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Breaking News 1 Septmber 2024

1.) ATS ने गोरखपुर से गिरफ्तार किया चीनी जासूस?

नेपाल के रास्ते अवैध तरीके से घुसते हुए दबोचे गए 

नेपाल के रास्ते भारत में घुसपैठ करते समय सोनौली सीमा पर पकड़े गए चीनी नागरिक गोरखपुर क्यों आ रहे थे, अब इसकी जांच गोरखपुर ATS यानि आतंकवाद निरोधक दस्ता करेगी। इस महीने की एक तारीख यानि 1 अगस्त को महराजगंज जिले के सोनौली थाने में दर्ज मुकदमे से जुड़े सभी दस्तावेज को विवेचना कर रहे ATS को सौंप दिए गए हैं। जांच में बड़ी साजिश का पर्दाफाश हो सकता है। एक अगस्त को नेपाल से आ रहे दो चीनी नागरिकों समेत तीन लोगों को SSB व खुफिया एजेंसी की टीम ने चेकिंग के दौरान सोनौली में पकड़ा था। 

चीनी नागरिकों ने भारतीय सेना में की घुसपैठ?

लबसंग नाम का एक वक्ति अपने साथ चीनी नागरिक जू वाकयांग व यंग मेंगमेंग को गोरखपुर लेकर आ रहा था। इसके लिए काठमांडू के एक व्यक्ति ने उसे 33 हजार रुपये मिले थे। पूछताछ में पता चला कि पिछले 20 वर्ष से काठमांडू में रहने वाले तिब्बती नागरिक लबसंग शेरिंग के पिता भारतीय सेना में सैनिक थे। खुफिया एजेंसी व SSB की टीम ने भाषा विशेषज्ञ की मदद से जब दोनों चीनी नागरिकों से भारत आने की वजह पूछा तो उन्होंने जाँच एजेंसी को गुमराह करने के लिए बताया कि वो जड़ी-बूटी के पौधे की तलाश में भारत में अवैध तरीके से घुसपैठ कर रहे थे।

पूरे नेटवर्क की छानबीन में जुटी ATS

चीनी नागरिकों के पास से भारतीय नागरिकता से संबंधित फर्जी दस्तावेज मिलने के बाद खुफिया एजेंसी के अधिकारियों ने दोनों की गतिविधि को संदिग्ध बताते हुए उच्च स्तरीय जांच कराने की सिफारिश की थी। जिसके बाद एसपी महराजगंज सोमेंद्र मीणा ने भी मुख्यालय के अधिकारियों को पूछताछ की रिपोर्ट भेजी थी। इसके बाद पुलिस मुख्यालय के अधिकारियों ने इस मामले की विवेचना एटीएस को सौंप दी। केस को सौंपे जाने के बाद अब ATS चीनी जासूसों से जुड़े पूरे नेटवर्क की छानबीन करेगी और इन सवालों का जवाब का पता लगाने की कोशिश करेगा कि काठमांडू में लबसंग शेरिंग को 33 हजार रुपये किसने दिए। गोरखपुर पहुचंने के बाद चीनी नागरिक किसके साथ और कहां जाते। एजेंसी को पूछताछ से पत्ता चला की लबसंग शेरिंग हिमाचल के अलावा दिल्ली,मणिपुर समेत पूर्वाेत्तर के कई राज्य में भी रह चुका है।

चीनी जासूसों पर दर्ज कराया गया मुकदमा

एसएसबी के उपनिरीक्षक तरुण कुमार आदक की तहरीर पर सोनौली थाना पुलिस ने चीनी नागरिकों समेत तीन के विरुद्ध नकली दस्तावेज तैयार कर जालसाजी करने व विदेशी अधिनियम 1946 की धारा 14 के तहत मुकदमा दर्ज कराया है। पकड़े गए सभी आरोपित इस समय जिला कारागार महराजगंज में बंद है।

 

2 .) निकाह हो या तलाक...हर मुस्लिम को कराना होगा रजिस्ट्रेशन

क्या है असम का नया मुस्लिम मैरिज बिल?

असम विधानसभा ने बीते 29 अगस्त को 'असम मुस्लिम मैरिज बिल’ पारित कर दिया। बता दें, असम विधानसभा ने मुसलमानों के विवाह और तलाक के अनिवार्य सरकारी रजिस्ट्रेशन के लिए एक विधेयक पारित किया है। असम मुस्लिम विवाह और तलाक का अनिवार्य पंजीकरण विधेयक, 2024 मंगलवार को राजस्व और आपदा प्रबंधन मंत्री जोगेन मोहन ने पेश किया था। अब ये कानून बनते ही असम में मुस्लिमों को मौलवी के पास शादी का रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी नहीं होगा। साथ ही नाबालिग से शादी पर 6 महीने की जेल भी हो सकती है। मुस्लिम समुदाय अब इस बिल का विरोध कर रहा है। 

रजिस्ट्रेशन से बाल विवाह पर लगेगी रोक

मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने इस मामले में कहा कि काजियों की तरफ से किए गए विवाह के सभी पुराने रजिस्ट्रेशन वैध रहेंगे और केवल नए रजिस्ट्रेशन कानून के दायरे में आएंगे। सीएम ने आगे कहा, हम मुस्लिम कार्मिक कानून के तहत इस्लामी रीति-रिवाजों से होने वाली शादियों में बिल्कुल भी हस्तक्षेप नहीं कर रहे हैं। हमारी एकमात्र शर्त यह है कि इस्लाम की तरफ से निषिद्ध विवाहों को रजिस्टर नहीं किया जाएगा। उन्होंने ये भी कहा कि इस नए कानून के बनने से बाल विवाह रजिस्ट्रेशन पर पूरी तरह से रोक लग जाएगी। उद्देश्य और कारण में कहा गया है कि यह विधेयक बाल विवाह और दोनों पक्षों की सहमति के बिना विवाह की रोकथाम के लिए प्रस्तावित किया गया है।

शादी बाद पत्नी को छोड़ने पर लगेगी रोक

असम सरकार में आपदा प्रबंधन मंत्री जोगेन मोहन ने इस मामले में कहा, इससे बहु-विवाह पर रोक लगाने में मदद मिलेगी, विवाहित महिलाओं को वैवाहिक घर में रहने, भरण-पोषण आदि के अपने अधिकार का दावा करने में मदद मिलेगी और विधवाओं को अपने विरासत अधिकारों और अन्य लाभों और विशेषाधिकारों का दावा करने में मदद मिलेगी, जिनकी वे हकदार हैं। उन्होंने ये भी कहा, हम मुस्लिम शादी और तलाक को सरकारी तंत्र के तहत लाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि यह विधेयक पुरुषों को शादी के बाद पत्नी छोड़ने से भी रोकेगा और विवाह के लिए बनाई गई संस्था को मजबूत करेगा। पहले, मुस्लिम विवाह काजियों की तरफ से रजिस्टर किए जाते थे। लेकिन अब यह नया विधेयक यह सुनिश्चित करेगा कि समुदाय के सभी विवाह सरकार के साथ रजिस्टर होंगे।

 

3) हरियाणा में कांग्रेस को भारी पड़ सकती है गुटबाजी

हरियाणा में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव से पहले ही कांग्रेस की अंदरूनी कलह और गुटबाजी अब लट्ठम-लट्ठा में बदलती नजर आ रही है। हद तो यह कि अभी न तो कांग्रेस की ओर से प्रत्याशी तय किये गए और न ही नामांकन-पत्र भरे गए, मतदान अभी दूर की बात है। इन सब के बाबजूद पार्टी में मुख्यमंत्री की कुर्सी के दावेदारों की लंबी कतार खड़ी हो गई है। सीएम पद पाने की होड़ में शामिल सिरसा से पार्टी की सांसद कुमारी सैलजा ने तो यहां तक कह दिया है कि वो हर हाल में विधानसभा चुनाव लड़ेंगी। सैलजा मुखर हुई हैं तो कुछ चेहरे ऐसे भी हैं जो मुख्यमंत्री बनने की अपनी चाहत दबाए बैठे हैं और कांग्रेस के इन दिग्गजों की निगाहें भी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बराबर टिकी हुई हैं।

सैलजा की कड़ी प्रतिक्रिया... कांग्रेस में कुर्सी की कलह तेज

कांग्रेस प्रभारी दीपक बाबरिया के सांसदों को विधानसभा का टिकट नहीं दिए जाने के बयान के बाद कुमारी सैलजा ने कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर की है। उन्होंने कहा है कि दीपक बाबरिया के बयान को अधूरा पढ़ा और समझा गया है। बाबरिया ने साथ ही यह भी कहा है कि यदि कांग्रेस हाईकमान अनुमति देगा तो लोकसभा और राज्यसभा सदस्य विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं। हमें लोकसभा अथवा राज्यसभा सदस्य भी कांग्रेस हाईकमान ने ही बनाया है। मैं हर हाल में विधानसभा चुनाव लड़ने वाली हूं। यदि कांग्रेस हाईकमान से अनुमति लेनी पड़ी तो लूंगी। सैलजा के इस स्टैंड और सुरजेवाला की मूक सहमति के बाद कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद की लड़ाई ज्यादा तेज होने वाली है। सैलजा को इस मुद्दे पर सुरजेवाला का समर्थन मिल सकता है। यदि सैलजा विधानसभा चुनाव लड़ने में कामयाब हो जाती हैं तो फिर सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा और रणदीप सिंह सुरजेवाला की ओर से भी विधानसभा चुनाव लड़ने का प्रयास किया जा सकता है, ताकि उनकी मुख्यमंत्री पद की दावेदारी किसी तरह भी कमजोर ना पड़ सके।

कांग्रेस के किन दिग्गजों को कुर्सी की चाह?

कांग्रेस में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा, कांग्रेस महासचिव एवं सांसद कुमारी सैलजा और रणदीप सिंह सुरजेवाला की मुख्यमंत्री पद पर निगाह है। भूपेंद्र हुड्डा के सांसद बेटे दीपेंद्र हुड्डा भी मुख्यमंत्री पद की कतार में हैं। करीब 10 साल तक भाजपा की राजनीति कर कांग्रेस में वापस लौटे पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह और कांग्रेस ओबीसी विभाग के चेयरमैन एवं पूर्व मंत्री कैप्टन अजय यादव भी स्वयं को मुख्यमंत्री पद का दावेदार मानकर अपनी-अपनी बिसाक बैठने में लगें हैं।