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Breaking News 11 March 2025

1.)   The Full Story of Mhow Violence 

 

मध्य प्रदेश के इंदौर जिले के महू में भारतीय क्रिकेट टीम की ऐतिहासिक जीत का जश्न अचानक सांप्रदायिक हिंसा में बदल गया। रविवार रात जश्न के दौरान दो गुटों के बीच टकराव इतना बढ़ा कि इलाके में पथराव, आगजनी और तोड़फोड़ की घटनाएं सामने आईं। हालात बिगड़ने के बाद पुलिस को भारी सुरक्षा बल तैनात करना पड़ा। इस मामले में अब तक 13 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है, जबकि 100 से ज्यादा अज्ञात लोगों के खिलाफ 7 एफआईआर दर्ज की गई हैं।

कैसे शुरू हुआ विवाद?

इंदौर ग्रामीण एसपी हितिका वसल के अनुसार, भारतीय टीम की जीत के बाद करीब 100 से अधिक लोग 50 मोटरसाइकिलों पर सवार होकर जुलूस निकाल रहे थे। जैसे ही यह जुलूस जामा मस्जिद के पास पहुंचा, वहां मौजूद लोगों ने पटाखे फोड़े, जिससे विवाद भड़क गया। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, जब यह जुलूस मस्जिद के पास से गुजरा, तब कुछ लोग नमाज पढ़कर बाहर निकल रहे थे। इसी दौरान किसी ने उनकी ओर सुतली बम फेंका, जिससे माहौल तनावपूर्ण हो गया और देखते ही देखते दोनों पक्षों के बीच पथराव शुरू हो गया। एक स्थानीय निवासी ने सवाल उठाया, "मुझे समझ नहीं आ रहा कि यहां से जुलूस क्यों निकाला गया और इसे निकालने की इजाजत थी या नहीं।" कुछ ही देर में यह विवाद पूरे इलाके में फैल गया। हालात ऐसे हो गए कि तीन कारें और एक दर्जन से अधिक दोपहिया वाहन आग के हवाले कर दिए गए। 12 बाइक, 2 ऑटो और 1 कार को जला दिया गया। 2 दुकानों में तोड़फोड़ और आगजनी की गई।
हिंसा की 5 अलग-अलग घटनाएं ताल मोहल्ला, सेवा मार्ग, पट्टी बाजार, मानेक चौक और जामा मस्जिद इलाकों में हुईं। पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर के अनुसार, एक पीड़ित फरियादी ने बयान दिया कि उपद्रवियों ने कहा "हमने पहले से प्लान करके रखा हुआ था। अगर तुम चिल्ला-चिल्लाकर जश्न मनाओगे, तो तुम्हारा इलाज कर देंगे। आज तो बच गए, आइंदा हमारे सामने से जुलूस निकाला तो खत्म कर देंगे।" इंदौर के DIG निमिष अग्रवाल ने बताया कि पुलिस CCTV फुटेज और मोबाइल वीडियो की जांच कर रही है। नकाब पहनकर पथराव और पेट्रोल बम फेंकने वालों की पहचान की जा रही है। सुरक्षाकर्मियों की बड़ी टुकड़ी महू में तैनात कर दी गई है। इंदौर के कलेक्टर आशीष सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि हिंसा की सूचना मिलते ही पुलिस तत्काल मौके पर पहुंची और स्थिति को नियंत्रण में लिया। उपद्रव को लेकर अब एक और बड़ा दावा सामने आया है। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, उपद्रवी न सिर्फ पथराव कर रहे थे, बल्कि देश विरोधी नारेबाजी भी कर रहे थे। यही नहीं, कुछ लोगों को तो भारतीय टीम की चैंपियंस ट्रॉफी में जीत पर भी ऐतराज था। हिंसा के बाद पुलिस प्रशासन पूरी तरह एक्शन मोड में आ गया है। इंदौर ग्रामीण एसपी हितिका वासल ने मौके पर पहुंचकर हालात का जायजा लिया और सुरक्षा व्यवस्था को और कड़ा कर दिया। एसपी वासल के अनुसार, सीसीटीवी और वायरल वीडियो के आधार पर आरोपियों की पहचान की जा रही है और उनकी गिरफ्तारी शुरू हो चुकी है। इस घटना ने एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं कि क्या धार्मिक स्थलों के पास इस तरह के जुलूस निकालना सही है?  फिलहाल, स्थिति नियंत्रण में है, लेकिन इस घटना ने शहर में सांप्रदायिक सौहार्द को गहरा झटका जरूर दिया है। तब तक के लिए देखते रहे ग्रेट पोस्ट न्यूज़।

 

2.) संभाजी महाराज की खून से लिखी हुई कहानी 

 

11 मार्च 1689... तारीख वही, जब मराठा साम्राज्य के शेर, छत्रपति संभाजी महाराज ने अपने प्राणों की आहुति दे दी। लेकिन ये सिर्फ एक हत्या नहीं थी, बल्कि मराठा वीरता का वो अध्याय था, जिसने औरंगजेब के घमंड को चकनाचूर कर दिया। संभाजी... नाम लेते ही एक योद्धा की तस्वीर आंखों के सामने उभरती है। एक ऐसा योद्धा, जिसे बचपन से ही साजिशों में घेरने की कोशिशें हुईं, लेकिन जिसने हर बार अपनी तलवार से जवाब दिया। जब महज दो साल के थे, तब मां को खो दिया। पिता शिवाजी महाराज और दादी जीजाबाई ने उन्हें संस्कृत, राजनीति और युद्धकला में निपुण बनाया। लेकिन जब शिवाजी की दूसरी पत्नी सोयराबाई ने अपने बेटे राजाराम को राजा बनाने की ठानी, तब संभाजी के खिलाफ षड्यंत्रों का जाल बुना गया। शिवाजी को गुमराह किया गया, और नतीजा ये हुआ कि उन्हें कारावास में डाल दिया गया। लेकिन क्या कोई शेर पिंजरे में ज्यादा दिनों तक रह सकता है? संभाजी भाग निकले। मुगलों की शरण ली, लेकिन जब वहां हिंदुओं पर होने वाले अत्याचारों को देखा, तो वापस लौट आए और अपने पिता की विरासत संभाली। 3 अप्रैल 1680 को शिवाजी महाराज का निधन हुआ, और संभाजी ने सिंहासन संभाल लिया। लेकिन यह गद्दी कांटों से भरी थी। अपनों की साजिशें, बाहरी हमले, औरंगजेब का दबाव... लेकिन संभाजी अडिग रहे। उन्होंने हिंदवी स्वराज्य की रक्षा की। संभाजी महाराज को पकड़ना औरंगजेब का सबसे बड़ा सपना था। 1689 में ये सपना पूरा हुआ। लेकिन ये केवल एक बंदी बनाना नहीं था, यह भारतीय इतिहास के सबसे क्रूर अत्याचारों की शुरुआत थी। संभाजी को भैंसों जैसी पोशाक पहनाई गई, लंबी टोपी पहनाकर शहर में घुमाया गया। ऊंट पर बैठाकर अपमानित किया गया। गर्म लोहे की छड़ों से उनकी आंखें फोड़ दी गईं, जीभ काट दी गई, शरीर के अंग-अंग को काटा गया। लेकिन संभाजी ने हार नहीं मानी। उनकी आंखों में वही ज्वाला थी, जो मराठा साम्राज्य की नींव को और मजबूत कर रही थी। औरंगजेब चाहता था कि वे इस्लाम कबूल कर लें, लेकिन संभाजी महाराज ने अपनी आखिरी सांस तक हिंदू धर्म की रक्षा की। जब यातनाओं से भी औरंगजेब का मन नहीं भरा, तो 11 मार्च 1689 को उनका सिर काट दिया गया। लेकिन ये कहानी यहीं खत्म नहीं होती। औरंगजेब ने उनके शरीर के टुकड़ों को तुलापुर की नदी में फिंकवा दिया, ताकि अंतिम संस्कार न हो सके। पर मराठा योद्धाओं ने चुपचाप उनके अंगों को इकट्ठा किया और विधिवत संस्कार कर, इस महान शेर को अंतिम विदाई दी।

संभाजी की शहादत: जिसने औरंगजेब का अंत लिख दिया

संभाजी की मौत के बाद मराठाओं में ऐसा ज्वालामुखी फूटा कि अगले 27 साल तक औरंगजेब दक्कन में फंसा रहा। मराठाओं ने उसकी सल्तनत की नींव हिला दी। और अंततः, वह उसी जमीन पर मरा, जिसे जीतने निकला था। संभाजी महाराज का बलिदान मराठा इतिहास का सबसे गौरवशाली अध्याय है। उनकी शहादत ने यह साबित कर दिया कि तलवारें भले ही गर्दन काट सकती हैं, लेकिन विचार और साहस को नहीं मिटा सकतीं। आज भी संभाजी की कहानी हर हिंदुस्तानी के रगों में जोश भर देती है। उनका बलिदान सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि एक चेतावनी है जो धर्म और राष्ट्र के लिए खड़ा होता है, वो अमर हो जाता है।

 

3.)  दिल्ली में हुआ अग्निकांड 

 

 राजधानी दिल्ली के आनंद विहार इलाके में सोमवार की दरम्यानी रात एक दर्दनाक हादसा सामने आया। एजीसीआर एन्क्लेव केंद्रीय विद्यालय के पास स्थित झुग्गी बस्ती में अचानक भीषण आग लग गई, जिसमें तीन लोगों की जिंदा जलकर मौत हो गई। दिल्ली फायर सर्विस के अनुसार, आग लगने की सूचना देर रात करीब २ बजाकर १५ मिनट पर मिली, जिसके बाद दमकल की तीन गाड़ियां तुरंत मौके पर रवाना की गईं। आधे घंटे की मशक्कत के बाद आग पर काबू पा लिया गया, लेकिन मलबे से तीन शव बरामद किए गए। दमकल कर्मियों द्वारा बरामद शवों की पहचान उत्तर प्रदेश के निवासियों के रूप में हुई है: जग्गी कुमार (34) निवासी बांदा ,श्याम सिंह (36) निवासी औरैया , कांता प्रसाद (35) निवासी औरैया एकमात्र बचने वाला व्यक्ति इस हादसे में नितिन सिंह (32) पुत्र कैलाश सिंह, निवासी विजय नगर, गाजियाबाद किसी तरह अपनी जान बचाने में सफल रहा। नितिन ने बताया कि श्याम सिंह ने सबसे पहले आग की लपटें देखीं और भागने की कोशिश की, लेकिन टेंट का ताला नहीं खुल सका। वहीं, नितिन किसी तरह बाहर निकलने में कामयाब रहा। हादसे में उसके पैर में चोट आई है और वह मामूली रूप से झुलस गया है। प्राथमिक जांच में सामने आया कि टेंट में डीजल से भरी डिबिया रखी हुई थी, जिससे आग भड़कने की आशंका जताई जा रही है। वहीं, एक गैस सिलेंडर फटने की भी सूचना है। पुलिस ने मृतकों के शवों को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया है और मामले की जांच जारी है। आनंद विहार थाना प्रभारी मनीष और एसआई सोकेन्द्र आग लगने के कारणों की गहन जांच कर रहे हैं। हादसे से जुड़ी तमाम परिस्थितियों की पड़ताल की जा रही है, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि आग किसी दुर्घटना का नतीजा थी या इसके पीछे कोई और वजह थी।