सुप्रीम कोर्ट में कल यानि 9 दिसंबर को प्रवासी श्रमिकों के लिए मुफ्त राशन और रोजगार के अवसरों पर सुनवाई हुई। जिसमें जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने कई महत्वपूर्ण सवाल उठाए। मामला कोविड महामारी के दौरान प्रवासी श्रमिकों को राहत देने के लिए उठाए गए कदमों और उनके प्रभाव से संबंधित था। इस दौरान केंद्र सरकार और याचिकाकर्ताओं के बीच तीखी बहस भी हुई।
सवाल उठा कि “कब तक मुफ्त सुविधाएं दी जा सकती हैं?” अदालत ने जोर दिया कि प्रवासी श्रमिकों के लिए केवल मुफ्त राशन देना समाधान नहीं है। उनके लिए रोजगार के अवसर और क्षमता निर्माण पर ध्यान दिया जाना चाहिए। केंद्र ने जानकारी दी कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत 81 करोड़ लोगों को मुफ्त या रियायती दर पर राशन दिया जा रहा है। इस पर टिप्पणी हुई की कि इसका मतलब है कि केवल करदाता ही मुफ्त राशन के लाभ से बाहर हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि जो श्रमिक ‘ई-श्रम’ पोर्टल पर पंजीकृत हैं, उन्हें मुफ्त राशन मिलना चाहिए, भले ही उनके पास राशन कार्ड न हो। लेकिन कोर्ट ने चेतावनी दी कि सभी श्रमिकों को मुफ्त राशन देने का आदेश देने पर राज्य सरकारें प्रवासी श्रमिकों को अपने-अपने राज्यों में लुभाने के लिए राशन कार्ड जारी कर सकती हैं, जिससे केंद्र पर अधिक बोझ पड़ेगा।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने कोविड के समय प्रवासी श्रमिकों को तत्काल राहत देने के लिए रोजाना आदेश जारी किए थे। हालांकि, आज की स्थिति में ऐसे कदम उठाना व्यवहारिक नहीं है। मेहता ने कुछ एनजीओ पर सवाल उठाते हुए कहा कि उन्होंने महामारी के दौरान जमीनी स्तर पर काम नहीं किया और केवल याचिकाएं दायर करने में व्यस्त रहे।
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि केंद्र सरकार 2011 की जनगणना के आंकड़ों का उपयोग कर रही है। जबकि 2021 की जनगणना होनी चाहिए थी। अगर ऐसा हुआ होता, तो प्रवासी श्रमिकों की संख्या अधिक होती। उन्होंने प्रवासी श्रमिकों को राशन कार्ड जारी करने के निर्देशों का भी हवाला दिया। भूषण ने तुषार मेहता पर ईमेल का मुद्दा उठाते हुए आरोप लगाया कि मेहता उनसे नाराज हैं। इस पर मेहता ने कहा कि अदालत को इस पर ध्यान नहीं देना चाहिए और इस तरह की व्यक्तिगत बातों को विवाद का हिस्सा नहीं बनाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों के बीच किसी भी तरह के विभाजन की संभावना को खारिज किया। अदालत ने यह भी कहा कि इस मामले में विस्तृत सुनवाई की जरूरत है। इसके लिए अगली सुनवाई 8 जनवरी 2024 को तय की गई है। अदालत ने यह भी कहा कि कोविड महामारी का समय अलग था, जब प्रवासी श्रमिकों को तत्काल राहत की आवश्यकता थी। प्रवासी श्रमिकों के लिए मुफ्त राशन एक अस्थायी समाधान हो सकता है, लेकिन दीर्घकालिक उपायों में रोजगार और कौशल विकास को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। केंद्र और राज्यों को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी राहत योजना दोनों के बीच विवाद का कारण न बने। एनजीओ की भूमिका और सरकारी योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन एक व्यापक चर्चा का विषय है। यह मुद्दा न केवल सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह नीति निर्माण और न्यायिक हस्तक्षेप के संतुलन को भी रेखांकित करता है।
भारत के उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति श्री जगदीप धनखड़ ने संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान हो रहे लगातार ठहराव और व्यवधान को समाप्त करने के लिए एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की। इस बैठक का उद्देश्य संसद में सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच संवाद स्थापित करना था ताकि सदन की कार्यवाही फिर से सुचारू रूप से शुरू हो सके। बैठक में राज्यसभा में सदन के नेता श्री जगत प्रकाश नड्डा, विपक्ष के नेता श्री मल्लिकार्जुन खड़गे, और अन्य वरिष्ठ नेताओं ने भाग लिया। बैठक करीब 45 मिनट तक चली और इसे संसद के गतिरोध को समाप्त करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम के रूप में देखा जा रहा है।इस बैठक की पुस्टि उपराष्ट्रपति के एक्स हैंडल के ट्वीट से मिली ।इस बैठक के दौरान सभी दल इस बात पर सहमत हुए कि बातचीत और चर्चा के माध्यम से ही समस्याओं का समाधान निकाला जाएगा।
सत्र के दौरान लगातार हंगामा, नारेबाजी और विरोध प्रदर्शनों के चलते संसद की कार्यवाही रुक गई थी। विपक्ष ने इसे विभिन्न नीतिगत मुद्दों और सरकार के रवैये के खिलाफ प्रदर्शन बताया। इसपर सभापति धनखड़ ने इसे "सोची-समझी रणनीति" के तहत सदन को बाधित करने का प्रयास करार दिया। सत्र के दौरान अनुशासनहीनता के लिए 46 सांसदों को निलंबित किया गया था।इसके बाद विपक्ष ने इसे लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के खिलाफ बताया। श्री खड़गे ने इस निलंबन पर अपनी "व्यथा और निराशा" व्यक्त करते हुए इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए नुकसानदायक बताया। धनखड़ ने श्री खड़गे को लिखे अपने पत्र में कहा कि सदन में अनुशासन बनाए रखने के लिए सभी प्रयास किए गए, लेकिन विपक्ष की ओर से सहयोग नहीं मिला। उन्होंने जोर देकर कहा कि सदन का कामकाज बाधित होना जनता के हित में नहीं है। बैठक के दौरान इस बात पर सहमति बनी कि बातचीत को जारी रखा जाएगा। इसके लिए मंगलवार सुबह 10:30 बजे एक और बैठक आयोजित हुई जिसमें गतिरोध समाप्त करने पर चर्चा हुई | सभी पक्षों ने सहमति व्यक्त की कि संवाद और चर्चा के माध्यम से समाधान निकाला जाएगा।
श्री मल्लिकार्जुन खड़गे (विपक्ष के नेता) ने सदन में निलंबित सांसदों का मुद्दा उठाया और इसे लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ बताया। साथ ही उन्होंने यह सवाल किया कि सत्तापक्ष विपक्ष की आवाज दबाने की कोशिश क्यों कर रहा है? खड़गे ने जोर दिया कि निलंबन से विपक्षी नेताओं के अधिकारों का हनन हुआ है। इसके बाद श्री जे.पी. नड्डा (सदन के नेता) ने कहा कि विपक्ष को संसद की कार्यवाही को बाधित करने के बजाय सहयोगात्मक रवैया अपनाना चाहिए।उन्होंने विपक्ष से संवाद के जरिए समस्याओं का हल निकालने की अपील की और कहा कि संसद में चर्चा का माहौल बनाना सभी दलों की जिम्मेदारी है।
इसके अलावा श्री जयराम रमेश और दिग्विजय सिंह (विपक्ष के वरिष्ठ नेता) ने सरकार की नीतियों पर सवाल उठाए और संसद में नीतिगत बहस की आवश्यकता पर जोर दिया। उनका मानना था कि जनता से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों को अनदेखा करना लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करता है। श्री अजय माकन और तिरुचि शिवा ने संसद की कार्यवाही बहाल करने के लिए सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच समन्वय की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने कहा कि दोनों पक्षों को मिलकर संसद की गरिमा बनाए रखने के लिए काम करना चाहिए।इसके बाद केंद्रीय राज्य मंत्री एल. मुरुगन ने विपक्ष से जिम्मेदारी से कार्य करने की अपील की। उन्होंने कहा कि विपक्ष को संसद के नियमों का पालन करते हुए रचनात्मक बहस में भाग लेना चाहिए।
विपक्ष ने कहा कि सरकार लोकतांत्रिक मूल्यों की अनदेखी कर रही है। निलंबन के मुद्दे पर विपक्ष ने कहा कि यह निर्णय लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करता है। उन्होंने सरकार पर मजबूत विपक्ष की आवाज दबाने का आरोप लगाया। इसपर सत्तापक्ष ने विपक्ष पर संसद में हंगामा और नारेबाजी करके कार्यवाही बाधित करने का आरोप लगाया।वहीँ सभापति धनखड़ ने कहा कि विपक्ष को सदन में अनुशासन और मर्यादा बनाए रखनी चाहिए।
बैठक में सहमति बनी कि समस्याओं का समाधान संवाद और चर्चा के माध्यम से ही संभव है। इस बात पर जोर दिया गया कि सदन की कार्यवाही बहाल करने के लिए सभी दलों को मिलकर काम करना होगा। यह बैठक इस बात का प्रमाण है कि लोकतांत्रिक प्रणाली में संवाद और सहमति से जटिल समस्याओं का समाधान संभव है। बैठक के दौरान यह स्पष्ट हुआ कि दोनों पक्ष विवाद को हल करने के लिए तैयार हैं। सभी की निगाहें आज की बैठक पर टिकी हैं, जो यह तय करेगी कि संसद की कार्यवाही कब तक सामान्य स्थिति में लौट सकती है।
भारत के उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति श्री जगदीप धनखड़ ने संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान हो रहे लगातार ठहराव और व्यवधान को समाप्त करने के लिए एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की। इस बैठक का उद्देश्य संसद में सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच संवाद स्थापित करना था ताकि सदन की कार्यवाही फिर से सुचारू रूप से शुरू हो सके। बैठक में राज्यसभा में सदन के नेता श्री जगत प्रकाश नड्डा, विपक्ष के नेता श्री मल्लिकार्जुन खड़गे, और अन्य वरिष्ठ नेताओं ने भाग लिया। बैठक करीब 45 मिनट तक चली और इसे संसद के गतिरोध को समाप्त करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम के रूप में देखा जा रहा है।इस बैठक की पुस्टि उपराष्ट्रपति के एक्स हैंडल के ट्वीट से मिली ।इस बैठक के दौरान सभी दल इस बात पर सहमत हुए कि बातचीत और चर्चा के माध्यम से ही समस्याओं का समाधान निकाला जाएगा।
सत्र के दौरान लगातार हंगामा, नारेबाजी और विरोध प्रदर्शनों के चलते संसद की कार्यवाही रुक गई थी। विपक्ष ने इसे विभिन्न नीतिगत मुद्दों और सरकार के रवैये के खिलाफ प्रदर्शन बताया। इसपर सभापति धनखड़ ने इसे "सोची-समझी रणनीति" के तहत सदन को बाधित करने का प्रयास करार दिया। सत्र के दौरान अनुशासनहीनता के लिए 46 सांसदों को निलंबित किया गया था।इसके बाद विपक्ष ने इसे लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के खिलाफ बताया। श्री खड़गे ने इस निलंबन पर अपनी "व्यथा और निराशा" व्यक्त करते हुए इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए नुकसानदायक बताया। धनखड़ ने श्री खड़गे को लिखे अपने पत्र में कहा कि सदन में अनुशासन बनाए रखने के लिए सभी प्रयास किए गए, लेकिन विपक्ष की ओर से सहयोग नहीं मिला। उन्होंने जोर देकर कहा कि सदन का कामकाज बाधित होना जनता के हित में नहीं है। बैठक के दौरान इस बात पर सहमति बनी कि बातचीत को जारी रखा जाएगा। इसके लिए मंगलवार सुबह 10:30 बजे एक और बैठक आयोजित हुई जिसमें गतिरोध समाप्त करने पर चर्चा हुई | सभी पक्षों ने सहमति व्यक्त की कि संवाद और चर्चा के माध्यम से समाधान निकाला जाएगा।
श्री मल्लिकार्जुन खड़गे (विपक्ष के नेता) ने सदन में निलंबित सांसदों का मुद्दा उठाया और इसे लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ बताया। साथ ही उन्होंने यह सवाल किया कि सत्तापक्ष विपक्ष की आवाज दबाने की कोशिश क्यों कर रहा है? खड़गे ने जोर दिया कि निलंबन से विपक्षी नेताओं के अधिकारों का हनन हुआ है। इसके बाद श्री जे.पी. नड्डा (सदन के नेता) ने कहा कि विपक्ष को संसद की कार्यवाही को बाधित करने के बजाय सहयोगात्मक रवैया अपनाना चाहिए।उन्होंने विपक्ष से संवाद के जरिए समस्याओं का हल निकालने की अपील की और कहा कि संसद में चर्चा का माहौल बनाना सभी दलों की जिम्मेदारी है।
इसके अलावा श्री जयराम रमेश और दिग्विजय सिंह (विपक्ष के वरिष्ठ नेता) ने सरकार की नीतियों पर सवाल उठाए और संसद में नीतिगत बहस की आवश्यकता पर जोर दिया। उनका मानना था कि जनता से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों को अनदेखा करना लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करता है। श्री अजय माकन और तिरुचि शिवा ने संसद की कार्यवाही बहाल करने के लिए सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच समन्वय की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने कहा कि दोनों पक्षों को मिलकर संसद की गरिमा बनाए रखने के लिए काम करना चाहिए।इसके बाद केंद्रीय राज्य मंत्री एल. मुरुगन ने विपक्ष से जिम्मेदारी से कार्य करने की अपील की। उन्होंने कहा कि विपक्ष को संसद के नियमों का पालन करते हुए रचनात्मक बहस में भाग लेना चाहिए।
विपक्ष ने कहा कि सरकार लोकतांत्रिक मूल्यों की अनदेखी कर रही है। निलंबन के मुद्दे पर विपक्ष ने कहा कि यह निर्णय लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करता है। उन्होंने सरकार पर मजबूत विपक्ष की आवाज दबाने का आरोप लगाया। इसपर सत्तापक्ष ने विपक्ष पर संसद में हंगामा और नारेबाजी करके कार्यवाही बाधित करने का आरोप लगाया।वहीँ सभापति धनखड़ ने कहा कि विपक्ष को सदन में अनुशासन और मर्यादा बनाए रखनी चाहिए।
बैठक में सहमति बनी कि समस्याओं का समाधान संवाद और चर्चा के माध्यम से ही संभव है। इस बात पर जोर दिया गया कि सदन की कार्यवाही बहाल करने के लिए सभी दलों को मिलकर काम करना होगा। यह बैठक इस बात का प्रमाण है कि लोकतांत्रिक प्रणाली में संवाद और सहमति से जटिल समस्याओं का समाधान संभव है। बैठक के दौरान यह स्पष्ट हुआ कि दोनों पक्ष विवाद को हल करने के लिए तैयार हैं। सभी की निगाहें आज की बैठक पर टिकी हैं, जो यह तय करेगी कि संसद की कार्यवाही कब तक सामान्य स्थिति में लौट सकती है।
आज 10 दिसंबर है, ह्यूमन राइट्स डे। अब यह दिन सिर्फ कैलेंडर पे तारीख नहीं है, बल्कि हर उस इंसान के हक और इंसाफ की बात करता है जो किसी ना किसी वजह से अपने अधिकारों से वंचित है। तो आखिर ये दिन इतना खास क्यों है? साल 1948 में United Nations General Assembly ने यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स (UDHR) को अपनाया। यह एक ऐसा दस्तावेज़ है जिसने दुनिया के हर इंसान को समानता, आज़ादी और सम्मान के अधिकार दिए। तभी से हर साल 10 दिसंबर को इसे सेलिब्रेट किया जाता है। ये दिन इंसानियत के नाम का "चार्टर" है, जो ये बताता है कि चाहे अमीर हो या गरीब, मर्द हो या औरत, हिंदू हो या मुस्लिम। हर किसी को बराबरी का हक है। इसके अलावा हर साल ह्यूमन राइट्स डे की अलग-अलग थीम होती है। इस बार की थीम “Dignity, Freedom, and Justice for All” है।
1948 में जब यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स (UDHR) बनाया गया था, तो इसका ड्राफ्ट तैयार करने में भारत की तरफ से हंसा मेहता का बड़ा योगदान था। उन्होंने महिलाओं के अधिकारों को शामिल कराने पर खास ज़ोर दिया। उन्होंने ही सुनिश्चित किया कि "All men are created equal" की जगह "All human beings are created equal" लिखा जाए, ताकि महिलाओं को भी बराबरी मिले। इसके अलावा यह बात कम लोग जानते हैं कि UDHR कोई कानूनी दस्तावेज़ नहीं है। ये सिर्फ एक गाइडलाइन है। इसे लागू करने के लिए अलग-अलग देशों ने अपने कानून बनाए हैं। जैसे भारत में मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 बनाया गया, जिसके तहत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) की स्थापना हुई। दिलचस्प बात यह है कि कुछ देश UDHR को पूरी तरह से नहीं मानते। जैसे सऊदी अरब ने इसे इस आधार पर खारिज किया कि इसमें इस्लामिक कानूनों के खिलाफ बातें हैं।
नेगेटिव राइट्स कहता है कि सरकार को किसी इंसान की आज़ादी में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। पॉजिटिव राइट्स में सरकार को नागरिकों के लिए सुविधाएं और अवसर प्रदान करने होते हैं। भारत जैसे देश में अक्सर पॉजिटिव राइट्स की मांग ज्यादा होती है – जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार। अगर आंकड़ों की बात करें, तो उत्तर कोरिया, सीरिया, और म्यांमार जैसे देश सबसे ज्यादा मानवाधिकारों का उल्लंघन करते हैं। भारत की बात करे तो दिल्ली में मानवाधिकारों के लिए कई बड़े आंदोलन हुए हैं। निर्भया केस (2012) में महिलाओं के अधिकारों को लेकर पूरे देश को हिला दिया था। इसके बाद शाहीन बाग प्रोटेस्ट (2019) में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन ने ह्यूमन राइट्स की बहस को फिर से शुरू किया था । दिल्ली में कई छोटे-छोटे ग्रुप और NGO हैं, जो चुपचाप ह्यूमन राइट्स पर काम कर रहे हैं।
बच्चों से काम करवाना गैरकानूनी है, लेकिन चाय की दुकानों पर ये आम है। उनके हक का क्या, जो सालों से सिस्टम में दबे हैं? क्लाइमेट जस्टिस भी तो इंसानियत का हिस्सा है। जागरूक बनो और दूसरों को जागरूक करो। जो लोग अपने अधिकारों से वंचित हैं, उनकी मदद करो। सोशल मीडिया पर कैंपेन चलाओ, मुद्दों पर खुलकर बात करो। NGOs और ग्रुप्स के साथ जुड़कर जमीन पर काम करो। ह्यूमन राइट्स डे हमें ये याद दिलाने का दिन है कि "सिस्टम में बहुत दिक्कतें हैं, लेकिन बदलाव की शुरुआत हमारे अपने गली-मोहल्ले से ही हो सकती है।" तो आज सिर्फ हक की बात नहीं, बल्कि इंसाफ की भी बात होनी चाहिए। "इंसानियत जिंदा रहे, यही ह्यूमन राइट्स डे का असली मकसद है।"