्ति की भावना पैदा करना और भारत की यात्रा और इस महान राष्ट्र के निर्माण में योगदान देने वालों की याद दिलाना है। बता दें, पिछले साल इस अभियान को अपार सफलता मिली, जिसमें करोड़ों परिवारों ने अपने घरों पर 'तिरंगा' फहराया और छह करोड़ लोगों ने 'हर घर तिरंगा' वेबसाइट पर सेल्फी अपलोड की।
बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे के पीछे अमेरिका की भूमिका की संभावना होने का दावा किया जा रहा था और अब इस पर खुद पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अपने एक बयान में कहा है कि अगर उन्होंने बंगाल की खाड़ी में सेंट मार्टिन द्वीप पर संप्रभुता अमेरिका को सौंप दी होती और बंगाल की खाड़ी में उसे बेस बनाने की अनुमति दे देतीं तो वह सत्ता में बनी रह सकती थीं। बता दें, भारत में रह रहीं 76 वर्षीय शेख हसीना ने अपने करीबी सहयोगियों से यह खास बातें साझा की हैं।
क्या है सेंट मार्टिन द्वीप?
सेंट मार्टिन द्वीप बांग्लादेश का एकमात्र मूंगा द्वीप है, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है। इस द्वीप में साफ नीला पानी और मूंगे जैसे विविध समुद्री जीव पाए जाते हैं। वहीं, इस द्वीप को नारिकेल जिंजिरा (नारियल द्वीप) और दारुचिनी द्वीप (दालचीनी द्वीप) के नाम से भी जाना जाता है। यह बंगाल की खाड़ी के उत्तर पूर्वी भाग में तीन किमी वर्ग क्षेत्रफल में फैला है और कॉक्स बाजार-टैंकफ प्रायद्वीप के सिरे से लगभग नौ किमी दक्षिण में स्थित है। मार्टिन द्वीप की अर्थव्यवस्था मुख्यरूप से पर्यटन, मछली पालन, चावल-नारियल की खेती पर निर्भर करती है। इससे द्वीप के 5500 लोगों की आजीविका चलती है।
क्या रणनीतिक महत्व है सेंट मार्टिन द्वीप का?
पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के एक दावे के बाद से बंगाल की खाड़ी के उत्तर पूर्वी भाग में बसे इस द्वीप समूह की चर्चा चारों ओर हो रही है। इस द्वीप की भौगोलिक स्थिति ऐसी है जो इसे रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण बनाती है। इतना ही नहीं, इस द्वीप से न सिर्फ बंगाल की खाड़ी बल्कि आस-पास के पूरे इलाके पर नजर रखी जा सकती है। ऐसे में सामरिक रूप से सेंट मार्टिन द्वीप का खासा महत्व है। दरअसल, अमेरिका इस द्वीप पर इसलिए कब्जा चाह रहा है ताकि हिंद महासागर में वह अपना प्रभुत्व स्थापित कर सके। बता दें कि हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की उपस्थिति बढ़ रही है और चीन की बढ़ती उपस्थिति ने अमेरिका में खतरे की घंटी बजा दी है। अमेरिका ने अपनी इंडो-पैसिफिक रणनीति से इसका जवाब दिया है, जिसमें भारत एक प्रमुख रणनीतिक भागीदार है और दोनों देशों ने हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती उपस्थिति के जवाब में चतुर्भुज सुरक्षा संवाद (क्वाड) और मालाबार नौसैनिक अभ्यास जैसे अन्य तंत्र विकसित किए हैं।
द्वीप के कारण शेख हसीना और अमेरिका के रिश्तों में तनातनी
शेख हसीना के प्रधानमंत्री रहने के दौरान अमेरिका और बांग्लादेश के बीच रिश्तों में तनातनी देखने को मिली थी। अमेरिका ने यहाँ तक कह दिया था कि बांग्लादेश में जनवरी में हुए चुनाव निष्पक्ष नहीं थे। आपको बता दें, बांग्लादेश में जनवरी में हुए चुनाव में आवामी लीग सत्ता में लौटी थी। बांग्लादेश छोड़ने से कुछ महीने पहले ही शेख हसीना ने बड़ा दावा किया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि उनकी सरकार गिराने के लिए साजिशें रची जा रही हैं। उन्होंने अमेरिका पर बांग्लादेश और म्यांमार से बीच एक नया ईसाई देश बनाने की साजिश का आरोप लगाया था। इस वर्ष मई के महीने में शेख हसीना ने इसरों-इसरों में बिना अमेरिका का नाम लिया कहा था की अगर मैं किसी खास देश को बांग्लादेश में हवाई अड्डा बनाने की अनुमति देती तो इस तरह की साजिशें नहीं रची जाती।
द्वीप को लेकर बांग्लादेश और म्यांमार के बीच विवाद
सेंट मार्टिन द्वीप सबसे पहले तब चर्चा में आया, जब बांग्लादेश और म्यांमार इस क्षेत्र के आसपास मछली पकड़ने के अधिकार को लेकर भिड़ गए। दोनों देशों ने अपनी समुद्री सीमा के परिसीमन पर द्वीप पर संप्रभु दावों का विरोध किया था। हालांकि, 2012 में इंटरनेशनल ट्रिब्यूनल फॉर द लॉ ऑफ द सी (ITLOC) ने अपने फैसले में इस द्वीप को बांग्लादेश के क्षेत्रीय समुद्र, महाद्वीपीय शेल्फ और ईईजेड का हिस्सा बताया था। इसके अलावा 2018 में, बांग्लादेश सरकार ने म्यांमार के अद्यतन मानचित्र का विरोध किया था, जिसमें द्वीप को उसके संप्रभु क्षेत्र के हिस्से के रूप में दिखाया गया था। बाद में म्यांमार ने इसे एक गलती के रूप में स्वीकार किया था।
भारत में 1960 के दशक में हरित क्रांति की शुरुआत हुई थी जब देश गंभीर खाद्यान्न संकट से गुजर रहा था। यह क्रांति देश में भूखमरी को खत्म करने और कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए शुरू की गई थी। इस क्रांति की वजह से भारत खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बन पाया था। अब एआई और बिग डेटा एनालिटिक्स ने हरित क्रांति का नया युग शुरू किया।
क्या है हरित क्रांति और क्यों देश को इसकी जरुरत पड़ी?
1960 के दशक में भारत गंभीर खाद्यान्न संकट से जूझ रहा था, तब देश में न जाने कितने लोग भूखे पेट सोने को मजबूर थे। खाद्यान्न के अभाव में चौतरफा कुपोषण फैलने लगा। इस इस्तिथि को देखते हुए उस समय के तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को जनता से अपील तक करनी पड़ी, पेट पर रस्सी बांधो, साग-सब्जी ज्यादा खाओ, सप्ताह में एक दिन एक वक्त उपवास करो, देश को अपना मान दो। बता दें, 1960 के दशक में खराब मानसून और सूखे की समस्या ने कृषि उत्पादन को काफी प्रभावित कर दिया था। लेकिन, साल 1964-65 में मानसून काफी अच्छा रहा पर फिर भी भारत को 70 लाख टन खाद्यान्न की विदेशी मदद लेनी पड़ी। ऐसे में देश के नीति-निर्माताओं को लगा कि खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर होने के लिए कारगर कदम उठाने की जरूरत है। तब भारत ने खाद्यान्न आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए कई कदम उठाए, जिसे आज हम हरित क्रांति और Green Revolution के नाम से जानते हैं।
कौन हैं हरित क्रांति के जनक?
वनस्पति एवं कृषि वैज्ञानिक एस स्वामीनाथन ने साल 1960 के दशक में हरित क्रांति की शुरुआत की। इस क्रांति में पैदावार बढ़ाने वाले बीज, उर्वरक और रसायन के इस्तेमाल पर जोर दिया गया, जिसकी वजह से इसका व्यापक असर भी देखने को मिला और अगले तीन साल में यानी साल 1971 तक भारत खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर हो गया।
किसानों के जीवन में क्या है हरित क्रांति का योगदान?
हरित क्रांति का मूल मकसद कृषि पैदावार को बढ़ाना था, ताकि देश खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर हो सके। इस क्रांति से देश के खाद्यान्न की जरूरत तो पूरी हुई, साथ ही देश के किसानों की आय भी बढ़ी। हरित क्रांति में उन्नत बीजों और तकनीक से कृषि पैदावार बढ़ाने पर जोर दिया गया। शुरुआत खरीफ फसल से की गई, जिसमें देश के वैज्ञानिकों को उल्लेखनीय सफलता मिली और इस प्रयोग को पूरे देश में लागू किया गया और इसने देखते ही देखते एक क्रांति का रूप ले लिया।
AI आने से हरित क्रांति में हुआ बड़ा बदलाव
1960 के दशक में हरित क्रांति का अधिक जोर उन्नत बीजों और उर्वरकों पर था, लेकिन अब कृषि में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का भी बहुत बड़ा योगदान है। कृषि क्षेत्र की चुनौतियों को सुलझाने के लिए AI के साथ बिग डेटा एनालिटिक्स जैसी अत्याधुनिक तकनीक का भी इस्तेमाल हो रहा है और इसके सकारात्मक नतीजे भी दिख रहे हैं। सैटेलाइट, ड्रोन, सेंसर और IoT जैसे तकनीकों से मिट्टी की सेहत, मौसम के पैटर्न, फसल की वृद्धि और कीटों के संक्रमण आदि की सही समय पर जानकारी मिल जाती है। इससे किसान सिंचाई, फसल सुरक्षा जैसे फैसलों को बेहतर तरीके से ले पाते हैं।