Latest News

Breaking News 12 December 2024

  1. )इंसाफ बाकी है’: अतुल सुभाष का दर्दनाक अंत

एक ऐसा सिस्टम, जहां इंसाफ की उम्मीद में इंसान खुद अपनी ज़िंदगी हार गया। बेंगलुरु का 34 साल का AI इंजीनियर अतुल सुभाष मोदी, जिसने डेढ़ घंटे का वीडियो बनाया, 24 पन्नों का सुसाइड नोट छोड़ा और अपनी जान दे दी। वजह? वो झूठे केस, रिश्वतखोरी और सिस्टम का छलावा, जिसने उसे अंदर तक तोड़ दिया। उसके आखिरी शब्द थे 'मेरी अस्थियां कोर्ट के पास बहा देना, क्योंकि यहां इंसाफ बाकी है।'
यह खबर आपको हिला कर रख देगी, क्योंकि यह सिर्फ एक मौत नहीं, बल्कि हमारे न्याय सिस्टम पर सवाल है। इंसाफ की ये लड़ाई अतुल सुभाष से शुरू होती है, लेकिन कहां खत्म होगी ये किसी को नहीं पता।"

बेंगलुरु जैसे हाईटेक शहर में 34 साल का एक टैलेंटेड AI इंजीनियर, अतुल सुभाष मोदी। नाम सुनकर लगता है कि बंदा कामयाबी के शिखर पर होगा। लेकिन, कुदरत ने उनके हिस्से में शायद सिर्फ दर्द लिखा था। बीते सोमवार की सुबह जब उनकी लाश पंखे से लटकी मिली, तो पूरा देश सन्न रह गया। #JusticeForAtulSubhash सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहा है, लेकिन असल सवाल ये है कि इंसाफ कब मिलेगा? 
अतुल ने खुदकुशी से पहले डेढ़ घंटे का एक वीडियो रिकॉर्ड किया। उस वीडियो में जो टीशर्ट उन्होंने पहनी थी, उस पर लिखा था, "Justice is Due"। मानो सिस्टम को ये सीधा संदेश दे रहे हों कि उनका न्याय अभी बाकी है। अतुल के सुसाइड नोट में लिखा गया हर शब्द जैसे किसी सिस्टम के मुंह पर करारा तमाचा हो।  उसमे लिखा था "मैं जो पैसा कमा रहा हूं, वही पैसा मेरे दुश्मनों को ताकत दे रहा है। मेरे ही टैक्स से चलने वाला ये सिस्टम मुझे, मेरे परिवार और मेरे जैसे अच्छे लोगों को बर्बाद कर रहा है। इसलिए अब मेरी जिंदगी खत्म होनी चाहिए।"

शादी, केस और सिस्टम की मार

2019 में शादी हुई। लगा, नई शुरुआत होगी। लेकिन, ये शादी अतुल के लिए सुकून का घर नहीं, बल्कि एक जंग का मैदान बन गई। उनकी पत्नी निकिता सिंघानिया और उसके परिवार ने अतुल पर एक के बाद एक 9 झूठे केस दर्ज करवाए—घरेलू हिंसा, हत्या की कोशिश, अप्राकृतिक यौनाचार। 120 तारीखें कोर्ट में मिलीं। 40 बार बेंगलुरु से जौनपुर तक की लंबी यात्राएं। एक केस खत्म होता, तो दूसरा चालू हो जाता। कोर्ट से तलाक का सेटलमेंट करने के लिए पत्नी ने 3 करोड़ रुपये की डिमांड की। आखिरकार अतुल डिप्रेशन में चले गए।

जज पर रिश्वत का आरोप

इस सुसाइड नोट में एक और बड़ा खुलासा हुआ। अतुल ने जौनपुर फैमिली कोर्ट की जज रीता कौशिक पर आरोप लगाया कि उन्होंने केस सेटल करने के लिए 5 लाख रुपये की रिश्वत मांगी थी। सोचिए, एक इंजीनियर जिसने सिस्टम पर भरोसा करके अपनी जिंदगी जी, वो किस कदर टूट गया होगा, जब उसने खुद उसी सिस्टम को बिकता देखा। अतुल के पिता ने कहा "मेरा बेटा अंदर ही अंदर जल रहा था"
उन्होंने कहा, "वो हर बार हमें कहता था कि जहां उसका केस चल रहा है, वहां कानून का कोई पालन नहीं हो रहा। वो बेंगलुरु से जौनपुर 40 बार गया। वो डिप्रेशन में था, लेकिन उसने कभी हमें महसूस नहीं होने दिया। अंदर ही अंदर जलता रहा।"
अतुल की मां का दर्द भी ऐसा था कि सुनने वालों की आंखें भर जाएं। "उन्होंने मेरे बेटे को, मुझे, हमारे पूरे परिवार को परेशान किया। पर मेरा बेटा सब सहता रहा। खुद टूट गया, पर हमें टूटने नहीं दिया।"

"मेरी अस्थियां कोर्ट के पास बहा देना"

अपने आखिरी वीडियो में अतुल ने कहा कि अगर उन्हें मौत के बाद भी इंसाफ नहीं मिला, तो उनकी अस्थियां कोर्ट के पास के नाले में बहा दी जाएं। सोचिए, एक इंसान को सिस्टम ने इतना तोड़ दिया कि मरने के बाद भी उसे इन्साफ मिलने की उम्मीद नहीं थी। 
इसी बीच सुप्रीम कोर्ट ने भी चिंता जताई। जस्टिस बी.वी नागरत्ना और जस्टिस कोटेश्वर सिंह की बेंच ने कहा ये धारा महिलाओ को बचाने के लिए बनी थी लेकिन अब इसे हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। 

 तो अब आगे क्या ? 

बंगलुरु पुलिस ने अतुल की पत्नी और उसके परिवार के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का केस दर्ज़ किया है। आज पुलिस की एक टीम जौनपुर जाकर 
आरोपियों से पूछताछ करेगी। लेकिन क्या अतुल के परिवार को इन्साफ मिलेगा ? या फिर ये मामला भी बाकि मामलों की तरह फाइलों में दबकर रह जायेगा


 एक सवाल जो हर दिल में गुज रहा है 

अतुल सुभाष की मौत एक एक शख्स की कहानी भर नहीं है। ये सवाल उठती है की क्या हमारे सिस्टम में सच में न्याय बचा है ? क्या हर मेहनती इंसान को इस तरह से टूटने पर मजबूर होना पड़ेगा। आज अतुल के परिवार और उनके बेटे की आँखों में सिर्फ एक सवाल है "justice is due " इन्साफ अभी बाकी है

 

2.) मोदी ने एक देश, एक चुनाव बिल को दी हरी झंडी  

 

दिल्ली की सर्दी और संसद का शीतकालीन सत्र, दोनों ही गरम माहौल बना रहे हैं। इसी बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय कैबिनेट की मीटिंग में 'एक देश, एक चुनाव' विधेयक को हरी झंडी मिल गई है। माना जा रहा है कि सरकार इसे शीतकालीन सत्र में पेश करेगी। ये कोई नई बात नहीं है। पीएम मोदी ने 2019 में 73वें स्वतंत्रता दिवस पर पहली बार इसका जिक्र किया था। उनका कहना था कि देश को जोड़ने और खर्चे बचाने का ये एक सॉलिड तरीका हो सकता है। हाल ही में कोविंद समिति ने अपनी रिपोर्ट दी, जिसे 18 सितंबर को कैबिनेट से मंजूरी भी मिली थी। अब मोदी सरकार इसे कानून का रूप देने की तैयारी में है।

'एक देश, एक चुनाव' बिल का आइडिया क्या है?

सीधे-सादे शब्दों में समझें तो इसका मतलब है कि देश में लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएं। अभी क्या होता है? हर पांच साल पर लोकसभा चुनाव होते हैं और राज्यों में उनके हिसाब से विधानसभा चुनाव। जैसे, राजस्थान, एमपी, तेलंगाना के चुनाव लोकसभा से पहले हुए, जबकि महाराष्ट्र और झारखंड के बाद। मतलब, हर साल कहीं न कहीं चुनाव का महोत्सव चलता रहता है। कुछ राज्य जैसे अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा, सिक्किम, और आंध्र प्रदेश में ये चुनाव साथ में होते हैं। लेकिन, बाकी जगह ये सिस्टम अलग है। 

'एक देश, एक चुनाव' बिल के फायदे क्या हैं?

विधि आयोग की 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक, अगर लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ में हों, तो खर्चे आधे हो सकते हैं। 2014 में लोकसभा और उसके बाद हुए विधानसभा चुनावों में खर्च लगभग बराबर था। साथ चुनाव से ये 50-50 में बंट जाएगा। हर साल चुनावी रैलियां, आचार संहिता, और प्रशासन का भारी खर्चा। अगर एक बार में निपट जाए, तो देश की गाड़ी बिना रुकावट के चल सकती है। बार-बार चुनाव से सत्ता और विपक्ष दोनों पर दबाव रहता है। एक साथ चुनाव होने से पार्टियों को लंबी पॉलिसी प्लानिंग का मौका मिलेगा।

'एक देश, एक चुनाव बिल की चुनौतियां क्या हैं?

अभी हर राज्य की विधानसभा का कार्यकाल अलग-अलग होता है। ऐसे में, राज्यों के चुनाव एक साथ करने के लिए संविधान में बड़े बदलाव की जरूरत होगी।
कई क्षेत्रीय दल इसे केंद्र की सत्ता का दबदबा बनाने का तरीका मानते हैं। उनका कहना है कि इससे छोटे दलों की आवाज दब सकती है। एक साथ चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग और प्रशासन को बहुत बड़ी लॉजिस्टिक तैयारी करनी होगी।

इतिहास क्या कहता है?

आजादी के शुरुआती सालों में ऐसा सिस्टम था। 1951-52, 1957, 1962, और 1967 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ में हुए। लेकिन 1967 के बाद राजनीतिक अस्थिरता और संविधान की धारा 356 (राज्य में राष्ट्रपति शासन) के चलते ये पैटर्न टूट गया। धीरे-धीरे राज्यों और केंद्र के चुनाव अलग-अलग समय पर होने लगे।तो क्या वाकई ये मुमकिन है? अगर ये हो गया तो भारत की राजनीति में बड़ा बदलाव आएगा। अब देखना ये है कि इस बिल को संसद में क्या रिस्पॉन्स मिलता है।

 

3. )  Elon Musk बना इतिहास का सबसे अमीर इंसान !

 

Elon Musk  तो इस बार पैसे छापने की मशीन बन गए हैं! उनकी दौलत ऐसी भाग रही है जैसे दिल्ली की ब्लू लाइन बसें बिना रुके। मस्क दुनिया के पहले इंसान बन गए हैं, जिनकी नेटवर्थ 447 बिलियन डॉलर (लगभग 38 लाख करोड़ रुपये) तक पहुंच गई है। मतलब, ये "दिन दोगुनी, रात चौगुनी" वाला असली मामला है। Elon Musk की दौलत मुकेश अंबानी से चार गुना ज्यादा है। अंबानी की कुल नेटवर्थ 97.1 बिलियन डॉलर और गौतम अडानी की 79.3 बिलियन डॉलर है। मस्क को टक्कर देने वाला भी दूर-दूर तक कोई नहीं। अमेजन वाले जेफ बेजोस की दौलत भी 249 बिलियन डॉलर पर आकर ठहर गई है।

Elon Musk की कमाई का राज 

मस्क की कमाई का सबसे बड़ा सोर्स है उनकी कंपनी टेस्ला। हाल ही में टेस्ला के शेयर में 6% का उछाल आया। ट्रम्प के 5 नवंबर को चुनाव जीतने के बाद टेस्ला के शेयर की कीमत 242.84 डॉलर से बढ़कर 424.77 डॉलर हो गई। यानी शेयर में 75% का उछाल। स्पेसएक्स और xAI जैसी कंपनियों ने भी मस्क की नेटवर्थ को आसमान तक पहुंचाने में बड़ी भूमिका निभाई। स्पेसएक्स के जरिए मस्क ने न सिर्फ स्पेस इंडस्ट्री को नया आयाम दिया, बल्कि उनकी प्राइवेट कंपनियों की वैल्यू में भी तगड़ा इजाफा हुआ।

एलन मस्क: दौलत का किंग, टेस्ला का जादूगर

मस्क ने 24 घंटे में 62.8 बिलियन डॉलर (लगभग 5 लाख करोड़ रुपये) कमाए हैं। ये रकम इतनी है कि दुनिया के कई टॉप अरबपतियों की पूरी नेटवर्थ को भी पीछे छोड़ दिया। उदाहरण के तौर पर, 23वें सबसे अमीर आदमी की कुल नेटवर्थ 63.2 बिलियन डॉलर है। इस साल तो मस्क की किस्मत अलग ही लेवल पर है। उन्होंने 2024 में अब तक 218 बिलियन डॉलर कमाए हैं। अगर ये उनकी पूरी दौलत होती, तो भी वो दुनिया के चौथे सबसे अमीर आदमी होते। 200 बिलियन डॉलर से ऊपर की कुल दौलत वाले क्लब में मस्क के अलावा सिर्फ जेफ बेजोस और मेटा वाले मार्क जुकरबर्ग ही हैं। मस्क की संपत्ति में तेजी का बड़ा कारण उनकी कंपनियों का विविधता भरा मॉडल है। xAI आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की दुनिया में धूम मचा रहा है। दूसरी तरफ, टेस्ला और स्पेसएक्स की सफलता ने उन्हें टेक और एनर्जी सेक्टर दोनों में टॉप पर ला खड़ा किया। इसके अलावा ट्रम्प के जीतने से अमेरिका में बाजार को बूस्ट मिला है। उनके बिजनेस-फ्रेंडली रुख के चलते मस्क की कंपनियों को काफी फायदा हुआ। मस्क का फोकस हमेशा लॉन्ग-टर्म पर रहता है। उनकी EV बैटरी टेक्नोलॉजी, स्पेस ट्रांसपोर्ट और AI प्रोजेक्ट्स इस बात का सबूत हैं कि वो आज की कमाई के साथ-साथ कल का भी प्लान बना रहे हैं। एलन मस्क की ये ग्रोथ कोई जादू नहीं, बल्कि उनकी स्ट्रेटेजी, इनोवेशन और रिस्क लेने की क्षमता का कमाल है। अगर इसे दिल्ली की भाषा में कहें, तो ये बंदा हर चाल में मीलों आगे सोचता है।