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Breaking News 10 February 2025

1 ) दिल्ली का अगला मुख्यमंत्री तय ! 

 

दिल्ली में चुनावी रण जीतने के बाद अब असली लड़ाई उस कुर्सी के लिए है, जो 1998 के बाद पहली बार बीजेपी के हाथ लगी है। मुख्यमंत्री पद को लेकर अटकलों का बाजार गर्म है, लॉबिंग शुरू हो चुकी है, और बीजेपी आलाकमान के दरवाजे पर विधायकों की कतारें लग रही हैं। लेकिन बड़ा सवाल यही है दिल्ली का ताज किसके सिर सजेगा? क्या बीजेपी दिल्ली में कोई जाट मुख्यमंत्री बनाएगी, जिससे हरियाणा, पश्चिमी यूपी और राजस्थान के जाट वोटर्स को साधा जा सके? या फिर पंजाबी और बनिया समुदाय से किसी नेता को आगे बढ़ाएगी, जिससे राष्ट्रीय राजधानी के पारंपरिक वोट बैंक को मजबूत किया जा सके? क्या पूर्वांचलियों की बढ़ती ताकत को देखते हुए कोई पूर्वांचली चेहरा सामने आएगा, या फिर कोई पहाड़ी नेता इस दौड़ में बाज़ी मार लेगा? सबसे बड़ा सवाल यह भी है कि मोदी-शाह की जोड़ी कहीं राजस्थान और मध्य प्रदेश की तरह कोई चौंकाने वाला फैसला तो नहीं करने वाली?

दिल्ली में सत्ता की परिक्रमा 

बीजेपी में मुख्यमंत्री पद को लेकर जबरदस्त मंथन चल रहा है। अमित शाह और जेपी नड्डा की बैठक हो चुकी है और अब फैसला बस अंतिम मुहर का इंतजार कर रहा है। इस बीच विधायकों ने दिल्ली बीजेपी दफ्तर से लेकर संघ मुख्यालय तक अपनी उपस्थिति दर्ज करानी शुरू कर दी है। जो जितना ताकतवर, वह उतना ही ज्यादा आलाकमान के करीब जाने की कोशिश में जुटा है। विधायक संघ के वरिष्ठ नेताओं की परिक्रमा कर रहे हैं, आशीर्वाद ले रहे हैं, ताकि नामांकन की रेस में आगे रह सकें। इस बीच बीजेपी विधायक दल ने उपराज्यपाल को चिट्ठी लिखकर सरकार बनाने का दावा भी पेश कर दिया है। यानी दिल्ली को जल्द ही नया मुख्यमंत्री मिलने वाला है, लेकिन नाम अभी भी गुप्त रखा जा रहा है।

सीएम की रेस में कौन-कौन हैं?

प्रवेश वर्मा  
नई दिल्ली विधानसभा सीट से अरविंद केजरीवाल को हराने के बाद प्रवेश वर्मा का नाम सबसे आगे चल रहा है। वे पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे हैं और बीजेपी में जाट समुदाय का बड़ा चेहरा माने जाते हैं। हरियाणा और राजस्थान में जाटों को मुख्यमंत्री न देने के बाद बीजेपी दिल्ली में यह कार्ड खेल सकती है।

मनोज तिवारी 
दिल्ली में 30% से ज्यादा पूर्वांचली वोटर्स हैं, जो 23 सीटों पर सीधा असर डालते हैं। बीजेपी ने इनमें से 17 सीटें जीती हैं। बिहार और यूपी में चुनाव को देखते हुए बीजेपी पूर्वांचली वोटर्स को संतुष्ट करने के लिए मनोज तिवारी को सीएम बना सकती है। उनकी लोकप्रियता और 3 बार की लोकसभा जीत इस फैसले को मजबूती देती है।

विजेंद्र गुप्ता 
रोहिणी से लगातार तीसरी बार जीतने वाले विजेंद्र गुप्ता बीजेपी के कद्दावर नेता हैं। 2015 की केजरीवाल लहर में जब बीजेपी सिर्फ 3 सीटों पर सिमटी थी, तब भी वे जीतकर आए थे। 2020 में भी जब पार्टी 8 सीटों तक सीमित रह गई थी, विजेंद्र गुप्ता तब भी विजयी रहे। बीजेपी अगर एक सॉफ्ट और अनुभवी नेता को सीएम बनाना चाहती है, तो गुप्ता साहब का दावा मजबूत है।

सतीश उपाध्याय, पवन शर्मा और आशीष सूद 
दिल्ली में पंजाबी समुदाय की अच्छी खासी संख्या है। बीजेपी ने पंजाबी वोटर्स के प्रभाव वाली 28 सीटों में से 23 जीती हैं। ऐसे में पार्टी इस वोट बैंक को सुरक्षित करने के लिए सतीश उपाध्याय, पवन शर्मा या आशीष सूद को सीएम की कुर्सी दे सकती है।

 मनजिंदर सिंह सिरसा 
शिरोमणि अकाली दल छोड़कर बीजेपी में आए मनजिंदर सिंह सिरसा भी एक मजबूत दावेदार हैं। दिल्ली में 10% से ज्यादा सिख मतदाता हैं, और चार सिख बाहुल्य सीटों में से तीन बीजेपी ने जीती हैं। बीजेपी अगर सिखों को संदेश देना चाहती है, तो सिरसा को आगे कर सकती है।

मोहन सिंह बिष्ट:
दिल्ली में 35 सीटों पर पहाड़ी मतदाताओं का प्रभाव है। बीजेपी ने इनमें से 25 सीटें जीती हैं। ऐसे में पहाड़ी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले मोहन सिंह बिष्ट भी इस दौड़ में हैं। वे छह बार के विधायक हैं और इस बार मुस्लिम बाहुल्य मुस्तफाबाद सीट से जीतकर आए हैं।

क्या दिल्ली को महिला सीएम मिलेगी?

मोदी कैबिनेट में रह चुकीं स्मृति ईरानी का नाम चर्चा में है। 2019 में उन्होंने राहुल गांधी को हराकर देश की राजनीति में इतिहास रचा था। वे 2010 से 2013 तक बीजेपी महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रह चुकी हैं। ग्रेटर कैलाश सीट से जीत दर्ज करने वाली शिखा रॉय का नाम भी तेजी से उभर रहा है। शालीमार बाग से चुनाव जीतने वाली रेखा गुप्ता को बीजेपी महिला चेहरे के रूप में पेश कर सकती है। अगर बीजेपी महिला नेतृत्व पर दांव खेलती है, तो स्मृति ईरानी सबसे मजबूत दावेदार होंगी।

13 फरवरी के बाद दिल्ली को मिलेगा नया मुख्यमंत्री

दिल्ली बीजेपी विधायक दल की बैठक चल रही है। विधायकों के इनपुट आलाकमान तक पहुंचाए जा रहे हैं। लेकिन फाइनल नाम तब ही तय होगा जब प्रधानमंत्री मोदी फ्रांस और अमेरिका के दौरे से लौटेंगे। 13 फरवरी के बाद ही नई सरकार का शपथ ग्रहण होगा। सियासी चालें चल दी गई हैं, खिलाड़ी मोहरे सजा चुके हैं, और अब फैसला होने ही वाला है।