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Breaking News 1 November 2025

1 )  चित्रकूट में देव दीपावली क्यों मनाई जा रही है ? 

चित्रकूट, जो मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश सीमा पर स्थित एक प्राचीन तीर्थस्थल, इस समय धार्मिक उत्साह और भव्यता का केंद्र बना हुआ है। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर यहाँ देव दीपावली मनाई जा रही है वह पर्व, जब हजारों-लाखों श्रद्धालु मंदाकिनी नदी के तट पर दीपदान करते हैं और पूरा शहर सुनहरी रोशनी में नहा उठता है।

 देव दीपावली क्या है

देव दीपावली, जिसे “देवों की दीपावली” भी कहा जाता है, हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया था, इसलिए इसे त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। ऐसा विश्वास है कि इस दिन देवता स्वयं धरती पर उतरकर पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और दीपदान करते हैं। यही कारण है कि बनारस, प्रयागराज और चित्रकूट जैसे पवित्र स्थलों पर इस दिन का विशेष महत्व है। चित्रकूट हिंदू धर्म की सबसे प्राचीन और पूजनीय स्थलों में से एक है। यह वही स्थान है जहाँ भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण ने अपने 14 वर्ष के वनवास में लगभग 11 वर्ष बिताए थे। स्थानीय मान्यता के अनुसार, वनवास के दौरान एक अमावस्या की रात माता सीता ने जंगल के गहन अंधकार में दीप जलाए थे। तभी से दीपदान की यह परंपरा यहाँ चली आ रही है।हर वर्ष दीपावली और देव दीपावली के अवसर पर मंदाकिनी नदी के घाटों पर लाखों श्रद्धालु दीप जलाकर इस परंपरा को जीवित रखते हैं। रामघाट, जानकी कुंड, भरद्वाज आश्रम, अत्री-महर्षि आश्रम और गुप्तगोदावरी जैसे धार्मिक स्थलों पर लोगों की भारी भीड़ उमड़ती है।

 आयोजन की भव्यता

इस वर्ष चित्रकूट की देव दीपावली में 12 लाख से अधिक दीये जलाए गए, जिससे पूरा घाट प्रकाश से नहा उठा। मंदाकिनी नदी का हर किनारा, हर घाट, हर मंदिर दीपों से सजा हुआ है। शाम होते ही जब हजारों दीप जलते हैं, तो उनका प्रतिबिंब नदी के जल में ऐसा दृश्य बनाता है, मानो पूरी नदी स्वयं दीप बन गई हो।
यहाँ दीपदान के साथ-साथ धार्मिक अनुष्ठान, आरती, भजन-कीर्तन, कथा वाचन और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। स्थानीय प्रशासन और पर्यटन विभाग इस आयोजन को “दीपदान महोत्सव” के रूप में संरक्षित कर रहा है, ताकि चित्रकूट की पहचान राष्ट्रीय स्तर पर और मज़बूत हो।
देव दीपावली के अवसर पर न केवल आसपास के जिलों से बल्कि दूर-दराज़ के राज्यों से भी श्रद्धालु यहाँ पहुँचते हैं। मंदाकिनी घाट पर दीपदान करने के लिए लगभग 12 लाख श्रद्धालु इस वर्ष जुटे। इसके अलावा बड़ी संख्या में पर्यटक भी इस दिव्य दृश्य को देखने आए। स्थानीय प्रशासन ने सुरक्षा व्यवस्था, यातायात प्रबंधन और साफ-सफाई पर विशेष ध्यान दिया है। पूरे क्षेत्र में सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं, ड्रोन से निगरानी की जा रही है और घाटों पर एनडीआरएफ की टीमें तैनात की गई हैं। चित्रकूट की देव दीपावली अब सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं रही, बल्कि आध्यात्मिक पर्यटन का प्रमुख आकर्षण बन चुकी है। मंदाकिनी के तटों की यह दीपमाला अब वाराणसी की देव दीपावली के समान ही भव्य मानी जा रही है।
प्रदेश सरकार ने भी इसे धार्मिक पर्यटन सर्किट में शामिल किया है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी लाभ हो रहा है। होटल, स्थानीय दुकानें, हस्तशिल्प बाजार और परिवहन सेवाएँ इस दौरान अपनी सर्वाधिक गतिविधि पर रहती हैं।

 

2 )  गोरखपुर में चल रहा फिल्म फेस्टिवल और बुक फेस्टिवल : जानिए सब कुछ

गोरखपुर इन दिनों कुछ अलग है। सड़कों पर सिर्फ ट्रैफिक की आवाज़ नहीं, बल्कि बातचीत में फिल्मों के नाम और किताबों के टाइटल्स भी तैर रहे हैं। 31 अक्टूबर से 2 नवंबर तक गोरखपुर के एडी मॉल में चल रहे जागरण फिल्म फेस्टिवल 2025 ने शहर के फिल्मप्रेमियों के लिए एक नया अनुभव दिया। तीन दिनों का यह आयोजन दिखाता है कि गोरखपुर में भी सिनेमा के लिए भूख कम नहीं है, बस मंच चाहिए। यहाँ “The Taj Story”, “Appu”, “Reflection of Chhath Puja”, “Bhrashtachar”, “Papa J” और “Random Yamam” जैसी फिल्मों ने दर्शकों को सोचने पर मजबूर किया कहीं इतिहास और आस्था का संगम, तो कहीं समाज की सच्चाई की कड़वी परतें। फिल्म ‘Appu’ ने बच्चों के मासूम सपनों को स्क्रीन पर उतारा, ‘Bhrashtachar’ ने पत्रकार की कहानी के ज़रिए व्यवस्था की धूल झाड़ी, और ‘Reflection of Chhath Puja’ ने बिहार-पूर्वांचल की लोकभावना को दस्तावेज़ की तरह पेश किया। “पंचायत” फेम फैसल मलिक भी पहुंचे, और दर्शकों से कहा “अच्छी कहानियाँ सिर्फ मुंबई में नहीं बनतीं, वो तो हर उस जगह जन्म लेती हैं जहाँ लोग सच्चाई को महसूस करते हैं।” उनकी बात पर तालियाँ बजीं, और गोरखपुर ने यह महसूस किया कि अब यहाँ सिनेमा सिर्फ देखा नहीं जाएगा  उस पर बात भी होगी, बहस भी होगी।
उधर, 1 नवंबर से दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के मैदान में किताबों का समंदर उमड़ा। गोरखपुर बुक फेस्टिवल 2025 का उद्घाटन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया, और कहा  “बच्चे रील्स में नहीं, रीडिंग में समय दें यही असली ज्ञान है।” NBT (नेशनल बुक ट्रस्ट) और विश्वविद्यालय के सहयोग से आयोजित यह नौ दिवसीय उत्सव (1 से 9 नवंबर) गोरखपुर के लिए किसी ‘साहित्यिक महाकुंभ’ से कम नहीं। 100 से ज़्यादा प्रकाशक, 200 स्टॉल, और हजारों किताबें  हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, संस्कृत से लेकर भोजपुरी तक सबकी अपनी महक। यहाँ “बाल मंडप” में बच्चों के लिए कहानी सत्र, पपेट शो और रचनात्मक वर्कशॉप हो रही हैं, जबकि “साहित्यिक मंच” पर लेखक और कवि अपने विचार साझा कर रहे हैं। शाम को विश्वविद्यालय के लॉन में संगीत, नाटक और लोककला के कार्यक्रमों से माहौल जीवंत हो उठता है। ये सब मिलकर दिखाते हैं कि गोरखपुर अब सिर्फ धार्मिक श्रद्धा का शहर नहीं, बल्कि ज्ञान और सृजन का केंद्र भी बन रहा है। CM योगी आदित्यनाथ ने फेस्टिवल में कहा कि राज्य में हर स्कूल में लाइब्रेरी को अनिवार्य किया जाएगा, ताकि बच्चों में पढ़ने की आदत फिर से विकसित हो। यह पहल गोरखपुर को उत्तर प्रदेश की शिक्षा और सांस्कृतिक नीति का प्रयोगशाला शहर बना रही है। गोरखपुर के इन दोनों आयोजनों की सबसे बड़ी खूबी यही है कि यहाँ सिर्फ आयोजन नहीं हो रहे, संवाद हो रहा है। फिल्मों पर चर्चा, किताबों पर बहस, और कला पर सराहना ये सब गोरखपुर को धीरे-धीरे उस दिशा में ले जा रहे हैं जहाँ “छोटा शहर” अब कोई सीमित परिभाषा नहीं, बल्कि संभावनाओं का दूसरा नाम बन रहा है।