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Breaking News 1 August 2025

1.) पेपर लीक, परीक्षा रद्द, लाठीचार्ज ! क्या यही है डिजिटल भारत ? 

दिल्ली के जंतर-मंतर पर फिर एक बार आवाज़ें गूंजीं लेकिन न जयघोष था, न जश्न का शोर। ये आवाज़ें थीं टूटी उम्मीदों की, सिस्टम से सवाल करती आंखों की, और उस दर्द की जो हर बार परीक्षा रद्द होने, पेपर लीक होने, और बेरहमी से लाठी खाए जाने के बाद भी मौन नहीं होता ।गुरुवार को SSC अभ्यर्थियों ने दिल्ली में प्रदर्शन किया। उनकी मांगें सीधी और जायज़ थीं  पारदर्शिता, जवाबदेही और परीक्षा प्रक्रिया में सुधार। लेकिन जवाब में मिला  लाठीचार्ज, गिरफ्तारी, और तिरस्कार। और यही नहीं, जब कुछ नामी शिक्षक, जैसे नीतू मैम, अभ्यर्थियों के साथ खड़े होकर DOPT के मंत्री से मिलने पहुँचे, तो उन्हें भी पीछे धकेला गया। पूछिए क्यों? क्योंकि ये सिर्फ "मिलने" की कोशिश कर रहे थे।
 देश के करोड़ों युवाओं के लिए सरकारी नौकरी सिर्फ रोज़गार नहीं, बल्कि इज्ज़त, आत्मनिर्भरता और जीवन की दिशा होती है। लेकिन जब चयन प्रक्रिया ही बार-बार संदेह के घेरे में आ जाए, जब पेपर लीक होना आम हो जाए, जब परीक्षा देने के लिए निकले युवाओं को आधी रात तक परीक्षा केंद्रों में रोका जाए और वो भी बिना पानी, बिना सुविधा, और फिर शिकायत करने पर थप्पड़-मुक्के मिलें तब ये सिर्फ परीक्षा की विफलता नहीं होती, ये एक सिस्टम की नैतिक विफलता होती है।  क्या अब देश में किसी मंत्री से मिलने की कोशिश भी ‘कानून व्यवस्था’ के खिलाफ कृत्य हो गया है? हर बार नया वादा होता है "इस बार पारदर्शी चयन होगा", "पेपर लीक नहीं होगा", "टेक्निकल गड़बड़ियां नहीं होंगी"  लेकिन हर बार वही पुरानी कहानी दोहराई जाती है। इस बार SSC सिलेक्शन पोस्ट फेज 13 परीक्षा बिना सूचना रद्द कर दी गई। तकनीकी गड़बड़ियों के नाम पर सर्वर क्रैश, गलत परीक्षा केंद्र आवंटन, और सुरक्षा में लापरवाही यही तो है आज की ‘डिजिटल इंडिया’ की हकीकत! और सबसे खतरनाक है जवाबदेही का अभाव। कौन ज़िम्मेदार है? कोई नहीं जानता। कौन जवाब देगा? कोई नहीं देता। आखिर क्यों हर बार जवाब वही छात्र देता है जिसकी सालों की मेहनत एक लीक हुए पेपर के साथ बह जाती है? इस आंदोलन को सिर्फ एक परीक्षा के रद्द होने तक सीमित समझना भूल होगी। ये उस भारत के युवाओं की लड़ाई है जो मेहनत पर विश्वास करते हैं, और जिनके विश्वास को हर बार सिस्टम ध्वस्त करता है। जब शिक्षक भी इस लड़ाई में उनके साथ खड़े हों, जब पुलिस और प्रशासन खुद अड़चन बन जाए, तब यह एक शिक्षा या रोजगार का संकट नहीं रह जाता  ये एक लोकतांत्रिक ढांचे पर सवाल बन जाता है। सवाल जो चीखते हैं पर सत्ता मौन है ।परीक्षा बार-बार क्यों रद्द होती है? तकनीकी विफलताएं क्यों बार-बार होती हैं? छात्रों को बेसिक सुविधाएं तक क्यों नहीं मिलतीं? और अगर कोई अपनी बात कहने जाए, तो उसे लाठी क्यों मिलती है ।

 

2.) 100 में 2 ही लड़कियां पवित्र? प्रेमानंद महाराज के बयान पर बवाल क्यों? 

समाज जब विचारों के संक्रमण काल से गुजरता है, तो कई बार वही आवाजें जो दिशा देने वाली मानी जाती हैं, बहस की वजह बन जाती हैं। ऐसा ही कुछ हाल ही में उस वक्त हुआ, जब संत प्रेमानंद महाराज की महिलाओं को लेकर की गई एक टिप्पणी ने धार्मिक और सामाजिक हलकों में तीखी प्रतिक्रियाओं को जन्म दे दिया। यह मामला सिर्फ एक बयान का नहीं, बल्कि एक व्यापक विमर्श का हिस्सा बन चुका है जिसमें धार्मिक नैतिकता, नारी की सामाजिक भूमिका, आधुनिक संबंधों की परिभाषा, और धर्मगुरुओं की भाषा की मर्यादा चारों आपस में गुँथ गए हैं।

क्या कहा गया, और क्यों बना मुद्दा?

संत प्रेमानंद महाराज के एक प्रवचन का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ, जिसमें उन्होंने कहा “आज के समय में 100 में से मुश्किल से दो-चार लड़कियां ही पवित्र होती हैं। बाकी सभी बॉयफ्रेंड-गर्लफ्रेंड के चक्कर में लगी होती हैं। इसीलिए युवक शादी नहीं करना चाहते, क्योंकि उन्हें लगता है कि लड़कियों पर भरोसा करना मुश्किल है।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि, “जो युवक या युवती पहले से एक से ज्यादा संबंधों में रह चुके हों, वो विवाह के बाद स्थिर नहीं रह पाते।” इस बयान के तुरंत बाद देशभर में प्रतिक्रिया की लहर दौड़ गई खासकर मथुरा, जहां से संत का जुड़ाव रहा है, और जहां स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि संघर्ष न्यास ने इसका खुला विरोध किया।

धार्मिक संगठनों की आपत्ति: संतुलन की मर्यादा पर सवाल

न्यास के अध्यक्ष दिनेश शर्मा ने बयान पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा“इस तरह के शब्द महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचाते हैं और युवाओं को विवाह संस्था से विमुख कर सकते हैं। समाज में संतों की वाणी को लोग श्रद्धा से सुनते हैं, ऐसे में संयम जरूरी है।” प्रदेश अध्यक्ष गुंजन शर्मा ने इसे "राधा रानी जैसे स्त्री आदर्शों का अपमान" बताया और संतों से अपेक्षित भाषा की मर्यादा का हवाला दिया। वहीं अन्य धार्मिक नेताओं जैसे महामंडलेश्वर राधा नंद गिरी, महंत रास बिहारी, और अश्विनी शर्मा (RSS) ने भी इसे "धार्मिक मंच से उठी अनुचित और एकपक्षीय टिप्पणी" करार दिया। इन नेताओं ने चेतावनी दी है कि यदि संत प्रेमानंद महाराज माफी नहीं मांगते, तो न्यास आंदोलन करने के लिए बाध्य होगा।

समर्थन की भी मौजूदगी: नैतिक चिंता या बयान की व्याख्या?

इस विवाद के बीच कुछ लोगों ने संत के बयान को समाज में गिरते नैतिक मूल्यों पर एक चिंता के रूप में देखा। उनके समर्थकों का तर्क है कि महाराज का मकसद किसी को अपमानित करना नहीं, बल्कि सामाजिक विमर्श को नैतिक दिशा देना था। उनके मुताबिक, प्रेमानंद महाराज ने वर्तमान पीढ़ी में स्थायित्व और प्रतिबद्धता की कमी को रेखांकित किया है। उनका यह भी मानना है कि, “आज रिश्तों की अनिश्चितता, सोशल मीडिया के प्रभाव और उपभोक्तावादी सोच ने युवाओं में पारिवारिक मूल्यों की जगह अस्थिरता भर दी है। संत की चिंता इसी पर है।”

क्या है युवा पीढ़ी का मिला-जुला नजरिया

युवाओं की प्रतिक्रिया इस मसले पर सबसे विविध रही है।  कुछ ने इसे "पुरानी सोच का प्रतीक" बताते हुए कहा कि पवित्रता का माप अतीत से नहीं, आज की सोच और सम्मान से होना चाहिए। वहीं कुछ युवाओं का मानना है कि रिश्तों में स्थिरता और नैतिकता ज़रूरी हैं, और संतों की बातों में कहीं न कहीं सतर्कता का संदेश छिपा है। यह मामला उस गहराई को उजागर करता है जहां परंपरा और आधुनिकता के बीच खींची जाने वाली रेखाएं धुंधली पड़ जाती हैं। फिलहाल प्रेमानंद महाराज की ओर से इस विवाद पर कोई औपचारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है जुड़े रहें हमसे आगे की अपडेट्स जानने के लिए ।

 

3.) करो या मरो की जंग में पिछड़ती दिख रही है टीम इंडिया 
 
भारत और इंग्लैंड के बीच ऐतिहासिक एंडरसन-तेंदुलकर ट्रॉफी 2025 का पांचवां और निर्णायक टेस्ट मैच लंदन के ओवल क्रिकेट ग्राउंड पर खेला जा रहा है। गुरुवार से शुरू हुआ यह मुकाबला अब दूसरे दिन में प्रवेश कर चुका है, और परिस्थितियां साफ तौर पर इंग्लैंड के पक्ष में झुकती नज़र आ रही हैं। भारत ने अपनी पहली पारी में महज़ 224 रन बनाए, जो इस निर्णायक मुकाबले के लिहाज़ से नाकाफी साबित हो सकता है। यह मैच भारत के लिए ‘do or die’ स्थिति जैसा है सीरीज बराबर करनी है तो जीत जरूरी है, वरना ट्रॉफी इंग्लैंड के नाम हो जाएगी।

पहले दिन बारिश और गीली आउटफील्ड के चलते सिर्फ 64 ओवर का ही खेल संभव हो पाया। इस दौरान भारतीय बल्लेबाज़ों का top-order पूरी तरह से लड़खड़ा गया। यशस्वी जायसवाल (2), केएल राहुल (14), कप्तान शुभमन गिल (21), साई सुदर्शन (38), रवींद्र जडेजा (9) और ध्रुव जुरेल (19) सस्ते में लौट गए। 153 के स्कोर पर 6 विकेट गिरने के बाद भारत की स्थिति बेहद नाज़ुक हो चुकी थी। ऐसे वक्त में करुण नायर और वॉशिंगटन सुंदर ने संयम दिखाते हुए सातवें विकेट के लिए महत्वपूर्ण साझेदारी निभाई और पहले दिन का बचा हुआ खेल संभाला।

दूसरे दिन की शुरुआत भारत के lower-order collapse के साथ हुई। करुण नायर 57 रन बनाकर Josh Tongue की गेंद पर LBW हो गए। इसके बाद Gus Atkinson ने सुंदर (26), मोहम्मद सिराज (0) और प्रसिद्ध कृष्णा (0) को पवेलियन भेजते हुए भारतीय पारी को 224 रनों पर समेट दिया। इंग्लैंड की ओर से Gus Atkinson ने सबसे ज्यादा 5 विकेट लिए, जबकि Josh Tongue को 3 सफलता मिली।

भारत के जवाब में इंग्लैंड की पारी की शुरुआत तूफानी रही। Ben Duckett और Zak Crawley ने One-day mode में बल्लेबाज़ी करते हुए भारतीय गेंदबाज़ों की line and length को पूरी तरह से बिगाड़ दिया। दोनों बल्लेबाज़ों ने ऐसा दबाव बनाया कि भारत के पास early breakthroughs निकालने का कोई मौका ही नहीं दिखा। इस पिच पर गेंदबाज़ों से discipline और variation की जरूरत थी, लेकिन भारतीय आक्रमण फीका नजर आया। फिलहाल, इंग्लैंड जिस लय में खेल रहा है, उसे देखते हुए भारत के लिए यह मैच बचाना भी एक कठिन चुनौती बनता जा रहा है। अब भारत की सारी उम्मीदें उसके bowling unit पर टिक गई हैं। अगर भारतीय गेंदबाज़ इंग्लैंड की इस आक्रामक शुरुआत को रोकने में असफल रहे, तो यह टेस्ट और ट्रॉफी दोनों हाथ से फिसल जाएंगे। ऐसे में भारत को सिर्फ गेंद से नहीं, रणनीति और मानसिक दृढ़ता से भी वापसी करनी होगी।