सहारनपुर के देवबंद में इन दिनों हलचल असामान्य है। वजह है तालिबान सरकार के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी का भारत दौरा। रिपोर्टों के मुताबिक मुत्तकी दिल्ली पहुंच चुके हैं और उन्होंने विदेश मंत्री एस. जयशंकर से मुलाकात की है। इस बीच उनकी संभावित यात्रा सूची में दारुल उलूम देवबंद का नाम भी शामिल है वही संस्थान, जो दक्षिण एशिया में इस्लामी शिक्षा का प्रमुख केंद्र माना जाता है। हालांकि पाकिस्तान की ओर से हाल में अफगानिस्तान में की गई एयरस्ट्राइक के कारण उनके कुछ कार्यक्रमों, जैसे ताजमहल और देवबंद विजिट, में बदलाव की संभावना जताई जा रही है। बावजूद इसके, मुत्तकी का भारत दौरा अपने आप में एक राजनयिक और वैचारिक संदेश लिए हुए है। 1866 में स्थापित दारुल उलूम देवबंद केवल एक मदरसा नहीं, बल्कि एक वैचारिक धारा का केंद्र है, जिसने दक्षिण एशिया की इस्लामी सोच और शिक्षा को गहराई से प्रभावित किया है। यहीं से निकली देवबंदी विचारधारा हनफ़ी फिकह, शरीअत और पारंपरिक इस्लामी शिक्षाओं पर आधारित एक आंदोलन आज दुनिया भर में लाखों अनुयायी रखती है। दिल्ली में मुत्तकी और एस. जयशंकर की मुलाकात ने भारत–अफगानिस्तान संबंधों को फिर से सुर्खियों में ला दिया है। भारत ने इस बैठक में अपने टेक्निकल मिशन को काबुल में पूर्ण दूतावास (Embassy) में अपग्रेड करने का निर्णय घोषित किया है। दोनों देशों के बीच चर्चा में निम्न मुद्दे प्रमुख रहे
आतंकवाद और सीमा पार सुरक्षा, मानवीय सहायता और पुनर्निर्माण, शिक्षा, स्वास्थ्य और ऊर्जा सहयोग एस जयशंकर ने स्पष्ट किया कि भारत अफगानिस्तान की स्थिरता में सहयोग जारी रखेगा, लेकिन यह भी सुनिश्चित करना आवश्यक है कि अफगान धरती किसी भी देश के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल न हो। भारत ने यह भी रेखांकित किया कि दोनों देशों के सामने “पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद” एक साझा खतरा है, जिससे सामूहिक रूप से निपटना जरूरी है। देवबंद की यात्रा तालिबान के लिए केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांकेतिक रूप से राजनीतिक भी है। दारुल उलूम जैसे प्रतिष्ठित इस्लामी संस्थान से संवाद स्थापित करना तालिबान की ‘वैचारिक वैधता’ और ‘सॉफ्ट डिप्लोमेसी’ दोनों के लिए लाभकारी है। तालिबान लंबे समय से अपनी अंतरराष्ट्रीय छवि को एक “सीखे हुए, जिम्मेदार और संवादप्रिय” शासन के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश कर रहा है। ऐसे में देवबंद जैसी जगह पर उपस्थिति उन्हें इस दिशा में एक सशक्त प्रतीकात्मक बढ़त दे सकती है। भारत के लिए यह दौरा अफगानिस्तान में बदलते भू-राजनीतिक समीकरणों को संतुलित करने का अवसर है। अमेरिका की वापसी के बाद क्षेत्र में चीन और पाकिस्तान की बढ़ती सक्रियता ने भारत को नए विकल्प तलाशने पर मजबूर किया है। इस संदर्भ में तालिबान से संवाद बनाए रखना भारत की “व्यावहारिक कूटनीति” (Pragmatic Diplomacy) का हिस्सा है जिसमें सुरक्षा चिंताओं के साथ-साथ भू-राजनीतिक संतुलन को ध्यान में रखा गया है। अब सवाल यह है कि मुत्तकी का यह दौरा किस दिशा में जाएगा। क्या यह भारत–अफगान रिश्तों के लिए एक नई शुरुआत बनेगा, या फिर केवल एक प्रतीकात्मक औपचारिकता साबित होगा, सब्सक्राइब करें ग्रेट पोस्ट न्यूज़।