दिल्ली की हवा में बारूद की गंध अब भी तैर रही है, और लालकिले की दीवारें मानो पूछ रही हैं “कौन था वो जिसने दिल्ली की सांसों में डर घोल दिया?” इस धमाके के धुएं से जो नाम निकलकर आए सबके आगे “Dr.” लगा है। जी हाँ, Dr. Mohammad Umar alias Umar un-Nabi, वही शख्स जिसके नाम पर Hyundai i20 रजिस्टर्ड थी, अब जांच का प्राइम संदिग्ध है। DNA सैंपल लिए जा चुके हैं ताकि यह साफ़ हो सके कि वो मरा, या अभी कहीं ज़िंदा है। साथ में पकड़े गए हैं Dr. Muzammil Ahmad Ganaie (Faridabad से), Dr. Adeel Majeed Rather (Kashmir origin), और Dr. Shaheen Sayeed (Lucknow based)। यह कोई हॉस्पिटल का ग्रुप नहीं, बल्कि एक ऐसा white-collar terror module बताया जा रहा है जो लैब कोट की आड़ में विस्फोटक फार्मूले गढ़ रहा था। Faridabad से बरामद हुआ करीब 2,900 किलो विस्फोटक, जिसने एजेंसियों की नींद उड़ा दी। अब शक की सुई सीधी Jaish-e-Mohammed की तरफ़ घूम रही है, लेकिन NIA फिलहाल आधिकारिक पुष्टि से बच रही है। देश भर में छापेमारी जारी है हरियाणा, यूपी, कश्मीर, और NCR के कई पॉइंट्स पर। CCTV फुटेज, FSL रिपोर्ट, और कार ओनरशिप चेन खंगाली जा रही है। फॉरेन्सिक टीम को दो अलग-अलग टाइप के विस्फोटक मिले हैं, साथ में कार्ट्रिज और लाइव अम्यूनिशन भी। मतलब डील बड़ी थी, पर शायद टाइमिंग खराब पड़ गई और ब्लास्ट “पैनिक-डिटोनेशन” में बदल गया।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मामला NIA को सौंपा, अमित शाह ने साफ़ कहा “दोषियों को एजेंसियाँ ढूंढ निकालेंगी, चाहे वो लैब में छिपे हों या किसी NGO के ऑफिस में।” अब बात पैसों की यानी इस आतंक इंजीनियरिंग के फाइनेंशियल स्रोत की। जांच में यह तो तय है कि कुछ बैंक ट्रांज़ैक्शन और मोबाइल पेमेंट लिंक्स खंगाले जा रहे हैं, पर अब तक कोई सार्वजनिक मनी-ट्रेल सामने नहीं आई। ना कोई खाता, ना कोई विदेशी रेमिटेंस बस अंधेरे में चल रही चेकिंग। Patiala House Court में ek आरोपी की आधिकारिक पेशी हो सकती है लेकिन अभी इसकी पुष्टि नहीं है एजेंसियाँ रिमांड और प्रोडक्शन की तैयारी में हैं। यानी ब्लास्ट की पीछे की साजिश की कहानी अभी अधूरी है, दिल्ली इस वक्त हाई अलर्ट पर है, और NIA के ऑफिस में फाइलों का पंखा रुके बिना घूम रहा है। अब देश देख रहा है कि इन सफेद कॉलर आतंकियों की कहानी कहाँ जा कर रुकती है क्लिनिक में, कोर्ट में, या कब्र में।
बिहार में सियासत का मौसम हमेशा बाकी राज्यों से थोड़ा अलग होता है। यहाँ हवा भी दिशा बदलती है तो चर्चा शुरू हो जाती है “कौन जीतेगा?” और 2025 के विधानसभा चुनाव के एग्जिट पोल्स ने इस चर्चा में नया तड़का डाल दिया है। देश के लगभग हर बड़े पोलस्टर का कहना है कि इस बार एनडीए बिहार की सत्ता में लौटता हुआ दिख रहा है। लेकिन बात सिर्फ “कौन जीतेगा” तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भी कि “क्यों?” आंकड़ों की बात करें तो लगभग सभी सर्वे एजेंसियों ने एनडीए को स्पष्ट बहुमत देते हुए 130 से लेकर 200 सीटों के बीच आंका है। Matrize एजेंसी के मुताबिक एनडीए को 147 से 167 सीटें मिल सकती हैं, जबकि महागठबंधन (RJD+Congress+Left) को 70 से 90 सीटें। P-Marq के पोल में एनडीए को 142 से 162 सीटें और महागठबंधन को 80 से 98। People’s Pulse ने एनडीए को 133 से 159, MGB को 75 से 101 सीटें दी हैं। वहीं Poll Diary ने तो पूरे उत्साह में कह दिया “एनडीए 184 से 209 तक,” यानी लगभग “क्लीन स्वीप” की भविष्यवाणी। कुल मिलाकर एग्जिट पोल्स का औसत साफ कहता है एनडीए बहुमत की दहलीज पार कर चुका है, जबकि महागठबंधन को विपक्ष की सीटों तक सीमित बताया जा रहा है। महिलाओं और युवाओं का मतदान प्रतिशत इस बार रिकॉर्ड स्तर पर रहा (68-69%), और कई राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि ये वोट “स्थिरता” के लिए पड़े हैं, “परिवर्तन” के लिए नहीं। दूसरी तरफ़, महागठबंधन (RJD-Congress-Left) बेरोज़गारी और महंगाई जैसे मुद्दे लेकर मैदान में उतरा, लेकिन उस नारे में वैसी धार नहीं दिखी जैसी तेजस्वी यादव 2020 में लाए थे। प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी और पप्पू यादव जैसे नेताओं की नई एंट्री से विपक्ष का वोट बैंक थोड़ा बिखरा और इसने एनडीए के पक्ष में “क्लीन स्विंग” बना दिया। बिहार में हर चुनाव जातीय समीकरणों का खेल रहा है लेकिन इस बार कास्ट कार्ड के ऊपर “कम्युनिटी कॉन्फिडेंस” का कार्ड भारी पड़ा। बीजेपी और जेडीयू ने यादव-मुस्लिम बहुल इलाकों में भी कई सीटों पर “साइलेंट वोटर” को टारगेट किया। इतिहास गवाह है कि बिहार ने कई बार एग्जिट पोल्स को मुंह की खिलाई है। 2015 में लगभग हर पोल ने एनडीए को विजेता बताया था, लेकिन नतीजा पूरी तरह उल्टा निकला। इसलिए पत्रकारिता का धर्म यही कहता है “एग्जिट पोल, पॉलिटिकल इशारा हैं, बिहार की राजनीति हमेशा अप्रत्याशित मोड़ों से भरी रही है। 14 नवंबर को पता चलेगा कौन बैठेगा गद्दी पर ।
बिहार में इस बार जो सीन बना है , वो बड़ा दिलचस्प है। हवा में जो हलचल है, वो ये कह रही है कि महागठबंधन जीत के दरवाज़े तक तो पहुँचा, पर शायद हैंडल पकड़ना भूल गया। सर्वे कह रहे हैं NDA को 130+ सीटों की बढ़त मिलती दिख रही है, और महागठबंधन 70 से 100 के बीच सिमट सकता है। अब इसे ‘चूक’ कहो या ‘टाइमिंग का मिसफायर’, लेकिन मैदान में वोटर ने बता दिया पुराना खेल अब नहीं चलेगा।
मतदान रिकॉर्ड तोड़ रहा है करीब 66.91% वोटिंग, और उसमें भी महिलाओं ने बाजी मार ली। सोचो, बिहार की राजनीति जो दशकों तक “पुरुष प्रधान” रही, अब वहाँ महिलाएं 71.6% वोटिंग के साथ पुरुषों से 10 प्वाइंट आगे निकल गईं। यानी “साइलेंट वोटर” अब “किंगमेकर” नहीं, “क्वीनमेकर” बन चुकी हैं। 2015 में महिलाएं 60%, 2020 में 62% और अब 2025 में 71% ये सिर्फ आंकड़े नहीं, बिहार की सियासत का नया चेहरा हैं।
अब सवाल ये कि महिलाएं इतनी एक्टिव क्यों? वजहें साफ़ हैं
सरकार की डायरेक्ट स्कीमें, बैंक खाते में पैसे का सीधा लाभ, गैस सिलेंडर, राशन, स्कूल, साइकिल से लेकर जनधन और जीविका तक ये सब अब कागज़ की नहीं, जेब की सच्चाई हैं। और जहाँ फायदा महसूस होता है, वहाँ वोट भी पड़ता है।
महागठबंधन ने शायद यही गलती की महिला वोटर को आंकड़ा तो माना, लेकिन भावना नहीं समझी। दूसरी ओर NDA की टीम ने महिलाओं को सिर्फ मतदाता नहीं, परिवार की नीति निर्माता की तरह ट्रीट किया यही कारण है कि महिला बूथों पर रिकॉर्ड लाइनें लगीं।
गांव-गांव में तस्वीर एक जैसी एक ओर महागठबंधन के नेता अब भी जाति और समीकरणों के जोड़-घटाव में फंसे रहे, वहीं महिलाएं अपने बच्चों की पढ़ाई, घर की सुरक्षा और रसोई के खर्च के लिए वोट डाल रहीं थीं। अब बात करें इस “थोड़ी सी चूक” की तो महागठबंधन का मुद्दा साफ नहीं था। न कोई मजबूत नैरेटिव, न एकजुट चेहरा। एक तरफ़ पुराने वादे दोहराए जा रहे थे, दूसरी तरफ़ युवाओं और महिलाओं की उम्मीदें बढ़ गईं।