रविवार की दोपहर, इंडिया गेट ...सैकड़ों लोग, जिनमें बच्चे, बुज़ुर्ग, विद्यार्थी और पर्यावरण कार्यकर्ता शामिल थे, “Right to Clean Air” के पोस्टर लिए सड़कों पर उतरे। कोई अपने बच्चे को मास्क पहना रहा था, कोई इनहेलर पकड़े था, तो कोई पोस्टर पर लिख रहा था “Breathing is killing me.” “Smog से आज़ादी चाहिए।” लेकिन यह आवाज़ ज़्यादा देर खुली नहीं रही। दिल्ली पुलिस ने “अनुमति न होने” का हवाला देकर दर्जनों लोगों को हिरासत में ले लिया, जिनमें कई पत्रकार और छात्र भी शामिल थे। वीडियो सामने आए जहाँ एक महिला एक्टिविस्ट कहती दिखी, “हम हवा मांग रहे हैं, सत्ता नहीं और आप हमें गिरफ्तार कर रहे हैं!” सरकार का कहना है “यह मौसम, पराली और ट्रैफिक का असर है।” पर जनता पूछ रही है “हर साल यही कहानी क्यों दोहराई जाती है?” दिल्ली और NCR में कई प्राइवेट मॉनिटरिंग ऐप्स ने तो 999+ AQI तक दिखाया यानी सिस्टम ने भी हाथ खड़े कर दिए। लेकिन सरकारी वेबसाइट पर वही पुराने आंकड़े: 350, 370… जैसे कि दिल्ली में सिर्फ हल्का धुंध है।
लोगों को शक है कि डेटा “कम दिखाने” की कोशिश हो रही है, ताकि राजनीतिक नुकसान न हो। रविवार की शाम इंडिया गेट पर माहौल गरमा गया। पुलिस ने भीड़ हटाई, कुछ को बसों में भरकर ले जाया गया। पत्रकारों से भी बहस हुई सवाल पूछने पर टकराव। दूसरी तरफ कांग्रेस, AAP, और कई सामाजिक संगठन सड़कों पर उतर आए। राहुल गांधी ने ट्वीट किया “सांस लेने का अधिकार भी अब सरकार से इजाज़त लेकर मिलेगा?” AAP के मंत्री आतिशी ने कहा “केंद्र सरकार ने हर साल यही स्क्रिप्ट दोहराई है पराली पंजाब की, हवा दिल्ली की, दोष जनता का।”
हर बार की तरह इस बार भी कहानी वही है: पराली जलने का मुद्दा पंजाब-हरियाणा के किसानों पर थोप दिया गया। निर्माण गतिविधियों पर सिर्फ कागज़ी रोक लगाई गई। वाहन उत्सर्जन घटाने के नियमों का पालन नहीं हुआ। और Graded Response Action Plan (GRAP), जो दिल्ली की हवा साफ करने के लिए बनाया गया था, वो भी “घोषणाओं” तक सीमित रहा। CPCB (सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड) ने खुद माना “हवा में PM2.5 का स्तर सुरक्षित सीमा से 8 गुना ज्यादा है।” इसका सीधा असर बच्चों और बुजुर्गोंपर पड़ा AIIMS के डॉक्टरों के मुताबिक, “पिछले हफ्ते 20% तक रेस्पिरेटरी मरीज बढ़े हैं।” दिल्ली में अब हवा सिर्फ “इश्यू” नहीं, “पॉलिटिक्स” बन चुकी है। केंद्र कहता है, “AAP सरकार फेल।” AAP कहती है, “केंद्र सिर्फ भाषण दे रहा है।” पर इस पॉलिटिकल पिंग-पोंग के बीच मरता कौन है? वो दिल्लीवाला, जो रोज़ सांस लेने के लिए टैक्स भरता है। लोग अब पूछ रहे हैं “जब साफ हवा का अधिकार संविधान में नहीं लिखा, तो क्या सरकार हमें दम घुटने पर छोड़ दे?” सरकार ने संकेत दिया है कि अगले कुछ दिनों में GRAP-IV लागू हो सकता है यानी निर्माण कार्यों पर रोक, स्कूल बंद, ट्रक एंट्री बैन जैसी सख्त पाबंदियाँ। मगर एक्सपर्ट कह रहे हैं “यह रिएक्शन है, समाधान नहीं।” अगर पराली, ट्रैफिक और इंडस्ट्रियल उत्सर्जन पर एक साथ प्लानिंग नहीं हुई, तो दिसंबर में हालात और बिगड़ेंगे। वहीं एक्टिविस्ट अब अदालत की शरण में जाने की तैयारी में हैं। “Right to Clean Air” को लेकर जनहित याचिका दाखिल हो सकती है। और जनता वो अब सड़कों पर है। क्योंकि जब सांस लेना भी इजाज़त से हो, तो विरोध ही आख़िरी विकल्प रह जाता है।
दिल्ली सरकार को लेकर सोशल मीडिया पर एक लाइन वायरल हुई है “When you can’t change the data, change the data”..... कई रिपोर्ट्स ने यह खुलासा किया कि दिल्ली के प्रदूषण मॉनिटरिंग स्टेशनों के आसपास जानबूझकर पानी का छिड़काव किया जा रहा है, ताकि AQI अस्थायी रूप से गिर जाए। दिल्ली की हवा आज भी देश की सबसे जहरीली हवा है। नवंबर महीने की शुरुआत में दिल्ली का औसत AQI 400 के पार दर्ज हुआ CPCB के मुताबिक यह “Severe” श्रेणी में आता है। राजधानी के आनंद विहार, आईटीओ, अशोक विहार और नरेला जैसे इलाकों में PM2.5 का स्तर 250 से 350 माइक्रोग्राम/क्यूबिक मीटर के बीच बना हुआ है। (मानक सीमा: WHO के अनुसार 25 और भारत के अनुसार 60 माइक्रोग्राम)। सरकार कहती है कि वह हर संभव कदम उठा रही है पानी के टैंकर, एंटी-स्मॉग गन, डस्ट कंट्रोल मेजर्स, ग्रेप-3 और ग्रेप-4 तक के आदेश लागू हैं। लेकिन ज़मीनी हालात कहते हैं कि यह सब “फोटो फ्रेंडली एक्शन” बन गए हैं। दरअसल, अब सवाल यही है क्या दिल्ली में प्रदूषण से लड़ाई “साफ हवा” की है, या “साफ रिपोर्ट” की? क्योंकि एक सर्वे के अनुसार 87% दिल्लीवासी अब सरकार के प्रदूषण डेटा पर भरोसा नहीं करते। दिल्ली सरकार का दावा है कि PM10 का औसत स्तर 2017 के 241 से घटकर 2025 में 203 तक पहुंचा है, लेकिन राष्ट्रीय मानक 60 है। यानी सुधार जरूर हुआ, पर इतना नहीं कि सांस ली जा सके हवा अब भी मौत की तरह घनी है। हालांकि Anand Vihar मॉनिटर स्टेशन के बाहर यह खुलकर देखा गया जहां डेटा कुछ घंटों में 410 से गिरकर 280 दर्ज किया गया...वहीं दिल्ली के दिल से बहने वाली यमुना, अब किसी नदी से ज़्यादा एक नालों का संगम लगती है। Delhi Pollution Control Committee की रिपोर्ट कहती है कि यमुना का सिर्फ 22 किलोमीटर का हिस्सा, जो दिल्ली से गुजरता है, पूरी नदी के कुल प्रदूषण का 80% पैदा करता है। यह वही 22 किलोमीटर है जो हमारे शहर की आत्मा कहलाता है, और वहीं सबसे ज़्यादा मरा हुआ है। Biochemical Oxygen Demand जो यह बताता है कि पानी जीवित प्राणियों के लिए कितना उपयुक्त है ITO ब्रिज के पास 20 mg/L से लेकर ओखला के पास 40 mg/L तक दर्ज हुआ है। सुरक्षित मानक सिर्फ 3 mg/L है। यानि इस नदी में अब मछलियाँ नहीं, फोम (झाग) तैरता है। DPCC की ही एक और रिपोर्ट बताती है कि 37 में से 16 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) अभी भी तय मानकों पर खरे नहीं उतर पा रहे। मतलब साफ है हर साल अरबों रुपये यमुना के नाम पर खर्च होते हैं, लेकिन उसका असर सिर्फ “प्रेस रिलीज़” में दिखता है, पानी में नहीं। 2025 की मार्च में संसद की पर्यावरण समिति ने रिपोर्ट दी कि “यमुना अब जीवन को sustain नहीं कर सकती।” नदी के कई हिस्सों में फीकल बैक्टीरिया (coliform bacteria) का स्तर सुरक्षित सीमा से 4000 गुना अधिक है। फिर भी सरकार हर साल नई योजना, नया नाम, नया वादा लेकर आती है लेकिन नदी वहीं खड़ी है, जहाँ उसकी धारा खत्म और राजनीति शुरू हो जाती है।
इसके अलावा पूजा से पहले सरकार ने “विशेष घाट” बनवाए। चमकदार रोशनी, कृत्रिम तालाब और अस्थायी सफाई ताकि कैमरों में साफ दिखे कि “दिल्ली तैयार है”। लेकिन जब पूजा शुरू हुई, तो वही झाग, वही बदबू और वही गंदा पानी। कई रिपोर्टों में कहा गया कि घाटों पर झाग को “दिखावे के लिए हटाया गया”, और कुछ घंटों बाद फिर वही झाग लौट आया। लोगों ने सोशल मीडिया पर लिखा “हम श्रद्धा से आए थे, लेकिन सरकार ने इसे फोटो ऑप बना दिया।” यह वही प्रतीक है, जो दिखाता है कि अब हर सफाई भी इवेंट मैनेजमेंट बन चुकी है।
वादा बनाम हकीकत
दिल्ली सरकार कहती है “हमने हवा सुधारी, पानी सुधारा, यमुना को जिंदा किया।” लेकिन डेटा कहता है AQI अस्थिर नहीं है और जनता का 87% अब डेटा पर भरोसा नहीं करता ...अगर विकास यही है तो फिर सवाल उठना लाज़मी है। क्योंकि दिल्ली की हवा अब सिर्फ फेफड़े नहीं जला रही, वह सरकार के “क्लीन गवर्नेंस” के दावों को भी धुआं बना रही है। अब दिल्ली में हवा नहीं बदल रही, सिर्फ आंकड़े बदले जा रहे हैं। और जब किसी शहर का डेटा सांसों से ज़्यादा कीमती हो जाए, तो समझो, वहाँ विकास नहीं… धुंध फैल रही है।
सोशल मीडिया पर आजकल एक अजीबो-गरीब ट्रेंड चल रहा है हर कंपनी माफी मांग रही है। किसी को माफ़ी है ज़्यादा स्वादिष्ट खाने के लिए, किसी को माफ़ी है बेहतरीन डिस्काउंट देने के लिए, और किसी को तो इसलिए भी अफसोस है कि उनके प्रोडक्ट्स इतने अच्छे हैं कि लोग रुक ही नहीं पा रहे! पहले तो लगा मामला गंभीर है। शायद किसी ब्रांड से कोई गलती हो गई हो… किसी ग्राहक को ठगा गया हो, या कोई प्रोडक्ट खराब निकला हो।
लेकिन जैसे-जैसे पोस्ट पढ़े, समझ में आया, यह तो कोई माफी नहीं…यह तो नया मार्केटिंग स्टंट है, जहां "सॉरी" भी बिक रहा है और "एंगेजमेंट" भी।
यह ट्रेंड आखिर आया कहां से?
दरअसल, इस “Official Apology Statement Trend” की शुरुआत फिलीपींस से हुई थी। वहां कुछ लोकल ब्रांड्स ने सोशल मीडिया पर यह फॉर्मेट इस्तेमाल किया था “हम माफी चाहते हैं, क्योंकि हम इतने अच्छे हैं कि आप खुद को रोक नहीं पाए।” वो पोस्ट वायरल हुए, और अब वही ट्रेंड भारत में धमाल मचा रहा है।
यहाँ तो ब्रांड्स ने इसे देसी तड़का लगाकर और मजेदार बना दिया सोचिए, जब ब्रांड खुद अपनी तारीफ माफी के बहाने करे तो सोशल मीडिया पर वायरल होना तो तय है!
ब्रांड्स ऐसा क्यों कर रहे हैं?
अब यहाँ आती है कहानी की असली चालाकी। सोशल मीडिया पर आज किसी की लाइक या शेयर की गारंटी नहीं। लेकिन अगर आप लोगों को कन्फ्यूज कर दो तो क्लिक जरूर मिलता है। और “Official Apology Statement” यही करता है। यह एक पल के लिए यूज़र को चौंकाता है “क्या हुआ? किससे गलती हो गई?” और अगले ही सेकंड, जब उसे एहसास होता है कि यह तो मज़ाक है, वो मुस्कुरा देता है, स्क्रीनशॉट लेता है, और स्टोरी में डाल देता है। बस! मार्केटिंग टीम का काम पूरा। कभी-कभी लगता है कि सोशल मीडिया अब भावनाओं की मंडी बन चुका है। जहां गुस्सा, इमोशन, सॉरी सब के रेट लग चुके हैं। ब्रांड्स अब ग्राहक को कस्टमर नहीं, बल्कि कंटेंट कंज़्यूमर समझते हैं। और जब "कंटेंट ही किंग" है, तो “सॉरी” भी अब कंटेंट का किंग साइज फॉर्मेट बन गया है।