संगम तक पहुंचने की राह अब सिर्फ धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि असहनीय कष्ट और यातना से भरा संघर्ष बन चुकी है। लाखों श्रद्धालु सड़कों पर जाम की चक्की में पिस रहे हैं। अयोध्या से प्रयागराज की दूरी महज 165 किलोमीटर है, जिसे आमतौर पर चार घंटे में तय किया जा सकता है। लेकिन इस बार यह सफर श्रद्धालुओं के लिए 18 घंटे का दुरूह संघर्ष बन गया। नन्हे बच्चों को गोद में उठाए महिलाएं, बुजुर्गों की थकी हुई देह और आस्था के सहारे पैदल चलते हजारों लोग ये तस्वीरें किसी युद्धक्षेत्र जैसी लगती हैं, जहां यातायात व्यवस्था दम तोड़ चुकी है। बरेली से आए एक श्रद्धालु ने बताया कि वे परिवार समेत पहले अयोध्या दर्शन के लिए गए, फिर प्रयागराज के लिए रवाना हुए। “हम सुबह आठ बजे निकले थे और रात तीन बजे संगम पहुंचे। रास्ते में बसें और गाड़ियां जाम में फंसी रहीं, लोग थककर सड़क किनारे बैठ गए। लेकिन प्रशासन कहीं नहीं दिखा।
मध्य प्रदेश, बिहार, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के दूरदराज जिलों से आए श्रद्धालु 300 किलोमीटर तक के जाम में फंसे हुए हैं। रीवा, चित्रकूट, कटनी और सतना जैसे शहरों में तो जाम इतना लंबा हो गया कि वहां हजारों वाहन थम गए। रीवा के चाकघाट और चित्रकूट सीमा पर पुलिस को बैरिकेडिंग हटाकर धीरे-धीरे यातायात सुचारू कराना पड़ा। लेकिन तब तक श्रद्धालु बेहाल हो चुके थे। हजारों लोग घंटों तक बिना पानी और खाने के फंसे रहे। प्रयागराज के नजदीक एक ढाबे पर खड़े श्रद्धालु ने बताया, "हमने सोचा था कि दोपहर का भोजन प्रयागराज में करेंगे, लेकिन यहां तो पानी तक मिलना मुश्किल हो गया।"
रेलवे स्टेशन से संगम तट तक पहुंचना भी किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं। श्रद्धालुओं को यहां 30 किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ रहा है। प्रयागराज में घुसते ही गाड़ियां रोक दी जाती हैं, और यहां से आगे बढ़ने के लिए कोई इंतजाम नहीं। जिनके पास पैसे हैं, वे बाइक टैक्सी वालों को 300-400 रुपये देकर कुछ किलोमीटर की दूरी तय कर पा रहे हैं। लेकिन जो यह खर्च नहीं उठा सकते, उनके लिए सिर्फ एक ही विकल्प है पैदल चलो या फिर इंतजार करो। बरेली के ही एक अन्य यात्री ने कहा, “रेलवे स्टेशन से संगम तक पहुंचने में पांच घंटे लगे। किसी को भीड़ में धक्के खाने पड़े, किसी ने छोटे बच्चों को कंधों पर बैठाकर यात्रा की। पानी खरीदने तक के लिए लंबी कतारें थीं।
प्रशासन दावा कर रहा है कि उसने यातायात व्यवस्था को सुचारू बनाने के लिए वाहन डायवर्ट किए हैं और पार्किंग स्थल बनाए हैं। लेकिन हकीकत यह है कि इन पार्किंग स्थलों से श्रद्धालुओं को संगम तक पहुंचाने के लिए कोई सुविधा नहीं दी गई। श्रद्धालु पैदल ही निकलने को मजबूर हैं। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने जाम की भयावह स्थिति को देखते हुए रीवा और आसपास के जिलों में यात्रियों के लिए पानी, भोजन और विश्रामगृह की व्यवस्था करने का आदेश दिया है। लेकिन ज़मीन पर इसका कितना असर हुआ, यह किसी को नहीं पता। श्रद्धालुओं के लिए अभी भी न तो पर्याप्त साधन हैं, न ही कोई राहत का केंद्र।
दिल्ली की सियासत में 'आम आदमी' के नाम पर खड़े अरविंद केजरीवाल की सियासी पटकथा क्या अपने अंतिम अध्याय में प्रवेश कर चुकी है? यह सवाल इसलिए खड़ा हुआ है क्योंकि जिस तेजी से अन्ना आंदोलन की आग से तपकर केजरीवाल राजनीति के शिखर तक पहुंचे थे, उतनी ही तेजी से उनकी लोकप्रियता भी ढलान पर नजर आ रही है। हार के बाद कांग्रेस और 'आप' के रिश्तों में खटास और गहरा गई है। गठबंधन के कई नेताओं ने एकता और सामंजस्य की दुहाई दी, लेकिन कांग्रेस ने दो टूक कहा कि विधानसभा चुनावों में 'आप' ने ही गठबंधन से इनकार किया था, ऐसे में अब दोषारोपण का कोई मतलब नहीं। जब राज्यसभा सांसद और 'आप' के वरिष्ठ नेता संजय सिंह से पूछा गया कि क्या दिल्ली में 'आप' की हार के लिए कांग्रेस जिम्मेदार है, तो उन्होंने कूटनीतिक जवाब देते हुए कहा कि पार्टी अभी समीक्षा कर रही है। यह बयान कांग्रेस और 'आप' के बीच की खाई को और चौड़ा कर सकता है।
हालांकि दिल्ली में हार पर संजय सिंह ने कहा कि लोकतंत्र में जनता का फैसला सर्वोपरि होता है और उनकी पार्टी चुनाव परिणामों का विश्लेषण कर रही है। उन्होंने कहा, "यदि कोई कमी पाई जाती है, तो उसे सुधारा जाएगा।
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में आम आदमी पार्टी को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी। न सिर्फ सत्ता हाथ से निकल गई, बल्कि खुद अरविंद केजरीवाल भी अपनी पारंपरिक नई दिल्ली सीट से चुनाव हार गए। भाजपा ने 70 में से 48 सीटें जीतकर दिल्ली की राजनीति में 27 साल बाद वापसी कर ली, जबकि 'आप' 22 सीटों तक सिमट गई। 2015 में 67 सीटों और 2020 में 63 सीटों वाली पार्टी की यह गिरावट किसी सियासी भूकंप से कम नहीं। दिल्ली में चुनावी हार के कुछ ही दिन पहले, 30 जनवरी को चंडीगढ़ मेयर चुनाव में भी 'आप' को शर्मनाक हार झेलनी पड़ी। कांग्रेस के साथ गठबंधन के बावजूद, 'आप' बीजेपी से बाजी नहीं मार सकी। 35 सदस्यीय नगर निगम में संख्या बल होने के बावजूद हार जाना 'आप' की सियासी कमजोरियों की ओर इशारा करता है। अरविंद केजरीवाल की हार से बड़ा झटका यह है कि 'आप' के कई वरिष्ठ नेता विधानसभा नहीं पहुंच सके। मनीष सिसोदिया, सौरभ भारद्वाज, सोमनाथ भारती, सत्येंद्र जैन, दुर्गेश पाठक, आदिल खान और दिनेश मोहनिया जैसे दिग्गज नेताओं को हार का सामना करना पड़ा। यानी, 'आप' की टॉप लीडरशिप ही विधानसभा से बाहर हो गई। इसके बाद पंजाब में आम आदमी पार्टी को सत्ता में आए दो साल ही हुए हैं, लेकिन कांग्रेस ने अब खुलकर दावा कर दिया है कि 'आप' के 30 विधायक कांग्रेस के संपर्क में हैं। प्रताप सिंह बाजवा ने यहां तक कह दिया कि 'पंजाब में 'आप' टूट जाएगी और भगवंत मान बनाम केजरीवाल की लड़ाई खुलकर सामने आएगी।' दिल्ली चुनावी हार के बाद, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच रिश्तों में दरार और गहरी हो गई है। गठबंधन की अंदरूनी कलह का असर मेयर चुनाव से लेकर विधानसभा चुनाव तक दिखा। अब संजय सिंह कह रहे हैं कि INDIA गठबंधन में बने रहने पर शीर्ष नेतृत्व फैसला करेगा। दिल्ली की सत्ता पर 11 साल तक राज करने वाले अरविंद केजरीवाल के लिए 2025 की हार केवल एक चुनावी झटका नहीं, बल्कि उनकी राजनीति की सबसे बड़ी चुनौती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के साथ एआई एक्शन शिखर सम्मेलन की सह-अध्यक्षता की। इस दौरान उन्होंने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की तेज़ी से बढ़ती भूमिका और उससे जुड़े खतरों पर भी अपनी राय रखी। पीएम मोदी ने कहा कि एआई का विकास बेहद तेज़ी से हो रहा है, और भारत इसके जिम्मेदार और सुरक्षित उपयोग के लिए अपनी विशेषज्ञता साझा करने को तैयार है। उन्होंने बताया कि भारत न केवल एआई को अपनाने में आगे है, बल्कि डेटा गोपनीयता और तकनीकी-कानूनी ढांचे को भी मज़बूत कर रहा है।
प्रधानमंत्री ने ज़ोर देकर कहा कि एआई सिर्फ़ तकनीक नहीं, बल्कि लाखों लोगों के जीवन को बेहतर बनाने का माध्यम भी बन सकता है। खासकर स्वास्थ्य, शिक्षा और कृषि के क्षेत्र में इसका इस्तेमाल गेम-चेंजर साबित हो सकता है। उन्होंने ओपन-सोर्स सिस्टम विकसित करने, भरोसेमंद डेटा सेट बनाने और एआई से जुड़ी गलत सूचना व साइबर सुरक्षा के खतरों से निपटने की ज़रूरत पर बल दिया। एआई के चलते नौकरियां खत्म होने की आशंकाओं पर पीएम मोदी ने कहा कि इतिहास गवाह है कि तकनीक की वजह से नौकरियां पूरी तरह से खत्म नहीं होतीं, बल्कि उनके स्वरूप में बदलाव आता है। इसलिए ज़रूरत इस बात की है कि लोगों को नए स्किल सिखाए जाएं और उन्हें भविष्य के लिए तैयार किया जाए। पीएम मोदी ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि एआई को लेकर वैश्विक स्तर पर सामूहिक प्रयास करने होंगे ताकि यह मानवता के हित में काम करे। उन्होंने इमैनुएल मैक्रों का आभार जताते हुए कहा कि एआई के शासन और मानकों को स्थापित करने के लिए देशों को मिलकर काम करना होगा। संक्षेप में, मोदी ने एआई को अवसर और चुनौती दोनों बताया, लेकिन भरोसा दिलाया कि अगर इसे सही ढंग से अपनाया जाए तो यह विकास में बड़ी भूमिका निभा सकता है। प्रधानमंत्री ने कहा, 'मैं इस शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने और मुझे इसकी सह-अध्यक्षता के लिए आमंत्रित करने के लिए अपने मित्र राष्ट्रपति मैक्रों का आभारी हूं. एआई पहले से ही हमारी अर्थव्यवस्था, सुरक्षा और यहां तक कि हमारे समाज को नया आकार दे रहा है. एआई इस सदी में मानवता के लिए कोड लिख रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, 'हमें अपने संसाधनों और प्रतिभाओं को एक साथ लाना चाहिए और ओपन सोर्स सिस्टम विकसित करना चाहिए जो विश्वास और पारदर्शिता को बढ़ाए. हमें साइबर सुरक्षा, गलत सूचना और डीप फेक से संबंधित चिंताओं को दूर करना चाहिए.'